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पांच सालों में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के 19,000 से ज्यादा SC, ST व OBC छात्रों ने बीच में पढ़ाई छोड़ी

"2018 से 2023 के बीच पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय से आने वाले 19,000 से अधिक छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) से ड्रॉपआउट (पढ़ाई बीच में छोड़ना) किया।"
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फ़ोटो साभार: The Wire

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री सुभाष सरकार ने बुधवार को राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया कि पिछले 5 सालों में 6,901 ओबीसी, 3,596 एससी और 3,949 एसटी छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों से ड्रॉपआउट किया। इसी अवधि में 2,544 ओबीसी, 1,362 एससी और 538 एसटी छात्र आईआईटी की पढ़ाई छोड़कर गए। 2018 से 2023 के बीच पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय से आने वाले 19,000 से अधिक छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) से पढ़ाई छोड़ी।

दरअसल, तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद सदस्य तिरुचि शिवा ने सरकार से पिछले पांच वर्षों में IIT, IIM और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों से बाहर होने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों की संख्या के बारे में पूछा था। वह यह भी जानना चाहती थीं कि “क्या सरकार ने इन उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी, एससी और एसटी छात्रों की उच्च ड्रॉपआउट दर के कारणों के संबंध में कोई अध्ययन किया है।” 

शिवा के सवाल के जवाब पर सरकार ने बताया कि 6901 ओबीसी छात्र, 3596 अनुसूचित जाति के और 3949 अनुसूचित जनजाति के छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालयों से 2018 से 2023 के दौरान बाहर हुए हैं यानि कि उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी है। इसी तरह ओबीसी के 2544 छात्र, 1362 एससी और 538 एसटी छात्रों ने आईआईटी की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। इसके अलावा 133 ओबीसी, 143 एससी और 90 एसटी छात्रों ने पिछले पांच वर्षों में आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी।

हालांकि मंत्री का कहना था कि, ‘कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों की शिक्षा चलती रहे, इसके लिए सरकार ने शुल्क में कमी, अधिक संस्थानों की स्थापना, छात्रवृत्ति, राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति में उन्हें प्राथमिकता देने जैसे कई कदम उठाए हैं। अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों की भलाई के लिए आईआईटी में ट्यूशन फीस की छूट, केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत राष्ट्रीय छात्रवृत्ति, संस्थानों में छात्रवृत्ति आदि जैसी योजनाएं भी लाई गई हैं।’ 

बता दें कि इससे पहले साल 2021 में शिक्षा मंत्रालय ने संसद में बताया था कि देश के टॉप 7 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IIT) में से ग्रेजुएशन के दौरान ही पढ़ाई छोड़ने वाले (ड्रॉपआउट) लगभग 63 फीसदी छात्र आरक्षित श्रेणी (SC/ST) से आते हैं। 

कारणों पर लंबे समय से हो रही बहस

दलित और आदिवासी कार्यकर्ता लंबे समय से यह बहस छेड़ते आ रहे हैं कि इन समुदायों से आने वाले छात्र इन प्रतिष्ठित संस्थानों में बहुत अधिक दबाव और भेदभाव का सामना करते हैं। हालांकि, तब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि पढ़ाई छोड़ने वाले या तो किसी अन्य विभाग या संस्थान में दाखिले के कारण सीट छोड़कर चले गए या फिर उन्होंने किसी निजी कारण से ऐसा किया।

अब भले ही सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के ड्रॉपआउट का कारण नहीं बता रही है। लेकिन आदिवासी और दलित कार्यकर्ता लंबे समय से कहते आए हैं कि इन समुदायों के छात्रों को उच्च शिक्षा संस्थानों में सामान्य से ज़्यादा दबाव और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। जिसका एक बड़ा नतीजा है कि ये छात्र अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग में पहले 10 स्थानों में खड़े 7 आईआईटी से हुए ड्रॉपआउट का विश्लेषण बताता है कि कुछ संस्थानों में यह असमानता ज़्यादा है।

साभार : सबरंग 

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