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प्रयागराज महाकुंभ: ‘वे मारे गए, क्योंकि वे साधारण थे,वीआईपी नहीं थे’

आपको पता है कि हादसे से भी बड़ा हादसा क्या हुआ है। एक तरफ़ आंसू थे, चीख़-पुकार थी, अपनों की तलाश थी, अपनों की लाशें थीं और दूसरी तरफ़ अमृत स्नान कर रहे साधु-संतों पर हेलीकॉप्टर से फूलों की वर्षा की जा रही थी।
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फ़ोटो साभार- दूरदर्शन उत्तर प्रदेश 

“वे मारे गए, क्योंकि वे साधारण थे,वीआईपी नहीं थे

वे मारे गए, क्योंकि वे श्रद्धालु थे,सांप्रदायिक नहीं थे

वे मारे गए, क्योंकि वे भीड़ थे, उनके अपने नहीं थे”

– रविकांत चंदन, एसोसिएट प्रोफ़ेसर, लखनऊ यूनिवर्सिटी

यही वह सच है जो प्रयागराज महाकुंभ में बदइंतज़ामी और हादसे की बड़ी वजह बना। 

“महाकुंभ में 144 साल बाद बना ऐसा पुण्य महासंयोग”

ऐसे मिथक, ऐसी हेडलाइन बने महाकुंभ में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के पहुंचने की वजह।

“जो महाकुंभ में नहीं आएगा वह देशद्रोही कहलाएगा”- धीरेंद्र शास्त्री, बागेश्वर धाम

ऐसे भड़काऊ बयान-आह्वान बने महाकुंभ में ज़बर्दस्ती लोगों की भीड़ धकेलने के लिए। 

“जो सोवत है, वो खोवत है, इसलिए अभी उठिए, स्नान करने जाइए, अमृत पान कीजिए” – कुंभ मेला क्षेत्र में एक पुलिस अधिकारी की सार्वजनिक घोषणा

रात 12 बजे इस तरह की घोषणानाएं बनी एक बड़ी वजह भीड़ को स्नान के लिए धकेलने के लिए।

ये कुछ उदाहरण हैं जिन्हें एक साथ एक जगह रखकर देखने-समझने पर काफ़ी कुछ अंदाज़ा होता है कि प्रयागराज महाकुंभ में क्यों भगदड़ मची, क्यों हादसा हुआ। 

आपको मालूम है कि मौनी अमावस्या के विशेष स्नान पर्व के लिए प्रयागराज में करोड़ों की भीड़ जुटी थी। 

29 जनवरी को आधी रात के बाद अचानक भगदड़ मची जिसमें सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई है और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। 

कुंभ-महाकुंभ हमेशा से ही भारतीयों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। लेकिन इस बार जैसे इस धर्म और संस्कृति के मेले को सांप्रदायिक राजनीति का मेला बना दिया गया उसकी मिसाल नहीं मिलती। 

सांप्रदायिक राजनीति का मेला इसलिए क्योंकि इसके जरिये हिन्दुत्ववादी राजनीति को साधने की कोशिश की जा रही है। धर्म से ज़्यादा धर्म का भोंडा प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। 

और इसमें पूरा साथ दे रहा है हमारा गोदी मीडिया।

मंत्रियों-संतरियों के लगातार पहुंचने और उन्हें वीवीआईपी ट्रीटमेंट देने, उनके फ़ोटो ऑप की कहानी ज़्यादा सामने आ रही है।

आम आदमी के लिए तमाम रास्ते कभी गृहमंत्री अमित शाह के लिए, कभी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के लिए, कभी मुख्यमंत्री या अन्य नेताओं और सेलिब्रिटी के वजह से बंद कर दिए जा रहे हैं। 

लोगों को मीलों-मीलों पैदल चलना पड़ रहा है। इधर-उधर भटकना पड़ रहा है और जब वे गंगा घाट पर पहुंचते हैं तो उनसे कहा जाता है कि जल्दी से स्नान करके भागिए। 

“हम ब्रह्ममुहूर्त में ही डुबकी लगाएंगे” 

अब इस सोच पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इसे श्रद्धालुओं की ज़िद बताया जा रहा है, कहा जा रहा है कि इसी वजह से भीड़ जमा हो गई और हादसा हो गया। 

लेकिन क्यों कोई ब्रह्ममुहूर्त में गंगा स्नान का अवसर न पाना चाहेगा। लोग इतनी दूर-दूर से मौनी अमावस्या के ब्रह्ममुहूर्त में ही तो स्नान के लिए आए हैं। यही तो हमारे धर्माचार्यों ने बताया है। फिर आप लोगों को कैसे ग़लत बोल सकते हैं। 

फिर संगम पर इतनी भीड़ हो गई का राग भी बेकार है। हर बार होती है। आपने ही बुलाया है। योगी सरकार लगातार इसके लिए विज्ञापन कर रही है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग संगम स्नान कर पुण्य लाभ कमाएं। 

योगी जी को ही आंकड़ों की राजनीति करनी है। कभी अयोध्या में दीप जलाने के मामले में कभी कुंभ में डुबकी लगाने वालों की संख्या के मामले में। आंकड़ों का रिकार्ड बनाना है। और इसके जरिये वोट की राजनीति करनी है। मिल्कीपुर में वोट मांगने हैं। दिल्ली में वोट मांगने हैं। विपक्ष के नेताओं को नकली हिंदू बताना है। 

“हिन्दू हृदय सम्राट” बनने के लिए मोदी जी से कंपटीशन करना है। 

 यही वजह है कि आस्था और संस्कृति का मेला एक तमाशा बन गया है। बना दिया गया है। 

बहुत लोग तर्क दे रहे हैं इतनी बड़ी भीड़ को मैनेज करना मुश्किल है। हादसे हो ही जाते हैं। इससे पहले भी कुंभ-महाकुंभ में हादसे हुए हैं। तो क्या है, दुखी न हुआ जाए!, इसे सामान्य घटना मान लें? 

और फिर इतनी व्यवस्था, इतनी नई तकनीक किस काम की जब वही हादसे दोहराने हैं। 

और आपको पता है कि इस हादसे से भी बड़ा हादसा क्या हुआ है। 

शोक नहीं मनाया गया, कोई बात नहीं, सामान्य जन का स्नान जारी रहा, कोई बात नहीं। लेकिन शाही स्नान जिसे साधु-संत ख़ुद शोक में स्थगित करने की बात कर रहे थे, वह भी नहीं रोका गया। 

चलिए यह भी कुछ नहीं।  

लेकिन इसे हादसा नहीं त्रासदी ही कहा जाएगा कि एक तरफ़ आंसू थे, चीख़-पुकार थी, अपनों की तलाश थी, अपनों की लाशें थीं और दूसरी तरफ़ अमृत स्नान कर रहे साधु-संतों पर हेलीकॉप्टर से फूलों की वर्षा की जा रही थी। 

यह एक अश्लील दृश्य था। जिसे टेलीविज़न ने भी बड़े गर्व के साथ दिखाया। 

योगी शासन-प्रशासन इसके ज़रिये क्या दिखाना-जताना चाहता था?  

क्या कहें आह! योगी जी या वाह! योगी जी, थैंक्यू योगी जी

इसे तो संवेदनहीनता और अमानवीयता की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है। 

और हमारा मीडिया जो हर डुबकी का हिसाब रख रहा था उसे शाम तक पता नहीं चला कि कितने लोगों की मौत हुई है, कितने घायल हैं, कितने ग़ायब हैं। यही नहीं वो तो डैमज कंट्रोल में जुट गया. और योगी सरकार का पूरी बेशर्मी से बचाव करने लगा। जबकि सवाल यही है कि जब आप सफलता का श्रेय लेना चाहते हैं तो विफलता की ज़िम्मेदारी भी आपको लेनी होगी।

और पुष्प वर्षा इस पर तो याद आते हैं कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना। लगता है जैसे वे हमसे, आपसे, योगी-मोदी सरकार से ही सवाल पूछ रहे हैं कि–

यदि तुम्हारे घर के

एक कमरे में आग लगी हो

तो क्या तुम

दूसरे कमरे में सो सकते हो?

यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में

लाशें सड़ रहीं हों

तो क्या तुम

दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?

यदि हाँ

तो मुझे तुम से

कुछ नहीं कहना है।

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