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ख़बरों के आगे-पीछे : जयपुर में मौका चूके राहुल, टेनी को कब तक बचाएगी भाजपा और अन्य ख़बरें

सवाल है कि अजय मिश्र को कैसे बचाया जाएगा? क्या एसआईटी की रिपोर्ट के बाद भी उनका इस्तीफा नहीं होगा और उन पर मुकदमा नहीं चलेगा?
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जयपुर में मौका चूक गए राहुल

इसमें कोई दो मत नहीं कि विपक्षी नेताओं में इस समय राहुल गांधी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जो मौजूदा सरकार की जनविरोधी नीतियों और उसकी सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ पूरे साहस के साथ मुखर होकर विरोध करते हैं। ऐसा करते हुए वे सरकार के चहेते कॉरपोरेट घरानों का नाम लेने में भी कोई संकोच नहीं करते हैं। लेकिन इस सिलसिले में सरकार पर हमलों को लेकर कभी-कभी उनकी टाइमिंग या मौका गड़बड़ा जाता है, जिससे उनका वार खाली चला जाता है। जयपुर में पिछले सप्ताह कांग्रेस की महंगाई विरोधी रैली में ऐसा ही हुआ और उन्होंने एक बड़ा मौका गंवा दिया। राहुल पता नहीं क्यों दार्शनिक बातों में उलझे रहे, जिससे उनके भाषण का संदेश ही लोगों तक ठीक से नहीं पहुंच सका। वे हिंदू और हिंदुत्ववादी, गांधी और गोडसे, सत्याग्रह और सत्ताग्रह जैसे मुहावरों में उलझे रहे। सीधे-सीधे महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक संकट, राष्ट्रीय सुरक्षा, सांप्रदायिक विभाजन जैसे मुद्दों को लेकर हमला करने की बजाय वे दार्शनिक और वैचारिक व्याख्या में लग गए। ये सारी बातें पार्टी के अधिवेशन, कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण शिविर या किसी बौद्धिक कार्यक्रम वगैरह में बोलने के लिए तो ठीक है, लेकिन जनसभा में इससे लोग बोर हुए और राहुल के कहने का आशय भी लोगों को समझ में नहीं आया। राहुल को इस मामले में नरेंद्र मोदी से और नहीं तो कम से कम अपनी बहन प्रियंका गांधी से ही सीखना चाहिए। जयपुर की रैली में प्रियंका ने राहुल से पहले भाषण दिया और सरकार पर सीधा हमला किया। वे किसी दर्शनिक विमर्श में नहीं उलझीं और महंगाई समेत आम लोगों से जुड़े अन्य मुद्दे ही उठाए। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी जहां भी भाषण देते हैं, वे लोगों से जुड़ जाते हैं। उनके मन की बात करते हैं (हालांकि उनके सारे काम लोगों के खिलाफ ही होते हैं)। विपक्ष को बहुत सीधे शब्दों में निशाना बनाते हैं और कई बार बिना कुछ बोले ही मैसेज पहुंचा देते हैं। जैसे वाराणसी में जब बोले तो हिंदू धर्म और भगवान शिव के दार्शनिक पक्ष पर न बोलते हुए उन्होंने सीधे-सीधे औंरंगजेब, सालार मसूद और शिवाजी का नाम लेकर सांप्रदायिक विभाजन का दांव चला।

आसान नहीं है अजय मिश्र टेनी को बचाना

लखीमपुर खीरी कांड में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्र उर्फ मोनू की मुश्किलें बढ़ गई हैं। राज्य सरकार की बनाई विशेष जांच टीम यानी एसआईटी ने अपनी जांच में बताया है कि लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचल कर मार डालने की जो घटना हुई वह एक सोची समझी साजिश थी, जिसका मकसद किसानों को सबक सिखाना था। सबक इसलिए सिखाना था क्योंकि उन्होंने अजय मिश्र टेनी को काले झंडे दिखाए थे। इसके पहले टेनी ने मंच से किसानों को सबक सिखाने की धमकी दी थी और उसके बाद उनके नाम से रजिस्टर्ड गाड़ी से चार किसानों और एक पत्रकार को कुचल कर मार डाला गया। अगर यह सोची समझी साजिश के तहत हुआ है तो साजिश रचने का आरोप केंद्रीय गृह राज्य मंत्री पर भी बनेगा क्योंकि उन्होंने किसानों को धमकी दी थी। सवाल है कि अजय मिश्र को कैसे बचाया जाएगा? क्या इसके बावजूद उनका इस्तीफा नहीं होगा और उन पर मुकदमा नहीं चलेगा? एसआईटी के ऊपर दबाव था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जांच में देरी पर कई बार उसे फटकार लगाई थी। इसके बावजूद जांच रिपोर्ट में राजनीति देखी जा रही है। केंद्रीय राज्य मंत्री और मुख्यमंत्री के टकराव वाले रिश्ते को भी इससे जोड़ा जा रहा है। एक तरफ ब्राह्मण वोट की चिंता है तो दूसरी ओर निजी मसले हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि राज्य की सत्ता ने पुराना हिसाब चुकता कर लिया है अब देखना है कि केंद्र की सत्ता कैसे अजय मिश्र को बचाती है।

नियमित ट्रेनें चलाने में अब क्या दिक्कत?

कोरोना महामारी थमने के बाद घरेलू उड़ान सेवा नियमित हो गई है लेकिन आम लोगों से जुड़ी ट्रेन सेवा अभी तक नियमित नहीं हो पाई है। भारतीय रेलवे पिछले वर्ष मार्च महीने से अभी तक यानी पौने दो साल से विशेष ट्रेनें ही चला रहा है, जिनमें सुविधा कुछ नहीं है लेकिन किराया अनाप-शनाप वसूला जा रहा है। इन विशेष ट्रेनों की टाइमिंग का भी कुछ पता नहीं है और इनके रुट्स कभी भी बदले जा सकते हैं। सवाल है कि अब जबकि कोरोना वायरस के केस काफी कम हो गए है, तब भी ट्रेनों की नियमित सेवा क्यों नहीं शुरू की जा रही है? पिछले महीने 12 नवंबर को रेलवे की ओर से बताया गया था कि जल्दी ही नियमित सेवा शुरू हो जाएगी, पुराना किराया बहाल हो जाएगा और ट्रेन नंबरों के आगे लगा शून्य हटा दिया जाएगा। ध्यान रहे ट्रेन नंबरों के आगे शून्य यह बताने के लिए लगाया जा रहा है कि ये विशेष ट्रेन हैं। इस घोषणा के करीब एक महीने बाद पिछले दिनों रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने कहा कि नियमित सेवा कब से शुरू होगी, इसकी निश्चित तारीख नहीं बताई जा सकती है। जब दिसंबर के दूसरे सप्ताह में भारतीय रेलवे निश्चित तारीख बताने की स्थिति में नहीं था तो 12 नवंबर को यह ऐलान करने का क्या मतलब था कि जल्दी ही नियमित सेवा शुरू होगी?

गौरतलब है कि अभी 1100 के करीब विशेष ट्रेन चल रही है और इनके किराए से जम कर कमाई भी हो रही है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में यात्री किराए से 4600 करोड़ रुपए की कमाई हो चुकी है और मार्च के अंत तक इसके 15 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है। यानी इस संकट के समय भी रेलवे को सिर्फ कमाई की चिंता है, नियमित सेवा शुरू करके लोगों को राहत पहुंचाने की उसे जरा भी सुध नहीं है।

तुम एक हजार दोगे, हम पांच हजार देंगे

आजकल पार्टियों और नेताओं में होड़ मची है कि कौन मुफ्त में क्या-क्या देने का वादा कर सकता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब और गोवा में हर महिला को हर महीने एक-एक हजार रुपए देने का वादा किया तो उससे एक कदम आगे बढ़ कर ममता बनर्जी की पार्टी ने गोवा के हर परिवार में महिलाओं को हर महीने पांच हजार रुपए देने की घोषणा की। तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि गृह लक्ष्मी योजना के तहत हर परिवार को हर महीने पांच हजार रुपए दिए जाएंगे। हैरानी की बात है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की करीब 11 साल से सरकार है लेकिन वहां गृह लक्ष्मी योजना नहीं है। वहां हर परिवार को महिलाओं के लिए पांच हजार रुपए नहीं दिए जा रहे हैं, लेकिन गोवा में सरकार बनी तो देंगे। इसी तरह केजरीवाल की सात साल से दिल्ली में सरकार चल रही है लेकिन दिल्ली में महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए नहीं मिल रहे हैं पर पंजाब और गोवा में एक-एक हजार रुपए महीना देंगे।

जब कोई पूछ रहा है कि पैसे कहां से आएंगे तो कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार रोकेंगे और उससे बचने वाला पैसा लोगों को देंगे। फिर सवाल है कि जहां अभी आपकी सरकार है क्या वहां भ्रष्टाचार नहीं रोक पा रहे हैं, जो लोगों को नकद पैसे नही मिल रहे हैं?

भाजपा के दलित सीएम का अब क्या होगा?

भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के 18 मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री हैं, जिनमें से एक भी दलित नहीं है। भाजपा ने ऐलान किया था कि वह पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाएगी। लेकिन अब उसका क्या होगा? पंजाब में भारतीय जनता पार्टी और कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस के बीच तालमेल हो गया है। यह तालमेल उसी तर्ज पर हुआ है, जिस तर्ज पर पहले अकाली दल और भाजपा का तालमेल होता था। यानी कैप्टन की पंजाब लोक कांग्रेस बड़ी पार्टी होगी और ज्यादा सीटों पर और भाजपा कम सीटों पर लड़ेगी। इसलिए जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री का दावेदार भाजपा की ओर से नहीं होगा और अगर सरकार बनाने की स्थिति बनती है तो मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ही होंगे। यानी भाजपा को पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाने का अपना दावा वापस लेना होगा। वह ज्यादा से ज्यादा दलित उप मुख्यमंत्री बना सकती है लेकिन अभी तक उसने इसका भी दावा नहीं किया है। उधर अकाली दल ने ऐलान कर दिया है कि उसकी सरकार बनी तो बहुजन समाज पार्टी का कोई दलित नेता उप मुख्यमंत्री बनेगा। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी दलित उप मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है और कांग्रेस दलित मुख्यमंत्री बना कर उसके चेहरे पर चुनाव लड़ रही है।

जनरल रावत की मौत पर भी राजनीति

भारतीय जनता पार्टी सेना, शहीद और राष्ट्रवाद से जुड़े किसी मुद्दे का राजनीतिक लाभ लेने से नहीं चूकती है। याद करें कैसे पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुलवामा के शहीद सैनिकों की फोटो मंच पर लगा कर वोट मांगे थे। अब भाजपा देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की दुर्भाग्यपूर्ण मौत का राजनीतिक लाभ लेने के अभियान में जुटी है। उत्तराखंड के रहने वाले जनरल रावत के नाम का फायदा उठाने के लिए उनके कटआउट्स गाड़ियों में लगा कर पूरे उत्तराखंड में घुमाने का अभियान शुरू हो गया है। इतना ही नहीं, भाजपा शासित राज्यों में बड़ी सक्रियता के साथ पुलिस ऐसे लोगों को पकड़ रही है, जिन्होंने सोशल मीडिया में हेलीकॉप्टर दुर्घटना और उसमें हुई जनरल रावत की मौत को लेकर कोई सवाल उठाए हैं। इस बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी गोवा के दौरे पर गई थीं, जहां उन्होंने आदिवासी महिलाओं के साथ एक नृत्य किया था। भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है और यह प्रचार शुरू किया कि देश में शोक मनाया जा रहा था तब कांग्रेस के नेता गोवा में मौज कर रहे थे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसके लिए प्रियंका गांधी पर निशाना साधा। हालांकि इसके अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में एक बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लिया और खुद कहा कि देश शोक में है लेकिन देश ठहर नही सकता है। यानी देश नहीं ठहरने का मामला सिर्फ भाजपा के लिए है।

भ्रष्टाचार की चर्चा ममता को पसंद नहीं!

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी कुछ मामलों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के रास्ते पर हैं तो कुछ मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रास्ते पर चलती हैं। जैसे पिछले दिनों उन्होंने अपने राज्य के मीडिया समूहों से कहा कि विज्ञापन चाहिए तो सकारात्मक खबरें छापें-दिखाएं। ध्यान रहे सकारात्मक खबरों के बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत पहले ही मीडिया को जागरूक कर दिया था और मीडिया भी उनकी दी हुई सीख का पूरी तरह पालन कर रहा है। बहरहाल, अब ममता बनर्जी ने पार्टी नेताओं के बीच भ्रष्टाचार को लेकर छिड़ी जंग को भी दबाने के लिए अपनी पार्टी की तेजतर्रार सांसद महुआ मोईत्रा को हड़काया है।

असल में पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में ‘बांग्ला आबास योजना’ में भ्रष्टाचार की शिकायत पार्टी के कुछ नेताओं ने की थी। इस क्षेत्र की सांसद महुआ मोईत्रा के करीबियों ने यह मुद्दा उठाया और पार्टी के नेता जयंत साहा पर आरोप लगाए। इससे ममता बनर्जी इतनी नाराज हो गईं कि उन्होंने कृष्णानगर नगरपालिका के अध्यक्ष पद से असीम साहा को हटा दिया और उनकी जगह जयंत साहा के करीबी नरेश दास को प्रशासक लगा दिया। ममता इतने पर नहीं रूकीं। उन्होंने जयंत साहा और पार्टी के दूसरे नेताओं के सामने महुआ मोईत्रा को फटकार लगाई और कहा कि इस तरह की बातों की चर्चा सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए। हैरान करने वाली बात है कि जिसके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे उसके हाथ में सब कुछ सौंप दिया गया और महुआ मोईत्रा को गोवा भेज दिया गया।

भ्रष्टाचार की खबरें सार्वजनिक होने से ममता बनर्जी नाराज हुईं लेकिन वे अपनी एक सांसद को डांट-फटकार कर रही थीं और उसकी वीडियो वायरल हो गई, उस पर उनको कोई नाराजगी नहीं है। ऐसे में यही माना जाना चाहिए कि उन्हें और उनकी पार्टी के कुछ नेताओं को महुआ मोईत्रा का राजनीतिक कद बढ़ना रास नहीं आ रहा है।

बोम्मई, देवगौड़ा पर भारी पड़े शिवकुमार

कर्नाटक में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद डीके शिवकुमार ने दूसरी बार अपनी ताकत और क्षमता दिखाई है। कुछ समय पहले हुए विधानसभा के उपचुनाव में उन्होंने सत्तारूढ़ भाजपा को पसीने छुड़ा दिए थे और नए मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के गृह जिले हावेरी की हंगल सीट पर कांग्रेस को जीत दिलाई थी। यह मुख्यमंत्री के लिए बड़ा झटका था। अब विधान परिषद के चुनाव में भी शिवकुमार ने मुख्यमंत्री बोम्मई और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के परिवार को बड़ा झटका दिया है। राज्य में विधान परिषद की 25 सीटों के लिए चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने 11 सीटें जीती। भाजपा को भी 11 और जेडीएस को महज दो सीटें मिलीं। भाजपा कह रही है कि उसे पिछली बार से ज्यादा सीटें मिली हैं, जो कि तथ्यात्मक रूप से सही है लेकिन आमतौर पर ऐसे चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टियां ज्यादा सीटें जीतती हैं, जबकि इस बार कांग्रेस ने उसे बराबरी की टक्कर दी। ऊपर से मुख्यमंत्री के गृह जिले हावेरी की सीट कांग्रेस ने जीत ली। इस तरह मुख्यमंत्री को दूसरी बार झटका लगा है। यही नहीं, मैसुरू इलाके में वोक्कालिगा वोट पर एकाधिकार रखने वाले देवगौड़ा परिवार को भी शिवकुमार ने बड़ा झटका दिया। मैसुरू इलाके में कांग्रेस ने पांच सीटें जीती, जबकि जेडीएस सिर्फ दो सीट जीत पाया। इसका मतलब है कि वोक्कालिगा वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हुआ है और यह शिवकुमार की वजह से हुआ है। ध्यान रहे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शिवकुमार वोक्कालिगा हैं और इस वजह से ही देवगौड़ा परिवार से उनका टकराव चलता रहता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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