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मुज़फ़्फ़रनगर महापंचायत : जनउभार और राजनैतिक हस्तक्षेप की दिशा में किसान आंदोलन की लम्बी छलांग

किसान आंदोलन देश में नीतिगत बदलाव की लड़ाई के लिए एक बड़ी राष्ट्रीय संस्था बनने की ओर बढ़ रहा है।
किसान महापंचायत के लिए एकजुटता। 5 सितंबर की महापंचायत के लिए किसान-मज़दूर पिछले काफी दिनों से लगातार छोटी-छोटी पंचायतें कर रहे हैं। मुज़फ़्फ़रनगर के सरनावली गांव में 23 अगस्त को हुई पंचायत का दृश्य। 
किसान महापंचायत के लिए एकजुटता। 5 सितंबर की महापंचायत के लिए किसान-मज़दूर पिछले काफी दिनों से लगातार छोटी-छोटी पंचायतें कर रहे हैं। मुज़फ़्फ़रनगर के सरनावली गांव में 23 अगस्त को हुई पंचायत का दृश्य। 

रविवार, 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले ऐतिहासिक महापंचायत होने जा रही है। संयुक्त किसान मोर्चा ने इसके बारे में दावा किया है कि,  "मुजफ्फरनगर में, दुनिया के अब तक के सबसे बड़े किसानों के जमावड़े के आयोजन के लिए तैयारियां अंतिम चरण में हैं। 5 सितंबर को शहर के जीआईसी ग्राउंड में आयोजित की जा रही किसान महापंचायत में लाखों किसानों के शामिल होने की उम्मीद है, जहां से संयुक्त किसान मोर्चा के मिशन उत्तर प्रदेश की शुरुआत होगी।"

मुज़फ़्फ़रनगर का जीआईसी मैदान किसान महापंचायत के लिए तैयार है।

वैसे तो किसानों की सारी ही पंचायतें और रैलियों में भारी भीड़ हो रही है, लेकिन ऐसा लगता है कि यह रैली पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी। इस रैली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कोई स्थानीय या एक प्रदेश की रैली नहीं रह गयी है, बल्कि पूरे देश के किसानों का महाकुंभ बन गयी है। यहां से देश के अलग अलग राज्यों और उत्तर प्रदेश के विभिन्न अंचलों की ओर लौटने वाले किसान जो सन्देश और ऊर्जा लेकर वापस लौटेंगे, वह आंदोलन की लहर को पूरे देश, विशेषकर यूपी के गांव-गांव तक फैला देगी।

किसान नेताओं ने इस महारैली के सामाजिक-राजनैतिक महत्व की शिनाख्त बिल्कुल सही की है। इसी मुजफ्फरनगर में 2013 में प्रायोजित दंगों ने समाज को बांटने का काम किया था, और उसी साम्प्रदयिक विभाजन की लहर पर सवार होकर मोदी का अश्वमेध का घोड़ा पूरे उत्तर भारत में सरपट दौड़ा था और मोदी 2014 में दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब हुए थे तथा उसी आवेग में 2017, यूपी में प्रचण्ड बहुमत (325/406) से भाजपा सत्ता में आई और ध्रुवीकरण की उस राजनीति के पोस्टर-ब्वाय योगी का राज्यारोहण हुआ था।

आज इतिहास का चक्र 180 डिग्री घूम गया है, उसी मुजफ्फरनगर से हिन्दू-मुस्लिम-सिख भाईचारे की मिसाल कायम करता किसान एकता का कारवां एक सैलाब की तरह आगे बढ़ रहा है।

किसानों के आक्रोश का यह सैलाब न सिर्फ 22 में योगी और 24 में मोदी को बहा कर ले जाएगा, बल्कि नफरत और विभाजन की सियासत को ज़मींदोज़ करने का काम करेगा।

यह रैली साफ इशारा कर रही है कि देश किसानों के एक अभूतपूर्व उभार के मुहाने पर खड़ा है, यह न सिर्फ इस सरकार वरन भविष्य में आने वाली किसी भी सरकार के लिए कृषि क्षेत्र में नवउदारवादी नीतियों के क्रियान्वयन और बड़ी पूँजी के प्रवेश को असम्भव बना देगा और वैकल्पिक नीतियों के लिए राष्ट्रीय जनान्दोलन का प्रस्थान बिंदु बनेगा।

उत्तर प्रदेश तेजी से किसान आंदोलन के नक्शे पर केन्द्रीय मुकाम हासिल करता जा रहा है। नेतृत्व का मुख्य फोकस अब मिशन UP की कामयाबी है। ऐसा लगता है चुनाव तक अब UP ही आंदोलन की मुख्य रणभूमि बनेगा। मुजफ्फरनगर में तो ऐतिहासिक रैली होने ही जा रही है, लखनऊ में भी हलचल बढ़ती जा रही है। शुक्रवार, 3 सितंबर को किला चौराहा, बंगला बाजार में हजारों आंदोलनकारी किसानों ने डेरा डाल दिया है और उन्होंने योगी को चुनौती दिया है कि "आओ हमारा बक्कल उतारो"।

उधर, मुजफ्फरनगर महारैली से मिशन UP का सन्देश लेकर आंदोलन के शीर्ष नेता डॉ0 दर्शन पाल 9 सितंबर को लखनऊ आ रहे हैं जहाँ वे किसान संगठनों व नेताओं से गहन विचार विमर्श कर आंदोलन को प्रदेश के  मध्य व पूर्वी अंचल में फैलाने की रणनीति बनाएंगे तथा मोर्चे की प्रदेश इकाई के सांगठनिक ढांचे के निर्माण में मदद करेंगे। इसके पूर्व 23 अगस्त को आंदोलन के समर्थक सुप्रसिद्ध पत्रकार पी साईनाथ तथा मोर्चे के केंद्रीय नेता अक्षय भाई ने लखनऊ में नागरिक समाज को सम्बोधित किया।

साझा लड़ाई लड़ रहे किसान और नौजवान आंदोलन की एकता की नई सम्भावनायें आकार ले रही हैं। उत्तर प्रदेश में छात्रों युवाओं के बीच रोजगार, शिक्षा, लोकतंत्र के लिए हलचल लगातार तेज हो रही है। इसी सप्ताह लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र नेताओं की गिरफ्तारी हुई, इलाहाबाद और फैजाबाद में प्रतियोगी छात्रों के जुझारू प्रदर्शन हुए, पुलिस से नोंकझोंक हुई। रोजगार अधिकार सम्मेलनों, संवाद, आंदोलनों का कारवां बढ़ता जा रहा है। लगातार दमन और उपेक्षा झेलते हुए शिक्षक भर्ती आरक्षण घोटाले को लेकर प्रतियोगी युवक-युवतियों का आंदोलन 3 महीने से जारी है, लखनऊ के इको गॉर्डन में जमे इन आंदोलनकारियों ने 5 सितंबर तक अपनी मांग मानने के लिए सरकार को अल्टिमेटम दिया है, वरना 6 सितंबर को बड़े जमावड़े के साथ वे विधानसभा घेराव के लिए कूच कर सकते हैं।

उत्तर प्रदेश छात्र-युवा आंदोलन के नए चरण की ओर बढ़ रहा है। किसानों के बेटे छात्र-युवा किसान आंदोलन के समर्थन में पहले से ही हैं, पिछले दिनों योगी सरकार के दमनात्मक रुख का मुकाबला करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों ने राकेश टिकैत को अपना समर्थन पत्र सौंपा था। किसान नेता भी छात्र-युवा आंदोलन के साथ एकता की सम्भावनाओं को लेकर गम्भीर हैं।

इसी बीच युवाओं ने प्रधानमंत्री के जन्मदिन 17 सितंबर को ' जुमला दिवस " के रूप में मनाने का एलान किया है। पिछले साल इसी अवसर पर उनका  #NationalUnemploymentDay और #राष्ट्रीयबेरोजगारीदिवस पूरे दिन सोशल मीडिया पर टॉप ट्रेंड करता रहा था और 46 लाख बार शेयर किया गया था। मोदी के जन्मदिन के शुभकामना सन्देशों को बहुत पीछे छोड़ते हुए ट्विटर स्टॉर्म #17Sept17hrs17minutes पूरे दिन छाया रहा था। इस बार तो बेरोजगारी की तबाही कई गुना बढ़ चुकी है और  युवाओं से मोदी-योगी की वायदा-खिलाफी नए मुकाम पर पहुंच गई है। ऊपर से अपार राष्ट्रीय सम्पदा की नीलामी का मुद्दा भी जुड़ गया है, जिसका सीधा परिणाम छंटनी और रोजगार के अवसरों का खात्मा होगा।

रोजगार के लिए तेज होता छात्र-युवा आंदोलन, किसान-आंदोलन के साथ मिलकर मोदी-योगी सरकार की ‘मौत की घण्टी’ बजा देगा!

संयुक्त किसान मोर्चा ने 25 सितंबर को एक साल में तीसरे भारत बंद का आह्वान किया है। पहला भारत बंद उन्होंने पिछले साल 25 सितंबर को 3 कृषि कानूनों के संसद से पारित होने के बाद किया था और फिर अगला 8 दिसम्बर को दिल्ली मोर्चे पर जमने के बाद। इस बार महंगाई, बेरोजगारी, कोविड, अर्थव्यवस्था की तबाही भी आग में घी का काम कर रहे हैं। इसलिए भारत बंद के लिए तमाम श्रमिक संगठनों, छात्र-युवा आंदोलनों, जनता के अन्य तबकों की ओर से स्वतःस्फूर्त समर्थन आने शुरू हो गए हैं। जाहिर है अबकी भारत बंद अभूतपूर्व होगा। इस बंद से ही हमारे लोकतंत्र के बंद रास्ते खुलेंगे।

मोदी और योगी की लुढ़कती लोकप्रियता के बीच एक साल के भीतर यह तीसरा भारत बंद और मुजफ्फरनगर का किसान महाकुंभ यह साफ संकेत है कि देश एक युगान्तकारी बदलाव के मुहाने पर खड़ा है, किसानों का यह विराट उभार न सिर्फ इस सरकार वरन भविष्य में आने वाली किसी भी सरकार के लिए कृषि क्षेत्र में नवउदारवादी नीतियों के क्रियान्वयन और बड़ी पूँजी के प्रवेश को असम्भव बना देगा और वैकल्पिक नीतियों के आधार पर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण तथा पुनर्जीवन के जनान्दोलन का प्रस्थान बिंदु बनेगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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