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महामारी बनी बड़ी कंपनियों के मुनाफे का जरिया !

लगता है महामारी बड़ी कंपनियों के लिए मुनाफा कमाने का जरिया बन गई है। यह सब तब हो रहा है जब देश का मजदूर, किसान और छोटा व्यापारी गंभीर और घातक आर्थिक संकट से गुजर रहा है।
महामारी बनी बड़ी कंपनियों के मुनाफे का जरिया !

सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा जारी किए गए नए आंकड़ों के अनुसार, 2020 की तीसरी तिमाही में, भारत की सबसे बड़ी कंपनियों ने 1.33 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड मुनाफा कमाया है, जो किसी भी अन्य तिमाही में सबसे अधिक है। यह मुनाफा इस वर्ष की पहली छमाही में छाई महामारी और इसके चलते लॉकडाउन के कारण उनकी आय में आई गिरावट के बावजूद है।

सीएमआईई के अनुसार, जून 2020 की तिमाही के अंत में इन कंपनियों की आय में 27 प्रतिशत की गिरावट आई थी, और सितंबर तिमाही के लिए जारी आंशिक डेटा भी लगभग 6 प्रतिशत  आय में गिरावट को दर्शाता है। फिर भी, उनके मुनाफे में तेजी आई है। यह आंकड़ा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में सूचीबद्ध 1,897 कंपनियों से संबंधित है। [नीचे चार्ट देखें]

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बड़ी कंपनियों ने अपने खर्चों में भारी कटौती की है। उन्होंने मजदूरों को या तो नौकरी से निकाल दिया या कम वेतन के अनुबंध के तहत काम पर रखा, जिससे उनके खर्च में भारी कटौती हुई। उन्होंने कच्चे माल, यूटिलिटीज़, और भंडारण पर भी खर्चों को कम कर दिया था। कुल मिलाकर यह सब इन कंपनियों के लाभ के मार्जिन को बनाए रखने में मदद करता रहा है।

ध्यान देने की बात है कि ये कंपनियां पिछले छह वर्षों में कुछ मौसमी उतार-चढ़ाव के साथ  लाभ कमा रही थी। इन कंपनियों ने जून 2020 की तिमाही में 44.1 हजार करोड़ रुपये और मार्च 2020 की तिमाही में 32 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था। पिछली चार तिमाहियों में, इन कंपनियों का औसत लाभ 50.2 हजार करोड़ रुपये था। याद कीजिए कि यह वह दौर है, जब भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी खेदजनक  स्थिति में थी और कॉरपोरेट जगत इन हालातों पर हो-हल्ला मचा रहे थे। अगर उनके इस मुनाफे पर गौर किया जाए तो लगता यह सब शोर-शराबा और रोष केवल अधिक लाभ न कमाने पाने के लिए था न कि नुकसान के लिए। 

ये इन कंपनियों के मजदूर और आम लोग हैं जो मंदी की मार की कीमत चुका रहे थे या चुका रहे हैं- जिसका असर बेरोजगारी, कम मजदूरी, कल्याणकारी कार्यक्रमों में सरकारी फंड की कमी, और अंत में परिवार के खर्च और खपत में कमी के रूप में देखने को मिला। निश्चित रूप से इस सब के चलते संकट गहरा गया क्योंकि मांग लगातार नीचे जाती रही और सरकार ने खर्च बढ़ाने से इंकार कर अर्थव्यवस्था को डूबने दिया। लेकिन सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार, बड़े उद्योगपति और कारोबारी इस संकट को अपने बढ़े मुनाफे के साथ पार कर गए। 

ग्लोबल स्तर पर भी अमीर ऐश कर रहे हैं 

भारत एकमात्र ऐसा देश नहीं है जहाँ अर्थव्यवस्था की बड़ी शार्क मछलियाँ- जिनकी संख्या अक्सर एक प्रतिशत मानी जाती है- वे बेहतर स्थिति में हैं और ऐसे समय में भी उनके मुनाफे लगातार बढ़ रहे हैं जब वैश्विक जीडीपी डूब रही है, कई देश मंदी में धँसे हैं और महामारी अभी भी बेलगाम है।

स्विस बैंक यूबीएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच जब महामारी दुनिया को तबाह कर रही थी, अरबपतियों की संपत्ति 27.5 प्रतिशत बढ़ गई थी जो रिकॉर्ड 10.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई थी। इस दौरान अरबपतियों की संख्या बढ़कर 2,189 के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। यूबीएस विश्लेषण में कहा गया है कि इन बड़े-अमीर व्यक्तियों ने शेयर बाजारों में जूए के माध्यम से पैसा कमाया जो महामारी के दौरान औंधे मुह गिरे पड़े थे। 

न्यूजक्लिक के लिए लिखते हुए, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने इस घटना का विश्लेषण किया था और समझाया था कि यह पूंजी के केंद्रीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा है। हर संकट, चाहे वह राजनीतिक, आर्थिक या वास्तव में स्वास्थ्य-संबंधी हो, वह धनी को ओर धनी बनाता है, पटनायक आगे समझाते हैं:

"वास्तव में, पूंजीवाद में अपरिहार्य है कि हर मानव त्रासदी जो इस प्रणाली में संकट को पैदा  करती है, वह इस तंत्र में पूंजी के केंद्रीकरण में वृद्धि का एक अवसर बन जाता है।"

यूबीएस और वैश्विक एकाउंट फर्म प्राइसवाटरहाउसकूपर (PwC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल और जुलाई के बीच भारतीय अरबपतियों की शुद्ध 35 प्रतिशत पूंजी की वृद्धि हुई और जो चौंका देने वाले 423 बिलियन डॉलर के निशान तक पहुँच गई थी, यह तब हुआ जब देश एक गंभीर लॉकडाउन से गुजर रहा था जिसने लाखों लोगों के जीवन को बर्बाद कर दिया था, और हालत को सुधारने के लिए महामारी को नियंत्रित करने में विफल रहा था।

प्रधानमंत्री मोदी सहित अक्सर कई लोग ये तर्क देते है कि शीर्ष व्यापारिक लोग और बड़े कॉरपोरेट "धन निर्माता" हैं, और उनका उद्यम और प्रतिभा हर किसी की मदद करती है, क्योंकि उसका लाभ गरीब लोगों को मिलता है। लेकिन आज के हालात में उपरोक्त कथन असत्य है।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का सबसे अमीर तबका जो आबादी का एक प्रतिशत है के पास देश की लगभग 43 प्रतिशत संपत्ति है, जबकि सबसे नीचे के 50 प्रतिशत तबके के पास केवल 2.8 प्रतिशत संपत्ति है। इससे पता चलता है कि "2017 में जो धन उत्पन्न हुआ उसका 73 प्रतिशत हिस्सा सबसे अमीर 1 प्रतिशत के पास चला गया, जबकि 67 मिलियन सबसे गरीब भारतीयों के पास जो आबादी का आधा हिस्सा है, उनके धन में केवल 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। स्पष्ट है कि सारा धन गैर-आनुपातिक तौर पर धनाढ्य वर्गों के पास जा रहा है।

काम करने वाले मजदूरों पर बढ़ता असहनीय बोझ 

दुनिया भर में पिछले महीनों में विभिन्न तीव्रता के साथ लागू हुए महामारी से संबंधित लॉकडाउन ने आम कामकाजी लोगों के जीवन को तबाह कर दिया है। भारत में 24 मार्च की रात को हृदय विदारक और गलत अनुमान से लगाए गए लॉकडाउन से नाटकीय रूप से असहाय प्रवासी श्रमिकों को सामूहिक रूप से दूर-दराज़ के गांवों में अपने घरों को वापसी करनी पड़ी थी क्योंकि अप्रैल और मई में उनकी नौकरियाँ और आय दोनों गायब हो गई थी।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल की पहली तिमाही में कामकाजी घंटों में 5.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी, इसके बाद दूसरी तिमाही में 17.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज आई जो तीसरी तिमाही में 12.1 प्रतिशत की गिरावट के साथ जारी रही थी। यह 2019 में काम किए गए औसत घंटों की तुलना में है। सभी तीन तिमाहियों में, श्रमिकों ने नौ महीनों में 11.7 प्रतिशत काम के घंटे खो दिए थे- उनकी आय और जीवन स्तर पर यह एक क्रूर चोट थी। दक्षिण एशिया क्षेत्र में, जो मुख्य रूप से भारत है, तीनों तिमाहियों में काम के घंटे का नुकसान क्रमशः 3.1 प्रतिशत 27.3 प्रतिशत और 18.2 प्रतिशत था।

इन काम के घंटे की हानि को मजदूरी खोए जाने के रूप में परिवर्तित करने से इस विनाशकारी तबाही की एक साफ और सच्ची तस्वीर सामने आती है। जबकि दक्षिण एशिया (मुख्य रूप से भारत) में संयुक्त रूप से तीन तिमाहियों का आय में हानि 16.2 प्रतिशत थी जबकि विश्व औसत 10.7 प्रतिशत है। 

इन आंकड़ों की तुलना पहले दी गई तस्वीर से की जानी चाहिए कि दुनिया में अरबपतियों की संपत्ति कितनी बढ़ी है और भारतीय कंपनियों ने महामारी से कितना लाभ कमाया है।

भारत के विभिन्न छोटे सर्वेक्षणों ने भी यही दिखाया है कि मजदूरों ने अपनी कुल आय का 60 प्रतिशत हिस्सा पूर्ण लॉकडाउन के 2-3 महीनों में खो दिया था।

यह इसलिए कि एक ओर अमीर और उनके रास्ते के बीच अत्यधिक विरोधाभास था, और दूसरी तरफ गरीब जो इस सब से काफी दुखी था उसका शोषण बरकरार था, जिसके कारण दुनिया भर में और भारत में भी विरोध प्रदर्शन, आंदोलन और हड़ताल की कार्यवाई हुई है। 

बावजूद कड़े लॉकडाउन की स्थिति में इस साल अप्रैल में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन जारी हैं, ट्रेड यूनियनों के एक संयुक्त मंच ने अब 26 नवंबर को भारत में अमीर-हितैषी नीतियों को उलटने की मांग को लेकर आम हड़ताल का आह्वान किया है। 200 से अधिक किसान संगठनों के मंच द्वारा दो-दिवसीय विरोध प्रदर्शन के आह्वान का भी समर्थन इनके द्वारा किया जा रहा है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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