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राजनीति
अब विवाद और तनाव का नया केंद्र ज्ञानवापी: कोर्ट कमिश्नर के नेतृत्व में मस्जिद का सर्वे और वीडियोग्राफी शुरू, आरएएफ तैनात
सर्वे का काम तीन दिन चल सकता है। शाम पांच बजे के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के एक किमी के दायरे को कानून व्यवस्था के लिहाज से खाली करा लिया गया। मौके पर दंगा नियंत्रक उपकरणों के साथ बड़ी संख्या में रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के जवान तैनात किए गए हैं। मस्जिद परिसर के आसपास पहले से ही ब्लैक कैंट कमांडो मोर्चा संभाले हुए हैं।
विजय विनीत
06 May 2022
Gyanvapi

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे और वीडियोग्राफी को लेकर शुक्रवार को कई मर्तबा सड़क पर हंगामा हुआ। स्थिति उस समय तनावपूर्ण हो गई जब अधिवक्ता कमिश्नर के साथ सर्वे टीम काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य गेट पर पहुंची और हिन्दू संगठन से जुड़े लोगों ने हर-हर महादेव व जयश्रीराम के नारे लगाने लगे। तब ज्ञानवापी मस्जिद से जुमे की नमाज अदा कर आसपास खड़े मुस्लिमों ने जवाब में अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाने शुरू कर दिए। मौके पर मौजूद बड़ी संख्या में तैनात पुलिस के जवानों और अफसरों के हाथपैर फूल गए। स्थिति तनावपूर्ण होते ही पुलिस के साथ अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के सदस्यों और इलाके के अमनपसंद लोगों ने स्थिति को संभाला। एक तरफ मुस्लिम समुदाय के लोगों को घुघरानी गली और दालमंडी की गली में भेज दिया गया तो दूसरी तरफ श्रीराम व हर-हर महादेव के नारे लगा रहे लोगों को दूर तक खदेड़ दिया।

शाम पांच बजे के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के एक किमी के दायरे को कानून व्यवस्था के लिहाज से खाली करा लिया गया। मौके पर दंगा नियंत्रक उपकरणों के साथ बड़ी संख्या में रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के जवान तैनात किए गए हैं। मस्जिद परिसर के आसपास पहले से ही ब्लैक कैंट कमांडो मोर्चा संभाले हुए हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम तीन दिन चल सकता है। वाराणसी कमिशनरेट के आयुक्त ए. सतीश गणेश ने कहा है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में सख्ती और गश्ती बढ़ा दी गई है। पुलिस उन लोगों को चिह्नित करने में जुटी है जो सोशल मीडिय़ा पर आपत्तिजनक पोस्ट शेयर कर रहे हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे और वीडियोग्राफी का मुस्लिम समाज कड़ा विरोध कर रहा है। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के सेक्रेटरी मो. यासीन ने ऐलानिया तौर पर कई रोज पहले सर्वे का विरोध करने का ऐलान किया था। हालांकि इंतजामिया कमेटी के वकीलों ने कहा कि वह कानून की बात मानेंगे और  ज्यादती होने पर कोर्ट से शिकायत करेंगे।

वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत से नियुक्त कोर्ट कमिश्नर वरिष्ठ अधिवक्ता अजय कुमार मिश्र छह मई 2022 को अपराह्न करीब तीन बजे काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट पर पहुंचे। हालांकि इस मामले में सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता अभय यादव पहले ही मौके पर पहुंच चुके थे। अधिवक्ता अभय ने "न्यूज़क्लिक" से बातचीत में कहा, "वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत ने कोई ऐसा आदेश नहीं दिया है कि मस्जिद में घुसकर सर्वे और वीडियोग्राफी की जाए। ज्ञानवापी मस्जिद काफी प्राचीन है, जिसकी प्रमाणिकता पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता है? हालांकि मौके पर मौजूद भाजपा के वरिष्ठ नेता गुलशन कपूर ने कहा, "मुस्लिम समुदाय को सर्वे और वीडियोग्राफी पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए। विरोध करने वालों को साबित करना चाहिए कि वो राष्ट्रभक्त हैं। अगर वो सचमुच देशभक्त हैं तो उन्हें कोर्ट के आदेश को स्वीकार करें और अधिवक्ता कमिश्नर को अपना काम करने दें।"

नमाज के लिए उमड़ी भीड़

जुमे की नमाज के लिए ज्ञानवापी मस्जिद में भारी भीड़ उमड़ी, जिससे ईद की नमाज का रिकार्ड भी टूट गया। आमतौर पर यहां जुमे की नमाज के लिए तीन-चार सौ नमाजी पहुंचते हैं। सर्वे के रिएक्शन में शुक्रवार को करीब ढाई हजार लोग नमाज पढ़ने पहुंचे। जांच-पड़ताल के बाद सभी को अंदर जाने दिया गया। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पैर रखने तक की जगह नहीं थी। हालांकि बाद में मुस्लिम समुदाय के हजारों लोग जो कुछ देर बाद पहुंचे तो उन्हें बाहर ही रोक दिया गया।

ऐसा वाक्या बनारस के इतिहास में पहली बार देखने को मिला। मस्जिद कमेटी से जुड़े लोगों ने बड़ी संख्या में नमाजियों को बैरंग लौटा दिया। इसके बावजूद हजारों लोग घुंघरानी गली से लगायत दालमंडी तक की गलियों में जुटे हुए थे। मुस्लिमों के चेहरे पर जहां तनाव झलक थी, वहीं विरोध के स्वर भी फूट रहे थे।

विश्वनाथ मंदिर इलाके में गहमा-गहमी और तनाव के चलते शुक्रवार को सभी दुकानें बंद रहीं। काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर जहां बड़ी संख्या में पुलिस के जवान मौजूद थे, वहीं देश भर के मीडियाकर्मी और खबरिया चैनलों के पत्रकारों का जमावड़ा लगा हुआ था। ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे से पहले एक चौंकाने वाली घटना भी हुई। मस्जिद के बाहर सड़क पर एक महिला पहुंची और नमाज पढ़ने के लिए बैठ गई। महिला की पहचान जैतपुरा की आयशा बीबी के रूप में हुई है। पुलिस ने महिला को मानसिक रोगी बताते हुए अस्पताल भेज दिया।

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता भी पहुंचे

कमीशन की कार्रवाई के दौरान निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं की टीम भी पहुंची है। वादी पक्ष से वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन, पंकज गुप्ता व शिवम शुक्ल भी मौके पर मौजूद थे। हरिशंकर जैन ने अयोध्या राम मंदिर मुकदमे में भी हिंदू महासभा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में बहस की थी। इससे पहले कोर्ट कमिश्नर ने 5 मई 2022 को अदालत में प्रार्थनापत्र देकर कमीशन के दौरान साक्ष्यों के रखने के लिए सुरक्षित जगह उपलब्ध कराने का आग्रह किया। अदालत ने पुलिस आयुक्त (सीपी) को निर्देशित किया है कि वह कोर्ट कमिश्नर की मांगों पर उचित कार्रवाई कर अवगत कराएं।

श्रृंगार गौरी व विग्रहों की वीडियोग्राफी

वाराणसी के सिविल कोर्ट के आदेश पर आज पहली बार ज्ञानवापी परिसर का सर्वे हो रहा है। इसके तहत श्रृंगार गौरी और विग्रहों का सर्वे किया जाएगा और वीडियोग्राफी भी कराई जाएगी। सर्वे के तहत देखा जाएगा कि श्रृंगार गौरी और दूसरे विग्रह और देवताओं की स्थिति क्‍या है? अब से पहले साल 1995 में सूरजकुंज निवासी डॉ. सोनेलाल आर्य की याचिका पर 19 मई 1996 को अदालत ने सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था। उस  समय भी नोटिस देकर दोनों पक्षों को बुलाया गया था। सर्वे के दौरान वादी पक्ष की ओर से पांच लोग पहुंचे थे तो विपक्ष की ओर से पांच सौ लोग पहुंच गए थे। तत्कालीन एडीएम सिटी बादल चटर्जी ने दोनों पक्षों से बातचीत कर विवाद को सुलझाने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। बाद में कोर्ट कमिश्नर से कमीशन की कार्यवाही को खारिज कर दिया। उस दिन भी शुक्रवार (जुमे की विशेष नमाज़ का दिन) था।

अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने एडवोकेट कमिश्नर पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, 'ज्ञानवापी परिसर में पश्चिम तरफ स्थित चबूतरे की वीडियोग्राफी कराई गई। इसके बाद 5:45 बजे एडवोकेट कमिश्नर ने ज्ञानवापी मस्जिद के प्रवेश द्वार को खुलवाकर अंदर जाने का प्रयास किया तो हमने विरोध किया। उन्हें बताया कि अदालत का ऐसा कोई आदेश नहीं है कि आप बैरिकेडिंग के अंदर जाकर वीडियोग्राफी कराएं। लेकिन, एडवोकेट कमिश्नर ने कहा कि उन्हें ऐसा आदेश है। मस्जिद की दीवार को अंगुली से कुरेदा जा रहा था, जबकि ऐसा कोई आदेश अदालत ने नहीं दिया था। इसलिए हम एडवोकेट कमिश्नर से पूरी तरह असंतुष्ट हैं। कल अदालत से दूसरा एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने की मांग की जाएगी।'

इधर, हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने कहा कि आज ज्ञानवापी परिसर के कुछ हिस्से की वीडियोग्राफी हुई है। परिसर के अंदर जाने का प्रयास किया गया तो प्रतिवादी पक्ष ने विरोध किया और कहा कि आप नहीं जा सकते हैं। 7 मई को अपराह्न तीन बजे फिर एडवोकेट कमिश्नर सर्वे की कार्रवाई शुरू करेंगे। एडवोकेट कमिश्नर ने जिला मजिस्ट्रेट से कहा है कि कल हम बैरिकेडिंग के अंदर जाएंगे और सर्वे का काम होगा।

सर्वे के विरोध क्यों?

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली  अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी परिसर के अंदर सर्वे और वीडियोग्राफी के विरोध में है। कमेटी के सेक्रेटरी मोहम्मद यासीन "न्यूजक्लिक" से कहते हैं, "यदि कोर्ट कमिश्‍नर वहां घुसते हैं उनके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया जाएगा। मुस्लिम पक्ष कहना है कि अदालत का आदेश मस्जिद के अंदर प्रवेश करने का नहीं है, इसलिए उसमें प्रवेश की इजाजत नहीं दी जाएगी।"

दिल्ली की राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू और रेखा पाठक ने 18 अगस्त 2021 को संयुक्त रूप से सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में याचिका दायर कर मांग की थी कि काशी विश्वनाथ धाम-ज्ञानवापी परिसर स्थित श्रृंगार गौरी और विग्रहों को साल 1991 की पूर्व स्थिति की तरह नियमित दर्शन-पूजन के लिए सौंपा जाए। आदि विश्वेश्वर परिवार के विग्रहों की यथास्थिति रखी जाए। सुनवाई के क्रम में आठ अप्रैल 2022 को अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया।

कोर्ट कमिश्नर ने 19 अप्रैल 2022 को सर्वे करने की तिथि से अदालत को अवगत कराया। इससे एक दिन पहले 18 अप्रैल 2022 को जिला प्रशासन ने शासकीय अधिवक्ता के जरिए याचिका दाखिल कर वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी पर रोक लगाने की मांग की। उधर, 19 अप्रैल 2022 को विपक्षी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने भी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर रोकने की गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। 20 अप्रैल 2022 को निचली अदालत ने भी सुनवाई पूरी की। 26 अप्रैल 2022 को निचली अदालत ने ईद के बाद सर्वे की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया। इस प्रकरण में अगली सुनवाई 10 मई 2022 को होनी है। इस मामले में वादकारियों ने विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, डीएम, पुलिस आयुक्त, अंजुमन इंतजमिया मसाजिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को पक्षकार बनाया है।

क्‍या है ज्ञानवापी विवाद?

काशी विश्‍वनाथ मंदिर और उससे लगी ज्ञानवापी मस्जिद के बनने और दोबारा बनने को लेकर अलग-अलग तरह की धारणाएं और कहानियां चली आ रही हैं। हालांकि इन धारणाओं की कोई प्रमाणिक पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी है। बड़ी संख्‍या में लोग इस धारणा पर भरोसा करते हैं कि काशी विश्‍वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने तुड़वा दिया था। इसकी जगह पर उसने यहां एक मस्जिद बनवाई थी।

कुछ इतिहाकारों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 14वीं सदी में हुआ था और इसे जौनपुर के शर्की सुल्‍तानों ने बनवाया था, लेकिन इस पर भी विवाद है। कई इतिहासकार इसका खंडन करते हैं। उनके मुताबिक शर्की सुल्‍तानों द्वारा कराए गए निर्माण के कोई साक्ष्‍य नहीं मिलते हैं। न ही उनके समय में मंदिर के तोड़े जाने के साक्ष्‍य मिलते हैं। दूसरी तरफ काशी विश्‍वनाथ मंदिर के निर्माण का श्रेय राजा टोडरमल को दिया जाता है।

कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि मंदिर का निर्माण राजा टोडरमल ने साल 1585 में दक्षिण भारत के विद्वान नारायण भट्ट की मदद से कराया था। ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण के बारे में कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अकबर के जमाने में नए मजहब 'दीन-ए-इलाही' के तहत मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण कराया गया था। हालांकि ज्‍यादातर लोग यही मानते हैं कि औरंगजेब ने मंदिर के तुड़वा दिया था, लेकिन मस्जिद अकबर के जमाने में 'दीन ए इलाही' के तहत बनाई गई या औरंगजेब के जमाने में इसको लेकर जानकारों में मतभेद हैं। अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद के पदाधिकारी किसी प्राचीन कुएं और उसमें शिवलिंग होने की धारणा को भी नकारते हैं। उनका कहना है कि वहां ऐसा कुछ भी नहीं है।

क्यों भड़काया जा रहा उन्माद?

नब्बे के दशक में रामजन्‍म भूमि आंदोलन के दौरान काशी-मथुरा को लेकर नारे लगते रहे हैं। हिंदूवादी संगठनों का दावा है कि स्वयंभू शिवलिंग के ऊपर मस्जिद का निर्माण हुआ है। उनकी मांग मस्जिद हटाकर वो हिस्‍सा मंदिर को सौंपे जाने की है। द्वादश ज्‍योतिर्लिंगों में प्रमुख श्री काशी विश्‍वनाथ मंदिर और उसी के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस साल 1991 से वाराणसी की स्‍थानीय अदालत में चल रहा है। साल 1991 में स्वयंभू विश्वेश्वर की ओर से डॉ. रामरंग शर्मा, हरिहर पांडेय और सोमनाथ व्यास ने एफटीसी कोर्ट में याचिका दायर कर नया निर्माण व पूजा करने के अधिकार की मांग की और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को प्रतिवादी बनाया गया। अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद साल 1997 में वादी और प्रतिवादी दोनों के पक्ष में आंशिक फैसले दिए थे, जिससे असंतुष्ट प्रतिवादी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। 13 अगस्त 1998 को हाइकोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी।

इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि स्थगन आदेश छह माह बाद स्वत: खारिज हो जाएंगे। इस पर साल 2018 में मुकदमे में अधिवक्ता रहे विनय शंकर रस्तोगी ने अदालत में अर्जी देकर वादमित्र नियुक्त करने की मांग की थी। तब तक दो वादकारियों का निधन हो चुका था। तीसरे वादी अदालत जाने में सक्षम नहीं थे। लिहाजा, विनय शंकर रस्तोगी ने 2019 में मूल वाद में अलग से अर्जी देकर पुरातत्व विभाग की ओर से सर्वेक्षण करने की अनुमति मांगी। इसके बाद सर्वेक्षण प्रकरण पर सुनवाई शुरू हो गई। एएसआई को विभिन्न प्रक्रियाओं के तहत सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया और फिर हाईकोर्ट ने एएसआई सर्वे पर रोक लगा दी।

प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में अपील की थी कि काशी विश्वनाथ मंदिर व विवादित ढांचास्थल का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया जाए। दावा किया कि ढांचा के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के जुड़े पुरातात्विक अवशेष हैं।

कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा नंबर एक बीघा नौ बिस्वा लगभग जमीन है। उक्त जमीन पर मंदिर का अवशेष है। 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथमतल में ढांचा और भूतल में तहखाना है। इसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है। मंदिर का 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया था। यह भी कहा कि 100 वर्ष तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा।

बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास के विभागाध्यक्ष एएस अल्टेकर ने बनारस के इतिहास में लिखा है कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग 100 फीट का था। अरघा भी 100 फीट का बताया गया है। लिंग पर गंगाजल बराबर गिरता रहा है, जिसे पत्थर की पटिया से ढक दिया गया। यहां शृंगार गौरी की पूजा-अर्चना होती है। तहखाना यथावत है। यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा।

विवाद की जड़ में चुनाव?

अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता रईस अहमद अंसारी, मुमताज अहमद के अलावा सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता अभय यादव व तौफीक खान ने पक्ष रखा कि जब मंदिर तोड़ा गया तब ज्योतिर्लिंग उसी स्थान पर मौजूद था, जो आज भी है। उसी दौरान राजा अकबर के वित्तमंत्री राजा टोडरमल की मदद से स्वामी नरायण भट्ट ने मंदिर बनवाया था, जो उसी ज्योतिर्लिंग पर बना है। ऐसे में ढांचा के नीचे दूसरा शिवलिंग कैसे आया? रामजन्म भूमि की तर्ज पर पुरातात्विक रिपोर्ट मंगाने की स्थितियां विपरीत थीं। उक्त वाद में साक्षियों के बयान में विरोधाभास होने पर कोर्ट ने रिपोर्ट मंगाई गई थी, जबकि यहां अभी तक किसी का साक्ष्य हुआ ही नहीं है। अभी प्रारम्भिक स्तर पर है। ऐसे में साक्ष्य आने के बाद विरोधाभास होने पर कोर्ट रिपोर्ट मांगी जा सकती है। सिर्फ साक्ष्य एकत्र करने के लिए रिपोर्ट नहीं मंगाई जा सकती है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत रहे राजेंद्र तिवारी इस बात से आहत है कि ज्ञानवापी का विवाद उठाकर समाज और सिस्टम में जहर घोलने की कोशिश की जा रही है। "न्यूज़क्लिक" से बातचीत में वह कहते हैं, "यह विवाद साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मतों का ध्रुवीकरण कराने की कसरत है। इससे पहले मस्जिद का सर्वे हो चुका है और सभी को मालूम है कि वो पुराना विश्वनाथ मंदिर था। आप बताना क्या चाहते हैं? सरकार का मकसद क्या है पब्लिक भी जानती है। बड़ा सवाल यह है कि ये कैसे साबित कर देंगे कि असली काशी विश्वनाथ मंदिर का असली शिवलिंग मस्जिद के नीचे दबा है? सर्वे की मांग करने वालों के पूर्वज क्या औरंगजेब की कमेटी में थे? औरंगजेब भी तानाशाह था और ये भी तानाशाही पर आमादा हैं। सच यह है कि दाराशिकोह ने हमारे पूर्वजों को काशी विश्वनाथ मंदिर का पट्टा दिया था। हमारे पूर्वजों ने औरंगजेब से काशी विश्वनाथ के शिवलिंग को बचाया था, जिसे बाद में मौजूदा मंदिर में प्रतिस्थापित कराया गया था। विश्वनाथ मंदिर का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। आगामी लोकसभा चुनाव ही इनका असली एजेंडा है। इन्हें न मंदिर से मतलब है और न ही मस्जिद से। सांप्रदायिक आंच में झोंककर वोट बटोरना ही इनका मकसद है।"

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "यह तयशुदा राजनीतिक एजेंडा है, जिसपर काम अब शुरू हो गया है। यह मसला कानूनी कम, राजनीतिक ज्यादा है। इसे भी लाउडस्पीकर और हिजाब जैसे तमाम मसलों से जोड़कर देखा जा सकता है। दरअसल, एक चुनाव खत्म होने के बाद फौरन दूसरे चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। लेकिन महंगाई, बेरोजगारी और डगमगाती अर्थव्यवस्था सत्ता के लिए मुफीद साबित नहीं हो रही है। ऐसे में उस ओर से जनता का ध्यान हटाने का सबसे कारगर तरीका मंदिर-मस्जिद मसला ही हो सकता है। यह पहले से ही अनुमान लगाया जा रहा था कि अयोध्या से खाली होने के बाद काशी विश्वनाध मंदिर और ज्ञानवापी विवाद को हवा दी जाएगी। अनुमान के अनुरूप धीरे-धीरे सारे घटनाक्रम सामने आते जा रहे हैं। इस मसले का कानूनी पहलू क्या है और उसका हल क्या निकलेगा, यह दीगर बात है, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो सांप्रदायिक सद्भाव जरूर खतरे में पड़ जाएगा। यह स्थिति समाज और देश किसी के हित में नहीं है। बनारस के लोगों को चाहिए कि सियासत के हथियार न बनें और शहर के अमनो-अमान को अपनी परंपरा के अनुसार कायम रखें।"

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