पटना : रसोईया संघ, ऐक्टू व अन्य रसोईया संगठन ने अपनी मांगों को लेकर किया प्रदर्शन
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बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ, ऐक्टू व अन्य रसोईया संगठनों के बैनर तले सरकारी कर्मचारी घोषित करने, मानदेय 21 हजार रूपए करने व साल के बारहों महीने का मानदेय देने समेत अन्य मांगों पर बिहार के सभी जिलों से आए हजारों रसोईया ने आज बिहार विधानसभा के समक्ष प्रदर्शन किया।
इस प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए बिहार राज्य विद्यालय रसोइयां संघ के महासचिव सरोज चौबे ने कहा कि बिहार में रसोइयों को महज 1650 रूपया मानदेय के रूप में मिलता है। जबकि बगल के राज्य झारखंड व उत्तर प्रदेश में 2000 रूपए प्रतिमाह मानदेय मिलता है। उन्होंने कहा कि विद्यालयों में रसोइयों को अपमानजनक व्यवहार सहन करना पड़ता है और बार-बार निकाल देने की धमकी दी जाती है। साथ ही 9 बजे से 4 बजे तक काम करना पड़ता है फिर भी पार्ट टाइम वर्कर कहा जाता है।
सरोज चौबे ने आगे कहा कि जबसे केंद्र में भाजपा सरकार आई है रसोइयों का एक पैसा भी मानदेय नहीं बढ़ा है। ऊपर से कोरोना काल का फायदा उठाकर मध्यान्ह भोजन योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण योजना कर दिया गया और उसकी समय सीमा 5 साल सीमित कर दी गई। जबकि मध्यान्ह भोजन योजना नियमित चलने वाली योजना थी। कोरोना काल में क्वारंटीन सेंटरों में काम करने वाली रसोइयों को न तो मेहनताना दिया गया और न ही मृत रसोइयों को मुआवजा।
वहीं रसोइयों के विधानसभा का घेराव और प्रदर्शन को संबोधित करते हुए ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय संयोजक शशि यादव ने कहा कि बढ़ी हुई मंहगाई में और घटते रोजगार की स्थिति में रसोइयों के परिवार की स्थिति खस्ताहाल है। श्रम कानूनों को बदलकर कोड बनाए जाने पर रसोइयों की हालत और खराब हो गई है। वे न मजदूर हैं न श्रमिक। उन्हें मानदेय मिलता है जो सम्मानजनक नहीं है।
वहीं इस प्रदर्शन को संबोधित करते हुए ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा बिहार सरकार भी मध्यान्ह भोजन योजना को पहले तो कुछ जिलों में एनजीओ को सौंप दी और अब जीविका के जरिए भोजन बनवाने का प्लान बना रही है। लगभग 20 साल से काम कर रही रसोइयों के रोजगार पर भविष्य में संकट मंडरा रहा है। अगर रसोइयों के मांगें नहीं मानी गई तो आने वाले दिनों में यह आंदोलन और तेज किया जाएगा।
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