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पंजाब: शहीद करतार सिंह सराभा के गांव में किसान महापंचायत आयोजित

सूबे के विभिन्न हिस्सों से आए हज़ारों किसानों ने इसमें शिरकत की। बड़ी तादाद में युवा, महिलाएं और बुज़ुर्ग महापंचायत में शामिल हुए।
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सराभा गांव में किसानों की महापंचायत: फोटो साभार -सोशल मीडिया

पंजाब के किसानों ने दिल्ली घेरने की तैयारियां तेज कर दी हैं। इसी के तहत शहीद करतार सिंह सराभा के पुश्तैनी गांव सराभा में विशाल किसान महापंचायत का आयोजन किया गया। इसकी अगुवाई संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और भारतीय किसान यूनियन (एकता-सिद्धपुर) ने की। सूबे के विभिन्न हिस्सों से आए हजारों किसानों ने इसमें शिरकत की। बड़ी तादाद में युवा, महिलाएं और बुजुर्ग महापंचायत में शामिल हुए।

पहले तमाम लोगों ने शहीद करतार सिंह सराभा की जन्मस्थली पर माथा टेका। शहीद करतार सिंह सराभा और किसान आंदोलन के दरमियान जान गंवाने वाले किसानों को श्रद्धांजलि दी। एक स्वर में 'शहीद सराभा अमर रहें' के नारे लगाए गए। इसके बाद रैली शुरू हुई। पंजाब के वरिष्ठ किसान नेताओं ने रैली को संबोधित किया। किसान नेताओं ने कहा कि "ऐसी 20 महापंचायतें आने वाले दिनों में की जाएंगी। केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर दोबारा आंदोलन शुरू किया जाएगा। इस बार लाखों किसान आंदोलन में हिस्सा लेंगे। पूरी तैयारी कर ली गई है।"

वरिष्ठ किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल कहते हैं, "सराभा की महापंचायत को केंद्र और राज्य सरकार अपने लिए चुनौती समझे। भारत सरकार डब्ल्यूटीओ के दबाव में है। फसलों पर आयात शुल्क को कम और समाप्त कर विदेशी कृषि उत्पादनों को भारत में आयात करने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ कॉरपोरेट जगत को लाभ पहुंचा रही है। इसका सीधा मतलब है कि देश में कृषि वस्तुओं की कीमतों में भारी गिरावट आना। आर्थिक बदहाली के चलते खुदकुशी की राह अख्तियार करने को मजबूर किसानों की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ेंगी।"

सूबे के किसान नेता मंगतराम पासला कहते हैं, "भारत माला सड़क परियोजना के तहत किसानों की जमीनें जबरन कौड़ियों के भाव छीनकर कॉर्पोरेट घरानों को दी जा रही हैं, जबकि पंजाब में ऐसे किसी अन्य हाईवे की जरूरत ही नहीं है। बेशुमार किसानों ने मुआवजे का पैसा भी नहीं लिया है। बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार कदम-कदम पर किसानों को धोखा दे रही है। किसानों और मजदूरों के मसलों को पुरजोर उठाने वाले 'न्यूजक्लिक' सरीखे पोर्टलों की आवाज बंद करने की कवायद की जा रही है। हम आजाद मीडिया के साथ हैं।" किसान नेताओं ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की तीखी निंदा की।

वरिष्ठ किसान नेता मनवीर सिंह संधू कहते हैं कि, "आखिर सरकार हमारी मांगे क्यों नहीं मानती? स्वामीनाथन रिपोर्ट को फौरन लागू किया जाना चाहिए। कुदरती आफत से बर्बाद फसलों और गन्ना काश्तकारों को पूरा मुआवजा मिलना चाहिए। पूरे देश के किसानों की मांग है कि दिल्ली किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों के परिवार को आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी दी जाए। लखीमपुर खीरी में किसनों और पत्रकार की हत्या करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। 'न्यूजक्लिक' और बुद्धिजीवियों-पत्रकारों के खिलाफ दर्ज मुकदमों को वापस लिया जाए। सरकार अनसुनी कर रही है और इसीलिए किसान एक बार फिर दिल्ली कूच की तैयारी में हैं।"

विश्वविख्यात 'देशभगत यादगार हाल' के ट्रस्टी और संस्कृति कर्मी अमोलक सिंह कहते हैं, "किसानों का इस बार का दिल्ली मोर्चा तभी खत्म होगा; जब उनकी पूरी तरह से सुनवाई होगी। तमाम मांगे मनवाने के बाद ही किसान लौटेंगे। इस बार आश्वासन नहीं चलेगा। मोर्चे के लिए हर फ्रंट पर तैयारी की जा रही है। दिल्ली को घेरेंगे लेकिन यकीनन अहिंसक तरीके से। नागरिकों को आंदोलन से किसी किस्म की परेशानी नहीं आने दी जाएगी।" जानकारी के मुताबिक सूबे के तमाम गांवों और कस्बों में आंदोलन फिर से शुरू करने को लेकर पहुंच बनाई जा रही है।  

 उधर, मांगे न मानने पर भड़के किसानों ने किरती किसान यूनियन की अगुवाई में पटियाला में पातड़ां से खन्नगौरी रोड़ स्थित रोड प्लाजा पर धरना शुरू कर दिया है। किरती किसान यूनियन के प्रेस सचिव रमिंदर सिंह बताते हैं, "हमारी प्रमुख मांग है कि पातड़ां-खन्नगौरी रोड़ की जरूरी मरम्मत की जाए। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारी लापरवाह हैं। इसीलिए बार-बार किसानों को धरना-प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।"

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