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जेल में अंडरट्रायल अधिकांश युवा उत्पीड़ित समुदायों से हैं

भारत में कारावासों की लगातार बढ़ती समस्या के पीछे के सामाजिक कारकों पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है।
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31 दिसंबर 2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की विभिन्न जेलों में 5,73,220 कैदी क़ैद थे। इनमें से 4,34,302 विचाराधीन कैदी वे थे, जो कुल जेल आबादी का 75.08 प्रतिशत बैठते हैं। पूरे देश में 2022 में कुल कैदियों में से 23.3 प्रतिशत दोषी पाए गए और उन्हें उनके अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया। विचाराधीन कैदियों में, 52.1 प्रतिशत जिला जेलों में बंद पाए गए, इसके बाद की संख्या केंद्रीय जेलों में बंद पाई गई, जिनकी हिस्सेदारी 35.8 प्रतिशत थी।

उत्तर प्रदेश में विचाराधीन कैदियों की संख्या सबसे अधिक पाई गई है - 1,21,609 कैदियों में से 94,131 विचाराधीन क़ैदी हैं - इसके बाद बिहार का नंबर आता है, जहां 64,000 से अधिक कैदियों में से 57,000 से अधिक विचाराधीन कैदी बंद पाए गए हैं। 

13 दिसंबर 2023 को, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद साकेत गोखले ने साबरमती जेल में एक विचाराधीन कैदी के रूप में बिताए दिनों को याद करते हुए एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा था कि जेल में बंद हर चार में से तीन कैदी विचाराधीन कैदी हैं। गोखले ने जब राज्यसभा में काराव्स्स द के कारावासों की समस्याओं पर भाषण दिया तो इस पर चर्चा फिर  शुरू हो जानी चाहिए थी। हालाँकि, हमेशा की तरह, ऐसा नहीं हुआ।

जरूरी बात यह है कि, विचाराधीन कैदियों की बड़ी आबादी एक गंभीर और बढ़ती चिंता का विषय है। पिछले एक दशक में भारतीय जेलों में विचाराधीन कैदियों की आबादी में 8.05 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2013 में, देश भर की जेलों में 67.72 प्रतिशत विचाराधीन कैदी बंद पाए गए थे।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग आधे विचाराधीन कैदी "युवा" यानि नौजवान हैं। इनमें विशेष रूप से, 49.7 प्रतिशत 18 से 30 वर्ष की आयु वर्ग के थे, जो 2013 में 46.7 प्रतिशत की संख्या से एक बड़ी वृद्धि को दर्शाते हैं। यह 3 प्रतिशत अंक की वृद्धि चिंता का विषय होना चाहिए। 

नौजवान/युवा विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी पिछले एक दशक में लगातार बढ़ी है, केवल 2021 को छोड़कर, जब यह वास्तव में ठहर गई थी।

नौजवानों/युवाओं में जोखिम भरे व्यवहार में शामिल होने की अधिक क्षमता होती है, जो बढ़ती परिपक्वता के साथ यकीनन कम हो जाती है, लेकिन कानूनी प्रणाली की नजर में, 18 वर्ष की आयु में किसी भी नौजवान के साथ एक वयस्क की तरह मुक़दमा चलाया जा सकता है और उसे दंडित किया जा सकता है।

अपराध और आपराधिक गतिविधियों के आकर्षण को समाजशास्त्रीय रूप से परिपक्वता के लेंस के माध्यम से, समाज की क्षमता या अवसर प्रदान करने में असमर्थता के माध्यम से समझाया गया है, और इसका संबंध शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की पहुंच से है। इन कारकों की उपस्थिति या अनुपस्थिति को अपराध दर से जुड़ा हुआ माना जाता है।

2022 में, 66 प्रतिशत विचाराधीन कैदी वंचित जाति समूहों से थे, जिनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) शामिल हैं। इसका मतलब यह है कि हर दो विचाराधीन कैदियों में से 1.3 इन वंचित जातियों/समुदायों से थे।

नवीनतम एनसीआरबी डेटा से पता चलता है कि 20.94 प्रतिशत विचाराधीन कैदी अनुसूचित जाति से थे, 9.26 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति से थे, और 35.88 प्रतिशत सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदाय से थे। 2013 में उनके संबंधित शेयर 21.3 प्रतिशत, 11.3 प्रतिशत और 31.5 प्रतिशत था - या कुल मिलाकर 64 प्रतिशत के करीब था। हालाँकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी ऊपर-नीचे हुई है, लेकिन भारतीय जेलों में ओबीसी समुदाय के विचाराधीन कैदियों की आबादी लगातार बढ़ी है।

2013 में, उल्लेखनीय रूप से 20.8 प्रतिशत विचाराधीन कैदी मुस्लिम थे। जब मुस्लिम जेल आबादी को जेलों में पहले से ही अधिक प्रतिनिधित्व वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के साथ जोड़ा जाता है, तो वे भारत की जेल आबादी का 85 प्रतिशत हिस्सा हो जाता है। इस घटना ने ठीक ही विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस) में सेंटर ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड जस्टिस के प्रोफेसर प्रोफेसर विजय राघवन ने इस लेखक को बताया कि अल्पसंख्यक समुदायों का जेलों बढ़ती संख्या एक विश्वव्यापी घटना है। प्रोफ़ेसर राघवन कहते हैं, "जो लोग सामाजिक-आर्थिक स्तर के मामले में कम शक्तिशाली हैं, जेलों में उनकी संख्या अधिक होती है।"

भारतीय जेलों में ऐसे कैदियों को "अन्य" के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो दोषी नहीं हैं, बंदी नहीं हैं या विचाराधीन कैदी नहीं हैं। 2013 में इस श्रेणी के अंतर्गत रखे गए 51 प्रतिशत कैदी मुस्लिम थे। 2015 में, भारत में विचाराधीन कैदियों के रूप में मुसलमानों की हिस्सेदारी सबसे अधिक यानि 21.05 प्रतिशत थी। मुस्लिम विचाराधीन कैदियों की आबादी में भी लगातार उतार-चढ़ाव आया है। हालाँकि, यह भारतीय जनसंख्या में समुदाय की आनुपातिक हिस्सेदारी (2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 15 प्रतिशत) से ऊपर थी। 2013 से 2022 के दशक में, हर छह विचाराधीन कैदियों में से एक से अधिक मुस्लिम था। गौरतलब है कि 2018 में "अन्य" की श्रेणी में आने वाले 58.66 प्रतिशत कैदी मुस्लिम थे।

अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में शोध का जिक्र करते हुए प्रोफेसर राघवन कहते हैं, “इसके दो कारण हैं जो इन हालात का कारण हो सकते हैं। एक तो अवसरों की कमी है जिसका सामना अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को शिक्षा, रोजगार, सामाजिक वस्तुओं, सार्वजनिक कल्याण योजनाओं आदि तक पहुंच के मामले में करना पड़ता है। इसमें उनके पीछे छूट जाने की संभावना होती है जो उन्हें अवैध व्यवसायों और जीवन शैली की तरफ धकेल सकता है। शोधकर्ताओं ने जो दूसरा कारण बताया है वह यह है कि ऐसे समुदायों के लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में आपराधिक न्याय प्रणाली में पूर्वाग्रह भी हो सकता है।

मुसलमानों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और ओबीसी की विचाराधीन आबादी लगातार समग्र आबादी में उनके आनुपातिक हिस्से को पार कर गई है। हालाँकि, धार्मिक पहचान के दृष्टिकोण से देखा जाए तो, हिंदुओं की हिस्सेदारी में उतार-चढ़ाव आया है, जो 2013 में 69.01 प्रतिशत से घटकर 2022 में 65.24 प्रतिशत  हो गई थी। 2022 में विचाराधीन कैदियों में सिख धर्म के सदस्यों की संख्या 4.67 प्रतिशत  थी, जो 2013 में 4.2 की वृद्धि को दर्शाती है। इसके विपरीत, 2022 में ईसाईयों की संख्या विचाराधीन कैदियों की संख्या 2.5 प्रतिशत थी, जो 2013 में 4.55 प्रतिशत से 2 प्रतिशत अंक की कमी होने का इशारा करती है। 

शिबरा सिद्दीक़ी एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

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