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सिर्फ़ लड़कियों के नाम बदलते हैं लेकिन अपराध थमने का नाम नहीं ले रहा”

दिल्ली में शुक्रवार को 24 घंटे में दो महिलाओं की हत्या ने एक बार फिर महिला सुरक्षा का सवाल खड़ा कर दिया है। लेकिन क्या महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले महज़ लॉ एंड ऑर्डर का मुद्दा है?
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प्रतीकात्मक तस्वीर। Feminism in India

देश की राजधानी दिल्ली कितनी सुरक्षित हैं ये बहस हर बार दिल्ली में किसी बड़ी वारदात के बाद छिड़ जाती है। शुक्रवार को दिल्ली में 24 घंटे के भीतर हुई दो वारदातों के बाद एक बार फिर महिला सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

24 घंटे में दो वारदात

दिल्ली के मालवीय नगर में अरबिंदो कॉलेज के क़रीब एक लड़की की रॉड मारकर हत्या कर दी गई। हिन्दुस्तान में छपी ख़बर के मुताबिक लड़का-लड़की एक दूसरे को पहले से जानते थे, आरोपी लड़का, लड़की से शादी करना चाहता था लेकिन लड़की के परिवार वालों ने इनकार कर दिया, जिसके बाद लड़की ने भी आरोपी से दूरी बना ली, बावजूद लड़का लगातार लड़की से बात करने की कोशिश कर रहा था और शुक्रवार को लड़की को आख़िरी बार मिलने के लिए बुलाकर हत्या कर दी।  

डाबड़ी में घर के बाहर महिला की हत्या 

शुक्रवार को ही सुबह डाबड़ी इलाके में एक रेणु नाम की महिला की उसके घर के करीब ही एक लड़के ने गोली मारकर हत्या कर दी, बाद में आरोपी लड़के ने ख़ुद को भी गोली मारकर आत्महत्या कर ली। नवभारत में छपी ख़बर के मुताबिक पुलिस ने बताया है कि दोनों एक दूसरे को पहले से जानते थे और दोनों की मुलाकात एक जिम में हुई थी। 

जान पहचान वालों ने की हत्या

दिल्ली में हुई इन दोनों ही वारदात में एक बात कॉमन है कि दोनों ही आरोपी पहले से महिलाओं को जानते थे। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इन महिलाओं के आरोपियों के साथ बातचीत बंद करने पर इन वारदातों को अंजाम दिया गया।

हत्या पर हंगामा

24 घंटे के भीतर महिलाओं के ख़िलाफ़ दो घटनाओं पर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने स्वत: संज्ञान लेकर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस की एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाने की भी गुज़ारिश की।

"दिल्ली सबके लिए बहुत असुरक्षित"

स्वाति मालीवाल ने कहा, "दिल्ली देश की राजधानी है जो आज बहुत ज़्यादा असुरक्षित हो चुकी है। दिल्ली में एक महिला को डाबड़ी में गोली मार दी गई, दूसरी घटना अरबिंदो कॉलेज के पास साउथ दिल्ली में हुई, जहां खुले में दिन दहाड़े एक आदमी ने लोहे की रॉड से बेरहमी से पीट-पीटकर लड़की को मार डाला। दिल्ली में क़ानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है, मैं बिल्कुल ऐसा मानती हूं कि दिल्ली देश की राजधानी है और पूरे देश में ये हालात हैं कि बस लड़कियों के नाम बदल जाते हैं अखबारों में लेकिन अपराध रुकने का नाम नहीं ले रहा है, क्यों लोगों के अंदर क़ानून व्यवस्था का डर नहीं है मैं केंद्र सरकार से जानना चाहती हूं और कितनी मौतें होंगी तब जाकर वे दिल्ली पुलिस की जवाबदेही तय करेंगे?"

वे आगे कहती हैं कि "DCW संज्ञान ले रहा है, हम दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर रहे हैं, लेकिन मैं जानना चाहती हूं कि क्राइम क्यों हो रहा है, इतने क्राइम हो चुके हैं, अंजली से लेकर श्रद्धा वॉकर तक एक से बढ़कर एक घिनौने क्राइम दिल्ली में हो रहे हैं लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने कोई मीटिंग नहीं ली जिसमें जवाबदेही तय की जाए। मैं केंद्र सरकार से अपील करती हूं कि जल्द से जल्द एक मीटिंग बुलाएं जिसमें दिल्ली सरकार हो, दिल्ली पुलिस हो और जिसमें दिल्ली पुलिस की जवाबदेही तय करना बहुत ज़रूरी है। आज दिल्ली सबके लिए बहुत असुरक्षित हो चुकी है।"

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस मुद्दे पर ट्वीट किया और दिल्ली की क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए उप राज्यपाल और गृहमंत्री से गुज़ारिश की।

लेकिन क्या ये वाकई सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर का मामला है? या फिर कुछ और फैक्टर भी हैं जो महिलाएं के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए ज़िम्मेदार हैं? बात देश की राजधानी दिल्ली की हो या फिर देश के दूरदराज के राज्य, महिलाओं के प्रति हिंसा की तस्वीर हर जगह एक-सी है। हमने महिला सुरक्षा के मामले पर अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) की दिल्ली अध्यक्ष मैमूना से बातचीत की। उन्होंने कहा, "महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले पूरे देश में ही बढ़ रहे हैं, औरतों की बॉडी को बैटलग्राउंड बना लिया है, मालवीय नगर का केस देखो जिसमें लड़की ने मना कर दिया तो उसे सज़ा मिली, ये क्या बात है? क्या लड़कियों को मना करने का अधिकार नहीं है? हमें अपने कल्चर और अपनी शिक्षा को, महिलाओं की बराबरी की ओर मोड़ना होगा, हमारी हमेशा से मांग रही है कि औरत को बराबरी का दर्जा बचपन से बच्चों को सिखाया जाना चाहिए, दूसरा लॉ एंड ऑर्डर का मामला है जिसमें दिल्ली पुलिस को संज्ञान लेना होगा, कार्रवाई करनी होगी। अक्सर हम देखते हैं ख़ासकर रेप के मामलों में जब हम हंगामा करते हैं तब जाकर मामला दर्ज होता है, हम दिल्ली सरकार से भी बहुत ज़माने से मांग कर रहे हैं, कुछ कदम तो उन्हें भी उठाने होंगे।"

महिलाओं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जा सकती है, ये एक बड़ा सवाल है, बात करें दिल्ली की तो यहां होने वाली वारदात पूरे देश का ध्यान खींचती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक केंद्र शासित प्रदेशों में 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की उच्चतम दर दिल्ली में दर्ज की गई थी। पिछले तीन सालों में महिलाओं के ख़िलाफ़ हुई हिंसा के मामलों की संख्या साल 2019 में 13,395 से बढ़कर 2021 में 14,277 हो गई। इतना ही नहीं NCRB के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामले सभी 19 महानगरों की श्रेणी में कुल अपराधों का 32.20 फीसदी हैं। NCRB के आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में हर दिन दिल्ली में औसतन दो लड़कियों का बलात्कार हुआ।

वहीं इस साल दिल्ली में हुई कुछ बड़ी घटनाओं ने पूरे देश को हिला दिया, जैसे:

दिल्ली में हुई महिलाओं के ख़िलाफ़ वारदात :

जनवरी (न्यू ईयर के दिन) में अंजली नाम की लड़की की 12 किलोमीटर तक गाड़ी के नीचे घसीट कर हत्या

फरवरी में एक लड़के ने अपनी लिव इन पार्टनर की हत्या कर फ्रिज में रखा

मई में शाहबाद डेयरी में 16 साल की लड़की पर चाकू से हमला और पत्थर से वार करके हत्या 

जुलाई में गीता कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे कई बैग में टुकड़ों में महिला का शव मिला

महिलाओं के प्रति हैवानियत भरे अपराधों में हर दिन बढ़ोतरी डरा देने वाली है लेकिन इसके लिए बहुत से कारण ज़िम्मेदार हैं। हमने कुछ कारण समझने के लिए भारतीय महिला फेडरेशन (National Federation of Indian Women) निशा सिद्धू (नेशनल सेक्रेटरी)  से बात की।

निशा सिद्धू ने कहती हैं, "मुझे लगता है हम जितना लड़कियों को उनकी सुरक्षा के लिए समझाते हैं कि ये कर लो, वो कर लो, उसका अगर चौथाई हिस्सा भी लड़कों और मर्दों के साथ संवाद करने में खर्च करें तो समस्या को बहुत हद तक हल किया जा सकता है, हम उन्हें तो एड्रेस ही नहीं कर रहे हैं, उनके साथ इस विषय पर कदम बढ़ाने होंगे, निश्चित तौर पर बदलाव आएगा क्योंकि हम एक सेक्शन को टच कर रहे हैं और दूसरे को छोड़ रहे हैं। जो ऐसी वारदात में शामिल हैं या तो उनकी परवरिश ऐसी हुई है जहां महिलाओं को कमतर माना जाता होगा, उनका नज़रिया उनकी सोच वैसे बन गई, अगर हम पूरे समाज की बात करें और बदलाव की बात करें तो हमें इस एंगेल से भी सोचना होगा।

अपनी बात जारी रखते हुए वे आगे कहती हैं, "हमने उनको मर्द बना दिया, उन्हें ये नहीं सिखाया कि औरतों के साथ कैसे पेश आना है, उनको बराबरी के रिश्तों की अहमियत नहीं सिखाई। वो समझ डर और दबाव से नहीं आ सकती क्योंकि फांसी की सज़ा देकर भी देख लिया बदलाव नहीं आया, बदलाव तो बातचीत और संवाद से ही निकलेगा।

"देखिए भारत में दो संविधान नहीं हैं, एक संविधान है, उसकी प्रस्तावना भी शुरू होती है "हम भारत के लोग" से...वहां भी औरत और मर्दों को अलग-अलग खांचों में नहीं बांटा गया है। यहां दिक्कत ये है कि लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा कि हम महिलाओं को देवियां न बनाएं कम से कम एक नागरिक के तौर पर सम्मान करें।"

हमने उनसे पूछा कि क्या उन्हें भी लगता है दिल्ली महिलाओं के लिए असुरक्षित है? जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि "देखिए कोई-कोई घटना हमें विचलित करती है, अगर दिल्ली अनसेफ है तो उसकी ज़िम्मेदारी सरकार और समाज की है, अगर मैं अनसेफ कहूंगी तो जो लोग अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए दिल्ली भेजना चाहते हैं नहीं भेजेंगे, तो मुझे लगता है कि लड़कियों को मजबूत होना होगा और समाज को भी बदलना होगा।"

इसे भी पढ़ें : दिल्ली: अभी भी सड़क नहीं महिलाओं के लिए सुरक्षित, खोखला है महिला सुरक्षा का दावा

"दिल्ली महिलाओं के लिए अनसेफ है" बेशक ये बात डर पैदा करती है क्योंकि हर साल देश के दूसरे हिस्सों से लड़कियां/महिलाएं पढ़ाई के साथ ही बेहतर अवसर के लिए दिल्ली-NCR का रुख करती हैं और ऐसे में देश के दूसरे हिस्से में बैठा कोई परिवार अगर ऐसी ख़बरें देखता सुनता है तो वो अपनी बेटी को दिल्ली भेजने से पहले दो बार सोचेगा।"

मालवीय नगर की घटना पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र संगठन क्रांतिकारी युवा संगठन (KYS) ने  सोशल मीडिया पर ट्विटर कैंपेन चलाया और प्रेस रिलीज़ जारी कर घटना की निंदा की। साथ ही आरोपी के लिए सख्त सज़ा की मांग की। संगठन की तरफ से जारी की गई प्रेस रिलीज़ में कहा गया कि "यह घटना एक बार फिर से देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ रही अपराध की संस्कृति को उजागर करती है। हाल के महीनों में राष्ट्रीय राजधानी में इसी तरह की कई घटनाएं घट चुकी हैं। दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक 2021 की तुलना में 2022 के पहले साढ़े छह महीनों में राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की संख्या में 17 फीसदी की वृद्धि हुई।"

दिल्ली का लॉ एंड ऑर्डर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच फंसा ऐसा मुद्दा है जिस पर सालों से बहस चल रही है। लेकिन इस बहस के बीच "दिल्ली असुरक्षित है" या होती जा रही है बेशक चिंता का विषय है जिस पर कानून के साथ ही सामाजिक नज़रिए से भी काम करने की दरकार है।

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