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आंदोलन कर रहे पंजाब के किसानों की बड़ी जीत, 50 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी गन्ने की कीमत

पंजाब के मुख्यमंत्री ने 360 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीद की घोषणा कर दी है, जिसे किसान संगठनों ने भी स्वीकार कर लिया है। हालांकि किसान संगठनों की मांग 400 रूपए क्विंटल की थी। फिलहाल 50 रुपये की वृद्धि को ऐतिहासिक वृद्धि बतलाते हुए उन्होंने वापस दिल्ली मोर्चे पर लौटने की घोषणा कर दी है।
Punjab farmers
पंजाब सरकार ने मानी किसानों की मांग (फोटो- @capt_amarinder)

पंजाब किसान संगठन के नेताओं और पंजाब सरकार के बीच तीसरे राउंड की बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री ने 360 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीद की घोषणा की, जिसे किसान संगठनों ने स्वीकार किया। हालाँकि किसान संगठनों की मांग 400 रूपए क्विंटल की थी। 50 रुपये की वृद्धि को ऐतिहासिक वृद्धि बतलाते हुए वापस दिल्ली मोर्चों पर लौटने की घोषणा की। किसान संगठनों के संयुक्त मंच संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) जिसके नेतृत्व देशभर का किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहा है। उसने किसानों को बढ़-चढ़ कर आंदोलन में भागीदारी करने के लिए बधाई दी है। 50 रुपये प्रति क्विंटल किसानों के सामूहिक संघर्ष की ऐतिहासिक उपलब्धि बताया।

इसके साथ किसान नेताओं ने लंगर चलाने वालों सहित सभी प्रदर्शनकारियों और उनके समर्थकों का धन्यवाद किया। उन्होंने जनता को भी धन्यवाद दिया जिन्होंने प्रदर्शनकारियों को कुछ असुविधा के बावजूद सहयोग दिया। उन्होंने घोषणा की कि जालंधर में अब विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया जाएगा और सभी प्रदर्शनकारी किसानों से दिल्ली मोर्चा में वापस आने और इसे मजबूत करने का आग्रह किया है।

इससे पहले जालंधर जिलाधिकारी कार्यालय में सोमवार को पंजाब किसान संगठन के नेताओं और पंजाब सरकार के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में यह स्पष्ट हो गया था कि किसानों के लिए गन्ने के उत्पादन की सही लागत घोषित एफआरपी और एसएपी में परिलक्षित नहीं हो रही है। यह सभी फसलों के किसानों की एक ही कष्टप्रद कहानी है। जबकि उत्पादन की लागत लगभग ₹ 470/प्रति क्विंटल अनुमानित है, तो पंजाब में गन्ना किसानों को दिया जाने वाला उच्चतम एसएपी ₹310/क्विंटल सरासर अन्याय है।

आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने कहा पंजाब के गन्ना किसानों ने जालंधर में पिछले पांच दिनों में न्याय के लिए सामूहिक लड़ाई लड़ी और कीमत को कम से कम 360 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ाने में सफल रहे।

गन्ने के दाम बढ़ाने की मांग को लेकर किसानों का आंदोलन मंगलवार को पांचवें दिन में प्रवेश कर गया था। प्रदर्शनकारियों ने जालंधर में एक राष्ट्रीय राजमार्ग और लुधियाना-अमृतसर और लुधियाना-जम्मू रेल पटरियों को जाम कर दिया था।

जिसके बाद मंगलवार को पंजाब के मुख्यमंत्री ने किसानों से मुलाक़ात की और उसके बाद इस बढ़ोतरी का एलान किया। मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘यह बताते हुए खुशी हो रही है कि किसानों के साथ परामर्श के बाद, गन्ने के लिए 360 रुपये प्रति क्विंटल के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) को मंजूरी दी है। मेरी सरकार हमारे किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। जय किसान, जय जवान!’’

मुख्यमंत्री के साथ बैठक के बाद किसान नेता मंजीत सिंह राय ने संवाददाताओं से कहा कि उनकी लंबित बकाया राशि का भुगतान 15 दिन में कर दिया जाएगा।

किसानो की मांग को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का भी समर्थन मिला, जिन्होंने पंजाब के किसानों के लिए बेहतर कीमत की वकालत की थी ।  

किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने राज्य सरकार द्वारा गन्ने की कीमत में बढ़ोतरी को किसानों की बड़ी जीत बताया। कांग्रेस के सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने राज्य की अमरिन्दर सिंह सरकार का किसानों की मांगों को मानने के लिये धन्यवाद करते हुये कहा कि पंजाब के किसानों को अब पूरे देश में सबसे ऊंचा एसएपी मिलेगा। राज्य के गन्ना उत्पादक किसानों को बढ़े दाम के रूप में अतिरिक्त 300 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे।

दूसरी तरफ देश का किसान मोदी सरकार द्वारा लाए गए विवादित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लभगभ नौ महीने से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वो भी केंद्र सरकार अपनी मांगे मनवाने का दबाब बना रहे परन्तु अभी तक सरकार के रवैये को देखकर लगता है वो अपनी हठधर्मिता पर कायम है और मांगे माननी तो दूर किसानों से बात भी करने को तैयार नहीं है।  

इस बीच सोमवार को एक जनहित याचिका पर 2 जजों की बेंच की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का संयुक्त किसान मोर्चा ने संज्ञान लिया, जिसमें न्यायालय ने एक बार फिर किसानों के शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार को माना है। 

एसकेएम ने बताया कि नाकाबंदी किसानों द्वारा नहीं, बल्कि भारत सरकार के नियंत्रण में कई राज्य सरकारों और दिल्ली की पुलिस और प्रशासन द्वारा की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की पिछली सुनवाई में भी यह बात सामने आई थी। किसान अपनी इच्छा से नौ महीनों से सड़कों पर नहीं बैठे हैं, बल्कि इसलिए कि जब किसान अपनी शिकायत रखने के लिए दिल्ली जाना चाहते थे तब सरकार ने नाकाबंदी कर दी। यह सरकार ही है जो समस्या को हल करने को तैयार नहीं है और यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि किसानों के विरोध करने का अधिकार को भी न दिया जाये।

एसकेएम ने सुप्रीम कोर्ट से सहमति जताते हुए कहा कि केंद्र सरकार को मामले को सुलझाने के लिए जल्द कदम उठाने चाहिए। यह समाधान किसान संगठनों के साथ बातचीत फिर से शुरू करने और किसानों की जायज़ मांगों को पूरा करने से आएगा। इस आंदोलन में अब तक लगभग 600 किसान शहीद हो चुके हैं और सरकार प्रदर्शनकारियों की कठिनाइयों से अप्रभावित है, और अब तक हुईं मौतों को भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है।

एसकेएम ने दोहराया कि किसान अपनी मांगों के सही समाधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं, और सरकार को उन मांगों को मानना चाहिये।

आंदोलन के नौ महीने पर राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारी कर रहा एसकेएम

भारत के विभिन्न राज्यों के हजारों किसान अन्य किसानों के साथ एसकेएम के दो महत्वपूर्ण आयोजनों में जुड़ने की तैयारी कर रहे हैं। मोर्चे ने जानकारी देते हुए बताया कि  26 व 27 अगस्त को सिंघू बार्डर पर एसकेएम के राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए प्रतिनिधिमंडलों का पंजीकरण हो रहा है। एसकेएम सम्मेलन की आयोजन समिति ने 26 और 27 अगस्त की योजनाओं के बारे में अधिक जानकारी साझा करने के लिए आज एक प्रेस कान्फ्रेंस आयोजित की।

सम्मेलन पूरे देश में आंदोलन का विस्तार करने के साथ-साथ आंदोलन को तेज करने के लिए है। सम्मेलन में 5 सत्र होंगे। 26 अगस्त को 3 सत्र होंगे सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक, दोपहर 2 बजे से 3.30 बजे तक और दोपहर 3.45 से शाम 6 बजे तक यानी उद्घाटन सत्र, औद्योगिक श्रमिकों पर सत्र और कृषि श्रम, ग्रामीण गरीब और आदिवासी लोगों पर सत्र होगा। 27 अगस्त को 2 सत्र होंगे, पहला सुबह 9.30 से दोपहर 12 बजे तक महिलाओं, छात्रों, युवाओं और अन्य श्रमजीवी वर्गों से संबंधित, और अंतिम समापन सत्र दोपहर 12 बजे से दोपहर 1 बजे तक होगा। उम्मीद है कि भारत के 20 राज्यों के लगभग 1500 प्रतिनिधि सम्मेलन में भाग लेंगे। सम्मेलन का उद्घाटन श्री बलबीर सिंह राजेवाल करेंगे। यह पूरे भारत में आंदोलन की तीव्रता और विस्तार के लिए प्रतिभागियों से प्राप्त सुझावों के अनुसार कार्य योजना को मंजूरी देगा। इसकी घोषणा समापन के दिन की जाएगी।

किसानों के लगातार शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के 9 महीने पूरे होने के उपलक्ष्य में और किसान आंदोलन के प्रति अपना समर्थन और एकजुटता दिखाने के लिए, वकीलों द्वारा 26 अगस्त को हरियाणा के रेवाड़ी में काले झंडे के साथ एक विशाल किसान मार्च का आयोजन किया जा रहा है

इस बीच, मिशन उत्तर प्रदेश के तहत 5 सितंबर को होने वाली किसान सभा के लिए विभिन्न राज्यों और जिलों से मुजफ्फरनगर तक बड़े पैमाने पर लामबंदी हो रही है। मुजफ्फरनगर रैली में न केवल उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से बल्कि अन्य राज्यों से प्रतिनिधिमंडल के रूप में किसानों के दलों के शामिल होने की योजना है। मुजफ्फरनगर की रैली में न केवल उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से बल्कि अन्य राज्यों के प्रतिनिधियों के रूप में भी बड़ी संख्या में किसानों के शामिल होने की योजना है, जिसमें हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में किसान शामिल होंगे।

उल्लेखनीय है कि धनोवली, जालंधर में वर्तमान विरोध को हरियाणा और उत्तराखंड के किसानों का समर्थन मिल रहा है, जो क्षेत्र के किसानों के बीच एकजुट संघर्ष करने में एक नए लोकाचार को दर्शाता है।

बीजेपी नेताओ का विरोध जारी

हरियाणा के कुरूक्षेत्र में, जजपा की एक बैठक का कल काले झंडे से जोरदार विरोध किया गया, जो दो घंटे से अधिक समय तक चला। बैठक के बाद भी जजपा नेता किसानों के गुस्से का सामना करने के डर से सर्किट हाउस की इमारत के अंदर ही बैठे रहे। विरोध कर रहे किसानों ने नेताओं को दस मिनट का समय दिया कि वे इमारत खाली कर दें और कार्यक्रम स्थल से बाहर निकल जाएं, या किसान अंदर मार्च करेंगे। तभी जजपा नेता जल्दी से वहां से निकल गए। किसानों का संदेश जोरदार और स्पष्ट था, और किसान विरोधी जजपा नेताओं को इस बात का अंदाजा लग गया था।

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