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दिल्ली ही नहीं गुरुग्राम में भी बढ़ते प्रदूषण से सांसों पर संकट

"नाक साफ करते हैं तो नाक के अंदर से काली परत जमीं निकलती है जो प्रदूषण की गंभीरता के संकेत है।"
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो' फोटो साभार: India Today

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटा गुरुग्राम हरियाणा का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर है। यहां प्रदूषण का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। हर दिन प्रदूषण की वजह से यहां के लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। जब हमने गुडगांव में हुड्डा सिटी मेट्रो स्टेशन से लेकर झाड़सा तक के आसपास के स्थानों पर जाकर लोगों से प्रदूषण के प्रभाव की जानकारी ली तो पता चला कि वहाँ सबसे ज्यादा लोगों को प्रदूषण के कारण आंखों में जलन, खांसी और जुखाम जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और खुलकर सांस लेना तो दुश्वार हो गया है।

गुरुग्राम के झाड़सा में हमने वहाँ के निवासी और कामगारों जिनमें रोहित, सीमा, प्रदीप और पवन से प्रदूषण को लेकर सवाल-जवाब किये ताकि पता चले कि वह प्रदूषण को किस तरह देख रहे हैं और उन पर प्रदूषण का कितना असर है तो उन्होंने बताया कि यहाँ धुंध जैसी परत छायी हुयी है। इस क्षेत्र में गंदगी और वाहनों की आवाजाही से प्रदूषण में इजाफा हो रहा है, जिससे घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। प्रदूषण के माहौल से लोगों के अंदर स्वास्थ्य खराब होने का डर बना हुआ है।

जब हम गुरुग्राम सेक्टर 32 पहुंचे। वहाँ हमने अनुज, सुभाष, राजेश, रमेश, हरीलाल, हरिसिंह, प्रेमचंद से प्रदूषण के प्रभाव को लेकर बातचीत की तो उन्होंने कहा कि यहां प्रदूषण से एक तो सांस लेने में परेशानी हो रही है। ऊपर से कोरोना की वजह से मास्क भी लगाना पड़ रहा है, जिससे घुटन महसूस हो रही है।

इस सेक्टर के निवासी रमेश जो कि बेरोजगार हैं, उनका कहना है कि  हालात यह कि प्रदूषण से सीने में जलन भी हो रही है। नाक साफ करते हैं तो नाक के अंदर से काली परत जमीं निकलती है जो प्रदूषण की गंभीरता के संकेत है।

इसके बाद इसी सेक्टर के निवासी राजेश जो आटो चालक है उन्होंने कहा कि प्रशासन द्वारा प्रदूषण की गंभीरता से जिस तरह सड़कों पर पानी का छिड़काव किया जा रहा है, उसी तरह पानी का छिड़काव पेड़-पौधों पर भी किया जाना चाहिए, क्योंकि वाहनों की आवाजाही से पेड़-पौधों पर भी धूल जमीं हुयी है जिससे पेड़-पौधों के आसपास उड़ती धूल से साफ सुथरी हवा नहीं मिल पा रही। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदूषण सबसे ज्यादा कामगारों और रेहड़ी-पटरी वालों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है क्योंकि दिनभर सड़कों के इर्द-गिर्द कामगार और रेहड़ी-पटरी वाले ही नजर आते हैं। ज्यादातर सड़कों पर ही प्रदूषण देखने मिलता है।

वहीं वहां के निवासीयों ने प्रदूषण का कारण दीवाली के पटाखे, पराली जलाना, बढ़ता धूम्रपान खासकर सिगरेट पीना, खराब वाहनों का चलना और बढ़ती गंदगी बताया है। निवासियों का कहना है कि फलों और सब्जियों के कचड़े का उचित प्रबंधन न होने से गुरुग्राम में बहुत अधिक गंदगी बढ़ती जा रही है। गंदगी और प्रदूषण से लोगों को आने वाले समय में गुड़गांव छोड़कर अन्य जगह पलायन करना पड़ सकता है।

जब हम झाड़सा मंडी से गुजरे और वहां मौजूद लोगों से प्रदूषण के असर के बारे में पूछा तो लोगों ने बताया कि प्रदूषण का कहर इस कदर है कि आंखों से धुंधला दिखाई दे रहा है। यह प्रदूषण पटाखों से बढ़ा है, सरकार को दीपावली के अवसर पर पटाखों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए था। इसके अलावा जागरूकता के अभाव से भी प्रदूषण में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी हो रही है।

वहां बुजुर्ग भी मौजूद थे जिनमें से सूर्यप्रकाश ने कहा कि प्रदूषण को काबू करने के लिए खबरें मिल रही है कि सरकार लॉकडाउन लगाना चाहती है लेकिन सरकार इस बार ही क्यों लॉकडाउन की तैयारी में नजर आ रही है? बीतें कुछ वर्षों में प्रदूषण को लेकर सरकार द्वारा लॉकडाउन का कभी जिक्र क्यों नहीं किया गया?
 
वहीं हुड्डा सिटी मेट्रो स्टेशन के पास दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत् बीकॉम के छात्र अमन से हमने प्रदूषण पर बात की तो उन्होंने कहा प्रदूषण से कैंसर जैसी बीमारियां हो रही हैं। प्रदूषण रोकने के लिए सरकार को महीने भर का लॉकडाउन लगाना चाहिए।

इसके पश्चात बेरोजगारी के आलम से जूझ रहे यूपी के जयभगवान से जब हमारी बात हुयी तो, उन्होंने कहा कि एक तो बेरोजगारी हमें परेशान किए हुए हैं, दूसरी तरफ यह  प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए गंभीर मुसीबत बन गया है। अगर बेरोजगारी और प्रदूषण का यही हाल रहा तो हम जैसे प्रवासी कामगार पुनः अपने गांवों की ओर रवाना होने लगेंगे।

जब हम सेक्टर 39 की ओर गये तो वहाँ हमनें महिलाओं में रूबी, सीमा, कुसुम आदि से प्रदूषण के स्तर पर पूछताछ कि तो उन्होंने ने कहा कि सुबह से सड़कों पर चारों ओर प्रदूषण से धूल ही धूल नजर आती है। यहाँ आस-पास खुले में घूमने जैसा माहौल नहीं रहा है। प्रशासन द्वारा प्रदूषण रोकने के कोई विशेष प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। 

इस सेक्टर की निवासी कुसुम ने कहा कि दीपावली में पटाखों के प्रयोग से यहाँ के प्रदूषण का स्तर दो गुना हो गया है, जिससे हदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

जब हमनें साउथ सिटी फेस वन की ओर रुख़ किया तो उस दौरान वहाँ मौजूद फिल्मकार मिथुन से हमने प्रदूषण के खतरे को लेकर बात की तो उन्होंने कहा कि प्रदूषण हमें  मानसिक रूप से प्रभावित कर रहा है। प्रदूषण के पीछे सामाजिक और राजनीतिक कारण है। बढ़ती जनसंख्या भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। प्रदूषण को रोकने के लिए हमें इस वक्त सबसे ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है।

साउथ सिटी फेस वन में ही मौजूद  डॉ.नरेंद्र कुमार भटनागर से जब हमनें प्रदूषण को लेकर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि बहरोल से आगे आने पर प्रदूषण से माहौल काफी खराब नजर आने लगता है। दिल्ली एनसीआर और गुड़गांव की स्थिति तो प्रदूषण से बहुत बिगड़ चुकी है। प्रदूषण से सबसे ज्यादा बच्चों व बुजुर्गों का स्वास्थ्य गड़बड़ हो सकता है, जिससे फेफड़ों, ब्रैन, आंख और हार्ट ही नहीं बल्कि पूरे शरीर को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है। आज के प्रदूषण में धूल, मिट्टी ही नहीं बल्कि केमिकल भी है जिससे प्रदूषण की व्यापकता ज्यादा नजर आ रही है।

हमें प्रदूषण को रोकने के लिए हमारी जिम्मेदारी को समझना होगा। क्योंकि प्रदूषण गैर जिम्मेदारी और जागरूकता के अभाव से फैल रहा है। आगे उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए हमें पेट्रोल और डीजल वाले वाहनों जैसे कार, बस, आटो आदि का इस्तेमाल कम से कम करने की जरूरत है।

आवागमन के लिए हमें साइकिल को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे प्रदूषण के स्तर में भी कमीं आयेगी। शारीरिक स्वास्थ्य भी दुरूस्त रहेगा। हमें पेट्रोल और डीजल की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी।

फिर इसके बाद हम उन स्कूली बच्चों तक भी पहुंच गए, जिनकी प्रदूषण से छुट्टियां हो गयीं हैं। जब इन बच्चों से हमने पूछा कि प्रदूषण से आपको क्या समस्याएं झेलनी पड़ रही है तो उन्होंने बताया कि प्रदूषण से बच्चें भी गम्भीर बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। हम प्रदूषण की वजह से बाहर खेलने और घूमने भी नहीं जा पा रहे हैं और सरकार द्वारा 15 नवंबर से 21 नवंबर तक की जो छुट्टियां की गयीं, उससे हमारी पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ है, एक तो पहले कोरोना से स्कूल बंद थे, फिर अब प्रदूषण से बंद हो गये। सरकार के स्कूल बंद करने के फैसले से बच्चे नाखुश दिखे।

आपको आगाह कर दें कि 15 नवंबर को प्रदूषण पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को फटकार लगाई थी और कहा था कि पराली के धुंए का योगदान प्रदूषण में 10 प्रतिशत है। किसानों से एक हफ्ते तक पराली न जलाने की अपील करने के निर्देश भी दिये थे।

वहीं इससे पहले दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण से स्थिति इतनी खराब थी कि उस वक्त वहाँ एक्यूआई 500 के करीब पहुंच गया था, जिससे 12 नवंबर को "आपातकाल" लागू करने का निर्णय लिया गया। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सलाह दी थी कि घर से बाहर न निकले। सरकारी कार्यालयों और निजी कंपनियों से कहा था कि वह अपने कार्यालयों में इस्तेमाल होने वाले वाहनों में 30 प्रतिशत की कमीं लाएं।

गौर करने योग्य है कि आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा सरकार के कृषि विभाग ने रिपोर्ट लिखे जाने तक 24 घंटों में 2789 किसानों के 58.85 लाख रुपये के चालान फसल अवशेष जलाने के कारण काटे। गुड़गांव में ग्रेप उलंघन करने वालों पर 17.66 लाख रुपये का चालान किया जा चुका है। लेकिन हैरानी की बात है कि गुड़गांव में प्रदूषण की गुणवत्ता में सुधार लाने के जो प्रयास किये जा रहे हैं उसके बावजूद एक्यूआई कम होने के बजाय बढ़कर 500 पर पहुँच गया।

(सतीश भारतीय स्वतंत्र लेखक हैं, विचार निजी हैं)

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