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राजस्थान विधानसभा चुनाव: महिला वोटरों की स्थिति और असल मुद्दे

राजस्थान की महिलाओं को महिला आरक्षण अभी भी दूर की कौड़ी ही लगता है और पानी, अस्पताल, रोज़गार और सुरक्षा के मसले इस चुनाव में उन्हें कहीं ज़्यादा ज़रूरी मुद्दे लगते हैंं।
women voter
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

हिंदी पट्टी के प्रमुख राज्य राजस्थान में चार अन्य राज्यों के साथ इसी साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां कुल200सीटों के लिए 23 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। राज्य में अभी अशोक गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार है तो वहीं विपक्ष में बीते चुनाव में सत्ता से बाहर हुई भारतीय जनता पार्टी है। हालांकि चुनाव मैदान में दूसरे दल भी हैं लेकिन मुख्य लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मानी जा रही है।

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में आधी आबादी यानी महिलाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसकी वजह है कि कई इलाकों में महिला वोटरों की संख्या पुरुषों से ज्यादा है तो वहीं बुजुर्ग महिलाएं यानी प्रदेश में 60से लेकर 99 आयु वर्ग के मतदाताओं में महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं आगे हैं। इसके अलावा 90 से 99 आयु वर्ग में महिला वोटर पुरुषों के मुकाबले 3 गुना ज्यादा है।

बता दें कि राजस्थान में इस बार 5करोड़ 26 लाख 80 हजार545 मतदाता पंजीकृत किए गए हैं। जिसमें से कुल मतदाताओं में से 2 करोड़ 73 लाख 58 हजार 627 पुरूष और 2 करोड़ 51 लाख 79 हजार 422 महिला मतदाता शामिल हैं। इससे पहले साल 2018 के विधानसभा चुनाव में 4 करोड़ 77 लाख 89 हजार मतदाता थे। इनमें 2 करोड़ 49 लाख 61 हजार महिलाएं और 2 करोड़ 28 लाख 27 हजार महिला वोटर शामिल थे। ऐसे में महिलाओं के मुद्दे और पार्टियों के वादे इस चुनाव में अहम रोल अदा करते हैं। और शायद यही कारण है कि महिला आरक्षण बिल को पांच राज्यों में चुनाव से पहले आनन-फानन में संसद में पेश कर दिया गया।

पानी, अस्पताल, रोज़गार और सुरक्षा मुख्य मुद्दा

बहरहाल, राजस्थान की महिलाओं को महिला आरक्षण अभी भी दूर की कौड़ी ही लगता है और उनके अपने पानी, अस्पताल, रोज़गार और सुरक्षा के मसले इस चुनाव में उन्हें कहीं ज्यादा जरूरी मुद्दे लगते हैंं। बीते चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस ने ऐलान किया था कि सत्ता में आने के बाद महिलाओं को मुफ़्त शिक्षा मिलेगी। इलाज़ और सुरक्षा व्यवस्था की बेहतर सुविधा होगी। इन वादों पर कांग्रेस कितना काम कर पाई है और क्या खामियां रही है, ये न्यूज़क्लिक ने राजस्थानी महिलाओं से जानने की कोशिश की।

अज़मेर पुष्कर की कई महिलाओं का कहना है कि उनके यहां मुफ्त शिक्षा को लागू तो कर दिया गया है लेकिन जब वो स्कूल-कॉलेज में अपनी बच्चियों के एडमिशन के लिए जाती हैं तो उन्हें इस सुविधा के लिए यहां से वहां दौड़ाया जाता है। कई महिलाओं का कहना था कि ये योजना लागू होने के बाद भी सही तरीके से क्रियान्वयन में नहीं है जिससे औरतों-बच्चियों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

महिलाओं को कई सौगातें, कहीं फेल कहीं पास

इसके अलावा राज्य में जन आधार कार्डधारक परिवारों की महिला मुखिया के लिए इंदिरा गांधी स्मार्टफोन योजना का शुभारंभ भी किया गया है, जिसके तहत सरकार ने 1.35 करोड़ महिलाओं को फ्री में मोबाइल फोन के साथ इंटरनेट डेटा देने का लक्ष्य रखा था। इस योजना का लाभ कई महिलाओं तक पहुंचा है लेकिन ज्यादातर मुखिया महिलाओं को फोन चलाना ही नहीं आता। उनका फोन उनके परिवार के पुरुष ही इस्तेमाल करते हैं। हालांकि वो इस योजना से संतुष्ट नज़र आईं।

राजस्थान की गहलोत सरकार ने अपने आखिरी साल में महिलाओं को कुछ और सौगातें भी दी हैं जैसे गरीब वर्ग के उपभोक्ताओं को ₹500 में गैस सिलेंडर उपलब्ध कराया जाएगा वहीं, 100यूनिट तक की बिजली फ्री कर दी गई है। राजस्थान की सरकारी बसों में महिलाओं का किराया आधा कर दिया गया। इसके अलावा मुफ्त चिकित्सा सुविधा के लिए चिरंजीवी निशुल्क योजना के तहत बीमा की राशि को ₹10 लाख से बढ़ाकर ₹25 लाख कर दिया गया। जिससे रजिस्ट्रेशन कराने वाले लोग 25 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज लिस्टेड हॉस्पिटल में प्राप्त कर सकें।

बीकानेर की महिलाओं पर गहलोत सरकार की इन योजनाओं को लेकर मिला-जुला असर देखने को मिलता है। इन महिलाओं का कहना है कि इन्हें कुछ योजनाओं का लाभ मिल रहा है तो वहीं कुछ का नहीं। कुछ में सरकारी जटिलताएं हैं तो कुछ जमीनी तौर पर बेअसर। हालांकि ज्यादातर महिलाएं सरकार की कोशिशों को लेकर जरूर उत्साही नज़र आईं। उनका कहना था कि सरकार प्रयास कर रही है लेकिन नीचे असली गड़बड़ी है।

महिला सुरक्षा है सबसे जरूरी मुद्दा

बाड़मेर, चितौड़गढ़ समेत कई इलाकों की महिलाएं पानी, अस्पताल और रोज़गार को लेकर सरकार के काम से खुश नहीं नज़र आईं। उनका कहना था कि उन्हें पानी के लिए अभी भी संघर्ष करना पड़ता है। अस्पतालों में सही से इलाज़ नहीं मिल पाता तो वहीं बेटी होने पर मिलने वाली प्रोत्साहन राशि में भी कई अड़चने आती हैं। इसके साथ ही महिलाओं के लिए मनरेगा के अलावा कोई रोज़गार का जरिया नहीं है। कोई मध्यम, लघु उद्योगों में काम कर महिलाएं अपना घर चला सकें इसकी व्यवस्था भी होनी चाहिए। शादी ब्याह के लिए धर्मशाला आदि का निर्माण भी होना चाहिए जिससे गरीब और कमज़ोर लोग अपनी बेटी का ब्याह कम खर्चे में कर सकें।

इन सभी महिलाओं की एक जरूरी मांग सरकार से महिला सुरक्षा को लेकर थी। उनका कहना है कि जिस तरह से राज्य में छोटी बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक पर अत्याचार और दुष्कर्म के मामले देखने को मिल रहे हैं। इससे उनके अंदर डर बैठ गया है। वो अपनी बच्चियों को बाहर जाने देने से पहले दस बार सोचती हैं। इसके अलावा गरीब बच्चियों और औरतों के मामले में पुलिस प्रशासन की संवेदनहीनता भी इन महिलाओं ने उजागर की जो कई बार पीड़ित को और प्रताड़ित करने वाली नज़र आती है।

कई महिलाओं का कहना था कि सरकार ने रोड़, नाले तो सही करवा दिए लेकिन उन पर हम महिलाएं निश्चिंत होकर चल नहीं सकती क्योंकि रास्ते में कब कौन सी दुर्घटना हो जाए पता ही नहीं लगता। अखबार के पन्नों में बलात्कार और महिला अपराध के मामले देखकर रूह कांप जाती है। वहीं खुद काम पर निकलते वक्त भी डर लगता है कि कहीं वापस आतेे समय देर न हो जाए। ये डर यहांं की ज्यादातर महिलाओं के मन है जिसके चलते वो कई बार घर से बाहर निकलते समय जान-बूझ कर भी घूंघट की आड़ का सहारा लेती हैं। उनका कहना है कि कई घरों में उनके घर के पुरुष इसके बगैर उन्हें घर से बाहर नहीं जाने देते।

पार्टियों के आरोप-प्रत्यारोप

ध्यान रहे कि मणिपुर में जारी हिंसा पर काफ़ी विलंब के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने बयान दिया तो उसमें भी उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ का ज़िक्र देखने को मिला था। क्योंकि ये दोनों कांग्रेस शासित प्रदेश हैं जबकि मणिपुर में बीजेपी सत्ता में है। प्रधानमंत्री ने अपने बयान में कहा था, “मणिपुर की घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है। सभी मुख्यमंत्रियों को अपने यहां क़ानून व्यवस्था को बेहतर करना चाहिए - ख़ास तौर पर महिला सुरक्षा को लेकर। घटना चाहे राजस्थान की हो, घटना चाहे छत्तीसगढ़ की हो, घटना चाहे मणिपुर की हो।”

प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने राजस्थान में महिला सुरक्षा को लेकर गहलोत सरकार पर निशाना साधा। बीजेपी-कांग्रेस के बीच लंबा आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चला लेकिन इन सब शोर के बीच असल में महिला सुरक्षा का मुद्दा बस बहस बनकर रह गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजस्थान महिला अपराधों को लेकर टॉप राज्यों की सूची में शामिल है लेकिन किसी एक राज्य की दूसरे राज्य से तुलना का घिनौना खेल इस मुद्दे की असल गंभीरता को खो देता है।

गौरतलब है कि राजस्थान में हर पांच सालों के बाद सत्ता परिवर्तन का एक रिवाज चला आ रहा है। 2013 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को जीत हासिल हुई थी तो उस समय दोनों दलों के बीच वोटों का अंतर 10 प्रतिशत का था तब कांग्रेस को सिर्फ़ 21 सीटें मिलीं थीं जबकि भारतीय जनता पार्टी की झोली में163 सीटें आयीं थी। ये प्रचंड बहुमत था। हालांकि साल2018में सत्ता पलट गई थी और चुनाव में कांग्रेस ने राजस्थान में 39.3प्रतिशत वोटों के साथ100सीटें हासिल की थीं। बीजेपी को 38.77प्रतिशत वोटों के साथ73सीटें मिली थीं। बीएसपी ने छह सीटें हासिल की थीं। ऐसे में ये चुनाव भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए बहुत मायने रखते हैं क्योंकि ये एक तरह से 2024 के आम चुनावों से पहले किसी भी पार्टी की मजबूती का अहम संकेत हो सकते हैं। हालांकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों के सामने इस बार के चुनावों में काफ़ी चुनौतियां हैं। पार्टियों की अंदरूनी कलह सार्वजनिक है तो वहीं सत्ता विरोधी परंपरा भी है।

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