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‘काम नहीं तो वोट नहीं’ के नारों के साथ शिक्षित युवा रोज़गार गारंटी बिल की उठाई मांग

युवाओं का कहना है कि पढ़ाई पूरी करने के 3 माह के भीतर सरकार को नौकरी मुहैया कराना चाहिए अथवा जब तक शिक्षित को नौकरी न मिले, तब तक सरकार की ओर से स्किल्ड लेबर की न्यूनतम मजदूरी के बराबर करीब साढ़े नौ हजार बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए।
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मध्य प्रदेश के बेरोजगार युवाओं द्वारा शिक्षित युवा रोजगार गारंटी कानून व युवा आयोग बनाने का आंदोलन जोर पकड़ रहा है। शिक्षित युवा आंदोलन के समर्थन में मिस्ड कॉल देकर जुड़ रहे हैं और युवाओं द्वारा हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जा रहा है। युवाओं का कहना है कि पढ़ाई पूरी करने के 3 माह के भीतर सरकार को नौकरी मुहैया कराना चाहिए अथवा जब तक शिक्षित को नौकरी न मिले, तब तक स्किल्ड लेबर की न्यूनतम मजदूरी के बराबर करीब साढ़े नौ हजार बेरोजगारी भत्ता सरकार की ओर से दिया जाए। गैर बराबरी, उपेक्षा और शोषण के चक्रव्यूह में फंसी युवा शक्ति की ऊर्जा को सही दिशा में लगाया जाए एवं युवाओं को निराशा के भंवर से निकालने का हर संभव प्रयास करे सरकार। 

नौकरियों के आवेदन पर फीस लेकर लाखों की कमाई करती सरकार

बेरोजगार सेना के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राज प्रकाश मिश्रा बताते हैं कि युवा संसद के माध्यम से प्रदेश भर के युवाओं से निरंतर संवाद जारी हैं, निकट भविष्य में हम लोग इससे भी बड़ा आंदोलन करने की तैयारी कर रहे हैं। राज प्रकाश ने कहा सरकार वैकेंसी निकालती है, उसमें लाखों युवा 500 या एक हजार की फीस के साथ आवेदन करते हैं। उसके बाद या तो पेपर लीक हो जाता है या फिर सालों साल उस परीक्षा का परिणाम ही नहीं आता। सरकार ने अच्छा खासा धंधा बना रखा है, जबकि शिक्षित युवा या उसके माता-पिता यूं भी लाखों के एजुकेशन लोन में डूबे हुए हैं। कोई भी संवेदनशील युवा माता-पिता का यह दुख कैसे देख सकते हैं, इसलिए वे आत्महत्या कर लेते है। 

बेरोजगार सेना के पदाधिकारी सत्यप्रकाश बताते हैं कि उनके चार भाई है और चारों ने नौकरी पाने के लिए बहुत अधिक पढ़ाई कर ली। सत्यप्रकाश ने खुद एमएससी केमिस्ट्री, बीएड, एमए सोशियोलॉजी, पीएचडी भी सोशियोलॉजी से कर ली। परंतु उसके लिए भी कहीं नौकरी नहीं है। उन्होंने कहा, कोरोना संक्रमण से पहले छतरपुर नगर निगम से कुछ दोस्तों के साथ मिलकर ठेका लिया था, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते वह काम भी बंद हो गया। ऊपर से पैसा और फंस गया। उन्होंने कहा, बहुत ज्यादा डिप्रेशन होता है, परंतु कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। छोटा भाई एम फार्मा, एक भाई इंजीनियर और एक भाई एमएड है। परंतु सब बेरोजगार है। एक भाई रजिस्ट्रार के पद के लिए 2019 में परीक्षा दिया था, आज तक उसका परिणाम नहीं आया। पिता सरकारी स्कूल में मास्टर थे, तो आसानी से पढ़ाई के लिए कर्ज मिल गया था, अब वही कर्ज गले की फांस बन चुका है। परिवार में थोड़ी बहुत खेती की जमीन है। चारो भाई पिता के साथ खेतों में काम कर रहे हैं।

डिलीवरी बॉय बनने को मजबूर युवा  

इसी तरह रतलाम की खुशबू शुक्ला बताती हैं, कि माइक्रो बायोलॉजी से एमएससी करने के बाद कोचिंग में भी जाती रहीं, लेकिन कहीं नौकरी नहीं लगी। लिहाजा थक हारकर 5 हजार रुपए में अतिथि शिक्षक का काम कर रही हैं। खुशबू ने कहा बेहद संघर्ष भरा जीवन हो गया है। हमारे कई साथी तो ओला, उबर में मोटरसाइकिल चलाने का काम कर रहे हैं। बड़ी संख्या में ऐसे युवा हैं जो मजबूरी में स्विगी, जोमैटो, अमेजॉन जैसी ऑनलाइन कंपनियों के डिलीवरी ब्याय बनकर अपना खर्च निकाल रहे हैं। कई लड़कियां एमएससी पीएचडी करने के बाद 6-8 हजार रुपए पगार पर कॉल सेंटर में काम कर रही हैं। सभी को ओवरएज का डर सताने लगा है। शायद आंदोलन के जरिए सरकार की कानों तक हमारी बात पहुंचे।


 
इसी तरह छतरपुर की प्रियंका दुबे एमएससी गणित, एमए हिंदी, बीएड, पीजीडीसीए, टाइपिंग, सीपीसीटी हैं। पिछले 5 साल से संघर्ष कर रही हैं लेकिन कहीं कोई वेकेंसी नहीं है। चार बहनें हैं, चारों बेरोजगार। पिता एक अस्पताल में संविदा कर्मी हैं। मात्र 10 हजार रुपए में पूरे परिवार का गुजारा चल रहा है। मध्यप्रदेश के बेगमगंज की अभिलाषा चतुर्वेदी  ने एमएससी केमिस्ट्री, एमए इंग्लिश, बीएड करने के बाद मजबूरन सात हजार रुपए में अतिथि शिक्षक हैं। माता-पिता बुजुर्ग हैं और भाई इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अभी तक बेरोजगार हैं। ऐसे लाखों बच्चे हैं इस प्रदेश में जो नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं।

अकेले इंदौर के भंवरकुआं में कोई एक से डेढ़ लाख बच्चे विभिन्न कोचिंग संस्थानों में पढ़ा करते थे, ये मेधावी छात्र यूपीएससी, पीएससी में अपना भविष्य बनाने के लिए मोटी फीस देकर पढ़ाई करते थे। आज यहां सन्नाटा पसरा है। चार साल से नौकरी ही नहीं निकली। आज ऐसे बच्चे भविष्य के भंवर से पार पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

छात्रों को लेकर हर सरकारें एक सी दगाबाज 

वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ला बताते हैं कि युवाओं और छात्रों को लेकर हर सरकारें एक सी दगाबाज हैं। उनके चुनावी वायदों में रोजगारी की बरसात रहती है पर सत्ता में आने के बाद युवा फिर उसी रेगिस्तान के बियावान टीले पर खड़ा मिलता है। 2018 में मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार आई तो लगा कि युवाओं को लेकर यह गंभीर होगी.. क्योंकि भाजपा के सत्ता पलट में युवाओं की बड़ी हिस्सेदारी थी। लेकिन कमलनाथ भी कमाल के निकले उनकी सरकार और उसके ज्यादातर मंत्री गजनवी अंदाज में कूटने और तबादलों के एवज में उगाही करने में लग गए। पीएससी की जो रिक्तियाँ थीं भी, उसे भी टालते गए। और अंततः पिछड़ों के सत्ताईस परसेंट आरक्षण का वह सियासी पैंतरा भांजा कि सभी नौकरियां वहीं फँस गईं। कमलनाथ को यह मालूम था कि यह आरक्षण संविधान सम्मत नहीं है और कोर्ट से स्थगन मिल जाएगा।

कमलनाथ सरकार को युवाओं की हाय लगी और वह कोरोना काल में ही भस्मीभूत हो गई। अब आई शिवराज सरकार, तो उपचुनावों के चक्कर में वह भी हाईकोर्ट में तारीख पर तारीख लेते हुए चलती रही। अब सामने पंचायत के चुनाव हैं, फिर नगरीय निकायों के और तब तक विधानसभा और लोकसभा के चुनाव आ जाएंगे। तब तक हम उम्मीद कर सकते है कि इसी तरह तारीख पर तारीख मिलती रहेगी।

नवंबर 2018 से अब तक व्यापम और पीएससी के जरिए एक को भी नौकरी नहीं मिली। प्राइवेट सेक्टर में कोरोना इफेक्ट और सरकारी सेक्टर में रिजर्वेशन का पेंच। जो नौकरी में हैं वे बिना प्रमोशन के रिटायर्ड हो रहे हैं। और बच्चे इन्हीं दो पहलुओं में फंसकर अवसाद की स्थिति में पहुंच रहे हैं।

पिछले बीस साल से मध्य प्रदेश क्या देश में भी संविदा कर्मी संस्कृति चल रही है। यानी कि सबसे बडे़ नियोक्ता शिक्षा विभाग समेत सेवा प्रदाता व प्रशासन के क्षेत्र में कोई पाँच लाख के आसपास ऐसी संख्या है जो रोजनदारी, संविदा और टोकन मानदेय पर चल रही है। सरकारी क्षेत्र की उच्च शिक्षा तो लगभग पूरी तरह अतिथि विद्वानों पर निर्भर है। बड़ी संख्या में ऐसे महाविद्यालय हैं जिनके विभागाध्यक्ष संविदा कर्मी या अतिथि विद्वान हैं। स्वास्थ्य, पंचायत और भी कई ऐसे सेवा प्रदाता विभाग हैं जिन्हें दिहाड़ी के नौकर चला रहे हैं और जो नियमित हैं वे उनकी नौकरी खा जाने का भय दिखाकर हुक्म चलाते हैं।  वास्तव इन युवाओं का कोई नहीं जो इनकी चिंता करे।

हम सरकार पर भरोसा करते हैं कि वह अन्याय रोकेगी। यहां तो उल्टा वही दमन और शोषण कर रही है। कमाल की बात ये कि कोई इन अभागे बेरोजगारों के बारे में बोलने को तैयार भी नहीं। यह हाल उन युवाओं का है जो पढ़ लिखकर दिहाड़ी-संविदा ही सही नौकरी पाए हुए हैं। जो बेरोजगार हैं उनकी संख्या इनसे कई गुना ज्यादा ही होगी। श्रम विभाग को नख दंत विहीन कर दिया गया है। और ये गरीब उच्च न्यायालयों में जाने का सामर्थ्य नहीं रखते इसलिए पिस रहे हैं।

सत्यप्रकाश कहते हैं कि मरने के पहले जीते जी विप्लव ही युवा शक्ति को बचा सकती है। एक तूफान युवाओं की ओर से उठे और इसमें सब शामिल हो । मुझे विश्वास है ये चिंगारी युवा शक्ति के घर्षण से जल्दी ही उठेगी। क्योंकि आने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में इसका असर दिखाई देने लगा है। कई राज्यों में बेरोजगारी के मुद्दे पर युवा प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्हें पुलिस की लाठियां खानी पड़ रही है। पुलिस सरकार के इशारे पर बल प्रयोग करते हुए सैकड़ों युवाओं को गिरफ्तार कर रही है। आखिर कब तक सरकारें यह सब करेगी।

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