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'भारत की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा 'रेलवे' आईसीयू में पड़ी है'

भारतीय रेलवे से सेवानिवृत्त हुए चीफ़ इंजीनियर आलोक कुमार वर्मा कहते हैं कि हादसों के  बाद जवाबदेही तय करना ज़रूरी है, क्योंकि भीषण त्रासदियों को भुलाया नहीं जा सकता।
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फ़ोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

भारतीय रेलवे के पूर्व चीफ इंजीनियर आलोक कुमार वर्मा ने 2 जून को ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनों के दुर्घटनाग्रस्त होने के बारे में स्वतंत्र पत्रकार रश्मि सहगल से बात की, जिसमें 280 से अधिक लोग मारे गए थे। वे भारतीय रेलवे के प्रदर्शन और सुरक्षा मानकों में गिरावट और दुर्घटनाओं के बाद जवाबदेही की कमी पर चर्चा कर रहे हैं। वर्मा राजनीतिक वर्ग की सनक का मुक़ाबाला न कर पाने के लिए रेलवे बोर्ड को जिम्मेदार ठहराते हैं, जिसने अपनी प्राथमिकताओं को दरकिनार कर दिया है- जिसके तहत लाखों लोगों की सेवा की उपेक्षा की जा रही है, जबकि विशेष ट्रेनें जो अमीर लोगों की सेवा करती हैं उन्हे बड़े पैमाने पर धन मुहैया कराती हैं- पेश हैं साक्षात्कार से संपादित अंश।

आरएस: एक वरिष्ठ इंजीनियर, एके महंत ने अपना असहमति नोट दिया है, जिसने पैनल के चार अन्य सदस्यों के स्टैंड को विवादित बना दिया है, एक पेनल जिसने ओडिशा में हाल ही में हुई ट्रेन दुर्घटना के कारणों की जांच की थी। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

एकेवी: कोई भी दुर्घटना होने के बाद, वरिष्ठ पर्यवेक्षकों के लिए साइट का निरीक्षण करना भारतीय रेलवे की एक मानक और अनिवार्य प्रक्रिया है। उन्हें दुर्घटना के संभावित कारणों पर एक संयुक्त नोट तैयार करना होता है। पटरियों, सिग्नलिंग और संचालन के पर्यवेक्षक, और स्टेशन मास्टर और लोकोमोटिव इंस्पेक्टर दुर्घटना के संभावित कारणों पर एक संयुक्त नोट तैयार करते हैं। यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है, और असहमति नोट देना भी आम बात है। डेटालॉगर रिपोर्ट के आधार पर, महंत का मानना था कि कोरोमंडल एक्सप्रेस का मेन लाइन पर जाने के लिए सिग्नल हरा था, न कि लूप लाइन का सिग्नल हरा था। असहमति नोट के बारे में कुछ भी असामान्य नहीं है।

आरएस: डेटालॉगर सिस्टम कैसे काम करता है?

एकेवी: यह एक हवाई जहाज में ब्लैक बॉक्स की तरह है। यह रेलवे सिग्नलिंग सिस्टम पर प्रकाश डालता है और हर घटना को रिकॉर्ड करता है, जैसे कि सिग्नल चालू हुए हैं या नहीं। यह स्वचालित रूप से सब कुछ रिकॉर्ड करता है और रिपोर्ट तैयार करने के लिए इस्तेमाल  किया जाता है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण यंत्र है।

आरएस: ऐसे सुझाव हैं कि सिग्नलिंग प्रक्रिया के साथ छेड़छाड़ की गई थी, जिससे ओडिशा दुर्घटना हुई।

एकेवी: दुर्घटना के कारण की रिपोर्ट तैयार करने के लिए पूरी जांच रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सीआरएस), वैधानिक प्राधिकरण पर छोड़ दी जानी चाहिए थी।

आरएएस: लेकिन रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सिग्नलिंग के साथ तोड़फोड़ की अफवाह फैलाई। 

एकेवी: यह इतना बड़ा हादसा था कि लोग घबरा गए और अपना आपा खो बैठे। मैं यह बात समझ नहीं पाया कि दुर्घटना की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को क्यों बुलाया गया क्योंकि, मैं स्पष्ट कर दूं, सीबीआई के पास इस तरह की जांच करने की कोई क्षमता नहीं है। लेकिन यह कुछ ऐसा है जो संबंधित मंत्री और सरकार चाहती है। उनकी [पूछताछ] को एक साइड एक्ट के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि सरकार ने यह खुलासा नहीं किया है कि उनका मानना है कि तोड़फोड़ क्यों हुई। सीआरएस को अपनी जांच रिपोर्ट पूरी करनी चाहिए, जिसे जनता और संसद के सामने रखा जाना चाहिए।

मैं आपको नवंबर 2016 में कानपुर के पास हुए हादसे का एक पुराना उदाहरण देता हूं, जिसमें 150 लोगों की मौत हुई थी। रेलवे बोर्ड और तत्कालीन मंत्री ने कहा था कि छेड़छाड़ के कारण दुर्घटना हुई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को जांच करने के लिए कहा गया था, और डेढ़ साल बाद, उसने उन सभी आरोपों को गलत पाया था। 

या अगस्त 2017 में मुजफ्फरनगर के पास खतौली में हुई दुर्घटना को लें, जिसमें 23 लोगों की मौत हो गई थी। ट्रैक इंस्पेक्टर को ट्रैक पर ट्रैफिक रोकने का समय नहीं मिल रहा था। उन्होंने रखरखाव का काम शुरू किया क्योंकि उनका मानना था कि पटरियां असुरक्षित होती जा रही थीं। उन्होंने लाल झंडे लगाए, लेकिन तेज गति से आ रही कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के चालक ने ट्रेन नहीं रोकी, जिसके परिणामस्वरूप यह पटरी से उतर गई।

आरएस: क्या इन दुर्घटनाओं के बाद भी भारतीय रेलवे ने कुछ नहीं सीखा?

एकेवी: सीआरएस दुर्घटना के तात्कालिक कारण को देखता है, लेकिन इसके पीछे प्रणालीगत कारण हैं जिन्हें तत्काल संबोधित करने की जरूरत है। हर दुर्घटना होने से बच जाती है या टक्करें होती-होती बच जाती हैं। अब समय आ गया है कि सीआरएस को इसके मूल कारणों की पड़ताल करनी चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है।

समस्या यह है कि हमारे देश में जवाबदेही का अभाव है और रेलवे भी इसका अपवाद नहीं है।  इन हादसों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया गया है? उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है?

आरएस: क्या ट्रेनों की गति दुर्घटनाओं का कारण बनती है?

एकेवी: हमारे पास तेज़ गति वाली ट्रेनें नहीं हैं। वास्तव में, हमारे पास दुनिया की सबसे धीमी ट्रेनें हैं, फिर भी विनाशकारी दुर्घटनाएँ होती हैं। मेंटेनेंस का काम प्रभावित हो रहा है। हमारे स्टेशन अधिकारी और अन्य कर्मचारी अतिरिक्त काम के बोझ तले दबे हुए हैं। हमारे सामान्य और स्लीपर डिब्बों में भीड़भाड़ एक और बड़ी समस्या है, और इससे मृत्यु दर में वृद्धि होती है। मुश्किल खड़ी होने पर जीवित बचे लोगों और मृतकों को निकालना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

बालासोर हादसे में बेंगलुरू-हावड़ा ट्रेन अपने निर्धारित समय से दो घंटे की देरी चल रही थी। यह उन अराजक स्थितियों को इंगित करता है जिनके तहत कर्मचारी काम कर रहे हैं। ट्रेनें लेट चल रही हैं यानी पूरी शेड्यूलिंग गड़बड़ा गई है। सभी को अतिरिक्त काम करना पड़ रहा  है। यह सिस्टम में बहुत अस्थिरता पैदा करता है।

आएएस: आपके अनुभव से ऐसी दुर्घटना के और क्या कारण हो सकते हैं?

एकेवी: रेलवे का इंटरलॉकिंग सिस्टम मजबूत है, लेकिन जैसा कि ज्वाइंट नोट में कहा गया है, सिग्नलिंग और इंटरलॉकिंग में दिक्कत होने की संभावना होती है। इंटरलॉकिंग से हमारा मतलब है कि सिग्नल तब तक हरा नहीं होगा जब तक पास (ट्रेन को आगे बढ़ने की अनुमति देने के लिए) उचित रूप से नहीं भेजा जाता है। कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन को गुजरना था, लेकिन लूप लाइन के लिए सिग्नल सेट कर दिया गया था। यह सिस्टम की विफलता को दर्शाता है। इंटरलॉकिंग सिस्टम में कुछ खराबी थी, और संभवत: इस पर उचित तरीके से ध्यान नहीं दिया गया था। यह खराब था। मरम्मत ठीक से नहीं की गई थी, और इसने काम नहीं किया। यह इंगित करता है कि रखरखाव के काम के दौरान कुछ गड़बड़ी हो सकती थी। सरकार दावा कर रही है कि यह खराबी बाहरी हस्तक्षेप के कारण हुई है। अहम सवाल यह है कि इंटरलॉकिंग काम क्यों नहीं कर रहा था।

आरएस: क्या कोरोमंडल एक्सप्रेस को इसकी सूचना दी जा सकती थी?

एकेवी: स्टेशन मास्टर के पास लोकोमोटिव चालकों की तरह वॉकी-टॉकी होते हैं। लाल झंडे फहराने चाहिए थे। जब सिग्नल काम नहीं कर रहा होता है तब लाल अपवर्तक रोशनी लगाना भी एक मानक प्रक्रिया है। लेकिन मेरा तर्क है कि यह रेलवे में एक प्रणालीगत विफलता का संकेत है, जो अपनी क्षमता से 125 प्रतिशत से 150 प्रतिशत पर काम कर रही है, जबकि एक मानक प्रक्रिया यह है कि एक प्रणाली के बेहतर प्रदर्शन के लिए, इसे 70 प्रतिशत से 90 प्रतिशत की क्षमता के बीच काम करना चाहिए, जैसा कि दुनिया भर में रेलवे के मामलों में  होता है।

नहीं तो शॉर्टकट अपनाए जाते हैं, जैसा कि 2017 में खतौली में हुआ था। ट्रैक इंजीनियर ट्रैक की मरम्मत करने में असमर्थ था। उसे ट्रैफिक ब्लॉक नहीं दिया जा रहा था, इसलिए उसने लाल झंडे [आने वाली ट्रेनों को चेतावनी देने के लिए] लगा दिए और अपना काम करने लगा। उसे मरम्मत करने के लिए सहमती नहीं देनी चाहिए थी। लेकिन बालासोर में, उन्होंने लाल बत्ती यानि रेफ्रेक्टर वाले सिग्नल लैंप भी नहीं लगाए थे, जो एक किलोमीटर दूर से ट्रेन चालकों को दिखाई देते हैं।

आरएस: बमुश्किल दो साल पहले की एक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट ने रेलवे में उस तरह की कई कमियों की ओर इशारा किया है, जिसका आपने उल्लेख किया है। ये रिपोर्ट कितनी गंभीर हैं?

एकेवी: सीएजी की रिपोर्ट में कई सीमाएं बताई गई हैं, लेकिन उनका प्राथमिक काम खातों की जांच करना है; वे तकनीकी [रेल] प्राधिकरण नहीं हैं। उनकी ऑडिट रिपोर्ट हमारे रेलवे ट्रैक पर भीड़भाड़ के बारे में नहीं बताती हैं। न ही वे रखरखाव में मौजूद कमी का उल्लेख करते हैं। पिछले 25 वर्षों के दौरान बड़ी संख्या में हुई दुर्घटनाओं पर, या जवाबदेही तय करने के प्रमुख मुद्दे पर उन्होंने या किसी अन्य निकाय ने क्या कार्रवाई की है? लोगों को आपराधिक लापरवाही के लिए जेल भेजा जाना चाहिए। खतौली और कानपुर में 2016 और 2017 के हादसे हाल के हादसे हैं। लोगों को उन्हें भूलने नहीं दिया जानी चाहिए।

आरएस: आइए हम रेल सुरक्षा के लिए अपनी प्रणाली पर फिर से चर्चा करें। प्रक्रिया क्या है?

एकेवी: हमारे सिस्टम में सीआरएस और विभिन्न क्षेत्रों को देखने वाले नौ आयुक्त ट्रेनों के सुरक्षित संचालन को लेकर चिंतित हैं। मामलों को आगे बढ़ाना और जिम्मेदारी तय करना सीआरएस का काम है। इसे रेलवे बोर्ड के निर्णयों की निगरानी भी करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जहां तक सुरक्षा का संबंध है, वे उसके निर्णयों का पालन करें।

उदाहरण के लिए, उत्तर पूर्व में, रेलवे ने 2015 के अंत में लुमडिंग से सिलचर के बीच ब्रॉड गेज लाइन डालने के बाद एक नई यात्री लाइन खोली। यह पर्याप्त रूप से जमीनी परिस्थितियों का अध्ययन किए बिना या उचित संरेखण तैयार किए बिना किया गया था। रेलवे बोर्ड को भी ट्रैक खोलने से पहले सटीक सर्वे करना चाहिए था। मैं तब चीफ रेलवे इंजीनियर था और कुछ समय के लिए लाइन को बंद करने का आदेश दिया था क्योंकि लगातार भूस्खलन पटरियों को अवरुद्ध कर रहे थे और बहुत भारी वर्षा के कारण भी ऐसा हो रहा था। महाप्रबंधक ने मेरे फैसले को खारिज कर दिया, और तीन दिनों के भीतर दो ट्रेन बैक-टू-बैक पटरी से उतर गई थीं। जिम्मेदारी क्यों तय नहीं की गई? ट्रैक को खोलने की अनुमति क्यों दी गई? दुर्घटनाएं प्रणालीगत समस्याओं के कारण होती हैं।

आरएस: आप जो कह रहे हैं, उससे स्थिति काफी विकट लग रही है.

एकेवी: रेलवे आईसीयू में पड़ी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि रेलवे देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन की जीवन रेखा है। हमारी आबादी का मुश्किल से 2 प्रतिशत हिस्सा कार या हवाई जहाज से यात्रा करने का खर्च वहन कर सकता है। कार से लंबी दूरी की यात्रा शायद ही व्यवहार्य हो। 2005 के बाद, रेलवे यातायात की माँग को पूरा करने में असमर्थ था, और यदि हम रेलवे के चार्ट को देखें, तो इस वर्ष के बाद शायद ही कोई यात्री वृद्धि हुई है। रेलवे को 1990-2000 के बीच 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत की दर से विकास करना चाहिए था। ये हमारे लिए बहुत अच्छे साल थे, लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद यात्री और माल ढुलाई दोनों में गिरावट आई है।

आरएस: परिवहन ढांचे में निवेश को बढ़ावा देते समय किन कारकों पर विचार किया जाना चाहिए?

एकेवी: हम महंगे एक्सप्रेसवे का निर्माण अभूतपूर्व दर से कर रहे हैं, और एयरलाइंस और हवाई यातायात भी 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, लेकिन परिवहन के सबसे जलवायु और पर्यावरण के अनुकूल साधन, रेलवे की उपेक्षा की गई है, जो बहुत दुखद है। यह गलत प्राथमिकताओं के कारण है।

आरएस: प्राथमिकताओं में इस विषमता को क्या समझा सकता है?

एकेवी: इसका जवाब बहुत आसान है। ऑटोमोबाइल निर्माताओं, तेल कंपनियों और एयरलाइंस में बहुत शक्तिशाली लॉबी काम करती है। चीन में, रेलवे मजबूत है और इसने जबरदस्त प्रगति की है। वहां तो संपन्न लोग भी रेल से यात्रा करना पसंद करते हैं। यदि ट्रेन यात्रा सुरक्षा और आराम प्रदान करती है, तो लोग हवाई या कार से यात्रा क्यों करेंगे?

इन लॉबी ने 50, 60 और 70 के दशक के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप रेलवे के खिलाफ काम किया है। 1972 में अरब-इजरायल युद्ध के बाद, जब तेल की कीमतों में तेजी आई, यूरोपीय राष्ट्र जाग गए और रेलवे में बड़े पैमाने पर निवेश शुरू कर दिया। ये ऐतिहासिक तथ्य हैं।

एयरलाइंस, ऑटोमोबाइल और तेल कंपनियां निजी स्वामित्व में हैं, लेकिन सरकार के समर्थन के बिना रेलवे का विकास नहीं हो सकता है। राष्ट्र को सरकार से यह सवाल पूछने की जरूरत है कि वह और रेलवे बोर्ड दिल्ली से चेन्नई, दिल्ली से मुंबई और दिल्ली से कोलकाता तक हमारे मुख्य ट्रंक मार्गों पर भीड़भाड़ पर ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं। इन्हीं रूटों पर 125 प्रतिशत से 150 प्रतिशत तक की भीड़भाड़ रहती है।

आरएस: निश्चित रूप से भारतीय रेलवे को मुख्य मार्गों पर भीड़भाड़ कम करने पर जोर देना चाहिए और उनके साथ अधिक लाइनों की मांग करनी चाहिए।

एकेवी: मैं सहमत हूं। रेलवे बोर्ड अपनी जरूरतों को प्रोजेक्ट नहीं कर रहा है। मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन [आ रही है] को लें। इसकी लागत विशाल है और ब्रॉड गेज लाइन की तुलना में दोगुनी है। हम 500 किलोमीटर की स्टैंड-अलोन लाइन बनाने पर 2 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं, जिसका इस्तेमाल अन्य ट्रेनें नहीं करेंगी क्योंकि वे ब्रॉड गेज पर चलती हैं। 7 लाख करोड़ रुपये की लागत से, हम अपने मुख्य ट्रंक मार्गों के 15,000 किलोमीटर का उन्नयन कर सकते थे और सभी बाधाओं को दूर कर सकते थे। हमने स्टैंड-अलोन बुलेट ट्रेन पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने का विकल्प चुना है, जबकि इस पैसे का इस्तेमाल लाखों यात्रियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हजारों किलोमीटर के ट्रैक को अपग्रेड करने के लिए किया जा सकता था। इस तरह की परियोजना को सब्सिडी देने में रेलवे बोर्ड की गलती है क्योंकि जो लोग बुलेट ट्रेन यात्रा का खर्च वहन कर सकते हैं वे एक ऐसे वर्ग हैं जो आसानी से हवाई टिकट का खर्च भी उठा सकते हैं। उन्हें इसकी अनुमति नहीं देनी चाहिए थी।

हमारी वंदे भारत ट्रेनों के साथ भी ऐसा ही है, जिन पर 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इनकी कीमत शताब्दी ट्रेन से भी दोगुनी है लेकिन यात्रा के समय में केवल 10-15 मिनट की बचत होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे ट्रैक तेज गति को नहीं सह सकते हैं। हमें कोरोमंडल एक्सप्रेस जैसी और ट्रेनों को जोड़ने पर ध्यान देना चाहिए था।

हमें नई लाइनें बनाने और अपनी मौजूदा लाइनों को अपग्रेड करने की जरूरत है। दुख की बात है कि ऐसा नहीं हुआ है जबकि यह समस्या 10 से 20 वर्षों से बनी हुई है। भीड़भाड़ और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ प्रमुख होनी चाहिए, साथ ही जरूरी रखरखाव के काम पर समय और ध्यान देना चाहिए। ध्यान दें कि हमारे देश में दुर्घटना दर [विकासशील देशों जैसे] पाकिस्तान, कांगो या तंजानिया के बराबर है, लेकिन उन देशों में बालासोर जैसी कोई दुर्घटना नहीं हुई है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

‘Railways, Lifeline of India’s Economy, is in ICU’

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