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कोरोना के बहाने मज़दूरों के अधिकार कुचलने की तैयारी, यूपी और एमपी में श्रम क़ानूनों में बदलाव

उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्योगों को श्रम क़ानूनों से तीन साल की छूट देने के लिए अध्यादेश को मंज़ूरी दी, तो वहीं मध्य प्रदेश सरकार ने भी कुछ इसी तरह उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट देने की बात कही है।
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Image courtesy: Counterview.Org

दिल्ली: कोविड-19 महामारी के कारण प्रभावित उद्योगों को मदद देने के नाम पर मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उन्हें अगले तीन साल के लिए श्रम कानूनों से छूट देने का फ़ैसला किया है। कुछ अन्य राज्य सरकारों द्वारा भी इसी तरह के कदम उठाने के संकेत हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने बृहस्पतिवार को बताया कि सरकार ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी है, जिसमें कोरोना वायरस संक्रमण के बाद प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था और निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट का प्रावधान है।

प्रवक्ता ने बताया कि यह फैसला इसलिए लिया गया, क्योंकि राष्ट्रव्यापी बंद की वजह से व्यापारिक एवं आर्थिक गतिविधियां लगभग रुक सी गई हैं। उन्होंने कहा निवेश के अधिक अवसर पैदा करने तथा औद्योगिक एवं आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करने की आवश्यकता है।

प्रवक्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्री परिषद की बैठक में 'उत्तर प्रदेश चुनिंदा श्रम कानूनों से अस्थाई छूट का अध्यादेश 2020' को मंजूरी दी गई, ताकि फैक्ट्रियों और उद्योगों को तीन श्रम कानूनों तथा एक अन्य कानून के प्रावधान को छोड़ बाकी सभी श्रम कानूनों से छूट दी जा सके।

उन्होंने कहा कि महिलाओं और बच्चों से जुड़े श्रम कानून के प्रावधान और कुछ अन्य श्रम कानून लागू रहेंगे। इनमें बंधुआ श्रम कानून, बिल्डिंग एंड अदर कंस्‍ट्रक्‍शन वर्कर्स एक्‍ट, सेक्‍शन 5 ऑफ पेमेंट ऑफ वेजेस एक्‍ट और वर्कमेन कंपेनसेशन एक्‍ट जैसे कानून शामिल हैं।

आपको बता दें कि इसके अलावा अन्य सभी श्रम कानून निष्प्रभावी हो जाएंगे। इनमें औद्योगिक विवादों को निपटाने, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति तथा ट्रेड यूनियनों, कॉन्ट्रैक्चुअल वर्कर और प्रवासी मज़दूरों से संबंधित कानून शामिल हैं।

चूंकि भारत के संविधान के तहत श्रम समवर्ती सूची (कन्करेंट लिस्ट) का विषय है, इसलिए राज्य को कानून बनाने से पहले केंद्र की मंजूरी लेनी पड़ती है। ऐसे में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद ही ये कानून बन पाएगा।

मध्य प्रदेश में भी बदलाव करने का ऐलान

गौरतलब है कि इससे पहले मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने श्रम कानूनों में कुछ बदलाव करने की घोषणा की थी। इसके तहत न्यूनतम प्रतिबंधों के साथ कारखानों में अधिकतम उत्पादन की अनुमति भी शामिल है। इसके अलावा सरकार कारखानों में श्रमिकों के काम के घंटे बढ़ाने की अनुमति दे सकती है और सप्ताह में 72 घंटे तक ओवरटाइम की अनुमति दे सकती है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर घोषणा की कि किस तरह राज्य सरकार नई विनिर्माण इकाइयों को अगले 1000 दिनों (ढाई साल से ज्यादा) के लिए कारखाना अधिनियम 1948 के कुछ प्रावधानों से छूट देगी।

मध्य प्रदेश में श्रम कानून में बदलाव, जिसे केंद्र सरकार की मंजूरी की जरूरत है, से सुरक्षा और स्वास्थ्य मानदंडों का पालन किए बिना अधिक कारखानों को संचालन करने की अनुमति मिल जाएगी और नई कंपनियों को अपनी सुविधा के अनुसार श्रमिकों को काम पर रखने की छूट मिल जाएगी।

इसके अलावा कारखाना अधिनियम 1958 की धारा 6,7,8 धारा 21 से 41 (एच), 59,67,68,79,88 एवं धारा 112 को छोड़कर सभी धाराओं से नए उद्योगों को छूट रहेगी। इससे अब उद्योगों को विभागीय निरीक्षणों से मुक्ति मिलेगी। उद्योग अपनी मर्जी से थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन करा सकेंगे। फैक्ट्री इंस्पेक्टर की जांच और निरीक्षण से मुक्ति मिलने का दावा है, उद्योग अपनी सुविधा में शिफ्टों में परिवर्तन कर सकेंगे।

तो वहीं ठेका श्रमिक अधिनियम 1970 में संशोधन के बाद ठेकेदारों को 20 के स्थान पर 50 श्रमिक नियोजित करने पर ही पंजीयन की बाध्यता होगी। 50 से कम श्रमिक नियोजित करने वाले ठेकेदार बिना पंजीयन के कार्य कर सकेंगे।

मज़दूर संगठनों ने की निंदा

भाजपा शासित राज्यों में नियोक्ताओं को सभी श्रम कानूनों से छूट देने की योजना तथा कुछ अन्य राज्यों में श्रम कानूनों के तहत बाध्यताओं के गंभीर उल्लंघन की सीटू समेत दूसरे मज़दूर संगठनों ने निंदा की है।

सीटू द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि भाजपा नेतृत्व की गुजरात सरकार ने अगुआई करते हुए एकतरफा रूप से, बगैर फैक्टरी एक्ट के अनुसार वैध मुआवजे के दैनिक कामकाज का समय 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया। हरियाणा और मध्य प्रदेश की सरकारों ने भी इसी ओर कदम बढ़ाए।

इसके बाद पंजाब और राजस्थान में राज्य सरकारों की ओर से भी इसी तरह दैनिक कामकाज का समय 12 घंटे तक बढ़ाने की अधिसूचना जारी करने की सूचना मिली है, जो जाहिर है कि कॉर्पोरेट वर्ग के निर्देशों पर है तथा अब महाराष्ट्र व त्रिपुरा की सरकारें भी कथित तौर पर उसी दिशा में आगे बढ़ रही है।

इस दिशा में सबसे नए है उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के अधिक आक्रामक कदम, जो अपने कॉर्पोरेट आकाओं के हुक्म पर लगभग सभी श्रम कानूनों के दायरे से कॉर्पोरेट नियोक्ताओं को दायित्वों से मुक्त करने के लिए लाए गए है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 1000 दिन, यानी तीन साल के लिए फैक्ट्री अधिनियम, मध्य प्रदेश औद्योगिक संबंध अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, ठेका श्रम अधिनियम आदि जैसे विभिन्न श्रम कानूनों के तहत नियोक्ताओं को उनके मूल दायित्वों से मुक्त करने के लिए प्रशासनिक आदेश / अध्यादेश के जरिये परिवर्तन के निर्णय की घोषणा की है।

इसके चलते नियोक्ताओं को "अपनी सुविधानुसार" श्रमिकों को काम पर रखने या निकाल बाहर करने (लगाओ-भगाओ) के लिए सशक्त बनाया गया है; और उक्त अवधि के दौरान प्रतिष्ठानों में श्रम विभाग का हस्तक्षेप नहीं होगा। इतना ही नहीं, नियोक्ताओं को मध्य प्रदेश श्रम कल्याण बोर्ड को प्रति श्रमिक  80/- रुपये के भुगतान से भी छूट दी गई है।

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार ने 6 मई 2020 को आयोजित अपनी मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य के सभी प्रतिष्ठानों को तीन साल की अवधि के लिए सभी श्रम कानूनों से छूट देने का फैसला किया है, जिसे अध्यादेश के माध्यम से अधिसूचित किया जाएगा।

यह भी जानकारी है कि त्रिपुरा में भाजपा सरकार ने दैनिक कामकाज के समय को 12 घंटे तक बढ़ाने का प्रस्ताव किया है और साथ ही 300 कर्मचारियों को रोजगार देने वाले सभी प्रतिष्ठानों में नियोक्ताओं की सुविधा के अनुसार श्रमिकों को काम पर रखने और निकालने (लगाओ-भगाओ) की अनुमति दी है।

सीटू ऐसे बर्बर कदमों की जोरदार निंदा करती है, जो उन मेहनतकश अवाम पर, जो वास्तव में देश के लिए धन पैदा कर रहे हैं, और साथ ही साथ पूंजीपतियों और बड़े-व्यवसाय द्वारा क्रूर शोषण और लूट से पीड़ित हैं, गुलामी की स्थितियों को थोपने जा रही हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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