Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ख़बरों के आगे-पीछे: अमेरिका में मीडिया से नहीं बच सके मोदी

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन दिल्ली में मुख्यमंत्री चुनने में हो रही देरी के साथ मोदी की अमेरिकी में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस समेत कई मुद्दों की चर्चा कर रहे हैं।
Modi

मुख्यमंत्री चुनने में इतनी ड्रामेबाजी क्यों? 

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए एक सप्ताह से भी ज्यादा समय हो गया है, लेकिन भाजपा अभी तक यह तय नहीं कर पाई है कि दिल्ली का नया मुख्यमंत्री कौन होगा? मुख्यमंत्री पद के आधा दर्जन दावेदार यहां वहां भागदौड़ कर रहे हैं। कोई पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिल रहा है तो कोई उप राज्यपाल वीके सक्सेना के यहां दौड़ लगा रहा है। एक प्रबल दावेदार बताए जा रहे नेता तो बिना समय लिए ही गृह मंत्री अमित शाह के घर पहुंच गए, जहां बड़ी हुज्जत और मिन्नत के बाद वे शाह से मिल सके। 

यह सब इसलिए चल रहा है क्योंकि भाजपा ने नतीजों के तुरंत बाद विधायक दल की बैठक कराने और नेता चुनने की परंपरा को खत्म कर दिया है। 

अब हर राज्य के चुनाव नतीजे के बाद एक से दो हफ्ते तक का ड्रामा चलता है। फिर खानापूर्ति के लिए बुलाई गई विधायक दल की बैठक में केंद्रीय पर्यवक्षेक अपनी जेब से पर्ची निकालता है, जैसे जादूगर अपनी हैट से खरगोश निकालता है। पर्यवेक्षक की पर्ची पर भावी मुख्यमंत्री का नाम लिखा होता है। ऐसा नहीं है कि पहले कभी मुख्यमंत्री तय करने में देरी नहीं होती थी। पहले भी होती थी या अब भी कई जगह होती है लेकिन उसका कारण दूसरा होता है।

दो ही स्थितियों में विधायक दल की बैठक और नेता के चुनाव में देरी होती है। पहली स्थिति यह है कि पार्टी का आलाकमान कमजोर हो और वह किसी नाम पर आम सहमति नहीं बनवा पा रहा हो। जैसा कांग्रेस के साथ इन दिनों हो रहा है। लेकिन ऐसी स्थिति भाजपा के साथ तो नहीं है। दूसरी स्थिति होती है कि पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला हो, बहुमत का इंतजाम करना हो या सहयोगी पार्टियां दबाव डाल रही हो। लेकिन जितने राज्यों में भाजपा ने विधायक दल की बैठक बुलाने और मुख्यमंत्री का नाम तय करने का ड्रामा किया उनमें कहीं भी ऐसी स्थिति नहीं थी और दिल्ली में भी नहीं है।

अमेरिका में मीडिया से नहीं बच सके मोदी 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस चीज से भारत में पिछले दस साल से बचते आ रहे हैं, उससे अपनी इस अमेरिका यात्रा के दौरान नहीं बच सके। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आखिरकार मोदी का मीडिया से सामना करा ही दिया। दोनों नेताओं की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी कई सवालों का जवाब देने में परेशान दिखे और कई सवालों पर ट्रंप के जवाबों ने उन्हें असहज किया। मोदी को सबसे ज्यादा असहज उनके मित्र गौतम अदाणी से संबंधित सवाल ने किया। 

गौरतलब है कि अमेरिका में अदाणी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमा दर्ज है। इस बारे में पूछे गए सवाल पर मोदी का असहज होना स्वाभाविक था, क्योंकि वे ऐसे सवालों का सामना करने के आदी नहीं हैं... और फिर यह सवाल तो 'आप आम कैसे खाते हैं’ या 'आप थकते क्यों नहीं हैं’ जैसा भी नहीं था। 

उनसे पूछा गया था कि क्या आपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अदाणी के मामले में बात की है? अंग्रेजी में पूछे गए इस सवाल का मोदी ने हिंदी में जो जवाब दिया, उसका सवाल से कोई संबंध नजर नहीं आया। उन्होंने पहले तो बेचारगी और लड़खड़ाहट भरे लहेजे में कहा, ''भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हमारे संस्कार और हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम की है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हर भारतीय को मैं अपना मानता हूं।’’ चूंकि सवाल अदाणी से संबंधित था, इसलिए उस पर कुछ तो कहना ही था, सो उन्होंने बेहद विचित्र भाव-भंगिमा बनाते हुए कहा कि ''ऐसे व्यक्तिगत मामलों के लिए दो देशों के मुखिया न मिलते हैं, न बैठते हैं, न बात करते हैं।’’ यह बात कहते हुए मोदी न तो अपनी झल्लाहट छुपा नहीं सके और न ही अदाणी से अपने व्यक्तिगत रिश्तों को। 

इस एक सवाल और उसके जवाब से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि मोदी भारत में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से क्यों बचते हैं!

कुछ तो वजह है इस पर्देदारी की

संसद में बजट सत्र के सातवें दिन एक दिलचस्प घटनाक्रम हुआ, जिसे मीडिया में कहीं-कहीं ही जगह मिली। राज्यसभा में प्रश्नकाल में एक तारांकित प्रश्न वापस ले लिया गया, जो पहले स्वीकार कर लिया गया था। लेकिन जब जवाब देने का मौका आया तो उसे वापस ले लिया गया। प्रश्न भाजपा सांसद लक्ष्मीकांत वाजपेयी का था। प्रश्न वापस लिए जाने को लेकर सभापति जगदीप धनखड़ और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बीच बहस भी हुई। 

खरगे ने कहा कि इस तरह से प्रश्न वापस नहीं हो सकता है। इस पर धनखड़ ने कहा कि पहले भी ऐसा होता रहा है और यह सामान्य प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि नियमों के तहत ही फैसला हुआ है। दिलचस्प मामला यह नहीं है कि फैसला नियम के तहत हुआ या नहीं, दिलचस्प तो वह प्रश्न था, जिसे वापस लिया गया। 

भाजपा सांसद वाजपेयी ने पूछा था कि नोएडा में कितने बिल्डरों ने सरकारी एजेंसियों को दिया जाने वाला शुल्क जमा नहीं कराया है। उन्होंने बिल्डरों के नाम और बकाया राशि के बारे में पूछा था। उनका कहना था कि राशि बकाया होने की वजह से मकान आबंटित होने के बाद भी लोगों को उसका कब्जा नहीं मिल रहा है। 

अब सवाल है कि इस प्रश्न में ऐसा क्या था, जिसका जवाब सरकार नहीं देना चाहती है? क्या कोई खास बिल्डर है या कई बिल्डर हैं, जिनका नाम जाहिर नहीं होने दिया जा रहा है? क्या राशि बहुत ज्यादा बकाया है, जिसका आंकड़ा सामने आने से लोगों में सरकार के खिलाफ मैसेज जाता? 

भापजा इसे वंशवाद नहीं मानती! 

दिल्ली में नए सिरे से विधानसभा बहाल होने के बाद पहला चुनाव 1993 में हुआ था, जिसमें भाजपा ने 49 सीटें जीत कर दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन तीन साल बाद जैन हवाला डायरी में नाम आने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। उसके बाद साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बने और 1998 में विधानसभा चुनाव से तीन महीने पहले सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री बनी थीं। भाजपा ने अपने इन तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों की संतानों को सांसद या विधायक बना कर एडजस्ट कर दिया है। भाजपा के पहले मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के बेटे हरीश खुराना काफी समय से संगठन की राजनीति कर रहे थे। वे विधायक नहीं बन पा रहे थे। इस बार उनकी भी नाव पार लग गई। वे मोतीनगर सीट से विधायक बन गए हैं। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को लोकसभा का चुनाव लड़ाया था और वे नई दिल्ली सीट से जीत कर सांसद बन गई हैं। साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा दो बार से लोकसभा का चुनाव जीत रहे थे लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया था। उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाया गया और उन्होंने अरविंद केजरीवाल को हरा दिया। इस तरह दिल्ली के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे-बेटी दिल्ली में ही एडजस्ट हो गए हैं। जाहिर है भाजपा भी पुराने नेताओं के बच्चों का ख्याल रखती है। हां, वंशवाद सिर्फ कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों में ही है। 

पंजाब में कोई उठापटक नहीं होगी

दिल्ली में सत्ता से बेदखल हुई आम आदमी पार्टी के लिए अब पंजाब में भी मुश्किलें खड़ी करने के लिए कांग्रेस और भाजपा की ओर से कोशिशें हो रही हैं। यह प्रचार किया जा रहा है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार गिर जाएगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि आम आदमी पार्टी के 30 विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं। दूसरी ओर भाजपा ने प्रचार शुरू किया है कि दिल्ली में चुनाव हारने के बाद अरविंद केजरीवाल अब पंजाब का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। 

कहा जा रहा है कि अब वे पंजाब मॉडल की बात करेंगे। दिल्ली में उनके हाथ में पुलिस और जमीन नहीं थी। हर मामले में उप राज्यपाल से मंजूरी लेनी होती थी। लेकिन पंजाब में ऐसा नहीं है। वे वहां अपना मॉडल बना सकते हैं। लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। केजरीवाल पंजाब का मुख्यमंत्री बनने का प्रयास करने की गलती नहीं करेंगे। उन्हें पता है कि जिस तरह की कट्टरपंथी गतिविधियां पंजाब में उभर रही हैं, उसमें सिख के अलावा कोई दूसरा मुख्यमंत्री कबूल नहीं होगा। अगर केजरीवाल ऐसा प्रयास करेंगे तो उनकी पार्टी टूट जाएगी। यह बात वे जानते हैं। 

जहां तक 30 विधायकों के कांग्रेस के संपर्क में होने की बात है तो यह एक मनोवैज्ञानिक दांव है। पंजाब में आम आदमी पार्टी के सभी 92 विधायक पूरी तरह एकजुट हैं। अगर 30 विधायक अलग भी होते हैं तो सरकार नहीं गिरेगी, उल्टे अलग होने वाले विधायकों की सदस्यता खतरे में आ जाएगी। 

हर परीक्षा में एनटीए की पोल खुल रही है पोल

भारत सरकार ने 'एक देश-एक परीक्षा एजेंसी’ की अपनी सनक में जब से नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए का गठन किया है तब से लगभग हर परीक्षा में इस एजेंसी ने छोटी-बड़ी गलती की है। पिछले साल के मेडिकल दाखिले की परीक्षा की गड़बड़ी तो पूरे देश में हुई, जिसके लिए एजेंसी की खूब थू-थू हुई। अदालतों से फटकार पड़ी और मजबूरी में सरकार को एक कमेटी बनानी पड़ी, जिसने एनटीए में सुधार के सुझाव दिए। इस सुझावों के आधार पर अब एनटीए को सिर्फ दाखिला परीक्षाएं करानी हैं और नौकरियों की परीक्षा उससे छीन कर अलग-अलग एजेंसियों को दे दी गई है। इसके बावजूद एजेंसियों से होने वाली गड़बड़ियों का सिलसिला थम नहीं रहा है। 

अभी इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए हुई जेईई मेन्स की परीक्षा के पहले चरण का रिजल्ट आया है। नतीजे के बाद पता चला है कि एनटीए ने इस साल 12 सवाल ड्रॉप किए और उनके नंबर सभी अभ्यर्थियों को दिए गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि या तो सवाल गलत थे या सिलेबस से बाहर के थे। इससे पहले कभी जेईई मेन्स की परीक्षा में इतने सवाल नहीं ड्रॉप हुए थे। इससे पहले छह सवाल गलत होने की वजह से ड्रॉप होने का जो रिकॉर्ड था, वह भी एनटीए ने ही बनाया था। इस बार पहले चरण में ड्रॉप हुए सवालों की संख्या पिछले रिकॉर्ड से दोगुनी हो गई है। पता नहीं सरकार क्यों ऐसी एजेंसी के माध्यम से बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने पर आमादा है?

सुषमा की कहानी आतिशी के साथ दोहराई गई

दिल्ली में इतिहास दोहराया गया। दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा सत्ता में आई है, यह तो इतिहास का दोहराना है लेकिन दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और तीसरी महिला मुख्यमंत्री का इतिहास भी दोहराया गया है। भाजपा ने 1998 के विधानसभा चुनाव से तीन महीने पहले सुषमा स्वराज को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया था। उन्होंने खूब मेहनत भी की थी लेकिन दिसंबर 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में प्याज की कीमतों पर भाजपा चुनाव हार गई। कांग्रेस जीती और शीला दीक्षित के रूप में दिल्ली को दूसरी महिला मुख्यमंत्री मिलीं । ठीक यही कहानी आतिशी के साथ दोहराई गई है। 

अरविंद केजरीवाल 156 दिन जेल में बीता कर सितंबर में जेल से बाहर निकले तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया। इसके पांच महीने बाद विधानसभा के चुनाव हुए और आम आदमी पार्टी हार कर सत्ता से बाहर हो गई। 1998 में कांग्रेस ने 52 सीटें जीती थीं और भाजपा महज 15 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार भाजपा ने 48 सीटें जीती है और आम आदमी पार्टी को मिली हैं 22 सीटें। उस समय सुषमा स्वराज हौजखास सीट से चुनाव जीत गई थीं और इस बार आतिशी भी कालकाजी सीट से अपना चुनाव जीत गई हैं। बहरहाल, इन दोनों अनुभवों से राजनीतिक पार्टियां को सबक लेना चाहिए कि चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदलने का दांव हर जगह कारगर नहीं होता, कम से कम दिल्ली में तो कतई नहीं। 

भाजपा को संत रविदास खूब याद आए

भाजपा दलित वोटों को लेकर बेहद फिक्रमंद है और उन्हें साधने के लिए तरह-तरह के जतन कर रही है। उसे लग रहा है कि कांग्रेस का दलित वोट के लिए आक्रामक राजनीति करना इस वोट आधार को तोड़ सकता है। कांग्रेस 'जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ का सम्मेलन और रैलियां कर रही है। राहुल हाथ में संविधान लेकर घूम रहे है और संविधान व आरक्षण बचाने या बढ़ाने की बात कर रहे हैं। इसीलिए भाजपा को इसका जवाब देने की जरुरत महसूस हो रही है। 

इस जरुरत के तहत उसने दलितों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम बनाए हैं। उसे यह भी लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी के कमजोर होने से दलित वोट इधर-उधर बंट सकता है। भाजपा के प्रयास का नतीजा रहा कि दिल्ली में दलितों के लिए आरक्षित 12 में से चार सीटों पर इस बार भाजपा जीती है। पहली बार उसे इतनी सीटें मिली हैं। इसीलिए इस साल संत रविदास जयंती बड़े पैमाने पर मनाने का फैसला हुआ। 12 फरवरी को संत रविदास जयंती से पहले दिल्ली के उप राज्यपाल और उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिसूचना जारी करके इसे गजेटेड हॉलीडे घोषित किया। उधर बिहार में, जहां इस साल के अंत में चुनाव है वहां भी बड़ा सरकारी कार्यक्रम हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो इन दिनों मंच से कुछ नहीं बोलते हैं, उनका भी भाषण कराया गया। भाजपा के दोनों उप मुख्यमंत्री भी कार्यक्रम में मौजूद थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता जनका राम ने इसका आयोजन कराया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest