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क्या मोदी सरकार ने तेल निकालने के लिए असम में पर्यावरण संबंधी मंजूरी देकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन किया है?

इस बीच गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने पर्यावरणीय मंजूरी पर तब तक के लिए रोक लगा दी है, जब तक कि ओआईएल द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दिए गए शपथ पत्र के अनुसार जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन का संचालन नहीं कराया जाता है।
असम
फाइल फोटो

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा असम के वर्षावनों वाले क्षेत्रों में जैव-विविधता प्रभाव आकलन से पूर्व ही हाइड्रोकार्बन की खोज के काम को हरी झंडी दिए जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जैसा कि सर्वोच्च नयायालय के आदेशानुसार ऐसा करना अनिवार्य है अब गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने असम में सात नए तेल के कुओं के अन्वेषण के काम के लिए ड्रिलिंग के काम को लेकर आयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) को केंद्र सरकार द्वारा दी गई पर्यावरणीय मंजूरी पर रोक लगा दी है 

सार्वजनिक क्षेत्र के इस हाइड्रोकार्बन प्रमुख को जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन न होने के बावजूद 11 मई, 2020 को इस परियोजना की मंजूरी दे दी गई थी, जिसे पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य बना दिया था पारिस्थितिकी तौर पर संवेदनशील डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय पार्क में इस परियोजना के तहत हाइड्रोकार्बन की उपस्थिति का पता लगाया जाना है, जिसमें एक्सटेंडेड रीच ड्रिलिंग (ईआरडी) तकनीक के माध्यम से तिनसुकिया जिले के संरक्षित क्षेत्र की परिधि के बाहर सात स्थानों पर इसे संचालित किया जाना है

गुवाहाटी उच्च न्यायालय की एक खण्डपीठ जिसमें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एन कोटीश्वर सिंह और न्यायमूर्ति मनीष चौधरी शामिल थे, ने हाइड्रोकार्बन कम्पनी के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए इस आदेश को जारी किया है

7 दिसंबर के उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है “उक्त आदेश में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष रुपे से स्पष्ट कर दिया था कि आयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) अपने 25.07.2017 को दिए गए शपथ पत्र से बंधा हुआ है, जिसके तहत ओआईएल को असम राज्य जैव-विविधता परिषद के जरिये जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन के काम को करना होगा किसी भी ड्रिलिंग गतिविधि को शुरू करने से पहले बजटीय प्रस्ताव पहले से ही 12.05.2017 को हासिल कर लिया गया था..जब तक कि असम राज्य जैवविविधता परिषद द्वारा इस गतिविधि को पूरा नहीं कर लिया जाता, तब तक 11.05.2020 को जारी की गई पर्यावरणीय मंजूरी को ओआईएल द्वारा एक्सटेंशन ड्रिलिंग एंड टेस्टिंग ऑफ़ हाइड्रोकार्बन वाले काम को तिनसुकिया के डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय पार्क के 7 (सात) स्थानों पर शुरू नहीं किया जा सकता है

याचिकाकर्ताओं द्वारा आरोप लगाया गया है कि इस परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी केंद्र सरकार द्वारा दी गई थी जो कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करती है

यह परियोजना 2016 से पाइपलाइन में चल रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कंपनी ने 25 जुलाई, 2017 को एक शपथ पत्र दिया था, कि वह असम राज्य जैव-विविधता परिषद के माध्यम से जैव विविधता प्रभाव के अध्ययन के काम को करेगा। राष्ट्रीय उद्यान में हाइड्रोकार्बन के अन्वेषण के काम को करीब 4,000 फीट गहरे तक करने से पूर्व इस अध्ययन के काम को किया जाना है। इस वचनबद्धता एवं अन्य प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए वन्य जीव राष्ट्रीय परिषद (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति ने अन्वेषण की गतिविधियों को एक संरक्षित क्षेत्र में शुरू करने के प्रस्ताव को 29 जुलाई, 2017 में अपनी मंजूरी दे दी थी। 7 सितम्बर, 2017 के दिन सर्वोच्च न्यायालय ने एक वार्ताकार के आवेदन एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत ओआईएल उसी स्थिति में अन्वेषण गतिविधियों को चलाने की अनुमति दी गई थी, यदि वह अपने स्वंय के शपथपत्र पर कायम रहता है।

हालाँकि केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईऍफ़&सीसी) जिसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता प्रकाश जावेडकर की अगुआई प्राप्त है, ने इस वर्ष 11 मई को, कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लागू राष्ट्रव्यापी संपूर्ण लॉकडाउन के बीच में ही ओआईएल को पर्यावरणीय मंजूरी दे डाली थी यह मंजूरी 27 मई को हुए बाघजन गैस रिसाव की घटना के कुछ दिन पहले ही प्रभाव आकलन अध्ययन किये बिना ही प्रदान कर दी गई थी 

याचिकाकर्ताओं के लिए सलाहकार के तौर पर नियुक्त वकील देबजीत दास का इस बारे में कहना था “यह घोड़े के आगे गाड़ी को लगाने जैसा क्लासिक मामला है पर्यावरणीय मंजूरी पहले ही प्रदान कर दी गई जबकि जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन के काम को बाद में किया जाएगा

हालाँकि ओआईएल ने उच्च न्यायालय को यह भी सूचित किया है कि प्रभाव आकलन अध्ययन की प्रक्रिया पहले से ही शुरू हो चुकी थी

ओआईएल अधिकारियों के अनुसार केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इस परियोजना के लिए मंजूरी दिए जाने की निर्धारित शर्तों में जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन की शर्त भी शामिल की गई थी

न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बात में ओआईएल के प्रवक्ता त्रिदिव हज़ारिका ने कहा “पर्यावरण मंजूरी की शर्तों में जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन को संचालित करना भी एक शर्त है, और हम इसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं इसके लिए हम पहले से ही राज्य जैव-विविधता परिषद से बातचीत कर रहे हैं ओआईएल द्वारा फिलहाल सिर्फ सात स्थानों को अन्वेषी कुओं की ड्रिलिंग के लिए अस्थाई तौर पर चुना गया है इस परियोजना पर काम की शुरुआत तभी हो सकती है जब हम जमीन अधिग्रहण और इसके लिए निविदा जारी कर किसी एजेंसी को, जिसका ईआरडी टेक्नोलॉजी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का अनुभव हो, का चयन करेंगे परियोजना को शुरू करने से पहले हम अध्ययन को संचालित किये जाने के प्रति प्रतिबद्ध हैं

अन्य बातों के साथ इस सन्दर्भ में एक प्रश्नावली एमओईऍफ़&सीसी एक प्रश्न के साथ ई-मेल की गई है इसमें इस सवाल को उठाया गया है कि ओआईएल के सामने पर्यावरण मंजूरी हासिल करने से पहले जैव-विवधता प्रभाव आकलन अध्ययन की पूर्व शर्त क्यों नहीं लगाईं गई इस ई-मेल पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं प्राप्त हुई है जब मंत्रालय द्वारा ईमेल का जवाब दिया जाएगा, तो इस लेख को अपडेट कर दिया जायेगा

जब इस संबंध में उड़ीसा के पर्यावरणीय एवं वन्य-जीव कार्यकर्त्ता बिस्वजीत मोहंती से पर्यावरणीय मंजूरी दिए जाने और उसके बाद जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन को संचालित किये जाने के क्रम के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था “जैविक प्रभाव आकलन अध्ययन के निष्कर्षों को ध्यान में रखे बगैर पर्यावरणीय मंजूरी देने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है अध्ययन के निष्कर्षों पर बिना कोई विचार किये आप कैसे पर्यावरणीय मंजूरी को दे सकते हैं?”

ओआईएल संचालित बाघजन तेल कुएं में लगी आग जो लगातार कई महीनों तक जारी रही, जिसके कारण कई जिंदगियों से हाथ धोना पड़ा, बड़े पैमाने पर विस्थापन का सामना करना पड़ा और डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास के वर्षावनों की नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को व्यापक पैमाने पर नुकसान पहुँचा था भारतीय वन्य-जीव संस्थान द्वारा संचालित अध्ययन ने आग से होने वाले नुकसान की मात्रा का आकलन करने के लिए किए गए एक अध्ययन में सिफारिश की है कि यदि इस क्षेत्र में नए कुओं और अन्वेषण के काम को संभावित प्रभाव की गहन जाँच के बाद शुरू किया जाता है “यह न सिर्फ विवेकपूर्ण होगा बल्कि सभी प्रकार के जीवन के रूपों के हित में आवश्यक होगा।” इसके साथ ही आपदा से निपटने की क्षमता के मूल्यांकन एवं यथोचित तकनीक और कुशल श्रम-शक्ति की उपलब्धता के अनुसार इस्तेमाल में लाया जाना चाहिए

अगस्त में बाघजन तेल कुएं में लगी आग आपदा की पृष्ठभूमि में एक्सटेंशन ड्रिलिंग प्रोजेक्ट के खिलाफ गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई थी पीआईएल में यह आरोप लगाया गया था कि भले ही यह विशेष परियोजना 2016 से ही पाइपलाइन में चल रही थी, लेकिन इस हाइड्रोकार्बन कंपनी ने एक संशोधन के आधार पर महत्वपूर्ण ‘सार्वजनिक विचार-विमर्श’ की प्रक्रिया को, जिसे जनवरी 2020 में कहीं जाकर पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 में संशोधन किया गया था, के चलते दरकिनार कर दिया है

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 

Modi Govt Flouted SC Order in Granting Environmental Clearance to OIL India in Assam?

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