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साइगॉन की यादों से वाबस्ता क्वाड

किसी महाशक्ति की विश्वसनीयता अपने सहयोगियों के छोड़ देने से घट जाती है, शायद यही वजह है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर चीन के ख़िलाफ़ कमला हैरिस की टिप्पणी में सख़्त आक्रामकता नहीं थी।
साइगॉन की यादों से वाबस्ता क्वाड
सिंगापुर में 23 अगस्त, 2021 को अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस (बायें) को उनके ही नाम पर बने ऑर्किड का एक स्प्रे भेंट करते हुए सिंगापुर के प्रधान मंत्री ली सीन लूंग (दायें)। 

इस महीने के आख़िर तक काबुल हवाई अड्डे से निकासी को पूरा करने के सिलसिले में संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से दिखायी जा रही जल्दबाज़ी को लेकर अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का दक्षिण पूर्व एशिया का क्षेत्रीय दौरा ज़बरदस्त आलोचनाओं के बीच हो रहा है। एक बार फिर अमेरिकी घटनाक्रमों की ख़बरों में इज़रायल एक बेहद आकर्षक विषय बन गया है, बुधवार को वाशिंगटन में नये इज़रायली प्रधान मंत्री नफ़्ताली बेनेट के आगमन के साथ ही हैरिस के सिंगापुर और वियतनाम के दौरे की ख़बर हाशिए पर चली गयी है।

हालांकि, हैरिस का दौरा कहीं ज़्यादा अहम इसलिए है क्योंकि अमेरिका के लिए यहां सबसे बड़ी समस्या चीन है। चीन पर हैरिस की प्रतिक्रिया, इस प्रतिक्रिया में कही गयी बातें और इन बातों को किस तरह से रखा जाता है, ये तमाम बातें इस क्षेत्र के लिए मायने रखती हैं। अमेरिका-चीन के बीच के ज़बरदस्त तनावपूर्ण प्रतिस्पर्धा को लेकर जो धारणायें है, वह भी इसलिए अहम हैं क्योंकि यह क्षेत्र "स्विंग स्टेट्स" वाला क्षेत्र भी है। ग़ौरतलब है कि स्विंग स्टेट्स उन अमेरिकी राज्यों को कहा जाता है, जहां दो प्रमुख राजनीतिक दलों के पास मतदाताओं के बीच समान स्तर का समर्थन होता है और इसे राष्ट्रपति चुनाव के पूरे नतीजे को निर्धारित करने में अहम माना जाता है।

अगर अफ़ग़ानिस्तान को लेकर मंगलवार को G7 के नेताओं की बैठक को भी इसमें शामिल कर लिया जाये, तो अमेरिका के वैश्विक नेता के तौर पर खड़े होने की यह पहली नहीं, बल्कि दूसरी बानगी है । काबुल हवाई अड्डे पर निकासी के सिलसिले में समय सीमा को 31 अगस्त से आगे बढ़ाये जाने की यूरोपीय सहयोगियों की मांग के साथ-साथ वाशिंगटन के साथ हुई G7 की यह बैठक बहुत अच्छी नहीं रही। इस बैठक ने दोनों के मुंह का ज़ायक़ा बिगाड़ दिया है।

G7 की हुई इस बैठक के बाद अफ़ग़ानिस्तान से जुड़े घटनाक्रमों से लिए जाने वाले सबक पर तीखी टिप्पणी करते हुए यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने कहा कि "इन घटनाओं से पता चलता है कि यूरोप के भविष्य के लिए अपने गठबंधनों को हमेशा की तरह मज़बूत रखते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का विकास करना बेहद अहम है। मैं यूरोपीय परिषद के अपने साथी नेताओं को इस प्रश्न पर सही समय पर इस पर चर्चा का प्रस्ताव दूंगा।”

G7 बैठक के एक दिन बाद जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने बर्लिन में कहा कि जर्मनी तालिबान के साथ बातचीत के पक्ष में इसलिए है, क्योंकि तालिबान "इस समय अफ़ग़ानिस्तान की एक हक़ीक़त है… पिछले दिनों जो कुछ भी घटनाक्रम सामने आये हैं,वे भयानक हैं, बेहद कड़वे हैं।” इसके बाद से जर्मनी ने 31 अगस्त के बाद लोगों को निकालने के सिलसिले में काबुल स्थित तालिबान अधिकारियों के साथ सीधे तौर पर एक नयी कार्य-योजना पर चर्चा शुरू कर दी है।

दक्षिण पूर्व एशिया में आख़िर यह मनोदशा इससे कैसे अलग हो सकती है? अमेरिका की चीन विरोधी लामबंदी को लेकर क्षेत्र में बेहद सतर्कता बरते जाने की बात कही जा रही है। "साइगॉन की यादें "अभी बनी हुई हैं। 47 साल पहले साइगॉन से अमेरिका के जाने की यादें इस क्षेत्र की सामूहिक चेतना की अटारी से रेंग रही हैं। सहयोगियों का परित्याग किसी महाशक्ति की विश्वसनीयता को घटा देता है।

यह क्षेत्र हमेशा स्पष्टवादिता का सहारा नहीं ले सकता। यही वजह है कि मंगलवार को हनोई में हैरिस के आगमन से ठीक पहले वियतनामी प्रधानमंत्री फ़ाम मिन्ह चिन्ह ने वियतनाम में चीनी राजदूत जिओंग बो की अगवानी की।

हनोई में चीनी दूतावास के मुताबिक़, चिन्ह ने उस बैठक के दौरान हनोई और बीजिंग के बीच रणनीतिक संचार और एक दूसरे के रिश्ते, विदेशी मामलों, राष्ट्रीय रक्षा में सहयोग की अहमियत को रेखांकित किया और सार्वजनिक सुरक्षा, और शत्रुतापूर्ण ताक़तों के "शांतिपूर्ण विकास" और वियतनाम और चीन के बीच कलह पैदा करने की कोशिशों के ख़िलाफ़ सुरक्षा की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

यह संकेत बहुत गहरा है। रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन की जुलाई यात्रा के बाद दो महीने में हनोई का दौरा करने वाले हैरिस दूसरे उच्च स्तरीय अमेरिकी उच्चपदस्थ व्यक्ति हैं। हनोई ने बीजिंग को संकेत दिया है कि जहां एक ओर अमेरिका को अपने पक्ष में रखना वियतनाम के हित में है, वहीं वियतनाम-चीन सम्बन्ध भी स्थिर हैं और समाजवादी और पड़ोसी देश होने के नाते बीजिंग के साथ हनोई का विशेष सम्बन्ध है और दोनों देशों के बीच फलते-फूलते द्विपक्षीय आर्थिक और व्यापारिक सम्बन्ध सही मायने में अपने आप में एक इन दोनों देशों को एक ख़ास श्रेणी में ले आते हैं।  

सिंगापुर में एक सार्वजनिक मंच से हैरिस की हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर की गयी टिप्पणी ने अमेरिका की वैश्विक प्राथमिकताओं और रणनीतिक इरादों के व्यापक क्षेत्र की धारणाओं के साथ-साथ अमेरिका को एशिया प्रशांत में खुद को पुनर्स्थापित करने के लिहाज़ से अफ़ग़ानिस्तान के बाद की ज़रूरत का संकेत दे दिया है। ग़ौरतलब है कि सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने भी हैरिस को खुले तौर पर यही सलाह दी थी।

ली ने हैरिस के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, "अफ़ग़ानिस्तान में इस समय जो कुछ हो रहा है, उसे हम टीवी स्क्रीन पर देख रहे हैं। लेकिन, अमेरिका इस क्षेत्र में जो कुछ करेगा,उन्हीं  से अमेरिका के संकल्प और इस क्षेत्र के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को लेकर बनने वाली धारणायें प्रभावि होंगी, अमेरिका के इन कार्यों में जो बातें शामिल हैं, उनमें हैं-अमेरिका इस क्षेत्र में ख़ुद को किस तरह पुनर्स्थापित करता है; इस क्षेत्र में अपने व्यापक दोस्तों और भागीदारों और सहयोगियों को कैसे वह जोड़ पाता है और अमेरिका आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई को किस तरह जारी रख पाता है।

"हर देश अपना-अपना हिसाब-किताब लगाता है और इसके बाद अपना रुख़ अख़्तियार करता है और समय-समय पर इस हिसाब-किताब का फिर से मूल्यांकन करना होता है और उसके ही मुताबिक़ ख़ुद का तालमेल बिठाना होता है। कभी-कभी तो इसे आसानी से अंजाम दिया जा सकता है; कभी-कभी मुश्किलें पेश आती है और कभी-कभी तो चीज़ें इतनी बिगड़ जाती हैं कि उन्हें दुरुस्त होने में समय लग जाता है। लेकिन, कोई भी देश दीर्घकालिक हितों को लेकर दीर्घकालिक भागीदारों के साथ रहते हैं और यह एक ऐसे देश की निशानी होती है, जिसके कामयाब होने की संभावना इस बात से तय होती है कि वह इन हितों और भागीदारों को गंभीरता से और निष्पक्ष तरीक़े से लेता हो और उन्हें लंबे समय तक बनाये रखता हो। और अमेरिका तो इस क्षेत्र में उस युद्ध के बाद से ही बना हुआ है, जिसे हुए 70 साल से भी ज़्यादा बीत चुके हैं।

“उतार-चढ़ाव आये हैं; मुश्किल पल रहे हैं; सुरक्षा और समृद्धि के समर्थन के क्षेत्रीय गारंटर के तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका के सौम्य और रचनात्मक प्रभाव से दशकों से एशिया में नाटकीय बदलाव होते रहे हैं। सिंगापुर उम्मीद करता है और इस आधार पर काम करता है कि अमेरिका उस भूमिका को निभाना जारी रखेग और आने वाले कई और सालों तक अमेरिका इस क्षेत्र से जुड़ा रहेगा।”

मंगलवार को हिंद-प्रशांत पर की गयी हैरिस की उस टिप्पणी में चीन के ख़िलाफ़ किसी भी लिहाज़ से वह आक्रामक बयानबाज़ी नहीं थी,जो अमूमन अमेरिकी अधिकारियों की विशेषता रही है। हैरिस चीन पर एक ही सांस में टिप्पणी करते हुए कह गयीं, "हम जानते हैं कि बीजिंग (दक्षिण चीन सागर में) ज़ोर-ज़बरदस्ती, डराने-धमकाने और दावेदारी करना जारी रखे हुए है...और बीजिंग की कार्रवाई नियम-आधारित व्यवस्था को कमज़ोर करती है और राष्ट्रों की संप्रभुता को ख़तरे में डालती है।"

लेकिन, उनके संकेत का स्वर यही था कि दक्षिण पूर्व एशिया और हिंद-प्रशांत में अमेरिकी संलग्नता "किसी देश के ख़िलाफ़ नहीं है, और न ही इस संगल्नता का ढांचा यह इन देशों के बीच किसी एक देश को चुने जाने को लेकर बनाया गया है।  इसके बजाय, हमारी भागीदारी एक आशावादी दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने को लेकर है। हमारा आर्थिक नज़रिया उसी का एक अहम हिस्सा है।"

उनकी टिप्पणियों को उस सुलह-सलाह वाली भावनाओं के साथ जोड़कर देखा गया, जिसमें एक "कहीं ज़्यादा आपसी और एक दूसरे पर निर्भर दुनिया" हो; "एक साथ मिलकर चुनौतियों का सामना करने और साथ-साथ अवसर पैदा करने" की ज़रूरत वाली दुनिया हो; एक ऐसी मान्यता वाली दुनिया हो कि "हमारे सामान्य हित का बहुत ज़्यादा मतलब हों"; और एक दूसरे से जुड़ी इस दुनिया में सामूहिक दृष्टि और सामूहिक कार्रवाई किस तरह से ज़रूरी है,ये तमाम बातें हों।

हैरिस ने बीजिंग पर न तो म्यांमार में "हिंसक दमन के अभियान" की अनदेखी करने का आरोप लगाया, और न ही उन्होंने हांगकांग, झिंजियांग, तिब्बत, आदि का उल्लेख किया। दिलचस्प बात यह है कि हैरिस ने क्वाड और यूएस-मेकांग भागीदारी को इसी संगठन में "नये नतीजा देने वाले समूह" के रूप में ख़ास तौर पर ज़िक़्र किया। 

जिस समय हैरिस इस क्षेत्र के दौरे पर हैं, उसी दरम्यान वाशिंगटन से यह ख़बर आती है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन के जलवायु दूत जॉन केरी अप्रैल के बाद दूसरी बार अगले महीने चीन के दौरे पर जा रहे हैं। और रिपोर्टें इस सिलसिले में भी सामने आयीं कि बाइडेन प्रशासन ने चीनी की अग्रणी प्रौद्योगिकी कंपनी हुआवे ई के लिए कुछ वाहन चिप्स की बिक्री को मंज़ूरी दे दी है, और इस तरह के और बिक्री लाइसेंस क़तार में हो सकते हैं।ग़ौरतलब है कि बाइडेन प्रशासन का यह क़दम इन वाहन चिप्स की बिक्री को रोके जाने के ट्रम्प प्रशासन के क़दमों को असरदार तरीक़े से पलट सकता है।

दक्षिण पूर्व एशियाई व्यापार समुदाय को वाशिंगटन की उन ख़बरों पर ध्यान देना चाहिए,जिसमें व्यापार को प्रोत्साहित करने (जो राजनीतिक तनाव के बावजूद साकारात्मक है) के साथ-साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने को लेकर चीन से आयात शुल्क को खत्म करने के लिहाज़ से बाइडेन प्रशासन पर दबाव बन रहा है। अमेरिका के 30 से ज़्यादा प्रमुख व्यापारिक संगठनों ने 5 अगस्त को एक स्वर में कहा कि हो सकता है कि चीन के साथ टैरिफ में कटौती पर एक समझौते पर पहले से ही काम चल रहा हो।

साभार: इंडियन पंचलाइन

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Quad Meets ‘Saigon Moment’

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