मुग़ल गार्डन या अमृत उद्यान क्या नाम में ही सब रखा है?

शेक्सपियर की कालजयी लाइन है ''What's in a name? A rose by any other name would smell as sweet’'
जैसे ही हम मुग़ल गार्डन के ग़ुलाब के बाग़ में पहुंचे चारों तरफ़ मदहोश कर देने वाली भीनी-भीनी ख़ुशबू थी। सफ़ेद, गुलाबी, सुर्ख़ गुलाब को कुछ क़रीब जाकर देखा लगा इन गुलाबों की रंगत में, इनकी ख़ुशबू में किसी भी तरह का अंतर नहीं आया था ये उसी तरह पाक, दिलकश और ख़ूबसूरत लग रहे थे जैसे उस वक़्त लगा करते थे जब इस बाग़ का नाम 'मुग़ल गार्डन' था।
अजीब इत्तेफाक है जिस बात को समझाने के लिए शेक्सपियर ने गुलाब की मिसाल दी थी आज उसी गुलाब और तमाम फूलों से गुलज़ार भारत का एक बाग़ चर्चा-ए-आम है। हाल ही में मुग़ल गार्डन का नाम बदल कर अमृत उद्यान कर दिया गया। सरकार आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रही है और इस फ़ैसले को उसी से जोड़कर देखा जा सकता है। नाम बदलने पर बीजेपी नेता मीनाक्षी लेखी ने ट्वीट कर बताया था कि ये प्रधानमंत्री के अमृत काल के ''पांच प्रण'' में से एक है। तो आज 31 जनवरी को ये अमृत उद्यान लोगों के लिए खोल दिया गया है। जो 26 मार्च तक खुला रहेगा। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक इस बाग़ की सैर की जा सकती है।
कुछ सवाल
बदले नाम के साथ उद्यान तो खुल गया लेकिन कुछ सवाल हैं, जैसे कि नाम बदलने से क्या होगा? क्या नाम बदलने से कुछ बदल जाएगा? क्या नाम बदलने से इतिहास भी बदल जाएगा?
नाम बदलने पर यहां घूमने आए लोगों और ख़ास कर दिल्ली के लोगों की क्या राय है ये न्यूज़क्लिक ने जानने की कोशिश की।
नाम बदलने से रास्ता पता करने में दिक़्क़त होगी?
ये जानने के लिए हमने एक छोटी सी कोशिश की जिसमें पटेल चौक मेट्रो स्टेशन पर उतर कर अमृत उद्यान का रास्ता पूछा और साथ ही दिल्ली के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ दिल्ली के ऑटो वालों से अमृत उद्यान चलने को कहा। तो जो जवाब हमें मिले उनमें से कुछ तो बेहद दिलचस्प थे। इन लोगों से पहले अमृत उद्यान बोल कर रास्ता पूछा गया और फिर मुग़ल गार्डन। इनमें से एक से हमारी बातचीत कुछ यूं थी -
सवाल- भइया अमृत उद्यान चलेंगे?
जवाब- कहां?
सवाल- भइया अमृत उद्यान वो जो अभी खुला है ना ?
जवाब- ओह, मुग़ल गार्डन, ऐसे कहिए ना मैडम
( और फिर उन्होंने आसानी से रास्ता बता दिया)
इस ऑटो वाले की तरह ही क़रीब तीन से चार ऑटो वालों का जवाब कुछ ऐसा ही था और कुछ ने हमें भूल सुधार करने की हिदायत के साथ कहा कि ''अरे मैडम मुग़ल गार्डन कहिए ना''। ऐसे ही एक और ऑटो वाले से जब हमने अमृत उद्यान का रास्ता पूछा और उसके ऑटो में वहां तक पहुंचे तो कुछ ये बातचीत थी।
सवाल- भइया अमृत उद्यान जाना है ( ऑटो वाले भइया कुछ चौंक गए, दिमाग़ पर ज़ोर देते हुए)
जवाब- अमृत उद्यान, गार्डन है? उसका नाम चेंज हुआ है, है वो मुग़ल गार्डन ही है। अरे, मैडम मुग़ल गार्डन बोलिए ना। देखना एक दिन क़ुतुब मीनार का नाम भी चेंज हो जाएगा, हंसिए मत, घोड़े की लगाम इस वक़्त इनके हाथ में है जो कुछ करें इनकी मर्ज़ी है।
वहीं एक कुछ उम्रदराज ऑटो वाले अंकल ने बहुत ही शांति से कहा ''नाम बदलने से कुछ नहीं होने वाला, जगह पुराने नाम से ही जानी जाएगी, आम पब्लिक को इससे कोई लेना देना नहीं है। वो आएंगे तो नाम बदलेंगे, ये आएंगे तो नाम बदलेंगे''
पब्लिक क्या कहती है?
जैसे ही हम अमृत उद्यान पहुंचे बस अमृत उद्यान खुल ही रहा था और वहां लाइन में खड़े लोगों के चेहरे पर जो खु़शी थी वो 'फर्स्ट डे फर्स्ट शो' वाली थी। हर उम्र के लोग यहां दिखाई दे रहे थे लेकिन युवा कुछ ज़्यादा थे ऐसे ही एक लड़के से मुलाक़ात हुई जिसका नाम अभिनव था। अभिनव से हमने नाम बदलने पर उनकी राय मांगी तो उनका कहना था कि ''नाम चेंज करके जो विरासत चली आ रही है उसके साथ ये नाइंसाफ़ी होगी, वैसे नाम बदलने से कुछ बदलेगा नहीं लेकिन अमृत उद्यान सच बोलूं तो 'कूल' नहीं लगता मुझे''
वहीं दिल्ली के ही एक और शख्स से हमारी बातचीत हुई तो उनका कुछ ये कहना था ''मुग़ल गार्डन का नाम बदल कर अमृत उद्यान कर दिया गया है मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, अगर मुगलों की पहचान को हटाकर हमारे हिन्दू राष्ट्र (हमारी जनसंख्या के हिसाब से) में हिंदू देश और धर्म की उन्नति होती है मोदी सरकार के टाइम में तो मेरे लिए ये गर्व की बात है, चीज़( गार्डन) हमारी वही है, हमारे साथ ही रहेगी''
वहीं हरियाणा से अमृत उद्यान देखने पहुंचे दो लड़कों से हमारी बातचीत हुई
सवाल- नाम बदलने से क्या बदल जाएगा?
जवाब- नया नाम रखने से भी क्या बदल जाएगा? फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए। नाम बदलने से सिर्फ़ ये जो वामपंथी विचारधारा के लोग हैं उन्हें ही दिक़्क़त हो रही है। मुगलों का इतिहास हमारे देश में अच्छा नहीं रहा है।
सवाल- लेकिन अंग्रेजों के वक़्त में तो बहुत बुरा था
जवाब- तो उनका भी बदला जाएगा, अमृत उद्यान हमारी संस्कृति से जुड़ा है
सवाल- कैसे?
तो कोई जवाब नहीं मिला
कुछ लोगों की भीड़ में हम पहुंचे तो एक बार फिर सवाल जवाब शुरू हो गए और उस बातचीत का हासिल ये था ''नाम चेंज हुआ है, बिल्कुल ठीक हुआ है, वो एक भूल थी जो ग़ुलामी की याद दिलाती थी''।
वहीं अमृत उद्यान देखने आई दिल्ली की एक लड़की से भी हमने वही सवाल किए तो उसका कुछ ये कहना था- ''नाम बदलने से कोई दिक़्क़त नहीं है, मुग़ल गार्डन नाम इसलिए रखा गया था क्योंकि मुग़ल आर्किटेक्चर था लेकिन अब तो बहुत कुछ रेनोवेट (Renovation ) कर दिया गया है नाम बदल दिया तो कोई बात नहीं वैसे इससे कोई फायदा नहीं होगा, हमारी सरकार को बस नाम बदलने होते हैं जनता का ध्यान भटकाना होता है युवाओं के मुद्दे रोज़गार और तमाम बातों से ध्यान हटाना होता हैं।''
नाम बदलने की रिवायत बहुत पुरानी है
नाम बदलने की रवायत हमारे यहां कोई नई नहीं है सरकार बदलने के साथ कुछ बदले या न बदले सड़कों, इमारतों, योजनाओं के नाम बड़ी शिद्दत से बदले जाते हैं । मुग़ल गार्ड का नाम बदलने पर हमारी बात JNU में सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर( Centre for Historical Studies ) नजफ़ हैदर से हुई जिनका कहना था कि - ये गार्डन फ़ारसी मुग़ल स्टाइल का बना हुआ है जिसे अंग्रेज बहुत पसंद करते थे। मुग़ल नाम को बदलने वालों को याद रखना चाहिए कि मुगलों ने तो ख़ुद को कभी मुग़ल बुलाया ही नहीं बल्कि उन्हें ये नाम भारतीयों ने दिया था।''
वाकई जिनको ये लगता है कि मुग़ल ग़ुलामी और बुरे दौर की याद दिलाने वाले थे जब उनसे अंग्रेजों के शासनकाल के बारे में सवाल किया जाता है तो कोई जवाब देते नहीं बनता।
नाम बदलने के इसी राजनीतिक शौक के बारे में हमने एक ख़ास शख़्स सुहैल हाशमी से बात की, हाशमी साहब एक दिल्लीवाले होने के साथ ही एक इतिहासकार, लेखक और दिल्ली में हेरिटेज वॉक करवाने वाली शख़्सियत हैं।
ख़ास दिल्लीवाले की राय
सवाल- नाम बदलने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
सुहैल हाशमी- नाम बदलने की ये जो पूरी राजनीति चल रही है ये एक नया इतिहास रचने की कोशिश है, और उसके कुछ ख़ास टारगेट हैं, इस मुल्क़ के सबसे बड़े अल्पसंख्यकों के नाम के साथ जो भी जुड़ा है उसे बदलना चाहते हैं। नाम बदलने के साथ ही जो बयान आते हैं, वो पूरी तरह से इतिहास को मिटाने की कोशिश है, जब मुग़ल गार्डन का नाम बदल कर अमृत उद्यान किया गया तो कहा गया कि ग़ुलामी की निशानी मिटा दी गई, तो क्या मुग़लों ने इस देश में ग़ुलामी चलाई थी? क्या मुग़ल जो थे उन्होंने इस मुल्क़ को ग़ुलाम बना कर रखा हुआ था? ये बिल्कुल इतिहास से परे की बात है, इन्हें पता नहीं है कि ग़ुलामी क्या होती है, और मुग़ल काल में कोई ग़ुलामी नहीं थी। और मुग़ल बाहर से नहीं आए थे बाबर के अलावा कोई बाहर से नहीं आया, वो यहां से कुछ लेकर बाहर नहीं गए, यहीं रहे, यहीं उन्होंने राज किया और यहीं मरे और जब अंग्रेजों ने इस मुल्क़ को ग़ुलाम बनाने की कोशिश की तो उसके ख़िलाफ़ जो बग़ावत हुई उसमें वो सक्रिय रूप से शामिल रहे, तो ग़ुलामी की निशानी कैसे हो गए? जिन्होंने इस मुल्क़ को सच में ग़ुलाम बनाया वो अंग्रेज थे, उनके ख़िलाफ़ तो ये एक लफ़्ज़ नहीं बोलते, और कौन हैं ये लोग? ये वो लोग हैं जो आज़ादी के आंदोलन में कहीं नहीं थे, इनमें से कोई एक है स्वतंत्रता सेनानी?
इससे इतिहास को क्या नुक़सान होगा?
सुहैल हाशमी- नाम बदलने से आप पूरे इतिहास को ग़ायब कर रहे हैं और आप नए इतिहास को बना रहे हैं, आपको इसका अंदाज़ा नहीं है कि आपका इतिहास क्या था और आप एक काल्पनिक इतिहास में रह रहे हैं। तो जब आपको पता ही नहीं कि आप कहां से आए हैं तो आपको कैसे पता होगा कि आपको जाना कहां है। इस देश में सदियों से अलग मज़हब, अलग ज़बान, अलग लिबास, अलग खान-पान वाले लोग मिलकर रहते आए हैं जिनको ख़त्म करके ये कुछ नया बनाना चाहते हैं जिसका कोई इतिहास नहीं है
अमृत उद्यान (मुग़ल गार्डन) का क्या है इतिहास?
अंग्रेजों ने जब 1911 में राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किया तो राष्ट्रपति भवन का भी बहुत ही गर्मजोशी से निर्माण कार्य चल रहा था। रायसीना हिल पर इमारत को डिजाइन करने का काम सर एडविन लुटियंस को दिया गया था। इस दौरान की एक कहानी की भी चर्चा होती रहती है कि उस वक़्त के वायसराय की पत्नी लेडी हार्डिंग ने मुगलों की चारबाग़ शैली पर बाग़ बनाने की गुज़ारिश की थी। ये बाग़ कश्मीर और आगरा के बाग़ों से प्रभावित बताया जाता है।
लेडी हार्डिंग के पास मुग़लों की इस शैली पर फिदा होने की वजह भी थी मुग़ल काल में बाग़-ए-बहिश्त का तस्सवुर कर चार बाग़ स्टाइल में ढेर सारे बाग़ बनाए गए फिर वो हुमायूं का मकबरा हो या फिर आगरा और लाहौर के मकबरे। जन्नत की ख़्वाहिश रखने वालों ने जब ज़मीन पर बाग़--ए-बहिश्त की नक़ल उतारने की कोशिश की तो बेहद ख़ूबसूरत बाग़ और मकबरे तामीर हुए, बाग़ों की सैर का शगल मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भी आगे बढ़ाया लेकिन गुज़रे वक़्त की उन निशानियों को आज ग़ुलामी की निशानी बता कर नया नाम देकर ‘पाक-साफ़’ किया जा रहा है।
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