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पंजाब: "क़रीब 3 फ़ीसदी आबादी नशे से ग्रसित है!’’

नशे को लेकर अक्सर सवालों के घेरे में रहने वाला पंजाब अब भी वेंटिलेटर पर है, कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि राज्य में लगातार नशीली पदार्थों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और इसकी रोकथाम के लिए सरकार कुछ बड़ा करती दिख नहीं रही हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : GETTY IMAGES

खुशियों में भीगी संस्कृति, रंगों में सराबोर लोगों के मिजाज़ और हरी-भरी फसलें पंजाब को भारत का बेहद खूबसूरत राज्य बनाती है। लेकिन एक दूसरा पहलू है नशा... जिससे यहां की सुंदरता फीकी पड़ने लगती है।

आरोप है कि इस खूबसूरती को ग्रहण लगाने के पीछे कुछ तथाकथित राजनेता, पुलिस और स्मगलर्स का गठजोड़ है, जिनके कारण इस प्रदेश का युवा वर्ग नशे में इस कदर फंसा हुआ है कि उसे निकालने का कोई उपाय दिखाई नहीं देता।

अलग-अलग अख़बारों और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2022 से अब तक नशे के कारण पंजाब में 272 लोगों की जान जा चुकी हैं, इनमें वो मौतें शामिल हैं जो अस्पतालों में हुई या फिर सार्वजनिक की गईं। इसके अलावा एनसीआरबी रिपोर्ट पर ग़ौर करेंगे तो साल 2017 से लेकर 2021 तक यानी चार साल में 272 मौतें नशे के कारण हुई हैं।

पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री डॉ बलबीर सिंह ने इसी साल 22 मार्च को विधानसभा में एक जवाब दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य में करीब 10 लाख लोग नशे के आदी है। जो राज्य की 3.17 करोड़ आबादी का 3 फीसदी है।

बलबीर सिंह ने बताया था कि “लगभग 2.62 लाख नशे में लिप्त लोग सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों में इलाज करा रहे हैं, जबकि निजी पुनर्वास केंद्र कम से कम 6.12 लाख नशा करने वालों का घर हैं। हालांकि, वास्तविक संख्या कहीं अधिक है। राज्य में 528 आउट पेशेंट ओपिओइड असिस्टेड ट्रीटमेंट यानी ओओएटी केंद्र, 36 सरकारी नशा मुक्ति केंद्र, 185 निजी, 19 सरकारी पुनर्वास और 74 निजी होने के बावजूद नशे की लत की संख्या में कमी नहीं आ रही है। बल्कि, नशे की लत की संख्या बढ़ रही है।’’

इन आंकड़ों में सबसे बड़ी समस्या ये है कि राज्य की 3 फीसदी आबादी इससे ग्रसित है और उसमें भी 30 साल से कम युवाओँ पर नशे का ज़्यादा असर है। इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्री ये भी कह देते हैं कि वास्तविक आंकड़े इससे कहीं ज़्यादा हो सकते हैं।

पंजाब में नशा खत्म क्यों नहीं होता और ये कहां से आता है, तो इसका जवाब बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में ड्रग मामलों के जानकार डॉ रंजीत सिंह घुम्मन देते हैं। रंजीत बताते हैं कि पंजाब में नशे का सबसे बड़ा सोर्स इंटरनेशन है। जिसे गोल्डन क्रेसेट कहा जाता है। इस गोल्डन क्रेसेट में सबसे बड़ी खेप हमारे पड़ोसी देशों जैसे ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आती है, और पूरे देश में ये पाकिस्तान के रास्ते ही सप्लाई किया जाता है। इसके अलावा कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां समुद्र के रास्ते नशा भेजा जाता है, जैसे गुजरात। तो यहां से भी पंजाब में खूब नशा आता है। फिर बचते हैं पंजाब की सीमा से लगे पड़ोसी राज्य, जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा और राजस्थान...। ये राज्य भी पंजाब में नशा भिजवाने में कसर नहीं छोड़ते। अब अगर ये राज्य नशा न भी भेजें तो पंजाब के अंदर ही गैर कानूनी ढंग से सिंथेटिक ड्रग प्रोड्यूस किया जाता है।

अब सवाल ये पैदा होता है कि इस नशा तस्करी को कम क्यों नहीं किया जा रहा है, तो इसका जवाब यही है कि पंजाब में इसकी डिमांड बहुत है और जो सप्लाई चेन है वो नहीं टूट पाती।

ऐसी कई रिपोर्ट सामने आईं हैं कि इस चेन में कुछ भ्रष्ट पुलिस कर्मी, राजनीतिक लोगों और स्मगलर्स की मौजूदगी है।

इसके बाद सवाल यहां ये भी उठता है कि जब नशा इतना ज़्यादा है तो सरकारें कुछ करती क्यों नहीं? तो इसका जवाब मोटे तौर पर ऐसे होगा कि पंजाब विधानसभा सत्र में स्वास्थ्य मंत्री बलवीर सिंह ने कहा था कि हम इसे रोकने के लिए 102 रुपये खर्च कर रहे हैं और नशा मुक्ति केंद्र की संख्या में भी इज़ाफा हो रहा है।

इसके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने नशे को रोकने के लिए एसटीएफ का गठन भी किया था, जिसके साथ वो अक्सर बैठकें करते रहते हैं। पंजाब सरकार की ओर से नशा रोकने को लेकर कहा गया है कि हर 10 किलोमीटर में एक नशा मुक्ति केंद्र स्थापित होगा। अभी फिलहाल राज्य में 208 नशा मुक्ति केंद्र हैं, जबकि 16 सेंटर जेलों में चल रहे हैं। बताया जा रहा है कि गृह विभाग ने स्वास्थ्य विभाग को नशा मुक्ति केंद्रों को बढ़ाने के लिए कहा है, जिससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि जल्द ही पंजाब में नशा तस्करों के खिलाफ पंजाब पुलिस बड़ा अभियान चला सकती है।

हालांकि ये सब सरकारी दावे हैं, और कागजों पर सजाए गए सरकारी शब्द हैं। लेकिन ज़मीनी हक़ीकत अब भी पुरानी ही है।

वैसे अक्सर ये देखा गया है कि पंजाब में नशा खत्म करने पर कायदे से काम करने के बजाय इस पर राजनीति की गई है, आप मौजूदा वक्त की सरकार आम आदमी पार्टी को ही देख सकते हैं, जहां 2022 में विधानसभा चुनाव हुए तब पार्टी ने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया और ये दावा किया कि नशे को खत्म कर देंगे, नशा बेचने वालों को जेल में डालेंगे, युवाओं को सश्क्त करेंगे। लेकिन आज हालात ये हैं कि नशा को लेकर जब उनसे सवाल किए जाते हैं तब चुप्पी साध लेते हैं।

आम आदमी पार्टी से पहले कांग्रेस का हाल भी यही रहा है, साल 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनावी सभाएं करते थे, तब किसानों को कर्ज से और युवाओं को नशे से मुक्त कराने की बात करते थे। लेकिन सरकार बन जाने के बाद वहां भी महज़ नशे पर राजनीति होती रही है।

हां ये ज़रूर कहा जा सकता है कि सरकारें टीम बनाती हैं और नशा करने वालों को जबरन नशा मुक्ति केंद्र पहुंचाया जाता है, लेकिन इन केंद्रों पर मौजूद डॉक्टरों का मानना है कि अगर नशा करने वालों को ज़बरदस्ती केंद्रों पर लाया जाएगा तो मामला सुधरने वाला नहीं है। नशा खत्म करने और छोड़ने के लिए इच्छा शक्ति होनी चाहिए। यानी डॉक्टरों की इस बात को मानें तो नेताओं को नशे की इस बीमारी का राजनीतिकरण करने की बजाय बहुत रणनीतियों के साथ मैदान में उतरना होगा।

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