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जब अंबानी की कमाई 90 करोड़/घंटा, तब 42 हजार दिहाड़ी मजूदरों ने की आत्महत्या

साल 2021 के लिए प्रकाशित NCRB की रिपोर्ट बताती है कि 42004 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। हर दिन का हिसाब लगाएंगे तो तकरीबन 100 से ज्यादा दिहाड़ी मजदूर आत्महत्या की।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।

साल 2021 के लिए प्रकाशित NCRB की रिपोर्ट बताती है कि 42004 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। हर दिन का हिसाब लगाएंगे तो तकरीबन 100 से ज्यादा दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। अगर साल 2021 के साथ साल 2020 में आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मजदूरों को जोड़ेंगे तो यह संख्या 80 हजार को पार कर जाएगी। महज 2 साल के भीतर भारत में आत्महत्या करने वाले लोगों में सबसे अधिक आत्महत्या दिहाड़ी मजदूरों ने की है। उन लोगों ने की है जिनका जीवन खुद को बचाने के लिए हर दिन काम खोजता है, काम मिल जाता है तो ठीक नहीं तो भूखे पेट रहना पड़ता है।

आप कहेंगे कि यह तो कोरोना का समय था। ठीक बात है, मगर ध्यान दीजिएगा कि यह वही समय है जब भारत के सबसे धनी लोगों में से एक अंबानी समूह हर घंटे 90 करोड़ कमाई कर रहा था। यह वही समय है कि जब देश की 24 फ़ीसदी आबादी महीने में मुश्किल से ₹3 हजार की कमाई पर गुजारा कर रही थी। इन विरोधाभासी आंकड़ों को ध्यान में रखकर खुद समझते रहिए कि सरकार की नीतियां किसे फायदा पहुंचा रही हैं?

NCRB की एक्सीडेंटल डेथ एंड सुसाइड इन इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि साल 2021 में 164033 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें 25.6 प्रतिशत केवल दिहाड़ी मजदूर हैं। साल 2014 से देखा जाए तो दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। पहली बार यह दिख रहा है कि आत्महत्या करने वालों में एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा दिहाड़ी मजदूरों का है।

साल 2020 के मुकाबले साल 2021 में आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या में 7.7% का इजाफा हुआ है। जबकि इसी दौरान आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या में 11.52 का इजाफा हुआ है। कहने का मतलब यह है कि दिहाड़ी मजदूर के आत्महत्या के दर में इजाफा राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में तकरीबन 23000 घरेलू महिलाओं ने आत्महत्या की। तकरीबन 20000 सेल्फ एंप्लॉयड लोगों ने आत्महत्या की। तकरीबन 15000 महीने में वेतन उठाने वाले लोगों ने आत्महत्या की। तकरीबन 13000 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की। यह सारे आंकड़े साल 2021 के हैं और सभी में साल 2020 के मुकाबले इजाफा हुआ है।

अगर कृषि क्षेत्र की बात की जाए तो तकरीबन साल 2021 में 10881 लोगों ने आत्महत्या की, जो कृषि क्षेत्र के काम से जुड़े थे।

एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि किसी के आत्महत्या करने के पीछे कई तरह के सामाजिक आर्थिक और मनोवैज्ञानिक किस्म कारण काम कर रहे होते हैं। एक व्यक्ति के आत्महत्या करने के बाद उसके परिवार और सगे संबंधियों पर क्या गुजरती है? वह वही जान सकता है कि जिसके किसी अपने ने आत्महत्या की हो।

मगर इसके बावजूद भी आत्महत्या करने वाले लोगों के बीच पैटर्न में देखा जाए तो यह दिखेगा कि आत्महत्या करने का सबसे अहम कारण उनकी आर्थिक असुरक्षा है। उनकी कम कमाई है। दिहाड़ी मजदूरों को अगर दिन में काम ना मिले तो परिवार के लिए खाना जुगाड़ना मुश्किल हो जाता है। महीने में सैलरी उठाने वालों को अगर दो महीने सैलरी ना मिले तो वह सड़क पर आ जाते हैं। किसान अपनी पूरी जिंदगी कम कमाई और कर्ज में डूबकर गुजारता है। घर में काम करने वाली औरतें आर्थिक गुलामी में जीती हैं।

भारत सरकार का आंकड़ा खुद कहता है कि भारत में 90% कामगार महीने में ₹25 हजार से कम कमाते हैं। ऐसे में सोच कर देखिए कि कितने लोग हर दिन की अपनी जीवन की मजबूरियों से जिंदगी में कितनी बार मरते होंगे। बदतर हालत में जीते होंगे।

कांग्रेस नेता मलिकार्जुन खरगे ने ट्विटर पर लिखा कि भाजपा के नए भारत में प्रधानमंत्री के दोस्त दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार हो रहे हैं। अपनी संपत्ति में अरबों जोड़ रहे हैं। मगर दिहाड़ी पर जीने वाले कम कमाई और खराब अर्थव्यवस्था की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं। खुद को फकीर कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का माहौल ऐसा बना दिया है जहां पर उनके दोस्तों के अलावा बाकी सारी जनता फकीर बनी रहती है।

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