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''बात नहीं सुनी गई तो वोट की चोट से बात समझा देंगे''

"भले ही हम परेशान हैं लेकिन हमें कम न समझें हम झांसी की रानी हैं। हम वोट की चोट पर अब सरकार को समझा देंगे कि अगर हमारी मांगों को नहीं माना गया तो आपको कुर्सी ख़ाली करनी होगी।''
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''हमीं महिलाओं ने मोदी जी को कुर्सी पर बैठाया था और आज हम इसी केंद्र की सरकार से जवाब मांगने आए हैं कि जिस वक़्त आपको वोट की ज़रूरत थी आप हाथ जोड़कर हमारे घरों तक आए थे, आज हमारा बजट कम कर दिया, हमारा पांच-पांच महीने का पैसा (मानदेय) नहीं दिया, छोटे-छोटे बच्चे वाली महिलाएं, विधवा महिलाएं जो स्कूलों में बच्चों को खाना बनाकर देती हैं उनके घर जाकर देखें वे ख़ुद दाने-दाने को मोहताज हो रही हैं।

यही हालात आंगवाड़ी में काम करने वाली महिलाओं की है उनका भी मानदेय रुका हुआ है और यही कहानी आशा वर्कर्स की है, भले ही हम परेशान हैं लेकिन हमें कम न समझें हम झांसी की रानी हैं। हम वोट की चोट पर अब सरकार को समझा देंगे कि अगर हमारी मांगों को नहीं माना गया तो आपको कुर्सी ख़ाली करनी होगी।''

सोनीपत से आई इन महिलाओं को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भले ही ये महिलाएं मजबूर हों लेकिन उन्हें कम नहीं आंका जा सकता, वक़्त पड़ने पर वे अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद करना अच्छी तरह से जानती हैं। बच्चों को गोद में लिए, सामान को कंधे पर लिए रैली में पहुंची इन महिलाओं को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भले ही मजबूर हैं लेकिन कमज़ोर नहीं। इन महिलाओं का कहना था कि '' अब तक तो हम अलग-अलग मिलकर आवाज़ उठा रही थीं लेकिन अब हम सब मिलकर आवाज़ उठाने के लिए दिल्ली पहुंची हैं।

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सिरसा (हरियाणा) से किसान मजदूर संघर्ष रैली में CITU के बैनर तले मिड डे मील वर्कर, आशा वर्कर, आंगनबाड़ी में काम करने वाली महिलाएं, मजदूर सफाई कर्मचारी, किसान आए। क़रीब एक हज़ार लोग इस जत्थे में आए। इनमें ज़्यादातर महिलाएं थीं।

लाल, नीले और हरे रंग के सूट में दिखी ये महिलाएं बताती हैं कि ''हरियाणा में मिड डे मील में काम करने वाली वर्कर्स की वर्दी बदल गई है लेकिन कुछ के पास वर्दी ख़रीदने तक के पैसे नहीं हैं इसलिए जिन्हें आप नीले रंग के सूट में देख रही हैं वे पुरानी वर्दी में ही आई हैं।

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इन महिलाओं के पास बहुत कुछ कहने को है, वे सवाल करती हैं कि ''अडानी, अंबानी के कर्जे माफ हो रहे हैं लेकिन आशा वर्कर का रुका हुआ पैसा देने में क्या दिक्कत है? हमसे कितना काम करवाया जाता है ये सरकार को पता होना चाहिए, ऑनलाइन, ऑफ लाइन हम हर तरह के काम कर रहे हैं लेकिन हमारा वेतन क्यों रोका जा रहा है''?

पिछले छह महीने से बगैर वेतन के अपने छोटे-छोटे बच्चों को ये महिलाएं कैसे पाल रही हैं ये रैली में सोनीपत से पहुंची महिला ने बताया।

हर महिला वर्कर के पास अपनी ही कहानी थी एक मिड डे मील बनाने वाली वर्कर रनजीत कौर बताती हैं कि उनके दो बच्चे हैं एक आठ साल का और दूसरा नौ साल का, पति खेत मजदूर है बेबस रनजीत कौर बताती हैं कि मिड डे मील बनाने वालों के साथ किस तरह की सरकारी नाइंसाफी हो रही है।

रनजीत कौर अकेली ऐसी नहीं हैं उनके साथ ही और भी महिला वर्कर्स ऐसी ही कहानियों के साथ दिल्ली पहुंची हैं लेकिन अब देखना होगा कि सरकार इन मेहनतकश लोगों की परेशानी सुनती है कि नहीं?

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