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ग़ैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वेक्षण की मंशा पर सवाल!

यूपी सरकार द्वारा सभी ज़िलाधिकारियों को "ग़ैर-मान्यता प्राप्त मदरसों" की पहचान करने के लिए सर्वेक्षण शुरू करने को लेकर दिए गए हालिया निर्देश ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। कई अल्पसंख्यक संगठनों ने इसे समुदाय को निशान बनाने का एक प्रयास बताया है।
Darul Uloom
Image credit: Edules

लखनऊ: देश के बड़े मदरसों में से एक मदरसा दारुल उलूम देवबंद ने उत्तर प्रदेश के 250 से अधिक प्रमुख मदरसों के प्रमुखों को 18 सितंबर को होने वाले 'इज्लास' (बैठक) में शामिल होने के लिए कहा है ताकि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार की मदरसों में शिक्षकों की संख्या, पाठ्यक्रम और वहां उपलब्ध बुनियादी सुविधाओं के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए "ग़ैर-मान्यता प्राप्त और निजी मदरसे" की योजना पर चर्चा की जा सके।

दारुल उलूम देवबंद के प्रमुख शिक्षक मुफ़्ती अबुल क़ासिम नोमानी ने न्यूज़़क्लिक को बताया, "इस सम्मेलन का उद्देश्य राज्य में मदरसों के सर्वेक्षण को लेकर सरकार के हालिया निर्देशों पर चर्चा और अध्ययन करना है।"

जब इस सम्मेलन के बारे में अधिक जानकारी देने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा, "हम 18 सितंबर को बुलाए गए सभी मदरसों से मशविरा करने के बाद जवाब देंगे।"

यूपी सरकार के सभी ज़िलाधिकारियों को "ग़ैर-मान्यता प्राप्त मदरसों" की पहचान करने के लिए सर्वेक्षण शुरू करने के निर्देश देने की बात ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है क्योंकि कई अल्पसंख्यक संगठनों ने इसे समुदाय को निशाना बनाने का प्रयास बताया है।

देवबंद के एक विद्वान मुस्लिम ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़़क्लिक को बताया कि, "इन मदरसों ने देश को आज़ादी दिलाने में मदद की और अब इन्हें संदेह की नज़र से देखा जा रहा है। यह निर्देश ऐसे समय में दिए गए है जब भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं। सरकार का एकमात्र मक़सद मुसलमानों और इस्लाम को परेशान करना और बदनाम करना है।" उन्होंने आगे कहा, मदरसों को अपना पाठ्यक्रम तय करने का अधिकार है।

योगी सरकार की मंशा पर संदेह जताते हुए उन्होंने आगे कहा, 'अगर सरकार की मंशा ग़ैर मान्यता प्राप्त मदरसों को वैध करने की है तो यह स्वागत योग्य फ़ैसला है। लेकिन यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि सर्वे करने वाले अधिकारी शिक्षकों और मदरसा प्रशासन को छोटी-छोटी चीजों के लिए परेशान करेंगे जैसे कि मदरसा का नक्शा कब पारित किया गया और संपत्ति का मालिक कौन है। ये सर्वेक्षण अगर सांप्रदायिक मानसिकता वाले अधिकारियों द्वारा की जाती है तो यह हमारे लिए एक यातना जैसी होगी।”

गाज़ीपुर ज़िले के एक मदरसे के शिक्षक मुस्लिम रज़ा खान ने न्यूज़़क्लिक को बताया, "अगर सरकार मदरसों पर डेटा इकट्ठा करना चाहती है तो किसी को समस्या क्यों होनी चाहिए? हालांकि, सरकार को पहले अपनी मंशा स्पष्ट करनी चाहिए। यह भी बताना चाहिए कि क्या मान्यता प्राप्त मदरसों के प्रति ज़िम्मेदारी का निर्वहन कर रही है या नहीं और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षक योग्य हैं कि नहीं और समय पर उन्हें वेतन मिल रहा है या नहीं।"

यूपी सरकार ने बुधवार को सहायता प्राप्त मदरसों के शिक्षण और ग़ैर-शिक्षण कर्मचारियों के स्थानांतरण की अनुमति देने वाला एक आदेश पारित किया। राज्य मदरसा बोर्ड की महिला स्टाफ सदस्यों को भी अब मैटरनिटी और चाइल्ड केयर लीव मिलेगी।

अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने कहा कि मदरसों में छात्रों को बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता का आकलन करने के लिए सरकार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की आवश्यकता के अनुसार सर्वेक्षण करेगी।

अंसारी ने कहा, इस सर्वेक्षण के दौरान मदरसे का नाम और इसे संचालित करने वाली संस्था का नाम चाहे वह निजी या किराए के भवन में चल रहा हो, वहां पढ़ने वाले छात्रों की संख्या और पेयजल, फर्नीचर, बिजली आपूर्ति और शौचालय जैसी सुविधाओं के बारे में जानकारी इकट्ठा की जाएगी।

उन्होंने कहा कि मदरसे में शिक्षकों की संख्या, उसके पाठ्यक्रम, आय के स्रोत और किसी ग़ैर-सरकारी संगठन से उसकी मान्यता के बारे में भी जानकारी इकट्ठा की जाएगी।

जमात-ए-उलमा-ए-हिंद ने सरकार की सर्वे की घोषणा के बाद एक ट्वीट में कहा, "मदरसों को सरकारी व्यवस्था का पालन न करने के रूप में बताना दुर्भावनापूर्ण है। उचित दृष्टिकोण के साथ जवाब देना आवश्यक है। मदरसा शिक्षा प्रणाली हमारी विरासत की संपत्ति है। इसे हर क़ीमत पर सुरक्षित रखा जाएगा। आगे की कार्रवाई के लिए एक संचालन समिति का गठन किया गया है। हम चीज़ों को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाना चाहते हैं।”

गोरखपुर के एक मदरसा शिक्षक शाह आलम ने कहा, “पिछले चार महीनों से अच्छी मेहनत करने के बावजूद हमें वेतन नहीं मिला है। ये फ़ैसला पूरी तरह से राजनीतिक है क्योंकि भाजपा सरकार की मंशा सही नहीं है। सर्वे के नाम पर समाज के चंदे से चलने वाले निजी मदरसों में दख़ल देने की कोशिश अनुचित है। उन्हें सरकारी और सरकारी सहायता-प्राप्त मदरसों की स्थिति में सुधार पर ध्यान देना चाहिए।”

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यूपी सरकार ने हाल के एक आदेश में कहा कि किसी भी नए मदरसे को सरकार से अनुदान नहीं मिलेगा। 17 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य सरकार ने नए मदरसों को अनुदान सूची से बाहर करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही योगी सरकार ने समाजवादी पार्टी (सपा) के नेतृत्व वाली पिछली सरकार द्वारा अपनाई गई मदरसों के आधुनिकीकरण की नीति में बदलाव किया है।

इस परिस्थिति में मदरसा के शिक्षकों ने न्यूज़़क्लिक से बात की और उन आधारों पर सवाल उठाया जिन पर "ग़ैर-मान्यता प्राप्त और निजी मदरसों का सर्वेक्षण" किया जा रहा है। एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़़क्लिक से कहा कि, "इस सर्वेक्षण के पीछे की मंशा संदिग्ध है और सरकार को इसे स्पष्ट करना चाहिए। यह मान लेना सही है कि यह मुसलमानों को परेशान करने और लोकसभा चुनाव से पहले बहुसंख्यक समुदाय को खुश करने के लिए किया जा रहा है।" उन्होंने कहा, सहायता प्राप्त मदरसों के शिक्षकों को समय पर वेतन देने और बुनियादी ढांचे को विकसित करने के बजाय सरकार वित्त पोषण और पाठ्यक्रम के स्रोत को लेकर अधिक चिंतित है। उन्होंने कहा, "इसके इरादे का अंदाज़ा लगाना आसान है।"

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Deoband: Darul Uloom to Hold Conference Following UP Govt's Order to Conduct Survey of ‘Unrecognised Madrasas’

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