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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के 2 साल : एक प्रतिगामी यात्रा

"शिक्षा को संकीर्णता से निकालने और 21वीं सदी के आधुनिक विचारों से एकीकृत करने" का आलम यह है कि मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने की कवायद चल रही है और न्यूटन तथा पाइथागोरस के सिद्धांत पर सवाल उठाया जा रहा है!
NEP
वाराणसी में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा अखिल भारतीय शिक्षा समागम का दृश्य। फोटो साभार

जुलाई 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को कैबिनेट अप्रूवल मिला था, जिसका घोषित लक्ष्य स्कूली तथा उच्च शिक्षा में बदलावमूलक सुधार ( transformational reforms ) बताया गया था। तब से 2 वर्ष होने को आये।

वैसे तो पिछले 8 वर्षों से सभी sectors में पतन, विनाश और अराजकता का माहौल है, लेकिन जिस एक सेक्टर की तबाही देश के वर्तमान ही नहीं भविष्य को भी बर्बाद कर रही है, वह शिक्षा का क्षेत्र है।

शिक्षा के प्रति मोदी सरकार के दृष्टिकोण को इसी बात से समझा जा सकता है कि अतीत में जहां स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों में रचे-बसे बड़े शिक्षाविद राजनेता शिक्षा का दायित्व सँभालते थे, स्वयं भाजपा के पहले शासन काल में डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे शिक्षामंत्री बने थे जो संघी विचारधारा के बावजूद कम से कम शिक्षा क्षेत्र से जुड़े थे, लेकिन मोदी राज में स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर और धर्मेंद्र प्रधान जैसे शिक्षा मंत्री बनाये जा रहे हैं, जिनका शिक्षा जगत से दूर दूर तक कोई नाता नहीं।

दरअसल, कारपोरेट-वित्तीय पूँजी के आर्थिक हितों तथा हिंदुत्व की वैचारिक-राजनैतिक जरूरतों से निर्देशित शिक्षा व्यवस्था के लिए शिक्षाशास्त्रियों की जरूरत भी क्या है! उसके लिए तो कारपोरेटपरस्त अर्थशास्त्रियों तथा हिंदुत्व के idealogues द्वारा तैयार नुस्खे को निष्ठापूर्वक लागू करने वाले नौकरशाह-टेक्नोक्रेट ही पर्याप्त हैं। NEP के नाम पर आज ठीक यही हो रहा है।

हाल ही में वाराणसी में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा अखिल भारतीय शिक्षा समागम के मेगा इवेंट का आयोजन हुआ, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया। केंद्रीय शिक्षा सचिव के शब्दों में यह अपने तरह का आज़ादी के बाद का पहला आयोजन था। जाहिर है NEP लागू होने के 2 साल बाद मोदी जी के चुनाव क्षेत्र में शिक्षानीति पर हाई प्रोफाइल कार्यक्रम का आयोजन मूलतः 2024 के चुनाव अभियान का हिस्सा था।

मोदी जी ने शिक्षा समागम का उद्घाटन करते हुए कहा, "NEP के पीछे मूलभूत उद्देश्य शिक्षा को संकीर्ण विचार प्रक्रिया की सीमा से बाहर निकालना और इसे 21वीं सदी के आधुनिक विचारों के साथ एकीकृत करना है। ये जरूरी है कि देश को आगे ले जाने के लिए जरूरी मानव संसाधन तैयार करने में हमारी शिक्षानीति भी योगदान दे।"

यह एक भद्दा मजाक और सरेआम आंख में धूल झोंकने की कोशिश है कि जिस घोर संकीर्ण, बहुलता-विरोधी, वैमनस्यपूर्ण राजनीतिक विचारधारा ने पूरे देश को गृहयुद्ध के मुहाने पर पहुंचा दिया है, उसका शीर्ष नेता अपनी शिक्षानीति का उद्देश्य देश को संकीर्ण विचार-प्रक्रिया से बाहर निकालना बता रहा है !

"शिक्षा को संकीर्णता से निकालने और 21वीं सदी के आधुनिक विचारों से एकीकृत करने" का आलम यह है कि मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने की कवायद चल रही है और न्यूटन तथा पाइथागोरस के सिद्धांत पर सवाल उठाया जा रहा है!

NEP के तहत पूरे देश में पाठ्यक्रमों में बदलाव का युद्धस्तर पर अभियान चल रहा है जिसका thrust है-इतिहास का साम्प्रदायिक पुनर्लेखन, पाठ्यक्रम से वैज्ञानिक, तार्किक, आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित करने वाले तथा मानवाधिकारों, उदात्त मानवतावादी-समतावादी लोकतान्त्रिक मूल्यों की समझ विकसित करने वाले विषयों को delete कर अंधआस्था, अतीतोन्मुखी मिथ्या गौरवबोध व संकीर्ण पुनरुत्थानवादी मूल्यों को प्रोत्साहन।

यहां तक कि वैदिक गणित को सारे विज्ञान-गणित का स्रोत साबित करने और उसकी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए आधुनिक विज्ञान और गणित के universally accepted सिद्धांतों पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह सब हमें दुनिया की निगाह में laughing stock ही बनाएगा और इस "ज्ञान" में दीक्षित हमारी युवा पीढी कूपमण्डूक और प्रचंड मूर्ख बनने के लिए अभिशप्त है।

मोदी जी कहते हैं, "हमारा पूरा फोकस बच्चों की प्रतिभा और choice के हिसाब से उन्हें स्किल्ड बनाने पर है। हम केवल डिग्रीधारी युवा तैयार न करें, बल्कि हमारे युवा स्किल्ड हों, कॉन्फिडेंट हों, प्रैक्टिकल, कैलकुलेटिव हों, NEP उसकी जमीन तैयार कर रही है।"

सच्चाई यह है कि NEP के तहत बेहद महंगी होती शिक्षा के कारण " प्रतिभा और choice" नहीं, बल्कि छात्र की आर्थिक पृष्टभूमि से तय हो रहा है कि उसे किस तरह की शिक्षा हासिल करने का अवसर मिलेगा।

स्किल्ड और प्रैक्टिकल बनाने पर अतिरिक्त जोर दरअसल छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित करने का बहाना है, वरना सरकार को बताना चाहिए कि 8 साल से स्किल विकास की सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का क्या हुआ, उससे कितने लोगों को रोजगार मिला?

दरअसल, NEP के मोदी जी द्वारा घोषित उदात्त लक्ष्यों का असली मन्तव्य तब प्रकट होता है जब हम पिछले 2 वर्ष से केंद्र तथा विभिन्न भाजपा शासित राज्यों द्वारा इसके क्रियान्वयन की दिशा में उठाये जा रहे विभिन्न कदमों को देखते हैं।

शिक्षा की तेजी से बढ़ती cost के चलते उच्च शिक्षा कैसे गरीबों के बच्चों की पहुँच से बाहर होती जा रही है, इस पर पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर दीपक भास्कर की मार्मिक टिप्पणी सोशल मीडिया में वायरल हुई, " आज दुखी हूं, कॉलेज में काम खत्म होने के बाद भी स्टाफ रूम में बैठा रहा, कदम उठ ही नहीं रहे थे। दो बच्चों ने आज ही एड्मिशन लिया और जब उन्होंने फीस लगभग 16000 सुना और हॉस्टल फीस लगभग 1,20,000 सुनकर एड्मिशन कैंसिल करने को कहा। पिता ने लगभग पैर पकड़ते हुए कहा कि सर, मजदूर है राजस्थान से, हमने सोचा कि सरकारी कॉलेज है तो फीस कम होगी, हॉस्टल की सुविधा होगी सस्ते मे, इसलिए आ गए थे। मैंने रोकने की कोशिश भी की लेकिन अंत में एडमिशन कैंसिल ही करा लिया। "

यह कोई इकलौती कहानी नहीं है, बल्कि NEP के तहत उभरती शिक्षा व्यवस्था की आम सच्चाई है।

NEP के तहत तमाम शिक्षण संस्थानों को वित्तीय रूप से " स्वायत्त बनाने" के नाम पर उनके बजट में कटौती की जा रही है। नतीजतन वे अनाप-शनाप शुल्क वृद्धि कर रहे हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नये छात्रों के लिए फीस 400% बढ़ा दी गई है, कुछ courses में इससे भी ज्यादा बढाई गई है। जाहिर है आम गरीब परिवार से आने वाले छात्रों के लिए इसका भार उठा पाना कठिन है। शिक्षा के अधिकार पर इस हमले के खिलाफ वहां छात्र संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले आन्दोलनरत हैं।

देश के सर्वोत्कृष्ट शिक्षण संस्थानों में शामिल JNU के बजट में 7 साल में मात्र 70 करोड़ की वृद्धि हुई है, वहीं जामिया और AMU के बजट में 2021-22 में भारी कटौती हुई है। जामिया में यह 479 करोड़ से घटकर 411 करोड़ रह गया है और AMU में 1520 करोड़ से घटकर 1214 करोड़। युवा वैज्ञानिकों को छात्रवृत्ति और प्रोत्साहन की योजना KVPY को बंद कर दी गयी है।

स्नातक पाठ्यक्रम की अवधि 4 साल करने और कभी भी उससे Exit करने तथा उसमें सर्टिफिकेट और डिप्लोमा व्यवस्था ने उच्च शिक्षा को मजाक बना दिया है। शिक्षाविदों ने सही शिनाख्त किया है कि इससे छात्रों पर आर्थिक बोझ बेहद बढ़ जाएगा और drop-out रेट में भारी वृद्धि होगी। सबसे बड़ी बात यह कि बोर्ड परीक्षाओं के मूल्यांकन का निषेध कर CUET के आधार पर प्रवेश के फलस्वरूप अब कोचिंग इंडस्ट्री का दायरा मेडिकल-इंजीनियरिंग से आगे विश्वविद्यालयी शिक्षा तक फैल जाएगा। तमाम स्कूल-कालेजों को एक तरह से उच्च शिक्षा में प्रवेश के कोचिंग संस्थानों में बदलकर यह स्कूली शिक्षा के मौत की घण्टी बजा देगा। महंगे कोचिंग संस्थानों का खर्च वहन करने में असमर्थ छात्रों के लिए स्नातक स्तर पर प्रवेश हासिल कर पाना ही असम्भव हो जाएगा।

यही हाल प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा का भी है। सरकारें किस कदर शिक्षा व्यवस्था से हाथ खींच रही हैं और निजीकरण को बढ़ावा दे रही हैं इसे हरियाणा की भाजपा सरकार के इस तुगलकी फरमान से समझा जा सकता है कि अब वहां छात्रों को सरकारी स्कूलों में बढ़ी हुई फीस 500 रुपये देनी है और अगर वे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं तो उसके लिए सरकार 1100 रुपये देगी!

कोविड की आपात स्थिति में शुरू हुई ऑनलाइन शिक्षा को अपवाद की बजाय अब एक norm बनाया जा रहा है। इसका शिक्षा की गुणवत्ता पर तो असर पड़ ही रहा है, गरीब परिवार के छात्रों के लिये इसे afford कर पाना ही सम्भव नहीं है। इस सब नाम पर शिक्षा पर होने वाले खर्च से बचने के लिए तमाम राज्य सरकारों ने तरह तरह के बहाने बनाकर लाखों स्कूल बंद कर दिए। फलस्वरूप बड़े पैमाने पर मेहनतकश परिवारों के बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।

मोदी जी ने " मुफ्त की रेवड़ी बांटने वालों " पर हमला बोलकर शिक्षा समेत तमाम लोककल्याणकारी मदों में कटौती को वैध ठहराने के लिए सार्वजनिक अभियान छेड़ दिया है और आने वाले दिनों में इन मदों में सार्वजनिक निवेश में और बड़ी कटौती के अपने इरादों का ऐलान कर दिया है।

NEP के 2 साल के क्रियान्वयन से इसके 4 salient features स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ चुके हैं, पहला शिक्षा में सार्वजनिक निवेश में कटौती, अंधाधुंध निजीकरण, आम-गरीब छात्रों की पहुंच से बाहर होती शिक्षा, दूसरा हिंदुत्व-फासीवाद की दिशा के अनुरूप पाठ्यक्रमों में बुनियादी बदलाव करते हुए उसे अवैज्ञानिक व अलोकतांत्रिक बनाना, तीसरा-शैक्षणिक ढांचे का चरम केंद्रीकरण, शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता, कैम्पस डेमोक्रेसी और academic freedom को अलविदा, चौथा- कारपोरेट वित्तीय पूँजी की जरूरतों के अनुरूप सीमित मात्रा में उच्च शिक्षित श्रमशक्ति तथा अर्ध शिक्षित बमुश्किल साक्षर, अर्ध-कुशल श्रमिकों/बेरोजगारों की विराट रिज़र्व वाहिनी का निर्माण।

जाहिर है देश के सभी छात्रों के लिए वैज्ञानिक-आधुनिक-जनपक्षीय लोकतान्त्रिक शिक्षा के अधिकार को बचाने के लिए छात्र-युवा संगठनों, शैक्षणिक समुदाय तथा नागरिक समाज को बड़े एकताबद्ध प्रतिवाद में उतरना होगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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