पेगासस कांड: पूरी दुनिया में छानबीन हुई, तो भारत में भी कठघरे तो बनने चाहिए थे

पेगासस मामले में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जो कुछ कहा उसकी विवेचना तो हम नहीं करेंगे लेकिन इस फैसले से कुछ निहितार्थ सामने आते हैं, जैसे कि सुप्रीम कोर्ट के नजरिये से ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी नजर में पेगासस मामला कोई खास गंभीर नहीं था। जैसे कि कोर्ट ने ऐसा कोई इशारा नहीं किया कि ‘मसला गंभीर था और इरादतन कुछ संस्थाओं द्वारा कुछ खास लोगों की जासूसी करके उनकी निजता का हनन किया गया, लेकिन भारत सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया’। हां, कोर्ट ने सिर्फ़ इतना कहा कि भारत सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया। शायद इसी से हौसला पाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार के आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बेख़ौफ़ कहा कि सरकार को ‘इंटरसेप्ट’ करने का हक है, यह जताता है कि –‘हमने किया, तुम क्या कर लोगे’।
यही नहीं, भारत में जिस तरह से पेगासस वाले मामले को खास तौर पर कोर्ट द्वारा लिया गया, उसमें इस बात को सिरे से नजरअंदाज कर दिया जाता है कि पेगासस की जासूसी का पर्दाफाश दरअसल मीडिया संस्थानों के एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट का हिस्सा था और भारत तो महज उसका एक छोटा सा हिस्सा है। इस जासूसी कांड ने कई देशों में हलचल मचाई और कई सरकारों ने इसके जवाब में कदम भी उठाए। अगर पेगासस मसला खाली हवाई होता तो भला इन सारे देशों में इतनी हलचल क्यों होती। हमारे यहां की कानूनी कार्रवाई इस बात पर ग़ौर नहीं करती।
पेगासस मामले को सामने आए जुलाई में एक साल पूरा हो गया। कुल 17 अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने इसका एक साथ प्रकाशन किया था। इस्राइल के एनएसओ ग्रुप द्वारा तैयार किए गए इस जासूसी सॉफ्टवेयर के तकरीबन 50 हजार शिकार दुनियाभर में पहचाने गए थे, जिनमें पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, नेता, अकादमिक लोग, व्यवसायी, राजपरिवारों के लोग और यहां तक की फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों जैसे शासनाध्यक्ष भी शामिल थे।
जुलाई 2021 में सामने आई इस छानबीन की त्वरित पुष्टि फ्रेंच व बेल्जियम अधिकारियों की गई फोरेंसिक जांच से हो गई थी। यूरोपीय संसद समेत कई अंतरराष्ट्रीय मंचों से इसकी जांच हुई। मई 2022 में तो यूरोपीय संसद ने एनएसओ के एक प्रतिनिधि को अपने सामने तलब कर लिया। छानबीन सामने आने के बाद से कई एनएसओ के कई नए शिकार भी सामने आ गए।
दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित आईटी कंपनी एप्पल ने एनएसओ के खिलाफ एक कानूनी केस तक दायर कर दिया। खुद अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने नवंबर 2021 में एनएसओ को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया। इससे भी इस तमाम छानबीन की अहमियत पता चलती है। फ्रांस व इस्राइल के बीच तो कूटनीतिक रिश्ते खराब होने की नौबत आ गई थी। मोरक्को ने जिस तरह से पेगासस का इस्तेमाल किया उसके कारण अल्जीरिया ने पिछले साल अगस्त में मोरक्को के साथ कूटनीतिक रिश्ते खत्म करने तक की बात कह दी।
इस छानबीन में उन 12 सरकारों का पता लगा था जो खुद एनएसओ की ग्राहक थी यानी जिन्होंने खुद पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदा था। जाहिर है कि अपने नागरिकों के खिलाफ उसका इस्तेमाल करने के लिए। खुद एनएसओ का कहना था कि 40 सरकारें उसका सॉफ्टवेयर खरीद चुकी हैं लेकिन उसने इनके नाम जाहिर नहीं किए हैं। जो 12 सरकारें पहचाने गई थीं, वे हैं- सऊदी अरब, अजरबैजान, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात, हंगरी, भारत, कजाख़स्तान, मेक्सिको, मोरक्को, पोलैंड, रवांडा और टोगो।
भले ही हमारे यहां सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई टेक्निकल कमिटी को फोन में पेगासस के चिह्न नहीं मिले हों, लेकिन हकीकत यह है कि छानबीन से जुड़ी एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्यूरिटी लैब ने 67 फोनों की जांच की थी जिनमें से 37 में, यानी आधे से ज्यादा में, पेगासस के चिह्न मिले, जिनमें भारत के फोन भी शामिल हैं। छानबीन के सामने आने के बाद से कई और देशों में नए मामले पेगासस के पकड़ में आए।
छानबीन के एक साल बाद इस साल जुलाई में जब सालभर का लेखा-जोखा सामने आया था तो यह पता चला कि चार महाद्वीपों में 30 देशों के तीन सौ से ज्यादा लोगों के फोन में पेगासस के चिह्न मिले जिनमें 110 से ज्यादा पत्रकार और सौ से ज्यादा मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील व राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल थे।
अब तक पांच देशों- जर्मनी, हंगरी, पोलैंड स्पेन व इस्राइल ने इस सॉफ्टवेयर को खरीदने की बात को स्वीकार किया है। अमेरिका में एफबीआई ने भी इस जासूसी सॉफ्टवेयर को खरीदने की बात को माना लेकिन उसने कहा कि उसका किसी भी जांच में कोई ऑपरेशनल इस्तेमाल नहीं किया गया बल्कि केवल टेस्टिंग व मूल्यांकन में उसका इस्तेमाल हुआ।
बीते एक साल में आठ देशों और यूरोपीय संघ ने इस मामले में न्यायिक व संसदीय जांच की शुरुआत कर दी है। एप्पल के अलावा व्हॉट्सएप्प ने भी एनएसओ के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। इस शिकायत में उसके साथ माइक्रोसॉफ्ट, गूगल व लिंक्डइन भी शामिल हैं।
खुद एनएसओ इस सारी छानबीन के बाद गहरे वित्तीय संकट में है। कंपनी कर्ज में डूबी है और एक अमेरिकी कंपनी उसे खरीदने में रुचि दिखा रही है।
चूंकि फ्रांस अकेला देश था जहां मौजूदा शासनाध्यक्ष को ही निशाने पर लिया गया था, इसलिए सबसे त्वरित प्रतिक्रिया भी वहीं दिखी। मैक्रों, उनके तत्कालीन प्रधानमंत्री और 14 मंत्रियों को इस जासूसी सॉफ्टवेयर का शिकार मोरक्को की तरफ से बनाया गया। जाहिर था, वहां इसे नजरअंदाज करने की कोशिश नहीं की गई बल्कि इसे गंभीरता से लेकर कार्रवाई की गई। स्पेन में इसको लेकर सरकार और उसे समर्थन देने वाले गुटों के बीच तनाव पैदा हो गया। ब्रिटेन में इस बात की आधिकारिक पुष्टि रही कि कई नंबर पेगासस का शिकार हुए।
इस साल जून में यूरोपीय संघ की छानबीन में एनएसओ ने माना कि कम से कम पांच यूरोपीय देशों ने पेगासस का इस्तेमाल किया जिनमें से दुरुपयोग की शिकायत के बाद खुद एनएसओ ने एक का करार खत्म कर दिया। यूरोप में काउंसिल ऑफ यूरोप और यूरोपीय संसद, दोनों इसकी छानबीन कर रहे हैं और वहां लोगों का मानना है कि भले ही वे सरकारों को जवाबदेह न बना सकें लेकिन इससे वे कम से कम सारी हकीकत को सामने ला सकते हैं ताकि लोग खुद उसे समझ सकें।
पेगासस को जानकारों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेतन्याहू की इस्राइली कूटनीति का एक हथियार माना था जिसके जरिये उन्होंने एक तरफ भारत तो दूसरी तरफ अरब देशों के साथ दोस्ती बढ़ाने के औजार के रूप में उसका इस्तेमाल किया।
पर्दाफाश होने के बाद सालभर में मजेदार बात यही सामने आई कि जहां-जहां सरकारों ने खुद इसका इस्तेमाल किया, वहां वे इस बात से साफ मुकर गईं या गोलमाल करने लगीं। लेकिन जहां सरकारें खुद शामिल नहीं थीं, वहां जांच हुई और पेगासस के अवैध रूप से इस्तेमाल की पुष्टि भी हुई। भारत की तरह जहां सरकारों को लगने लगा कि विरोध में कोई दम नहीं बचा है, वहां वे यह स्वीकार किए बिना—कि उन्होंने पेगासस का इस्तेमाल किया है—यह कहने से नहीं चूकी कि वैधानिक जासूसी तो उनका हक बनता है। अब आपको जो करना हो कर लीजिए।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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