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राजस्थान: सरकारी कॉलेजों की ख़राब हालत नहीं बन रहा चुनावी मुद्दा, युवा नाराज़!

“हमारे विश्वविद्यालयों में क़रीब 60 फ़ीसदी स्टाफ की कमी है। नए कॉलेजों में केवल एक स्टाफ और एक प्रिंसिपल है। राज्य में नई शिक्षा नीति अभी बिना किसी पाठ्यक्रम के लागू की गई है।”
Rajasthan Election

राजस्थान में 25 नवंबर को चुनाव होने हैं। इस चुनाव में हर राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत आज़मा रहा है और मतदाताओं को लुभाने के लिए बड़े-बड़े दावे भी कर रहा है। इस चुनाव में युवा वोटर्स एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं क्योंकि ये बड़ी संख्या में हैं लेकिन इन युवाओं का आरोप है कि उनसे जुड़े कई सवालों का आज तक कोई जवाब नहीं मिला और कोई भी दल उनके मुद्दों पर बात नहीं कर रहा है।  

युवाओं के भविष्य से जुड़ा एक बड़ा सवाल है - उच्च शिक्षा। राज्य में उच्च शिक्षा के लिए नए संस्थान तो बहुत खुले हैं या कहें कि देश के कई राज्यों से बहुत ज़्यादा हैं लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सवाल आज भी बना हुआ है। न्यूज़क्लिक की चुनावी टीम ने राज्य की कई विधानसभाओं का दौरा किया जहां छात्रों ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर की। नौजवानों की नाराज़गी है कि इस चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए ये प्राथमिक मुद्दा नहीं रहा है।

सीकर के लोसल शहर में जामा मस्जिद रोड सीधे राजकीय महाविद्यालय (सरकारी कॉलेज) की ओर मुड़ता है। ये सरकारी कॉलेज पिछले पांच वर्षों में कांग्रेस सरकार द्वारा स्थापित 157 कॉलेजों में से एक है।

शुरुआत में, इसमें पढ़ने वाले क़रीब 650 छात्र अपने भविष्य को लेकर बेहद उत्साहित थे। इन छात्रों को विश्वास था कि वे शिक्षकों से वो सब कुछ सीखेंगे जो उनके सुनहरे भविष्य के लिए ज़रूरी है। हालांकि उनका ये विश्वास अब निराशा में बदलता नज़र आ रहा है। आपको बता दें, ये कॉलेज, श्री डेडराज खेतान सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल से उधार ली गई इमारत में चलता है जिसमें केवल पांच शिक्षक और एक क्लर्क है।

इस कॉलेज में पढ़ने वाले स्नातक के छात्र योगेश ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, “स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व, इस कॉलेज की नई निर्माणाधीन इमारत के बारे में कई दावे करता है जबकि हक़ीक़त ये है कि चार साल बाद भी नियमित रूप से कक्षाएं आयोजित नहीं की जा सकी हैं।”

योगेश आगे कहते हैं, “गहलोत सरकार शिक्षकों की भर्ती में तत्परता दिखा सकती थी। शिक्षा तो छोटी इमारतों में भी दी जा सकती है लेकिन शिक्षकों के बिना कैसे शिक्षा मिलेगी।”

कॉलेज से कुछ दूरी पर सीकर शहर में एक प्रसिद्ध सरकारी विज्ञान महाविद्यालय है। यहां के छात्रों का कहना है कि शिक्षकों पर काम का बोझ इतना अधिक है कि वे व्याख्यान और प्रयोगशाला के काम के लिए उपलब्ध नहीं हो पाते हैं।

संदीप नेहरा, जो MSC (रसायन विज्ञान) के छात्र हैं, उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि कार्यभार को पूरा करने के लिए शिक्षकों की स्वीकृत संख्या को संशोधित किया जाना चाहिए। “पिछले कुछ वर्षों में छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है जबकि कोई नया शिक्षक नियुक्त नहीं किया गया है। छात्रों को पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए खुद ही पढ़ना पड़ता है, इसके अलावा वे सीनियर्स की मदद पर भी निर्भर रहते हैं।”

गौरतलब है कि 16 नवंबर को तारानगर, हनुमानगढ़ और श्री गंगानगर में राहुल गांधी के साथ आयोजित तीन रैलियों के दौरान, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने क्षेत्र में नए कॉलेजों की सूची की घोषणा की थी। हालांकि, छात्र ज़मीनी हक़ीक़त बयां करते हैं।

राजस्थान विश्वविद्यालय और कॉलेज गैर-शिक्षण कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मण सैन न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहते हैं कि सेवाओं के अनुबंधीकरण (ठेकाकरण) के माध्यम से उच्च शिक्षा संस्थानों का तेज़ी से निजीकरण किया जा रहा है।

सैन ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि “कॉलेज और विश्वविद्यालय परिसर वीरान हैं। कॉलेजों में शिक्षक व गैर शिक्षक कर्मचारी नहीं है। कई सीटें खाली हैं। न्यूनतम परिचालन के लिए कुछ संविदा कर्मचारियों को काम पर रखा गया है।”

बता दें कि उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार 490 कॉलेजों में 12,654 की स्वीकृत संख्या है जिनमें से 6,566 पद खाली हैं। इसका अर्थ है कि क़रीब 50% पद खली पड़े हैं। 2022-23 शैक्षणिक सत्र में नए 117 कॉलेजों ने एक भी शिक्षक की भर्ती नहीं की गई। इसके अलावा, इस वक़्त केवल 36 कॉलेजों में ही प्राचार्य हैं।

सैन कहते हैं, “राज्य सरकार ने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को एकमुश्त अनुदान देना भी बंद कर दिया है। पहले, अनुदान में वेतन, पेंशन और अन्य खर्च शामिल होते थे। अब केवल स्थायी कर्मचारियों को ही भुगतान किया जाता है।”

इसे समझाते हुए सैन बताते हैं, “आइए मान लें कि 800 पदों की स्वीकृत संख्या के मुकाबले 300 कर्मचारी हैं। यदि कॉलेज 100 संविदा कर्मचारी रखते हैं, तो कॉलेज को खुद उन कर्मचारियों को भुगतान करना होगा क्योंकि सरकार केवल 300 कर्मचारियों का वेतन देगी। ऐसे में कॉलेज को अपना खर्चा पूरा करने के लिए फीस बढ़ानी होगी जिसका बड़े पैमाने पर विरोध होता है। इसके अलावा, शिक्षा की गुणवत्ता से भी गंभीर समझौता हुआ है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने राज्य विश्वविद्यालयों को शोध के लिए दिए जाने वाले विशेष अनुदान में भी काफी कमी कर दी है।”

इसी तरह की चिंताओं को व्यक्त करते हुए, राजस्थान विश्वविद्यालय और कॉलेज शिक्षक संघ के अध्यक्ष घासी राम चौधरी कहते हैं कि “सरकार नए शिक्षकों को नियुक्त किए बिना नए कॉलेज शुरू कर रही है जो एक अवैज्ञानिक दृष्टिकोण है।”

चौधरी, सरकार और नौकरशाहों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “कॉलेज शिक्षकों की भर्ती राजस्थान लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जाती है लेकिन दशकों से शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई है। नौकरशाह, दिल्ली से आए निर्देशों को लागू करने में अनावश्यक जल्दबाज़ी दिखाते हैं। जैसे रातों-रात सेमेस्टर प्रणाली लागू करना हो या पाठ्यक्रम बदलना। क्या वे कभी भी विश्वविद्यालयों की ज़रूरतों के बारे में सोचते हैं?”

चौधरी ने कहा कि छात्र संगठन कॉलेजों की स्थिति को चुनावी मुद्दा तो बना सकते हैं लेकिन वे हर जिले में मजबूत नहीं है।

स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के सचिव और राज्य के बड़े छात्र नेता सुभाष जाखड़ कहते हैं, "गहलोत सरकार ने बिना किसी बुनियादी ढांचे, संकाय और सुविधाओं के, कागज पर नए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का निर्माण किया।”

उनका कहना है कि "कांग्रेस और भाजपा, जाति, धर्म और क्षेत्र जैसे पारंपरिक मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं और कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों के बारे में भूल गए हैं।"

जाखड़ ने आगे कहा, “भाजपा शासन के दौरान, कॉलेज बनाने के लिए सेट-अप पर्याप्त नहीं था। कांग्रेस ने सोसायटी अधिनियम के तहत नए कॉलेज स्थापित किए, लेकिन कई लोगों को आशंका है कि कहीं इन्हें निजी ठेकेदारों को न सौंप दिया जाए। हमारे विश्वविद्यालयों में 60% स्टाफ की कमी है। नए कॉलेजों में केवल एक स्टाफ और एक प्रिंसिपल है। राज्य में नई शिक्षा नीति अभी बिना किसी पाठ्यक्रम के लागू की गई है। हमें पता चला कि परीक्षा दिसंबर के आख़िरी सप्ताह में आयोजित की जाएगी। यह हमारे लिए ये बहुत निराशाजनक स्थिति है।”

गौरतलब है कि गहलोत सरकार ने स्कूल और कॉलेज के छात्रों को लैपटॉप और मोबाइल फोन उपलब्ध कराने का भी वादा किया था, जिसका उद्देश्य महामारी के बाद डिजिटल विभाजन को पाटना था।

इस वादे पर जाखड़ का कहना है कि “सिरोही जिले में एक आदिवासी छात्र को फोन देने से शायद ही उसे मदद मिलेगी क्योंकि उसके पास ट्यूटोरियल वीडियो तक पहुंचने के लिए ज़रूरी इंटरनेट स्पीड नहीं हो सकती है। हमें शिक्षा प्रदान करने के लिए वास्तविक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है।”

युवाओं से विधानसभा चुनाव में समझदारी से मतदान करने की अपील करते हुए जाखड़ कहते हैं, “बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही सरकारों में पेपर लीक जारी है। सरकारी उपक्रमों में सत्तर फीसदी पद खाली हैं। मुझे उम्मीद है कि युवा मतदाता इसे समझेंगे और तदनुसार मतदान करेंगे।”

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