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न मंडी खुल रही, न पान दुकान, बर्बाद हो रहा है मगही पान

बिहार की चंद पहचानों में एक मगही पान भी है। खास तरह की मिट्टी के कारण बिहार के मगध क्षेत्र के चार ज़िलों गया, नवादा, नालंदा और औरंगाबाद में ही इसकी खेती की जाती है।
पान

बिहार के नवादा के तुंगी गांव के किसान पिंटू चौरसिया ने एक बीघा खेत लीज पर लेकर मगही पान की खेती की है और इसमें लगभग 8 लाख रुपये निवेश कर चुके हैं, लेकिन कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए पिछले महीने की 25 तारीख से शुरू हुए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते पान से मुनाफ़ा होना तो दूर लागत खर्च निकलना भी मुश्किल लग रहा है।

पिंटू चौरसिया ने बताया, “इस बार जितना पान उपजा है, उसका महज 25 प्रतिशत हिस्सा ही बेच पाया। बाकी पान धीरे-धीरे बेचने वाला था, लेकिन 25 मार्च से लॉकडाउन के कारण न मंडी खुल रही और न पान की दुकान। नतीजतन पान घर में रखना पड़ रहा है।”

पान काफी नाज़ुक होता है और तुरंत खराब हो जाता है, इसलिए गेहूं या चावल की तरह इन्हें घर में रखना भी समाधान नहीं है। पिंटू चौरसिया बताते हैं, “200 ढोली (200 से 300 पत्तों का गुच्छा एक ढोली होता है) पान तोड़कर घर में रखा था। इनमें से अब तक डेढ़ सौ ढोली पान खराब हो चुका है और अगर जल्दी बाजार नहीं खुला और पान की बिक्री शुरू नहीं हुई, तो बचा-खुचा पान भी सड़ जाएगा।”

पान खराब न हो इसके लिए पिंटू चौरसिया उनके परिवार के अन्य चार सदस्य रोज़ दो घंटे पान को देते हैं। उन्होंने बताया, “हमलोग पान के पत्तों को रोज उलटते-पलटते हैं और फिर दोबारा सजाकर रख देते हैं। जो पत्ता थोड़ा सा भी सड़ता है, उसे निकाल  देते हैं क्योंकि अगर उसे नहीं निकाला गया, तो वो बाकी पत्तों को भी सड़ा देगा।”

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बिहार की चंद पहचानों में एक मगही पान भी है। खास तरह की मिट्टी के कारण बिहार के मगध क्षेत्र के चार जिलों गया, नवादा, नालंदा और औरंगाबाद में ही इसकी खेती की जाती है। जानकार बताते हैं कि चूंकि इस पान की खेती मगध क्षेत्र में ही की जाती है, इसलिए इसे मगही पान कहा जाता है। इन चार जिलों के 439 हेक्टेयर में मगही पान की खेती की जाती है और लगभग 5 हजार किसान खास तौर पर चौरसिया बिरादरी पान की खेती से जुड़ी हुई है। जानकार ये भी बताते हैं कि मगही पान भारत में उपजने वाले पान की दूसरी सभी वैराइटीज से उम्दा है और बनारस के व्यापारी जो बनारसी पान बेचते हैं, असल में वह मगही पान ही होता है, जिसकी प्रोसेसिंग कर दी जाती है।

एक कट्ठा ज़मीन में पान लगाने का खर्च 30-40 हजार रुपये आता है। एक पौधे में 40 से 60 पत्ते होते हैं और एक कट्ठे में 500 ढोली पान निकल जाता है। अगर उत्पादन ठीक-ठाक हुआ और कीमत अच्छी मिली, तो एक कट्ठे में उत्पादित पान 70,000-1,00,000 रुपये में बिक जाता है।

मगही पान के किसान सबसे बढ़िया पत्ता बनारस की मंडी में बेचते हैं और बाकी पान गया और नवादा की स्थानीय मंडियों में खपाते हैं। इन मंडियों से स्थानीय पान दुकानदार पान खरीदते हैं। लेकिन, 25 मार्च से लॉकडाउन शुरू होने के बाद बनारस की मंडी भी बंद है और लोकल मंडी भी। मंडी बंद होने से किसान अपने घर में पान रखने को विवश हैं।

मगही पान उत्पादक समिति के सचिव रंजीत चौरसिया के मुताबिक, पूरे मगध क्षेत्र में लगभग 10 ट्रक मगही पान अभी भी बचा हुआ है और रोज़ खराब हो रहा है।

रंजीत चौरसिया बताते हैं, “दिसंबर-जनवरी के बाद पान टूटना शुरू होता है और मार्च-अप्रैल तक यह चलता है। मगर, ज्यादातर किसान मध्य फरवरी से 15 अप्रैल के बीच पान तोड़ते हैं क्योंकि इस वक्त पत्ता बढ़िया होता है। किसानों को ज़रा भी अंदेशा नहीं था कि ऐसा लॉकडाउन होगा, वरना वे मार्च के दूसरे हफ्ते तक ही जैसे-तैसे तोड़कर मंडी में बेच देते और किसी तरह पूंजी निकाल लेते।”

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नवादा के पकरीबरावां प्रखंड के मगही पान किसान राजेश चौरसिया ने पांच कट्ठे में मगही पान की खेती की है। उन्होंने फरवरी में बनारस की मंडी में 50 हजार रुपये का पान बेचा। यही उनकी अब तक की कमाई है। राजेश चौरसिया ने बताया, “मेरे पास अभी तीन टोकरी पान बचा हुआ है, जो रोज सड़ रहा है। पान की बिक्री तो हो नहीं रही है, लेकिन रोज सड़ने से अभी तक मुझे 1 लाख रुपये का नुकसान हो चुका है। अगर मंडी नहीं खुली और पान नहीं बिका, तो और डेढ़ लाख रुपये का नुकसान हो जाएगा।”

हालांकि, लॉकडाउन से मगही पान ही नहीं बल्कि बिहार के अन्य जिलों में उगने वाले सामान्य पान के किसान भी परेशान हैं।

पान के किसानों ने जब अपनी व्यथा बिहार के कृषि विभाग तक पहुंचाई, तो कृषि विभाग ने 13 अप्रैल को सभी जिले के ज़िला पदाधिकारियों को पत्र लिखकर कहा कि पान की खेती करने के लिए बरेजा बनाने का सामान (बांस, रस्सी व अन्य सामग्री की मदद से खेत में झोपड़ीनुमा ढांचा बनाया जाता है। इसी ढांचे के भीतर पान की खेती होती है) और पान की बिक्री के लिए उसे मंडी तक ले जाने पर कोई रोक नहीं होगी।

पत्र में कृषि विभाग के सचिव डॉ एन सरवण कुमार ने लिखा, “बिहार सरकार द्वारा कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए प्रतिबंध के क्रम में कृषि कार्य को लॉकडाउन से मुक्त रखा गया है। पान की खेती भी कृषि का हिस्सा है। पान की खेती करने में बरेजा बनाने हेतु उपयोग में आनेवाली सामग्री की ढुलाई की जाती है। अतः अनुरोध है कि पान की खेती के लिए बरेजा बनाने में इस्तेमाल होनेवाली सामग्री के आवागमन व पान की बिक्री के लिए मंडी जाने वाले किसानों पर रोक नहीं लगाने का निर्देश दिया जाए।”

इस पत्र के मजमून से लगता है कि सरकार ने पान किसानों को राहत पहुंचाई है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर देखें, तो इससे पान किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि पान की खपत पान दुकानों और शादी-ब्याह में होती है, लेकिन लॉकडाउन के कारण पान की दुकानें बंद हैं और शादी-ब्याह भी नहीं हो रहा।

नवादा की पान मंडी के आढ़तिया जग्गू चौरसिया की कमाई मंडी पर निर्भर है। वह मंडी में पान की बोली लगाते हैं और पान बिक जाता है, तो पान किसान कुल बिक्री का 1 प्रतिशत उन्हें देते हैं। लॉकडाउन ने उन्हें भी बेरोज़गार बना दिया है। जग्गू चौरसिया कहते हैं, “लगभग महीने भर से बेरोज़गार हूं। सरकार ने 13 अप्रैल को आदेश जारी कर दिया, लेकिन इसके बावजूद मंडी में वीरानी पसरी हुई है। पान के ख़रीदार नहीं आ रहे हैं। वे पान खरीद कर क्या करेंगे? पान की दुकानें तो बंद हैं।”

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नवादा की पान मंडी में 25 गांवों के पान किसान पान बेचने आते हैं। जग्गू चौरसिया ने बताया, “मेरे पास रोज़ मगही पान के कम से कम 20 किसानों का फोन आ रहा है। वे दुःखी होकर मुझसे कहते हैं कि उनके पास रखा पान खराब हो रहा है, मैं किसी तरह बिकवा दूं। मैं पान उनसे ले भी लूंगा, तो बेचूंगा किसको? मैं आढ़तिया हूं, मुझे बहुत फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन मैं किसानों से बात कर दुःखी हो जाता हूं। वे बर्बादी की कगार पर पहुंच रहे हैं।”

मगही पान उत्पादक समिति के सचिव रंजीत चौरसिया ने कहा, "सरकार ने विज्ञापन देकर बताया कि मीट, मछली, अंडा और चिकेन की दुकानें खुलेंगी, लेकिन पान दुकानों को खोलने की अनुमति नहीं दी। इसी तरह पान दुकानों को खोलने की अनुमति मिल जाती, तो पान किसान नुकसान से बचने जाते। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। इससे साफ है कि पान किसान सरकार की प्राथमिकता में हैं ही नहीं।"

मगध क्षेत्र में मगही पान की खेती लंबे समय से की जा रही है। यहां के एक-एक किसान की तीसरी-चौथी पीढ़ी पान की खेती कर रही है। मगही पान अन्य पान की तुलना में ज्यादा नाज़ुक है। ये न ज्यादा गर्मी बर्दाश्त कर पाता है और न ज्यादा सर्दी। यही वजह है कि सर्दी के मौसम में अक्सर पान किसानों को नुकसान हो जाता है। इसी साल कड़ाके की सर्दी पड़ने से 50 प्रतिशत पान खराब हो गया था।

पिछले साल मगध क्षेत्र समेत पूरे बिहार में 6878 किसानों के 1149.0358 एकड़ में लगा पान सर्दी के कारण बर्बाद हो गया था। लेकिन, नुकसान के मुकाबले मुआवजा बेहद कम मिला था। साल 2018 में मगही पान को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग मिला था, तो किसानों को लगा कि सरकार मगही पान के किसानों के लिए कुछ करेगी, लेकिन अभी तक किसानों के हित में कुछ ठोस नहीं किया जा सका है। लंबे समय से किसानों की मांग है कि पान को बाग़वानी की जगह कृषि उत्पाद की श्रेणी में रखा जाए, ताकि वे फसल बीमा करवा सकें, लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है।

मगही पान की खेती में अनिश्चितता के कारण बहुत सारे किसान अब पान की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं। नवादा के ही छतरवार गांव के अशोक चौरसिया पिछले तीन साल से मगही पान की खेती नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया, “पहले मैं 8-9 कट्ठा में मगही पान उगाता था। मगही पान की खेती दिनोंदिन महंगी हो रही है और मौसम के कारण नुकसान बढ़ रहा है। लेकिन, सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है, इसलिए मैंने पान की खेती छोड़ दी।”

लॉकडाउन के कारण सैकड़ों मगही पान किसान भारी नुकसान झेलने को मजबूर है और इनमें से बहुत किसान ऐसे होंगे, जो इस बार पान की खेती नहीं कर पाएंगे। कई किसानों कहना है कि पान की अगली फसल के लिए इसी वक्त खेत और बरेजा तैयार किया जाता है, लेकिन पुराना पान नहीं बिकने से उनमें संशय है।

पिंटू चौरसिया कहते हैं, “अगर लागत ही नहीं निकलेगी, तो दोबारा खेती करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। हां, हम लोग आत्महत्या करने को मजबूर ज़रूर हो जाएंगे।” 

(उमेश कुमार राय स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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