पटना में प्रतिरोध सभा : “सच को दबाने का प्रयास है न्यूज़क्लिक पर हमला”

जनपक्षधर वेब न्यूज़ पत्रिका 'न्यूज़क्लिक' के दफ्तर और संपादकों के घरों पर ईडी के छापे के खिलाफ 'जनशक्ति साप्ताहिक' और पटना के जनपक्षधर पत्रकारों द्वारा संयुक्त रूप से प्रतिरोध सभा का आयोजन किया गया। जनशक्ति साप्ताहिक के दफ्तर में आयोजित इस प्रतिरोध सभा में बड़ी संख्या में पत्रकार/मीडियाकर्मी, पत्रिकाओं के संपादक, सामाजिक कार्यकर्ता, संस्कृतिकर्मी तथा विभिन्न दलों के नेता इकट्ठा हुए। लगभग साढ़े तीन घण्टे चली इस सभा में सबों ने एक स्वर से, कड़े शब्दों में newsclick.in पर हमले की, निंदा की।
प्रारंभ में फिल्मकार राकेश राज ने नंदिता हक्सर द्वारा अंग्रेज़ी में लिखित आलेख के हिंदी अनुवाद का पाठ किया। इस लेख में नन्दिता हक्सर ने बताया कि 'न्यूज़क्लिक' पर हमले का विरोध हम सबों को क्यों करना चाहिए?
सच को दबाने का प्रयास है न्यूज़क्लिक पर हमला- रामनरेश पांडे
सीपीआई के राज्य सचिव रामनरेश पांडे ने प्रतिरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा कि 'न्यूज़क्लिक' पर हुआ हमला बेहद निंदनीय है। वह एक जनपक्षधर वेबसाइट है। सरकार जानबूझकर सच को दबाने का प्रयास कर रही है। मेनस्ट्रीम मीडिया वही है जो छोटा-छोटा माध्यम है। हमारी पार्टी इस लड़ाई में पटना व देश के पत्रकारों के साथ है।"
न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ प्लांटेड न्यूज़ लगाई गयई -अभय सिंह
प्रतिरोध सभा की अध्यक्षता कर रहे टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार अभय सिंह ने कहा, " न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ कुछ अखबारों में प्लांटेड न्यूज़ लगाया जाता है। न्यूज़क्लिक पर छापा डाला जाता है। यह बहुत बुरी बात है। मैं अपने अखबार की ओर से भाजपा बीट देखता रहा हूँ। इन लोगों से परिचित हूँ कि ये क्या सोचते रहे हैं। जब किसानों का ऑर्डिनेंस आया तब किसी को लगा था? कि इतना बड़ा आन्दोलन बन जायेगा। लेकिन जब किसानों का आंदोलन हुआ तब यह गांवों तक में आहिस्ता-आहिस्ता फैल रहा है। विपक्ष की ताकत को मीडिया के जरिये बिखराया जा रहा है। हिटलर जब आया तो उसने 400 मीडिया संस्थानों को खरीद लिया था। ठीक यही काम नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। यह सोचना है जितने भी सेडीशन चार्जेज लगते हैं वो फेल क्यों हो जाते हैं?"
अब स्वतंत्र पत्रकार ही मुख्यधारा के पत्रकार हैं- अली अनवर
'जनशक्ति' के पूर्व पत्रकार व जद (यू) के राज्यसभा सांसद रहे अली अनवर ने भागलपुर दंगे के दौरान रिपोर्टिंग के अनुभवों को साझा करते हुए टिप्पणी की " भागलपुर दंगे के दौरान मैं ‘जनशक्ति’ का पत्रकार था। मैंने लिखा था कि कैसे प्रधानमंत्री के दौरे के बाद दंगा भड़का। उस वक्त भी मीडिया पर सरकार का प्रभाव था लेकिन आज जैसी स्थिति नहीं थी। 'जनशक्ति' उस वक्त दैनिक निकला करता था। लेकिन थोड़ा स्पेस था मुख्यधारा में। अब वह स्पेस वहां समाप्त हो चुका है। आज यहां अधिक स्वतंत्र पत्रकार बैठे हैं अब यही मुख्यधारा के पत्रकार हैं।
आमलोगों की अब ये धारणा बन रही है कि मीडिया वाले बिक गए हैं। लेकिन 'न्यूज़क्लिक' जैसी वेबसाइट से ही उम्मीद बची है।"
हमें कारगर हस्तक्षेप करना होगा- प्रीति सिन्हा
मासिक पत्रिका 'फ़िलहाल' की सम्पादक प्रीति सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा" ये अजीब सा वक्त है। जब 'न्यूज़क्लिक' पर बर्बरता पूर्वक कार्रवाई हुई है , उस पर जो हमला हुआ है उसके लिए इकट्ठा हुए हैं। ये पूरा सिलसिला चल पड़ा है। गौरी लंकेश की घटना हुई, उनको तो मार ही दिया गया। हमलोग ये जो प्रतिरोध सभा कर रहे हैं इसका एक मैसेज जाएगा कि हम सब कुछ चुपचाप सहने को तैयार नहीं हैं। लेकिन हमें इसके अलावा हमलोग और कारगर हस्तक्षेप कैसे कर सकते हैं इसका ख्याल रखना होगा।"
पत्रकारों पर हमले का पता लोगों को ठीक से नहीं चल पाता- प्रियरंजन
'जनशक्ति' साप्ताहिक के वरिष्ठ पत्रकार प्रियरंजन ने प्रतिरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा, " पत्रकारों पर हमले के बारे में ठीक से लोगों को पता ही नहीं चल रहा है। सरकार जानबूझ कर समाचारों के वैकल्पिक केंद्र पर हमला कर रही है। प्रिंट व इलेक्ट्रनिक मीडिया पर कब्जे के बाद अब वैकल्पिक सूचना केंद्रों को निशाना बना रही है। हमलोगों को एक बड़ी बैठक करना चाहिए ताकि विरोध की और सशक्त आवाज उठा सकें।"
किसान आंदोलन के कारण 'न्यूज़क्लिक' को निशाना बनाया गया- अमरनाथ झा
वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ झा ने प्रतिरोध सभा में बताया " 'न्यूज़क्लिक' चूंकि किसान आंदोलन का काफी अच्छे से रिपोर्टिंग कर रहा था इस कारण इसे निशाना बनाया गया है। हमलोग भी लिखते हैं सोशल मीडिया पर लेकिन 'न्यूज़क्लिक' का दायरा काफी बड़ा है। सरकार 'न्यूज़क्लिक पर हमले के बहाने किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने चाहता है। अतः हमें किसान आंदोलन को मजबूत बनाकर इसका जवाब देना चाहिए। किसान आंदोलन को ध्यान में रखना है। 22 साल की एक लड़की को मात्र एक ट्वीट के कारण गिरफ्तार किया गया है। उसे ऐसे कोर्ट में लाया गया कि उसके वकीलों को पता ही नहीं चला कि किस कोर्ट में पेश किया गया है। हमारी लड़ाई कॉरपोरेट से है और सरकार सिर्फ लठैती कर रही है।"
कॉरपोरेट अपराध की रिपोर्टिंग के कारण 'न्यूज़क्लिक' निशाने पर है- गोपाल कृष्ण
गोपाल कृष्ण ने प्रतिरोध सभा में कहा "हमें सभी मीडिया मालिकों के नाम याद रखना चाहिए। और चैनलों को उनके मालिकों के नाम से बुलाया जाये तो बेहतर होगा। 'न्यूज़क्लिक' पर हमला इस कारण किया कि उसने अडानी के खिलाफ लिखने वाले परंजॉय गुहा ठाकुरता को कार्यक्रम दिया। पी.साईनाथ जिन्होंने कॉरपोरेट खेती में क्या कर रहा है इससे हमें अवगत कराया। 'न्यूज़क्लिक' ने कॉरपोरेट अपराधों की रिपिर्टिंग की थी इसी कारण उसे निशाना बनाया गया। यह सिक्स्थ जेनरेशन का वारफेयर है। सोशल मीडिया से हमें सीखना तो चाहिए लेकिन सोशल मीडिया संचालित आंदोलन का क्या हश्र होता है यह हमें अरब स्प्रिंग के अनुभव से सीखना चाहिए।"
सोशल मीडिया ही है अब अल्टरनेटिव मीडिया-इर्शादुल हक़
'नौकरशाही डॉट इन’ के इर्शादुल हक़ ने प्रतिरोध सभा को संबोधित करते हुए कहा " आज नौजवान लोग पूरे देश में प्रतिरोध के प्रतीक बन कर उभरे हैं। नौजवान पत्रकार ही हमारे नए नायक बन कर उभरे हैं। ट्विटर, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से विरोध ताकतवर होता जा रहा है। सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया ही आज आल्टरनेटिव मीडिया बनता जा रहा है। दिक्कत सिर्फ यह है कि हमारी जो ताकत है वह छितराई हुई है। न्यूज़क्लिक पर हमला इस बात का संकेत है कि हमें इकट्ठा होना है।"
विरोध के लिए फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सप और अधिक इस्तेमाल करें- डॉ रंजीत
ईटीवी भारत के डॉ. रंजीत ने कहा " मैं इस लड़ाई में न्यूज़क्लिक के साथ खड़ा हूँ। आज सत्तर प्रतिशत मीडिया सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया है। 2024 तक यह नब्बे प्रतिशत हो जाएगा। हम इस बात से सहमत नहीं कि सरकार जो चाहती है वैसा ही लिखा जाता है। अभी भी सत्तर-अस्सी प्रतिशत लोगों के अंदर पत्रकारिता जिंदा है। भले मालिक का जो हो। हमारे मालिक तो कहते हैं जो लिखो सच लिखो। पत्रकारों को भी अपना दायरा पहचानना चाहिए। आप शब्दों से खेल कर कर अपनी जगह बना सकते हैं। मैं तटस्थ रहने की कोशिश करता हूँ। "
'न्यूज़' की जगह 'पैसा' खोजने गया है न्यूज़क्लिक के दफ़्तर? - सतीश कुमार
'मज़दूर' पत्रिका के सतीश कुमार ने कहा "न्यूज़क्लिक पर हमला हम सब पर हमला है। तीस-चालीस साल से जो एक ढांचा खड़ा किया गया उसे तहस-नहस किया जा रहा है। पत्रकारिता में जाने वाले को हमलोग दुस्साहिक प्राणी माना करते थे। प्रबीर पुरकायस्थ को इमरजेंसी में भी खींचकर जेल ले जाया गया था। वह दिन भी हमलोगों को याद है। अब ED नामक एक विभाग खोल दिया गया है सिर्फ़ परेशान करने के लिए। अब 'न्यूज़क्लिक' न्यूज़ का कारखाना है और वहां वह पैसा खोजने गया है? "
जो अख़बार थर्मस देगा, वह न्यूज़ कहाँ से देगा- आशीष झा
अमर उजाला के पत्रकार आशीष झा ने कहा " आज नौकरी करने वाले पत्रकार ज्यादा हैं। हमलोगों की पीढ़ी ने ठीक से पत्रकारिता देखी ही नहीं है। सरकार से टकराने की कुव्वत नहीं है तो आप पत्रकार नहीं हो सकते। जब भी पत्रकारिता में पूँजीपति पैसा निवेश करेंगे, रंगीन पन्ना होगा तो कैसे ढंग की पत्रकारिता होगी? आज पत्रकारिता वैसी ही नौकरी है जैसे एम.आर हैं। आज अखबार बेचने वाला अखबार के साथ थर्मस गिफ्ट में देता है। जो अखबार अपने ग्राहकों को उपहार में थर्मस देगा वह न्यूज़ क्या देगा? हिंदी सिनेमा के थर्ड ग्रेड के खलनायक के समान हैं सत्ता में बैठे लोग। आज हमारी लड़ाई ऐसे ही बहुरूपिये, धूर्त लोगों से है।"
सोशल मीडिया, पोर्टल चलाने वालों के बीच एका बने- अनिल अंशुमन
न्यूज़क्लिक' से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार व संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन ने अपने संबोधन में कहा, " सरकार जो कंडीशन दे रही है उसे हम स्वीकार करते जा रहे हैं। वैकल्पिक मीडिया के लिए आवश्यक है कि 'बोल के लब आजाद हैं तेरे'। सरकार चाहती है कि सच कभी भी बाहर न जाये। सिर्फ हमारा सच ही लोगों के बीच जाए। इसका जवाब यही है कि यहां जो सोशल मीडिया, पोर्टल चलाया जा रहा है उनके बीच एक एका बनाया जाए। 'न्यूज़क्लिक' पर हमला इसलिए किया गया कि इसने किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग की। अभी बाजारवाद का कॉरपोरेट संचालक है इसके बरक्स हमारा अपना मीडिया हो। अभी बिहार में नीतीश कुमार द्वारा लाये गए सोशल मीडिया पर प्रतिबन्ध की कोशिश के खिलाफ आवाज उठाई जाए। नए पत्रकारों को हमलोगों को आगे बढ़ाना चाहिए।"
न्यूज़क्लिक और किसान आंदोलन का दमन साथ-साथ- अजय कुमार सिन्हा
''ट्रुथ 'और ' यथार्थ' के संपादक अजय कुमार सिन्हा ने कहा " सत्ता कोई परवाह न किसान आंदोलन की कर रही है, न किसी और विरोध की। परिस्थति ने उसे जहां पहुंचा दिया है वो अब पीछे हट ही नहीं सकता। ऐसी स्थिति में हमलोगों को देखना है कि लड़ाई शुरू होती है फिर बिखर जाती है। सत्ता 'न्यूज़क्लिक' के साथ साथ किसान आंदोलन का भी दमन करने की कोशिश कर रही है। पूंजीपतियों की तरफदारी में यह सरकार न्यूज़क्लिक तो छोड़ दीजिए किसी भी आंदोलन की बात सुनने को तैयार नहीं है।"
एकजुट होने की ज़रूरत- विद्यासागर
'live india news' के मॉडरेटर विद्यासागर ने प्रतिरोध सभा में बताया " न्यूज़क्लिक पर आज जो हमला हुआ है उसमें हमारी ये जिम्मेवारी बनती है कि हम लोगों को इस बारे में जागरूक करें। आज जरूरी है कि एकजुट हों और इस पर बात करें।"
70 से अधिक फ्रीलांस जर्नलिस्टों को गिरफ़्तार किया गया- विवेक
'आह्वान' पत्रिका के विवेक ने अपने संबोधन में कहा "अखबार को जब झुकने के लिए कहा जाता है तब वह रेंगने लगते हैं। 2020 में 70 से ज्यादा छोटे स्तर के फ्रीलांस जर्नलिस्ट को गिरफ्तार कर उन्हें जेलों में बंद कर दिया गया है। पत्रकारों पर यूएपीए लगाया जा रहा है। किसी के बोलने की आज़ादी पर हमला होता है तो हमें उसके साथ खड़ा होना चाहिए।"
सबसे बड़ा शिक्षक, संघर्ष का मैदान है- अरुण मिश्रा
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सेंट्रल कमिटी के सदस्य अरुण मिश्रा ने कहा " न्यूज़क्लिक के साथ साथ दिशा रवि के साथ सरकार ने जो किया उसके प्रति मुखर होकर बातचीत करें। सबसे बड़ा शिक्षक संघर्ष का मैदान है। अब हमारे लिए जो छोटे-छोटे माध्यम हैं वही असली मीडिया हैं। इस मीडिया का पहले भाजपा इस्तेमाल किया करते थी लेकिन अब यही डिजिटल मीडिया उनलोगों के खिलाफ चला जा रहा है। हमें इसमें ताकत लगानी है। इस लड़ाई का चरित्र भिन्न है। ये आर-पार की लड़ाई है। मार खाने- जेल जाने के लिए तैयार रहना चाहिए।"
बिहार प्रेस बिल-1982 की तरह खड़ा होने की जरूरत-रवींद्रनाथ राय
'मैत्री शान्ति' पत्रिका के संपादक रवींद्र नाथ राय ने प्रतिरोध सभा में बिहार में 1982 के प्रेस बिल के खिलाफ आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा " उस प्रेस बिल के खिलाफ वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जेल में बंद थे। वह इतना सशक्त आंदोलन था कि बिल सरकार को वापस लेना पड़ा था। आज भी विपक्ष उतना ही ताकतवर है। ये कहना सही नहीं है कि विपक्ष कमजोर हो गया है। कोई ऐसा ब्लॉक नहीं यहां जहां कोई न कोई नौजवान लड़का पत्रकारिता के माध्यम से नहीं लड़ रहा है। भले ही कोई संगठित तरीके से न लड़ रहा हो लेकिन वो लड़ जरूर रहा है।"
दो पूंजीपतियों के हाथों में है केंद्र सरकार- अमर
प्रतिरोध सभा में श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अमर कुमार ने कहा " बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन 1975 से लगातार बिहार में काम करता रहा है। वह लड़ाई भी जनशक्ति से जुड़े पत्रकार ही किया करते थे। प्रेस बिल के खिलाफ लड़ाई में जब हम लोग दिल्ली गए तो पटना और विभिन्न जिलों के दो हजार पत्रकार जेल गए थे। तब जिला में 10-15 पत्रकार हुआ करते थे लेकिन आज तो हर जिले में 40-50 पत्रकार हुआ करते हैं। जनता के बीच हमारी आवाज न जाये ये कोशिश हो रही है। वर्तमान सरकार तो पूरी तरह से दो पूंजीपतियों के हाथों में है। ये साधारण लड़ाई नहीं है। पहले मालिक के खिलाफ न्यूज़ नहीं छपता था लेकिन सरकार के खिलाफ छप जाता था अब तो सरकार के खिलाफ भी नहीं छपता। कोई पत्रकार अब परमानेंट नहीं है बल्कि कॉन्ट्रेक्ट पर है। इस कारण वो डरता है।"
प्रतिरोध सभा का संचालन संस्कृतिकर्मी जयप्रकाश ने किया।
प्रतिरोध सभा में बड़ी संख्या में पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। प्रमुख लोगों में थे एआईएसएफ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव विश्वजीत कुमार, सिटीजन्स फोरम के गालिब खान, एनएपीएम के आशीष रंजन झा, यथार्थ पत्रिका की आकांक्षा, सौजन्य उपाध्याय एवं राधेश्याम, सामाजिक कार्यकर्ता कमलकिशोर, तारकेश्वर ओझा, मज़दूर पत्रिका के पार्थ सरकार, सोशलिस्ट चैंबर ऑफ कॉमर्स के जफर, ऑन लाइन कंटेंट जेनरेटर सुनील सिंह, कवि प्रभात सरसिज, इंसाफ के इरफान अहमद फातमी, पत्रकार कुमुद सिंह, छात्र नेता सरोज आदि मौजूद थे।
(अनीश अंकुर स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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