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‘प्राइवेटाइजेशन देश के ख़िलाफ़’ : बिजली व रेल के ‘निजीकरण’ के ख़िलाफ़ सीटू का कन्वेंशन

“हम आम जनता के बीच में जाकर उन्हें इससे होने वाले ख़तरे बताएंगे और अपने संघर्ष में साझेदार बनाएंगे।”
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मंगलवार, 18 जुलाई को देश की राजधानी दिल्ली में सीटू (सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन) ने बिजली और रेलवे के 'निजीकरण' के ख़िलाफ़ एक कन्वेंशन आयोजित किया। इस कन्वेंशन में देशभर के अलग-अलग राज्यों के सीटू नेता समेत बिजली व रेलवे से जुड़ी उनकी यूनियनों के लोग शामिल हुए। ये कन्वेंशन दिल्ली स्थित हरकिश्न सिंह सुरजीत भवन में आयोजित की गई। कन्वेंशन में जहां कर्मचारियों ने निजीकरण का विरोध किया, वहीं उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इसके ख़िलाफ़ संघर्ष में आम जनता को भी शामिल करना होगा। यूनियन नेताओं ने कहा कि बिजली और रेल का निजीकरण कर्मचारियों से अधिक आम जनता के ख़िलाफ़ है।

सीटू की राष्ट्रीय अध्यक्ष हेमलता ने कहा, "हम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भारतीय जनता पार्टी द्वारा किए जा रहे निजीकरण के ख़िलाफ़ एकजुट हुए हैं क्योंकि हम (सीटू) देश की कामकाजी जनता का प्रतिनिधत्व करते हैं। हम यहां आम जनता पर निजीकरण के पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा करने और इस बात को आम जनता तक ले जाने के लिए इकठ्ठा हुए हैं। इससे पहले भी हम अलग मंच से निजीकरण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे हैं।"

अपनी बात जारी रखते हुए हेमलता कहती हैं, "हमें आम जनता के बीच जाकर इस ख़तरे को समझाना होगा। अभी देश में सत्ताधारी दल और विपक्ष 2024 के चुनावों की तैयारी कर रहा है इसलिए हमें भी आज से ही तैयारी शुरू करनी होगा और आम जनता को बताना होगा कि बीजेपी की निजीकरण की नीति आम जनता और देश के लिए कितनी घातक है।"

सीटू के राष्ट्रीय सचिव सुदीप दत्ता ने कहा, "बिजली तीन स्तर पर काम करती है। पहला उत्पादन...दूसरा ट्रांसमिशन और तीसरा वितरण है। आज इन तीनों ही क्षेत्रों को निजी हाथों में दिया जा रहा है जो कि एक खतरनाक ट्रेंड है। 2003 से पहले यह बिजली विभाग एक था लेकिन 2003 में सरकार ने विधेयक लाकर हमें तोड़ा जबकि पूरी दुनिया में दस बड़ी बिजली कंपनी हैं वो सभी ये तीनों विभाग संयुक्त रूप से चला रही हैं।"

सुदीप दत्ता कहते हैं, "वर्तमान मोदी सरकार 2022 में बिजली संशोधन विधेयक लाई और वो इसके ज़रिए बिजली का निजीकरण करना चाहती थी लेकिन हमारे संघर्ष के कारण आज तक इसे लागू नहीं कर पाई है। हमारे इस संघर्ष में आम जनता का भारी समर्थन था।"

सुदीप ने सरकार की 'स्मार्ट मीटर' लगाने की योजना पर तंज़ कसते हुए कहा कि ये गरीब लोगों को बिजली से दूर करने की योजना है। उन्होंने दावा किया कि "इसके लागू होने के बाद पीक टाइम में एक्स्ट्रा पैसे लिए जाएंगे और दिन के समय में कुछ छूट मिलेगी। यानी आम आदमी दिन भर काम करके आए तो शाम को बिजली नहीं चलाए क्योंकि उस समय पीक टाइम रहेगा और बिल ज़्यादा आएगा।"

इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉयज फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के उपाध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा, "बिजली आज लाइफ लाइन बन चुकी है और इसे Mother of Industry कहते हैं क्योंकि बिजली के बिना आज जीवन की कल्पना संभव नहीं है। हरियाणा की सरकार 2016 में बिजली का निजीकरण करना चाहती थी। उस वक़्त हमें प्रशासन गिरफ्तार करने आई तो राज्य के किसान सामने आए और कहा पहले हमें गिरफ्तार करो। आम जनता में हमारा समर्थन देख कर सरकार ने अपने कदम वापस लिए। अभी फिर सरकार फायदे में चल रहे सब डिवीज़न को निजी हाथों को सौंपना चाहती है लेकिन हम इसे होने नहीं देंगे।"

सीटू नेता व राज्यसभा सांसद एलमराम करीम ने कहा, "बिजली संशोधन विधेयक-2022 लोकसभा से पास हो गया है। वहां वाम दलों को छोड़ किसी ने इसका विरोध नहीं किया। हो सकता है ये राज्यसभा में भी पास हो जाए क्योंकि उनके पास सदन में संख्या है। इसलिए हम आम जनता के बीच में जा रहे है और उन्हें इससे होने वाले ख़तरे बताएंगे और अपने संघर्ष में साझेदार बनाएंगे। संयुक्त किसान मोर्चा भी इस विधेयक के ख़िलाफ़ है।"

हेमलता ने कहा, "किसी भी सभ्य समाज में सार्वजनिक परिवहन सरकार की ज़िम्मेदारी है। हमारे देश में रेल आम जनता की सवारी है और दुनिया में सबसे बड़ी रेल लाइन हमारे पास है। सभी रेल में अभी 53% किराया हम देते हैं और 47% सरकार देती है। लेकिन अब प्राइवेट ट्रेन आ रही हैं जो पूरा पैसा आम लोगों से वसूल रही है। ये सरकार लगातार रेल में निजीकरण को बढ़ा रही है। बड़ी संख्या में आउटसोर्स और ठेकाकर्मी काम करते हैं। इससे रेलवे की सुरक्षा में भारी गिरावट आ रही और हादसे हो रहे हैं। हाल ही में हुआ बालासोर का रेल हादसा संस्थागत विफलता है लेकिन सरकार अपनी विफलता छुपाने के लिए कर्मचारियों को प्रताड़ित करती है।"

आगे उन्होंने कहा, "दुनिया में कई देशों ने अपनी रेल को निजी हाथों में दिया लेकिन उनके अनुभव अच्छे नहीं है। ब्रिटेन की सरकार ने पहले तो रेल निजी हाथों में सौंपी लेकिन स्थिति बिगड़ती देख जनता के दबाव में उन्हें वापस अपने हाथों में लिया। हमारी सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। वर्तमान में गांधी नगर और हबीबगंज रेलवे स्टेशन को निजी हाथों में सौंप दिया गया है। इसके आस-पास की ज़मीने भी पूंजीपतियों को दे दी जाती हैं जिसपर वो अपने होटल से लेकर अस्पताल तक बनाकर आम जनता से पैसा वसूलते हैं। इसके अलावा तेजस और भारत गौरव जैसी निजी ट्रेन भी सरकार चला रही है जिसमें आम जनता का सफर कर पाना असंभव है।"

हेमलता ने कहा, "रेल का निजीकरण देश के ख़िलाफ़ है क्योंकि सरकार देश के कमज़ोर तबकों को मिलने वाली छूट ख़त्म कर रही है। इससे सिर्फ किराया ही नहीं बल्कि अन्य वस्तुएं भी महंगी होंगी।"

ऑल इंडिया लोको पायलट एसोसिएशन के अध्यक्ष केसी जेम्स ने कहा, "रेलवे में कई विभागों में महत्वपूर्ण पोस्ट खाली पड़ी हैं जिसकी वजह से कर्मचारियों पर काम का भारी दबाब है। देश में ट्रेन की रफ्तार और उसपर भार बढ़ा है लेकिन उसकी सुरक्षा का दायरा घटा है जिस वजह से कई हादसे हो रहे हैं। इसलिए ज़रूरी है कि सुरक्षा तकनीक बढ़े, इससे रफ्तार अपने आप बढ़ेगी। बिना सुरक्षा के रफ्तार बढ़ाना आम जनता की सुरक्षा के ख़िलाफ़ है।"

सीटू के महासचिव तपन सेन ने कहा, "इस कन्वेंशन में हम विशेष रूप से दो सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं - बिजली और रेलवे के निजीकरण के ख़िलाफ़ आम जनता को एकजुट कर आंदोलन करने की रणनीति के लिए जुटे हैं।"

तपन कहते हैं, "सरकार इन सेवाओं पर निजी कॉरपोरेट को एकाधिकार की सुविधा प्रदान कर रही है और कॉरपोरेट मुनाफे को सुनिश्चित करने के लिए नीतियां बना रही है। आम जनता को जीवन की इन मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित किया जा रहा है। बिजली उपभोक्ताओं के रूप में मज़दूर और भारतीय रेलवे के यात्री भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। बिजली और रेलवे के निजीकरण को इसी पृष्ठभूमि में देखना होगा। इस कन्वेंशन का मानना है कि निजीकरण को रोकने के लिए अकेले कर्मचारियों का संघर्ष पर्याप्त नहीं है।"

अपनी बात जारी रखते हुए तपन कहते हैं, "हम बिजली और रेलवे के निजीकरण के ख़िलाफ़ एक मजबूत देशव्यापी आंदोलन विकसित करने और इन विनाशकारी नीतियों से लड़ने के लिए मज़दूरों और आम जनता को एकजुट करने के लिए तैयार हैं। हमने सभी तबकों के लोगों और उनके संगठनों से इस अभियान और संघर्ष में शामिल होने की अपील की है।

कन्वेंशन की प्रमुख मांगें:

* सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण रोका जाए।

* राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) को समाप्त किया जाए और सभी को अधिकार के रूप में सस्ती बिजली सुनिश्चित की जाए।

* बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को वापस लिया जाए और 'स्मार्ट मीटर' योजनाओं समेत बिजली वितरण क्षेत्र में बाज़ार आधारित सुधारों के सभी कदमों को रद्द किया जाए।

* भारतीय रेलवे और बिजली विभाग में सभी रिक्त पदों पर भर्ती की जाए।

* रेलवे में सुरक्षा और रख-रखाव पर पर्याप्त व्यय के माध्यम से यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

* टिकटिंग और रख-रखाव सेवाओं समेत महत्वपूर्ण रेलवे परिचालन के निजीकरण/आउटसोर्सिंग/ठेकेदारी आदि को खत्म किया जाए।

* सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सार्वजनिक सेवाओं को मजबूत करने के संसाधन जुटाने के लिए अत्यधिक अमीरों पर टैक्स लागाया जाए - कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाया जाए और संपत्ति टैक्स लागू किया जाए।

तपन सेन ने कहा कि "हम आने वाले समय में अन्य जन संगठनों के साथ मिलकर ज़िला और ब्लॉक स्तर पर कार्यक्रम करेंगे जिसमें आम जनता को निजीकरण के नुकसान समझाएंगे और उन्हें एकजुट करेंगे। 3 नवंबर को बड़े पैमाने पर देशभर में बिजली और रेलवे के कर्मचारी ज़िला स्तर पर विरोध प्रदर्शन करेंगे। इसके अलावा रेलवे निजीकरण के ख़िलाफ़ रेलवे स्टेशनो के सामने भी प्रदर्शन किया जाएगा।"

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