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विकलांग व्यक्तियों को यथोचित संसाधनों से महरूम रखा जा रहा है 

वित्तपोषण में ठहराव, कम आवंटन, बेहद खराब तरीके से नियोजित नीतियां: विकलांग भी बेहतर जीवन जीने के हकदार हैं। 
विकलांग व्यक्तियों को यथोचित संसाधनों से महरूम रखा जा रहा है 

गर्मियों के कुछ समय बाद ही अगले वित्तीय वर्ष के लिए केन्द्रीय बजट को तैयार करने के लिये, केंद्र सरकार “उद्योग जगत की प्रमुख हस्तियों” और विभिन्न हित समूहों के साथ अपनी बातचीत को शुरू कर देगी। उम्मीद करते हैं, कि विकलांगता से जूझ रहे व्यक्ति इस सूची में ऊपर रखे जायेंगे और अगले साल भी वैसा ही हाल नहीं होगा जैसा कि इस साल और पिछले साल देखने को मिला था।

किसी भी विकासमान समाज को, भले ही वह किसी भी संकट का सामना कर रहा हो, उसके यहां विकलांगता को उच्च-प्राथमिकता वाले वर्ग में रखा जाना चाहिए। भारत को कम से कम संसाधनों के यथोचित आवंटन के क्षेत्र में विकलांग लोगों की जरूरतों को निश्चित रूप से पूरा करना चाहिए। सभी सरकारों को इस आबादी के लिए पुनर्योजन, प्रशिक्षण, शिक्षित और जीवन को आसान बनाने का प्रयास करना चाहिए।

भारत में पीडब्ल्यूडी (PwD) की आधिकारिक संख्या लगभग 2.8 करोड़ के आस-पास है। यह कुल आबादी का 2.2% बैठता है, या कहें तो यह ऑस्ट्रेलिया या श्रीलंका की आबादी के बराबर है। इस प्रकार की विशेष जरूरतों वाली इतनी विशाल आबादी खुद से अपनी सार-संभाल कर पाने में सक्षम नहीं हो सकती: PwD को विभिन्न स्तरों पर सहायता और देखभाल की जरूरत पड़ती है, जिसे सरकार को लक्षित योजनाओं और परियोजनाओं के जरिये निश्चित रूप से वित्तपोषित करना चाहिए।

2011 की जनगणना में सात प्रकार की विकलांगता को सूचीबद्ध किया था, लेकिन व्यापक मांगों के बाद 2016 में पारित विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम में 21 प्रकार की विकलांगता को इसमें शामिल कर लिया गया। स्वाभाविक रूप से, विकलांग व्यक्तियों के तौर पर पहचाने जाने वाले व्यक्तियों की संख्या भारत में बढ़ रही है। भारत ने इस समुदाय की विशिष्ट जरूरतों और मांगों को पूरा करने के लिए 2016 का कानून बनाया था। 

इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार एवं विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग (DEPwD) भी PwD से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और समझौतों को लागू करने के लिये जिम्मेदार हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय नीति को विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीआरपीडी) के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत है।

सितंबर 2019 में, विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की समिति (सीआरपीडी) ने केंद्र सरकार के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की थी। इसने PwD के लिए आवंटन में बढ़ोत्तरी करने की संस्तुति की थी और कहा था कि वित्तपोषण को वास्तविक जरूरतों पर विचार करने की आवश्यकता है। इसने यह भी कहा कि बच्चों की विशिष्ट जरूरतों, सांकेतिक भाषा के दुभाषियों एवं प्रशिक्षकों की कमी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपेक्षित PwD पर अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। एक विशिष्ट मांग इसमें यह उठाई गई थी कि योग्य लोगों को अधिक पेंशन दी जाये।

यह बेहद चिंताजनक है कि हाल के वर्षों में PwD के लिए केन्द्रीय बजट में आवंटन कुल व्यय का 0.2 से 0.5% के बीच में झूलता रहा है। यह भिन्नता इसलिए है क्योंकि भारत PwD की वास्तविक संख्या का आकलन करने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं है। न ही ऐसा कोई मानक तरीका है जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस समुदाय की जरूरतों की गणना की जा सके। इतना ही नहीं, भारत में PwD के लिए आवंटन बढ़ने के बजाय स्थिर बना हुआ है। उल्टा कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में तो आवंटन में गिरावट देखने को मिली है।

सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी (सीबीजीए) ने 2020 में प्रकाशित PwD के लिए आवंटन और व्यय के रुझान की अपनी समीक्षा में कहा था कि “...लगभग सभी योजनाओं में जो विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करती है, जैसे कि विकलांग व्यक्तियों की सहायता के लिए सहायक उपकरण/उपकरणों की खरीद/फिटिंग, भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम, राष्ट्रीय विकलांग वित्त एवं विकास निगम (एनएचएफडीसी) के आवंटन में गिरावट की पृवत्ति दिखाई दे रही है।”

इस वर्ष सीबीजीए ने कहा है कि DEPwD के लिए आवंटन में अभी और भी ज्यादा कटौती की गई है। 2020-21 के बजट अनुमान की तुलना में 2021-22 के बजट अनुमान में यह आंकड़ा 154 करोड़ रूपये तक गिर गया है। 

हमें याद रखना चाहिए कि यह गिरावट कोविड-19 महामारी के दौरान देखने को मिल रही है जब लॉकडाउन ने आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं और नियमित अस्पताल सुश्रुसा के संकट को उत्पन्न कर दिया है। विकलांगता से संबंधित मुद्दों से निटपने वाले राष्ट्रीय संस्थाओं के लिए आवंटन में भी 2020-21 के 360 करोड़ रूपये के आवंटन से घटकर यह 2021-22 में 319 करोड़ रूपये रह गया है।

इतना ही नहीं, जहां 2018-19 में ब्रेल प्रेस के सुधार और विस्तार की योजना के लिए आवंटन राशि 10 करोड़ रूपये थी और उसके बाद के वर्ष में इसे 8 करोड़ रूपये कर दिया गया था, वहीं अगले दो वर्षों में इस मद में कोई धनराशि आवंटन नहीं की गई है। इसी प्रकार से भारतीय सांकेतिक भाषा, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र को 2018-19 और 2019-20 के वित्त वर्ष में 5-5 करोड़ रूपये का आवंटन मिला था, किन्तु अगले दो वर्षों में इसके लिए कोई फण्ड का आवंटन नहीं किया गया है।

विकलांग व्यक्ति अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए योजना, 2016 के कानून की तुलना में महत्वपूर्ण है, जिसमें केंद्र ने बड़ी धूमधाम के साथ निवेश किया था। PwD को इस नई नीति से काफी उम्मीदें भी थीं। फिर भी पहले से ही 2019-20 के 315 करोड़ रूपये के कम बजट अनुमान को 2020-21 के बजट अनुमान में घटाकर 252 करोड़ रूपये कर दिया गया। अब इसे 2021-22 के बजट अनुमानों में और भी घटाकर 210 करोड़ रूपये कर दिया गया है।

2019-20 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं पुनर्वास संस्थान को 20 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया था, लेकिन अगले दो वर्षों में हम केन्द्रीय बजट में इस संस्थान के लिए कोई आवंटन नहीं पाते हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, विशेषकर देश में मानसिक-स्वास्थ्य संकट की निरंतर चेतावनियों को देखते हुए, जिसमें मार्च 2020 के बाद से बढती बेरोजगारी एवं आय के संसाधनों के खात्मे से स्थिति बेहद विकट हो चुकी है। 

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम बजट में पिछले वर्ष के 40 करोड़ रूपये से कोई बदलाव नहीं आया है, हालांकि उम्मीद की जा रही थी कि इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। केंद्र सरकार PwD के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना चलाती है। संसाधन आवंटन के सन्दर्भ में देखें तो यह योजना जस की तस स्थिति में है; पिछले वर्ष इसमें मामूली वृद्धि भी नहीं हुई, जबकि सीआरपीडी की रिपोर्ट में सामाजिक सुरक्षा पर जोर दिया गया था।

इन योजनाओं और परियोजनाओं के लिए विशिष्ट आवंटनों की पड़ताल कर पाना आसान नहीं है, क्योंकि सभी कार्यक्रम बजट दस्तावेजों में शामिल नहीं किये जाते हैं। बहरहाल, सीमित तौर पर उपलब्ध संसाधनों से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि हाल के वर्षों में विकलांग व्यक्तियों के लिए पर्याप्त संसाधनों को उपलब्ध नहीं कराया गया है। इस बात को देखते हुए कि भारत ने हाल ही में एक कानून को पारित किया है जो बेहतर सुरक्षा और अधिकारों का वादा करता है, यह उनके साथ अन्याय और बेहद विडंबनापूर्ण है।

सरकार के लिए निश्चित तौर पर विकलांगता की अवस्था में जी रहे लोगों के लिए बनाई गई कई प्राथमिक योजनाओं में कटौती करने को न्यायोचित ठहरा पाना मुश्किल होगा। सरकार ने PwD और इस क्षेत्र में कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं की उम्मीदें जगाईं, फिर पर्याप्त संसाधनों से वंचित कर उन्हें विफल कर दिया। विकलांग व्यक्तियों के लिए पर्याप्त मद की व्यस्था कर उपचारात्मक कार्यवाई के जरिये इस पहेली से उबरा जा सकता है।

लेखक पत्रकार एवं रचनाकार हैं। आपकी हाल की प्रकाशित पुस्तकों में प्रोटेक्टिंग अर्थ फॉर चिल्ड्रेन और मैन ओवर मशीन प्रमुख हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

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