Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

दो धर्मस्थलः दो घटनाएं: दो फ़ैसलेः एक सवाल

मंदिर और राष्ट्र आज आपस में इतना हिल-मिल गये हैं कि मंदिर को ही राष्ट्र माना जा रहा है।
Ahmed Murtaza Abbasi
दोषी करार दिया गया अहमद मुर्तजा अब्बासी। फोटो साभार: अमर उजाला

तीन अप्रैल 2022 को एक अकेला आदमी दिन के उजाले में एक बांका (बड़ी चाकू जैसा एक हथियार) लेकर एक मन्दिर के द्वार पर बैठे पुलिस वालों पर हमला करता है। उसे पकड़ लिया जाता है और उसके कृत्य को ‘राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ना’ मानकर उसके खिलाफ एकतरफा मुकदमा चलाया जाता है।

9 महीने के अन्दर उसे फांसी की सजा सुना दी जाती है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह चौंकाने वाली खबर किसी को नहीं चौंकाती। क्योंकि यह हमला एक मन्दिर के बाहर बैठे सिपाहियों पर हुआ, क्योंकि यह मंदिर ‘गोरखनाथ मंदिर’ था, (जिससे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का खास जुड़ाव है), क्योंकि हमलावर मुसलमान है, क्योंकि मंदिर और राष्ट्र आज आपस में इतना हिल-मिल गये हैं कि मंदिर को ही राष्ट्र माना जा रहा है। इसलिए इस घटना को आसानी से राष्ट्र पर हमला मानकर अहमद मुर्तजा अब्बासी को फांसी की सजा सुना दी गयी और इस खबर ने किसी को नहीं चौंकाया।

फांसी की यह सजा लखनऊ में विशेष तौर पर स्थापित एनआईए/एटीएस कोर्ट ने सुनाई है। इन दिनों इस कोर्ट में नियुक्त जज विवेकानन्द शरण पाण्डेय जी के 145 पन्नों के इस आर्डर को पढ़कर ऐसा लगता है, जैसे न्याय का न्याय से कोई मतलब ही न रह गया हो।

145 पृष्ठों के आदेश में शामिल एफआईआर के मुताबिक, बीते साल 3 अप्रैल 2022 को शाम 7 बजे गोरखनाथ मंदिर के गेट नम्बर एक पर एक युवक वहां ड्यूटी पर तैनात पुलिस वालों पर बांका से हमला करता है, और उनके हथियार छीनने की कोशिश करता है, और ‘नाराए तदबीर अल्ला हू अकबर’ के नारे लगाता है। पुलिस वालों ने ही किसी तरह उस पर नियन्त्रण स्थापित किया और उसे गिरफ्तार कर लिया। ठीक इसी समय एक आइस्क्रीम वाला एक काला बैग लाकर पुलिस वालों को सौंपता है और कहता है कि यह लड़का इस बैग को फेंक कर भागा था। उसमें से उन्हें कुछ एटीएम कार्ड, आधार कार्ड, लैपटॉप, चार्जर, मोबाइल और एक ‘उर्दू’ (एफआईआर में यही लिखा है) में लिखी हुई धार्मिक पुस्तक मिलती है। इन सबके साथ ही उसमें एक और बांका रखा हुआ था। सामने ही थाना होने के बावजूद इस मामले की एफआईआर पूरे 10 घण्टे बाद लिखी जाती है और उसे हत्या का प्रयास, आर्म्स एक्ट सहित कई धाराओं में जेल भेज दिया जाता है। अगले दिन से यह मामला एटीएस को सौंप दिया जाता है और उसने मुर्तजा को आईएसआईएस से जुड़ा आतंकवादी बताते हुए उसपर 121, 121ए  (यानी राष्ट्र पर हमला) और यूएपीए भी लगा दिया। अदालत में उसकी पैरवी के लिए ‘न्याय मित्र’ नियुक्त करके 9 महीने बाद फांसी की सजा सुना दी जाती है।

सवाल ये है कि इतने बड़े आतंकवादी संगठन से जुड़ा व्यक्ति क्या अकेले ऐसे बेवकूफी भरे अंदाज़ में सबसे अधिक भीड़-भाड़ के समय एक पिछड़े स्तर के हथियार के साथ किसी राष्ट्र पर हमला कर सकता है?

दिमाग में सबसे पहले यह बात आती है कि ‘कोई पागल ही ऐसा कर सकता है।’ एनआईए कोर्ट जानती थी कि यह महत्वपूर्ण सवाल है, जिसका जवाब उसे ट्रायल के दौरान नहीं मिला, इसलिए उसने खुद अपनी ओर से एक शब्द खोजकर इसका जवाब दे दिया है।

कोर्ट ने लिखित तौर पर कहा है कि यह हमला ‘लोन वुल्फ अटैक’ था। विवेकानन्द शरण पाण्डेय जी ने आदेश में लिखा है कि ‘इस तरह के हमलों के बारे में जानने के लिए उन्होंने कई इजरायली रिपोर्ट्स पढी हैं और उन्हें पढ़कर ही उन्हें ऐसे हमलों की जानकारी हासिल हुई है।’

फांसी की सजा के पूरे आदेश में चार्जशीट और पुलिस वालों के बयानों के हवाले से यह बताया गया है कि आईएसआईएस की विचारधारा क्या है, वह कहां-कहां कैसे काम करता है आदि-आदि। लेकिन यह नहीं बताया जा सका कि इस बात का इस घटना से क्या सम्बन्ध है- सिवाय इसके कि मुर्तजा ने इस संगठन से प्रभावित होने की बात स्वीकारी है और वह इनसे जुड़े साहित्य पढ़ता है। जिन संदिग्ध बैंक अकाउंट का जिक्र किया गया है, उनमें यह नहीं बताया गया है कि वे आखिर कैसे संदिग्ध हैं।

इस मुकदमें में सबसे महत्वपूर्ण और दुखद बात यह है कि मुकदमें की शुरूआत में ही पुलिस वालों के सामने और अदालत के सामने यह बात आ गयी थी कि मुर्तजा मानसिक रूप से स्थिर नहीं है और उसका लम्बे समय से इलाज चल रहा है। लेकिन कोर्ट ने न जाने किस एजेंडे के तहत इसे कभी स्वीकार नहीं किया। मुर्तजा की दिमागी हालत से सम्बन्धित सारे कागजात कोर्ट को दिये गये, 313 के बयान के समय खुद मुर्तजा ने हर सवाल के जवाब में कहा है-‘‘दिमागी मरीज हूं, जवाब नहीं दे सकता।’’ लेकिन कोर्ट ने इन सबको नज़रअंदाज करते हुए कहा है कि ‘‘न्यायालय का दृष्टिकोण है कि यदि अभियुक्त दिमागी मरीज होता, तो उसे ‘इंकार है’ शब्द पर आपत्ति नहीं होती। वह इन शब्दों को इसलिए लिखवाना चाहता था क्योंकि ‘इंकार है’ का यह अर्थ निकलता है कि अभियुक्त उससे पूछे गये प्रश्नों की प्रकृति को समझ रहा है।’’

ऐसा लगता है कि कोर्ट को मानसिक बीमारी के विज्ञान से कुछ लेना-देना ही नहीं है, वह हर मामले में खुद को ही विशेषज्ञ मानती है।

मुर्तजा की मानसिक हालत पर उसकी मां ने कोर्ट में दिये गये आवेदन में जो कुछ कहा था, वह सिर्फ मुर्तजा ही नहीं, इस देश के नौजवानों के बारे में एक बयान माना जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि आईआईटी मुम्बई से केमिकल इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर चुका 2015 में पासआउट कर चुका मुर्तजा, कई सालों से बेरोजगार है, उसकी शादी हुई, लेकिन वह टूट चुकी है। वह डिप्रेशन में है और उसे सिजोफ्रेनिया भी है, वह चाहता है कि कोई उसे गोली मार दे। लेकिन कोर्ट ने इसे उनके द्वारा लिया जा रहा बहाना बताया।

साफ लगता है कि मुर्तजा को ‘हिन्दू राष्ट्र पर खतरा’ दिखाने के लिए बलि का बकरा बना लिया है। ‘हिन्दू राष्ट्र पर खतरा’ दरअसल एक प्रकार का राष्ट्रवादी सिजोफ्रेनिया है, फिर किसी को क्लीनिकल सिजोफ्रेनिया भला कैसे दिखेगा?

इन सबके बाद भी सवाल तो यह भी उठता है कि अगर धर्म स्थलों पर हमला राष्ट्र पर हमला है, तो बाबरी मस्जिद का गिराया जाना क्यों नही राष्ट्र पर हमला माना गया। मुर्तजा को तो इसका आरोपी बनाकर 9 महीने में फांसी पर लटकाने की सजा सुना दी गयी, लेकिन बाबरी विध्वंस के आरोपी 30 साल बाद भी मजे में हैं। मुर्तजा का कृत्य अगर धर्मस्थल और देश पर हमला है भी तो, दो धर्मस्थलों पर हमलों को दो तरीके से क्यों देखा गया, और दो अलग-अलग फैसले क्यों लिये गये? क्योंकि ये दोनों घटनाये मिलकर एक ही निष्कर्ष देती हैं। वह यह कि राष्ट्र और मंदिर आज आपस में इतना घुल-मिल गये हैं कि दोनों को अलगाना मुश्किल है।

अहमद मुर्तजा अब्बासी को फांसी दिये जाने की खबर को गोदी मीडिया ने भी खुशी का इजहार करते हुए परोसा है, जबकि यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था पर एक सवाल है, जिसमें एक बेरोजगार विक्षिप्त मुस्लिम युवक को आतंकवादी घोषित कर दिया गया और मंदिर को राष्ट्र। यह आदेश संविधान की भावना के भी अनुरूप नहीं है। मानवाधिकार कर्मियों को इसके खिलाफ जरूर आगे आना चाहिए।

(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता और “दस्तक नये समय की” पत्रिका की संपादक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest