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ओएफबी: केंद्र के ‘कड़े’ अध्यादेश के ख़िलाफ़ रक्षा महासंघों ने अखिल भारतीय काला दिवस मनाने का फ़ैसला किया

उन्होंने केंद्र को “आवश्यक रक्षा सेवाओं” में कार्यरत लोगों द्वारा आंदोलन और हड़ताल की कार्रवाई करने पर रोक लगाने वाले अध्यादेश के खिलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के समक्ष शिकायत दर्ज करने का भी फैसला किया है।
ओएफबी: केंद्र के ‘कड़े’ अध्यादेश के ख़िलाफ़ रक्षा महासंघों ने अखिल भारतीय काला दिवस मनाने का फ़ैसला किया
फाइल फोटो

रक्षा सेवाओं से सम्बद्ध कर्मचारियों के पांच संघों ने एक 1 जुलाई को पारित संयुक्त प्रस्ताव में उचित क़ानूनी कार्रवाई करने और केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएओ) के समक्ष शिकायत दर्ज करने का फैसला लिया है, जो केंद्र कार्रवाई को “आवश्यक रक्षा सेवाओं” में कार्यरत लोगों को आन्दोलन और हड़ताल की कार्रवाई में जाने से प्रतिबंधित करता है।

उन्होंने विरोधस्वरूप देश भर के सभी रक्षा प्रतिष्ठानों में 8 जुलाई को अखिल भारतीय काला दिवस के रूप में मनाने का भी फैसला लिया है।

1 जुलाई के संयुक्त प्रस्ताव में कहा गया है कि “भारत सरकार जिस प्रकार से ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926 एवं औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों के तहत रक्षा क्षेत्र में कार्यरत कर्मियों के क़ानूनी अधिकारों को छीनकर अपने ही प्रतिबद्ध एवं कर्तव्यनिष्ठ श्रमशक्ति के साथ बर्ताव कर रही है। यह सब देखना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।” इसके साथ ही इस प्रस्ताव में हड़ताल के अधिकार को “कामगार लोगों द्वारा विरोध के एक अविभाज्य अंग” के तौर पर बताया गया है।

भारत के राष्ट्रपति के द्वारा बुधवार को ‘आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश, 2021’ शीर्षक से एक गजट अधिसूचना जारी की गई है, जिसमें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को रक्षा उपकरण, सेवाओं एवं संचालन के उत्पादन में शामिल कर्मचारियों या सेना से जुड़े किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान सहित रक्षा उत्पादों की मरम्मत और रख-रखाव में कार्यरत लोगों को हड़ताल पर जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी करने ले लिए अधिकार संपन्न किया गया है। 

बुधवार की अधिसूचना असल में मान्यताप्राप्त रक्षा संघों की 26 जुलाई से देश भर के 41 आयुध कारखानों में अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा के कुछ दिनों बाद की गई है। श्रमिक संघों द्वारा हड़ताल की कार्रवाई की यह घोषणा केंद्र के आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) को भंग करने और इसे सात सरकारी-स्वामित्व वाली निगम संस्थाओं के रूप में तब्दील किये जाने के हालिया कदम की वजह से उत्पन्न हुई है।

रक्षा उपकरण निर्माण में संलग्न, ओएफबी, आयुध कारखानों के काम-काज की देखरेख का काम करता है, जो वर्तमान में रक्षा उत्पादन विभाग (डीडीपी) के मातहत एक सरकारी विभाग के तौर पर कार्य करता है, जिसे रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के द्वारा प्रशासित किया जाता रहा है। 

महासंघों ने शुक्रवार को एक संयुक्त प्रेस बयान में कहा है कि मोदी सरकार ने आवश्यक सेवा प्रबंधन अधिनियम, 1968 की तर्ज पर “कठोरतम’ अध्यादेश लाकर, रक्षा सेवा से जुड़े नागरिक कर्मचारियों के “संवैधानिक, लोकतांत्रिक एवं क़ानूनी अधिकारों को छीनने” का काम किया है।

इस प्रेस वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वालों में अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी संघ (एआईडीईऍफ़), भारतीय राष्ट्रीय रक्षा श्रमिक संघ (आईएनडीडब्ल्यूएफ), आरएसएस-समर्थित भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (बीपीएमएस), राष्ट्रीय प्रगतिशील रक्षा कर्मचारी संघ (एनपीडीईएफ) और अखिल भारतीय बहुजन रक्षा कर्मचारी संघ (एआईबीडीईएफ) शामिल थे। 

बयान में यह भी कहा गया है कि “[गुरुवार] की बैठक में उचित क़ानूनी कार्रवाई करने और आईएलओ के समक्ष शिकायत दर्ज कराने का भी फैसला लिया गया है।”

गजट अधिसूचना के मुताबिक “कोई भी व्यक्ति, जो हड़ताल शुरू करता है जो कि इस अध्यादेश के तहत गैर-क़ानूनी है या जाता है या शामिल रहता है, या इस प्रकार के किसी भी हड़ताल में हिस्सा लेता है, को सजा के तौर पर कारावास से दण्डित किया जा सकता है जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना लगाया जा सकता है जो 10,000 रूपये तक हो सकता है, या दोनों लगाये जा सकते हैं।” इसमें आगे कहा गया है कि जो लोग दूसरों को हड़ताल में भाग लेने के लिए उकसाते पाए जायेंगे, या इस प्रकार की कार्रवाई के लिए वित्तीय मदद प्रदान करेंगे, उन्हें भी दण्डित किया जायेगा।

“आवश्यक रक्षा सेवाओं के कामकाज, सुरक्षा या रखरखाव” को सुनिश्चित करने के लिए पुलिस बल के इस्तेमाल की अनुमति देने के साथ-साथ अधिसूचना प्रबंधन को हड़ताल की कार्रवाई में भाग ले रहे किसी भी कर्मचारी को बिना कोई पूछताछ के ही नौकरी से बर्खास्त करने का अधिकार भी देता है।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एकजुटता का इज़हार किया है

इस बीच, शुक्रवार को जारी एक संयुक्त बयान में, 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने रक्षा सेवा से सम्बद्ध असैन्य श्रमिकों के साथ एकजुटता का इजहार किया है और केंद्र से नवीनतम अध्यादेश को वापस लेने का आग्रह किया है। 10 सीटीयू द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया है ,“सरकार ने संघों के साथ वार्ता में जाकर बातचीत के जरिये समाधान तलाशने के बजाय कठोर एवं बर्बर तरीके से राजकीय शक्ति को अपने ही कर्मचारियों के खिलाफ तैनात करने की निहायत ही कायराना हरकत की है।”

10 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों में भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिन्द मजदूर सभा (एचएमस), सेंटर ऑफ़ इंडिया ट्रेड यूनियन (सीटू), आल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी), ट्रेड यूनियन कोआर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी), सेल्फ एम्प्लॉयड विमेंस एसोसिएशन, आल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (एक्टू), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) शामिल हैं। 

शुक्रवार को पीएम मोदी को संबोधित एक पत्र में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित भारतीय मजदूर संघ (बीएमस) ने भी बुधवार के अध्यादेश के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करते हुए इसे “शानदार लोकतांत्रिक परम्पराओं की पूर्ण “अवहेलना” बताया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें। 

OFB: Defence Federations to Observe July 8 as All India Black Day Against Centre’s ‘Draconian’ Ordinance

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