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मध्य प्रदेश: अब शिवराज पर नहीं रहा विश्वास? केंद्रीय मंत्रियों से जीत की आस

लोकसभा से पहले मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे, जिसे जीतने के लिए भाजपा ने अपना केंद्रीय नेतृत्व ही खड़ा कर दिया है। साथ ही क़यास है कि शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री वाली पारी भी ख़त्म कर दी जाए।
Shivraj-Modi

अर्बल नक्सल, बीमारू राज्य, बारिश में रखा लोहा... मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया। पता नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसा क्यों लगता है कि सभ्य समाज को ऐसे शब्द पसंद आते हैं।

हालांकि ऐसे शब्दों का प्रयोग इस बात की ओर भी इशारा है कि मध्य प्रदेश में भाजपा की हालत ठीक नहीं है? और जीत के लिए उनके नेता किसी भी स्तर की बयानबाज़ी करेंगे। क्योंकि ये बात जगज़ाहिर है कि प्रदेश में जनता द्वारा चुनी कांग्रेस सरकार को तोड़कर ही भाजपा ने फिर से अपना मुख्यमंत्री बनाया था, जो जनता भूली नहीं है। इसके अलावा बहुत से ऐसे काम हैं, जो चुनाव में भाजपा के ख़िलाफ जा सकते हैं।

अब इसे डर कहिए या डैमेज कंट्रोल की कोशिश, भाजपा ने मध्य प्रदेश में चुनाव के लिए अपनी दूसरी लिस्ट जारी की जिसमें अपने 7 सासंदों को चुनावी मैदान में उतार दिया है जिनमें तीन तो केंद्रीय मंत्री हैं।

तीन केंद्रीय मंत्रियों में नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्रलाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी कमान दे दी है। कौन कहां से चुनाव लड़ रहा है आप इस लिंक पर देख सकते हैं।

इन दिग्गजों के चुनावी मैदान में उतरने के बाद एक बड़ा फैक्टर और सामने है कि अब मुख्यमंत्री की जगह खाली हो चुकी है, क्योंकि इन नामों के रहते हुए मुख्यमंत्री का ऐलान कर देना इनकी प्रतिष्ठा के आड़े आएगा, दूसरा शिवराज सिंह चौहान की घटती लोकप्रियता के कारण ख़ुद भाजपा भी शिवराज के नाम को आगे करने से बच ही रही है।

इसके पीछे मूल कारण क्या है? जानने के लिए हमने बात की मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा से। उन्होंने बताया कि पिछले करीब 20 साल से प्रदेश में भाजपा का नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान कर रहे थे। जब सिंधिया आए तब भी। लेकिन अब आम जनता की नाराज़गी भाजपा से कम शिवराज के चेहरे से ज़्यादा है, और इसको अमित शाह ने भांप लिया है। यही कारण है कि शिवराज अपने हर भाषण में 200 पार का नारा देते हैं, लेकिन अमित शाह उनकी बात को झुठलाते हुए 150 के आंकड़े की बात करते हैं।

राणा बताते हैं कि पिछली बार भाजपा ने ‘माफ करो महाराज हमारे नेता शिवराज’ के नारे के साथ चुनाव लड़ा था, जबकि इस बार ऐसा नहीं है। हां शिवराज सभाओं का चेहरा ज़रूर हैं क्योंकि वो अच्छा बोलते हैं, लेकिन सारे पत्ते केंद्रीय नेतृत्व ने अपने हाथ में रखे हैं। जैसे पिछली बार टिकट शिवराज ने बांटे थे, इस बार मोदी और शाह तय कर रहे हैं कि कौन मैदान में होगा।

कीर्ति राणा ये भी बताते हैं कि भाजपा ने इस बार कांग्रेस वाली रणनीति अपनाई है, जैसे पिछली बार कांग्रेस ने आधी सीटें कमलनाथ के हवाले कर दी थीं, तो आधी सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया के हवाले, और कहा था कि जो ज्यादा सीटें जीतेगा वो मुख्यमंत्री बनेगा। इस बार भाजपा ने तीनों मंत्रियों को ये काम दे दिया है।

इसके बाद हमने एक और वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन से बात की, उन्होंने बताया कि प्रदेश में भाजपा की सेंट्रल लीडरशिप के ख़िलाफ ज़बरदस्त माहौल है। यही कारण है कि उन्होंने ऐसे केंद्रीय मंत्रियों को उतार दिया है, जो इसी प्रदेश से हैं। इसके अलावा उन्होंने बताया कि शिवराज सिंह चौहान कभी भी मोदी और शाह की पसंद नहीं रहे हैं। जब मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे तब आडवाणी ने शिवराज का नाम आगे किया था, जिसके बाद उन्होंने अपनी बड़ी जगह बना ली। 2018 में जब भाजपा ने कांग्रेस को तोड़कर सरकार बनाई तब मोदी और शाह के पास कोई चारा नहीं था।

लिस्ट में शामिल बाकी चार सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, रीति पाठक और उदय प्रताप सिंह भी हैं। वहीं केंद्रीय मंत्रियों में दिमनी से नरेंद्र तोमर और नरसिंगपुर से केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को मैदान में उतारा है। विजयवर्गीय को इंदौर-1 निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा गया है, जबकि राज्य मंत्री कुलस्ते को निवास से टिकट दिया गया है, जो सीट एसटी उम्मीदवार के लिए आरक्षित है।

फिर हमने प्रदेश के सोशल एक्टिविस्ट सत्यम श्रीवास्तव से बात की, और आगामी चुनाव के लिए शिवराज सिंह चौहान की भूमिका को जानने की कोशिश की। सत्यम ने बताया कि शिवराज के खिलाफ ज़बरदस्त एंटी-इनकंबेंसी है। उन्होंने बताया कि आजकल नया चलन है एक व्यक्ति के नाम से सरकार जानी जाती है, इसका खामियाजा शिवराज भुगत रहे हैं। और केंद्रीय मंत्री वो लोग हैं जो मुख्यमंत्री पद की दौड़ में रहे हैं। यानी एक बात तो स्पष्ट है कि भाजपा की सरकार बनी तो शिवराज मुख्यमंत्री नहीं होंगे। इसका एक उदाहरण मोदी की सभा में देखने को मिला जहां कार्यकर्ताओं के सामने एक बार भी शिवराज की तारीफ नहीं की, सारा कुछ अपने ऊपर लिया।

यहां ध्यान देने वाली विशेष बात ये है कि अपने बेटों के लिए टिकट की चाह रखने वाले कई नेताओं में कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, गोपाल भार्गव, गौरी शंकर बिसेन, नरोत्तम मिश्रा और यहां तक कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं। ऐसे में वरिष्ठ नेतृत्व को मैदान में उतारने से यह भी सुनिश्चित होगा कि उनके बेटों के लिए टिकट की कोई लड़ाई न हो।

भाजपा के तीन केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय महासचिव

फग्गन सिंह कुलस्ते- मंडला सीट से सांसद हैं। आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते 33 साल के बाद चुनाव लड़ेंगे। फग्गन को निवास विधानसभा सीट से टिकट दिया गया है। इससे पहले यहां से फग्गन के ही भाई राम प्यारे चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे। आपको बता दें कि फग्गन सिंह कुलस्ते 6 बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा सांसद रहे हैं।

नरेंद्र सिंह तोमर - मुन्ना भईया के नाम से मशहूर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना जिले की दिमनी सीट दी गई है। इस सीट को तोमर का पसंदीदा माना जाता है, यहां से अब तक उनके करीबी चुनाव लड़ते आए है, लेकिन इस बार वो खुद लड़ेंगे। तोमर ग्वालियर से दो बार विधायक रह चुके हैं।

प्रहलाद सिंह पटेल - इन्हें नरसिंहपुर सीट दी गई है। यहां से प्रहलाद के भाई जालम सिंह सीटिंग विधायक हैं। जालम का टिकट काटा गया है। प्रहलाद ने अब तक विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है। पटेल पहली बार साल 1980 में जबलपुर विश्वविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़े और जीते, 1989 में सिवनी से पहली बार सांसद बने। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला राज्य मंत्री रहे। इस समय वो दमोह से सांसद हैं और मोदी कैबिनेट में पर्यटन मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। लोधी समुदाय से आने वाले पटेल को भी मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाता है।

कैलाश विजयवर्गीय - अपने बयानों के लिए मशहूर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर-1 से टिकट दिया गया है। विजयवर्गीय 2015 के बाद प्रदेश की राजनीति में बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं थे। विजयवर्गीय 1990 से लगातार 6 बार विधायक चुने गए। वो लगातार 12 साल तक मंत्री रहे। 2003 में सबसे पहले उमा भारती, फिर बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए।

भाजपा ने अपने दिग्गजों को चुनावी मैदान में खड़ा तो कर दिया, लेकिन सवाल है कि क्या इनका मन भी चुनाव लड़ने का है? तो शायद जवाब मिलेगा नहीं! अब पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को ही ले लीजिए.. कह रहे हैं कि अब कौन जाए जनता के सामने हाथ जोड़ने।

एक सभा में बोलते हुए कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सच कहूं तो मैं अंदर से खुश नहीं हूं, क्योंकि अंदर से मेरी चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है। एक माइंड सेट होता है न लड़ने का, मुझे अभी भी विश्वास नहीं है कि मुझे टिकट मिल गया और मैं उम्मीदवार बन गया। अब हम बड़े नेता हो गए… अब जाना, भाषण देना और निकल जाना… यह सोचा था हमने तो… अब हाथ जोड़ने कहां जाएं? हमने तो प्लान बनाया था कि रोज 8 सभा करना है, पांच हेलीकॉप्टर से और तीन कार से सभा करना है पूरे चुनाव में...।

अब विजयवर्गीय के इस बयान को कांग्रेस ने जाने नहीं दिया। प्रदेश में पार्टी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने कैलाश विजयवर्गीय पर तंज कसा और कहा कि "ये हैं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव जी, जो इंदौर-1 से विधानसभा का टिकट मिलने से अंदर से खुश नहीं हैं! इनका कहना है इन्हें तो रोज 8 सभाओं में भाषण झाड़ना था, अब बड़े नेता हो गए हैं, अब जनता के हाथ कौन जोड़े...!! इतना अहंकार कि जिस जनता ने उन्हें कैलाश विजयवर्गीय "जी" बनाया, उनके हाथ जोड़ने में शर्म...!!”

सिर्फ कैलाश विजयवर्गीय ही नहीं, नरेंद्र सिंह तोमर भी उन्हें टिकट दिए जाने के कारण खुश नहीं दिखे। हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें पता था कि टिकट मिल जाएगा और चुनाव लड़ना पड़ेगा, लेकिन एक बार पार्टी को उनसे बात करनी चाहिए थी।

मंत्रियों को बग़ैर बताए टिकट दिए जाना और उनकी नाराज़गी विश्लेषकों की बातों को सही सिद्ध करती हैं। कहने का मतलब ये है कि मध्य प्रदेश में भाजपा की हालत फिलहाल ठीक नहीं है।

वैसे पहला मौका नहीं है जब भाजपा ने किसी राज्य के चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों पर दांव लगाया हो। पार्टी ने उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के विधानसभा चुनावों में भी ये प्रयोग किया था। 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव में केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को अखिलेश यादव के खिलाफ करहल सीट से चुनाव मैदान में उतारा था, हालांकि बघेल चुनाव हार गए थे। त्रिपुरा में केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक ने भी विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतीं भी। बघेल के हारने के बाद भी केंद्र के मंत्रीमंडल में उनका पद बना रहा था। वहीं पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी भाजपा ने बाबुल सुप्रियो के साथ ही सांसद लॉकेट चटर्जी और निशिथ प्रमाणिक समेत पांच सांसदों को उम्मीदवार बनाया था, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी और राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता को हार मिली। निशिथ प्रमाणिक 57 वोट के करीबी अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे थे और जगन्नाथ सरकार ने भी अपनी सीट निकाली।

अर्थात भाजपा का ये प्रयोग बहुत ज़्यादा सफल नहीं रहा है। पश्चिम बंगाल का उदाहरण लेंगे, तो चुनाव में पार्टी की क्या हालत हुई थी, इससे कौन वाकिफ नहीं है।

बात शिवराज सिंह चौहान की...

भाजपा की ये परंपरा रही है कि कार्यकाल पूरा होने से पहले मुख्यमंत्री बदल दिया जाए, फिर चाहे गुजरात हो, उत्तराखंड हो या फिर त्रिपुरा। वाहिद मध्य प्रदेश इकलौता राज्य है जहां शिवराज सिंह चौहान पिछले 20 साल से सत्ता में बने हुए हैं। लेकिन इस बार उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट देखकर ऐसा लग रहा है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में समीकरण अलग बन सकते हैं। क्योंकि कई सर्वे बताते हैं कि राज्य में भाजपा की हालत इस बार बहुत खराब है, पार्टी ने ज़मीनी स्थिति को सुधारने के लिए सारे बड़े कद्दावर नेताओं को मैदान में उतार दिया है। साथ ही अलग-अलग सार्वजनिक मंचों पर तमाम नेताओं ने ये बयान दिया है कि राज्य के मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद ही होगा। इन बयानों के बाद भाजपा ने उम्मीदवारों की लिस्ट में शिवराज सिंह चौहान के कद के बराबर वाले कई नए चेहरों को मैदान में उतारकर जनता को यह संदेश भी दे दिया है कि इस चुनाव में अगर भाजपा जीतती है तो प्रदेश की जनता को नया मुख्यमंत्री मिल सकता है।

आपको बता दें कि शिवराज सिंह चौहान साल 2005 से मध्य प्रदेश में भाजपा का चेहरा रहे हैं, साल 2005 में उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और 2018 तक इस पद पर बने रहे। थोड़े समय के बाद, वह 2020 में वापस आ गए।

ख़ैर.. चुनाव की तारीख़ों का ऐलान कभी भी हो सकता है, इसलिए भाजपा और कांग्रेस जी-जान से प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं। देखना ये होगा कि इस बार मतदाता किस पार्टी पर विश्वास दिखाते हैं।

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