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नीति आयोग की रेटिंग ने नीतीश कुमार के दावों की खोली पोल: अरुण मिश्रा

नीति आयोग की रेटिंग में बिहार को सबसे निचले पायदान पर दिखाया गया है। इसको लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नाराजगी जताई है और कहा है कि अगली बार जब बैठक होगी तो हम अपनी बात आयोग के सामने रखेंगे। बिहार की स्थिति को लेकर न्यूज़क्लिक ने सीपीआई( एम) की केंद्रीय समिति के सदस्य अरुण कुमार मिश्रा से बात की। उन्होंने कहा कि इनका (नीतीश कुमार) विकास केवल और केवल सड़कों पर दिखता है। इनका जो डेवलपमेंट ट्रैजेक्टरी है उसमें केवल 4 लेन बने हैं, पुल बने हैं। लोगों की जिंदगी में कोई सुधार नहीं हुआ है, उनकी आय नहीं बढ़ी है। नीतीश कुमार के सारे दावे खोखले साबित हुए हैं।
Bihar

नीति आयोग की रेटिंग में बिहार सबसे निचले पायदान पर है। इस पर क्या कहेंगे आप?

देखिए, बिहार लगातार निचले पायदान पर है। नीति आयोग ने जो रिपोर्ट दी है उसमें जितने भी सोशल इंडेक्स हैं, उसमें प्रमुख रुप से बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य, बच्चों का मृत्यु दर, प्रसव काल में महिलाओं की मृत्यु दर सभी मानदंडों में बिहार सबसे निचले पायदान पर है। पिछले दिनों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। आज की स्थिति को देखेंगे तो उसमें भी यह निचले पायदान पर है। हाल में जो हेल्थ इंडेक्स आए उससे भी ये कारण स्पष्ट हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि हमारे यहां महामारी के दौरान जो अस्पतालों की तस्वीरें सामने आई थी वह बेहद चौंकाने वाली थी। बहुत से अस्पताल में तो जानवर बांधे हुए पाए गए। लोग उसमें किसी तरह रह रहे थें। अस्पतालों में डॉक्टर्स नहीं आते हैं।

आम तौर पर जो हमारे ग्रामीण क्षेत्र में इस तरह के रेफरल हॉस्पिटल्स हैं उनकी स्थिति तो बहुत ही खराब है। डॉक्टर्स की संख्या बहुत ही कम है। हर जगह पर स्पेशलिस्ट डॉकटर्स की बेहद कमी है। उसी तरह नर्स की भी काफी कमी है। इन सब चीजों का जनता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हमारे यहां जो सरकारी आंकड़ा हैं उसमें 30-35 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। जब ये लोग बीमार होते हैं या इनके बच्चे, महिलाएं और बूढ़े बीमार होते हैं तो इनको कोई सहायता इन अस्पतालों से नहीं मिल पाती है। और खुदा न खास्ते अगर वे प्राइवेट क्लिनिक में चले जाते हैं तो उनका मांस-मज्जा सब नोच लिया जाता है। ऐसी घटनाएं लगातार होती हैं कि कोई व्यक्ति प्राइवेट क्लिनिक में मर गया लेकिन उसकी लाश नहीं मिलती है क्योंकि उसके परिजनों से जो पैसा मांगा जाता है वह देने की स्थिति में नहीं होते हैं। ये सारी बातें अब सामने आ गई हैं। वे (नीतीश कुमार) दावा करते रहे हैं कि हमने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार किया है लेकिन कुछ भी नहीं हुआ है। अभी हाल में शिक्षा को लेकर जो यूनेस्को की खबर छपी है वह और भी चौंकाने वाली है। बिहार में ढ़ाई लाख के करीब शिक्षक नहीं हैं।

शिक्षकों की भारी कमी है। इंफ्रास्ट्रक्चर भी काफी बुरी स्थिति में है। आज जब ये डिजिटल पढ़ाई की बात करते हैं तो उसमें हमारे यहां स्कूल में कोई सही इंतेजाम नहीं हैं। इससे कोई भी समझ सकता है कि यहां पर शिक्षा से कितने बच्चे वंचित हो रहे हैं। महामारी के दौर में तो गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी खत्म हो गई। इस दौरान वे पढ़ना लिखना तक भूल गए। ये बहुत बुरी स्थिति उभर करके सामने आई है। इनके (नीतीश कुमार) के जो भी दावे हैं वो सभी चीजों में खोखले साबित हुए हैं।

कृषि और उद्योग में सुधार की बात कही जा रही है। इस पर क्या राय है आपकी?

यहां कृषि का हाल भी बहुत बुरा है। जीडीपी में इसका 18 प्रतिशत योगदान है। इस पर करीब 75 प्रतिशत लोग निर्भर हैं लेकिन इससे जुड़े लोगों की स्थिति बहुत बदतर है। इंडस्ट्री में इनका कोई निवेश नहीं हुआ है। मात्र 26 हजार लोग इंडस्ट्रियल सेक्टर में काम करते हैं। इंडस्ट्री लाने की बात लगातार कही गई थी। इसके बारे में तो हर दिन बात होती है। अभी शाहनवाज हुसैन बिहार में मंत्री बने हैं तब से वे रोज बात करते हैं। हर जगह क्लस्टर बनाने की बात करते हैं। नीतीश कुमार ने कहा था कि बड़े पैमाने पर निवेश आएगा लेकिन यहां पर कोई निवेश नहीं आ रहा है। बिहार में कृषि से जो चीज भारी मात्रा में पैदा होती है उसमें आम, लीची, मखाना शामिल है। यहां मधु का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। अगर हम इसके लिए हम उचित बाजार नहीं प्रोवाइड कर पाते हैं तो ऐसे में इससे जुड़े लोगों का आर्थिक विकास कैसे संभव होगा? आम के जितने प्रकार बिहार में हैं उतने तो कहीं भी नहीं हैं। यहीं का आम राष्ट्रपति जी के यहां भेजा जाता है।

मखाना हमारे यहां पूरे भारत का 85 प्रतिशत उत्पादन होता है। इन सबका न तो हम एक्स्पोर्ट कर पाते हैं और न ही मार्केटिंग कर पाते हैं। इन सब चीजों के लिए अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है। इसलिए यहां जो कृषि क्षेत्र का संकट है उसको लेकर यहां सबसे बड़े पैमाने पर पलायन होता है। इस पलायन को रोकने की बात नीतीश कुमार ने शुरू में ही कही थी लेकिन इस पर कोई अमल नहीं हुआ है। उन्होंने लोगों से कहा था कि हम यहीं पर काम देंगे लेकिन इस पंद्रह सालों में देखा जाए तो आज भी पलायन सबसे ज्यादा बिहार से ही होता है। इसको हमलोगों ने महामारी के दौरान भी देख लिया है कि दिल्ली समेत देश के तमाम हिस्सों से सबसे ज्यादा लोग बिहार की तरफ ही लौट रहे थें। ये सभी लोग पैदल या अन्य साधनों से बिहार की तरफ लौट रहे थैं। इनका (नीतीश कुमार) विकास केवल और केवल सड़कों पर दिखता है। इनका जो डेवलपमेंट ट्रेजेक्टरी है उसमें केवल 4 लेन बना है, पुल बने हैं। ये सब चीज बने हैं। ये सब जो नवउदारवादी ट्रैजेक्टरी है उसी के अनुरुप है इससे आम जनता की आय में कहीं भी कोई वृद्धि नहीं हुई है। सबसे कम आय आज भी प्रति व्यक्ति बिहार की ही है। यहां 32 हजार रुपया सालाना प्रति व्यक्ति आय है जो राष्ट्रीय आय का एक तिहाई है। तो इस तरह से बिहार आज भी बीमारू स्टेट के रुप में ही है। और इनके ग्यारह प्रतिशत विकास दर की जो बात होती रही है वो सब एक खास तरह का डेवलपमेंट है। हां, कन्स्ट्रक्शन का काम हुआ है, उसे नकारा नहीं जा सकता है। यहां पर सड़के बनी हैं, पुल बने हैं लेकिन जो बुनियादी काम होना चाहिए वह नहीं हुआ है।

शिक्षा की स्थिति क्या है?

अभी वे अपनी पीठ थपथपा रहे हैं कि हमारे बिहार से कई बच्चों ने आईएएस निकाला है। लेकिन वे पढ़े कहां हैं इसके बारे में वे बात ही नहीं करते हैं। इनमें ज्यादातर बच्चे बिहार से बाहर पढ़े हैं। वे दिल्ली में पढ़े हैं, वे दूसरे राज्यों में जाकर पढ़े हैं। बिहार में पढ़ने के लिए बच्चों पास व्यवस्था नहीं है। बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति बहुत ही दयनीय है। शिक्षकों की भारी कमी है। पटना या अन्य दूसरे यूनिवर्सिटी में अध्यापक नहीं मिलेंगे। शिक्षकों की संख्या बहुत कम है। शिक्षकों की उन्होंने उचित संख्या में भर्ती नहीं की है। अब वे गेस्ट टीचर्स बुलाकर पढ़वाने की बात कर रहे हैं लेकिन उसके लिए भी उनके पास कोई प्लानिंग नहीं है। शिक्षकों के चलते यूनिवर्सिटी या स्कूलों में पढ़ाई नहीं हो रही है। उधर पटना में रहने वाले बच्चों की बात करें तो वे बेहद ही बुरी अवस्था में रहते हैं। किसी बच्चे को अभिभावक की ओर से अगर 5-6 हजार रुपया प्रति महीना आता है और वे एक कमरे एक बेड लेकर रहते हैं। इसी का उनसे दो-तीन हजार रुपया महीना ले लिया जाता है ऐसे में बच्चों पर पैसे को लेकर काफी दबाव रहता है। इतने कम पैसे में वे ठीक से खाना भी नहीं खा पाते हैं। उनको ट्यूशन वगैरह का पैसा देकर उनके पास पैसा कुछ बचता ही नहीं है। इस तरह बच्चे काफी परेशान रहते हैं। एक तरह यहां के छात्र बहुत बुरी अवस्था रहते हुए कम्पीटीशन की तैयारी करते हैं या पढ़ाई करते हैं। जिस गार्जियन के पास ज्यादा पैसा है वे अपने बच्चों को बिहार से बाहर कोटा या दिल्ली या अन्य जगहों पर भेजते हैं। लेकिन जिनके पास पैसा कम है वे बच्चों को पटना या बिहार के अन्य छोटे मोटे शहरों में पढ़ाई के लिए भेजते हैं और वे बच्चे बहुत कठिनाई में अपनी पढ़ाई करते हैं। आम लोगों पर पढ़ाई-लिखाई को लेकर बहुत ज्यादा भार पड़ गया है। ये सब काफी महंगा हो गया है।

मनरेगा में घोटाले की बात सामने आती रही है। क्या कारण है?

यहां मनरेगा की हालत बहुत ही खराब है। दरअसल मरनेगा एक लूट का बड़ा धंधा बन गया है। एक तो मनरेगा में इतना कम मजदूरी है कि लोग काम करने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं। इसमें इतना कम पैसा है कि लोग काम करने के लिए बाहर जाना पसंद करते हैं और वहां जाकर इससे ज्यादा कमा भी लेते हैं। मनरेगा में ऐसे आदमी का भी नाम है जिसकी उसको कोई जरुरत नहीं है। इसके नाम पर पैसा निकाला जाता है और उसका बंदरबांट हो जाता है और जेसीबी जैसे मशीनों से काम कराया जाता है। कैग के रिपोर्ट में भी बिहार सरकार के वित्तीय गड़बड़ी को लेकर टिप्पणी की गई है। इसमें मनरेगा को लेकर टिप्पणी की गई है कि इसमें बड़े पैमाने पर लूट हो रहा है। खासकर पंचायत राज डेवलपमेंट में जो पैसा जाता है उसमें हेराफेरी के बारे में बहुत गंभीर सवाल उठाए गए हैं। बाहर जो चेहरा नीतीश कुमार का प्रोजेक्ट किया गया है उससे हमारे डेवलपमेंट का तालमेल नहीं है। पटना आने वाले देखते हैं कि यहां फ्लाईओवर्स ज्यादा बन गए हैं, सड़कें कुछ अच्छी हो गई हैं लेकिन आम लोगों की जिंदगी में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है। बल्कि उनकी स्थिति बहुत बुरी हुई है।

तुलनात्मक रुप से उनकी जिंदगी काफी बदतर हुई है। केवल उन्हीं लोगों के जीवन में सुधार हुआ जो यहां से बाहर जाकर कमाते हैं और पैसा बचाकर गांव में रहने वाले अपने परिवार को भेजते हैं। लेकिन उनको यहां पर काम करने का कोई मौका नहीं है, न ही रोजगार का मौका है। सरकार की घोषणाओं के बावजूद यहां रहने वाले लोगों को संस्थानिक कर्ज भी नहीं मिल पाता है। गांव में लोग महाजन से पैसा लेकर काम करते हैं और उन्हें ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ता है। महामारी के दौर में लोगों पर बहुत ज्यादा कर्ज बढ़ गया है। इनके खुद के समर्थक और इनके पक्ष में लिखने पढ़ने वाली संस्था आदरी की रिपोर्ट में भी इन तमाम बातों की चर्चा है। इसने भी कहा है कि ग्यारह प्रतिशत ग्रोथ रेट के बावजूद आम जनता का जो विकास होना चाहिए, उनकी आय में जो वृद्धि होनी चाहिए वो नहीं हुई। यहां से माइग्रेशन नहीं रूका। इसका ये भी कहना है कि संरचनात्मक बदलाव नहीं हुआ। इसके चलते यहां उत्पादन शक्तियों का विकास नहीं हुआ। इसलिए कृषि क्षेत्र में लाभ नहीं है।

उधर महामारी नियंत्रण के मामले में सरकार ने केवल झूठ ही बोला है। एक बार दखल हुआ तो सरकार ने कहा कि जो आंकड़ा आया है उसमें सुधार करने की जरुरत है, अभी और रिपोर्ट आ रही है। इसमें सुधार किया गया लेकिन सुधार करने के बावजूद असल बात ये है कि ये जितना बोल रहे हैं उससे करीब दस गुना ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई है।

नीति आयोग की रिपोर्ट पर नीतीश कुमार ने सवाल उठाया है। कितने जायज़ हैं उनके सवाल?

नीति आयोग की रिपोर्ट पर ये लोग सवाल उठा रहे हैं। और ये कह रहे हैं कि हमारा आप महाराष्ट्र से तुलना कैसे कर सकते हैं? हमारी तुलना वैसे राज्यों से क्यों कर रहे हैं? वह कह रहे हैं कि हमारा राज्य तो गरीब राज्य था और हमने इस दौर में बहुत प्रगति की है। वे कहते हैं कि हमने शिक्षा, स्वास्थ्य को बेहतर किया है लेकिन हकीकत ये है कि जो रिपोर्ट आई है उससे पता चलता है कि उनके दावे कितने खोखले हैं। इन्होंने नीति आयोग पर सवाल उठाया है उसको आयोग ने खारिज किया है। हर चीजों के बारे में उन्होंने एक मानक रखा है और उस मानक के आधार पर वे काम करते हैं। ऐसे में सवाल उठाने के बजाय आपको जवाब देना चाहिए कि इन पंद्रह वर्षों में आपने क्या किया और आपकी प्राथमिकता क्या रही है। आप जो विकास दिखा रहे हैं उससे आम जनता के जीवन में कोई फर्क नहीं आया है। बाहर से आने वाले लोगों को लगेगा कि बिहार की सड़कों पर हमारी गाड़ी अब रफ्तार में चल रही है लेकिन बुनियादी विकास नहीं हुआ है। हाल के दिनों में हमने देखा है कि रोड तो बिछ गया लेकिन जल्दी ही टूट भी गया, जल्दी उखड़ने भी लगा। बिहार में एस्टिमेट का भी घोटाला होता है।

एस्टिमेट को बढ़ाचढ़ा कर बता दिया और इसमें जो पैसा आवंटन हुआ उसका बंदरबांट हो गया। जितना पैसा खर्च होना चाहिए उतना खर्च नहीं हुआ। इस तरह वहां भी लूट है। इनकी तमाम योजनाओं में भी भ्रष्टाचार है। हरियाली, नल जल जैसी तमाम योजनाओं में भ्रष्टाचार के मामले आते रहते हैं। नल जल योजना में तो भयानक तरीके से लूट हुई है। कहीं पाइप टूटा हुआ है। कहीं नल है तो पानी ही नहीं आ रहा है। ये सब यहां आम बात है। यहां पर शौचालय घोटाला भी सामने आया है। गांव में जाकर शौचालय का निरीक्षण करेंगे तो पाएंगे कि उसमें बकरी बंधी हुई है या कोई चीज रखी हुई है। लोग शौचालयों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। इस तरह लोग शौच के लिए बाहर ही जा रहे हैं। ये हम उस जिला की बात कर रहे हैं जिस जिला से नीतीश कुमार के संबंध है, नालंदा जिला। हालांकि नालंदा जिला में रोड क्नेक्टिविटी सबसे ज्यादा है और वहां पर शौचालय वगैरह भी बने हैं लेकिन शौचालय का उपयोग ज्यादातर नहीं होता है। हम ऐसे गांव में गए हैं जो हर तरीके से अच्छा और संपन्न गांव है लेकिन वहां आज भी लोग शौचालय में नहीं जाते हैं, वो बाहर ही जाते हैं।

पंचायती राज व्यवस्था कितनी बेहतर हो पाई है?

यहां पर पंचायती राज एक तरह से लूट का राज हो गया है। दर असल पंचायती राज के माध्यम से ही शासक वर्ग के दल गांव को कंट्रोल करते हैं। आज कल बहुत पैसा खर्च करके लोग मुखिया बनते हैं। कहीं-कहीं मुखिया का चुनाव जितने के लिए प्रत्याशी एक-एक करोड़ रूपये तक खर्च कर देता है। इससे समझा जा सकता है कि कोई भी प्रत्याशी यह चुनावों जितने के बाद क्या करेगा। और आमतौर पर मुखिया की जिंदगी बदल रही है और वो सब शासक वर्ग के इर्द गिर्द रहते हैं। भाजपा, जदयू जैसे दलों के करीब रहते हैं। इस तरह से यह लूट का एक साधन है।

हाल में अवैध बालू खनन के मामले काफी सामने आए हैं, वजह क्या है?

अवैध बालू खनन यहां का एक बड़ा उद्योग है। वह लगातार चलता रहता है। उसमें बहुत से बालू माफिया काम करते हैं। वे बहुत ताकतवर हैं और उनका पॉलिटिकल क्नेक्शन भी है। किसी दूसरे दल का समर्थन करने पर उन पर कार्रवाई हो जाती है। अगर शासक वर्ग के पक्ष में है तो कार्रवाई नहीं होती है। इस तरह यहां भ्रष्टाचार फलता फूलता रहता है और उसमें शासक वर्ग का ही संरक्षण रहता है। यहां पर सबकी संपत्ति की जांच हो पता चल जाएगा कि कितना लूट हुआ है। इसमें केवल अधिकारी ही नहीं है। अधिकारी तक जाकर लोग रुक जाते हैं लेकिन सही तरीके से जांच हो और अगर मंत्रियों की जांच हो तो सभी की संपत्ति आय से अधिक मिलेगी। यहां के ज्यादातर मंत्री मिलियनेयर हैं। कहां से उनके पास पैसा आया? उनके पास कौन सी कमाई है? इस तरह से पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार व्याप्त है। जदयू-भाजपा काल में भ्रष्टाचार इंस्टिच्यूशनलाइज हुआ है। हमने विभूतिपुर में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाया है। इससे हमारे लोगों के लिए खतरा पैदा हो गया है। हमारे लोगों पर हमला किया जा रहा है। मौजूदा सरकार जो साबित करने में लगी हुई थी कि हम बहुत बढ़िया प्रशासन कर रहे हैं तो यह पूरी तरह से खोखला साबित हुई। हां, आप कह सकते हैं कि शुरूआती दौर में कुछ काम हुआ था तो लोगों को लगा था कि ये कुछ अलग है लेकिन अब लोग सबकुछ देख रहे हैं।

हाल के दिनों में रेप की घटनाएं काफी सामने आई हैं?

लॉ एंड ऑर्डर की बात करें तो वह भी बहुत बुरी अवस्था में है। अभी लॉ एंड ऑर्डर पर जो रिपोर्ट आई है उसमें भी दिखाया गया है कि बिहार में सबसे ज्यादा रेप की घटनाएं हुईं हैं। यहां पर रेप की घटनाओं में 10.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। गैंगरेप की घटनाओं में वृद्धि हुई हैं। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ रेप की घटनाएं हो रही हैं। कोई दिन ऐसा नहीं होता है जब रेप की घटनाएं नहीं होती हैं। इतना हीं नहीं बहुत बर्बरता से रेप के बाद पीड़ित की हत्याएं भी होती हैं। इस तरह से ये भी एक बड़ा सवाल है। अपराध में इजाफा हुआ है। लूट, बैंक लूट जैसी घटनाएं भी काफी बढ़ी हैं।

बाढ़ पीडित किसानों को कहां तक मदद मिल पाई है?

बिहार में हर साल बाढ़ आती है। इस बार तो दो-तीन बार बाढ़ आ चुकी है। इसने नॉर्थ बिहार के लाखों लोगों की जिंदगी को तबाह किया है। किसानों की फसलें खत्म हुई हैं। अभी तक सरकार एसेस्मेंट नहीं कर पाई है कि क्या नुकसान हुआ है और क्या मुआवजा देना है। जो राहत देना चाहिए वो राहत देने में भी सरकार विफल रही है। इस तरह से यह सरकार की चौतरफा विफलता है। इससे लोगों में गुस्सा भी पनप रहा है। पिछले चुनावों को इन्होंने तो किसी तरह से चोरी बेइमानी करके जीत लिया। अभी दो जगह चुनाव होने हैं। हम उम्मीद करते हैं कि वहां भी इनकी हार होगी।

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