राजस्थान चुनाव : भाजपा के ध्रुवीकरण को कितना मात दे पाएगी कांग्रेस की कल्याणकारी योजनाएं
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए 25 नवंबर को मतदान होना है। जिन 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें राजस्थान को लेकर भाजपा सबसे ज्यादा आशान्वित है। कई सारे ओपिनियन पोल्स ने भी उसकी उम्मीदें बढ़ाई हैं। शायद इसके पीछे पिछले 30 साल से जारी हर 5 साल में सरकार बदलने की रवायत भी है।
बहरहाल राजस्थान की जनता के मन में सचमुच क्या है, यह तो 25 नवंबर के मतदान और 3 दिसंबर को नतीजे आने पर ही पता लगेगा।
राजस्थान के चुनाव में जहां भाजपा सांप्रदायिक भावनाओं को उभारने और सत्ता-विरोधी भावनाओं को भुनाने में लगी है, वहीं कांग्रेस अपनी कल्याणकारी योजनाओं तथा जाति-जनगणना के मुद्दे से उसका मुकाबला करने में लगी है।
भाजपा के विभाजनकारी नफरती अभियान का नेतृत्व मोदी जी स्वयं कर रहे हैं। वे उदयपुर में टेलर कन्हैया लाल की गला रेत कर की गई हत्या का मामला बार-बार उठा रहे हैं और उसके लिए गहलोत सरकार और कांग्रेस की कथित "तुष्टीकरण की नीति" को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। अक्टूबर में चित्तौड़गढ़ में एक रैली में इसे उठाते हुए उन्होंने कहा, "इस मामले में भी कांग्रेस को वोट बैंक नजर आ रहा है। यह कोई सामान्य अपराध नहीं था। यह कांग्रेस की वोट-बैंक, तुष्टीकरण की राजनीति का नतीजा था।"
चुनाव के नजदीक आने पर 9 नवंबर को उदयपुर में सांप्रदायिक एजेंडा को और हाइप देते हुए उन्होंने कहा, "कन्हैयालाल की हत्या का दाग कांग्रेस सरकार पर है। ...कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि यहां रामनवमी और कांवड़ यात्रा पर बैन लगेगा। यह पाप इस सरकार के सर पर है। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि यहां आतंकवादियों से सहानुभूति रखने वाली सरकार है। पीएफआई जैसे संगठन यहां बेखौफ रैली निकालते हैं।"
17 नवंबर को अजमेर में अमित शाह ने कहा, "कांग्रेस शासन में राजस्थान दंगा प्रदेश बन गया है, जहां मासूम मारे जा रहे हैं और कट्टरपंथी संगठनों को खुली छूट मिली है। अगर कांग्रेस वापस आयी तो पीएफआई जैसे प्रतिबंधित संगठन पूरी तरह आज़ाद हो जाएंगे। राजस्थान की सुरक्षा खतरे में पड़ जायेगी।"
पिछले दिनों योगी की उपस्थिति में एक भाजपा नेता ने चुनावी रैली में अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगला और मस्जिदों-गुरुद्वारों को ध्वस्त करने का आह्वान किया। बाद में सिखों के भारी विरोध के बाद माफी मांगने के नाम पर उसने संशोधन किया कि मैं मस्जिदों-मदरसों कहना चाहता था, गलती से गुरुद्वारा निकल गया! SGPC ने यह कहते हुए उसकी लानत-मलामत की कि मस्जिदों का अपमान भी वैसा ही अपराध है जैसा गुरुद्वारों का अपमान।
बहरहाल इस पूरे प्रकरण का सबसे भयानक पहलू यह रहा कि यह मंच पर मौजूद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने कहा गया। लेकिन संवैधानिक पद पर आसीन योगी ने न तो इसे रोका, न बाद में अपने भाषण में इसकी निंदा की। चुनाव आयोग से तो खैर अब कोई सत्तापक्ष के ऐसे कारनामों पर कार्रवाई की उम्मीद भी नहीं करता!
अपने बड़े नेताओं के सुर में सुर मिलाते हुए, लोकसभा में बसपा MP दानिश अली के बहाने मुसलमानों को घोर नफरती गालियां देने वाले भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने पूछा "पीएफआई के लोगों को शरण कौन देता है? वे पकड़े जाते हैं तो रोटी कौन खिलाता है? टोंक के लोग खिलाते हैं। यहां के चुनाव पर पाकिस्तान की भी नजर है। 25 नवंबर को देखना है कि लड्डू यहां बंटता है या लाहौर में। टोंक पर हमास जैसे आतंकवादी भी नजर गड़ाए हैं।"
दरअसल, लोकसभा में गाली प्रकरण के तुरंत बाद बिधूड़ी को राजस्थान के मुस्लिम बहुल इलाके टोंक में प्रभारी बना कर भेज दिया गया। ज्ञातव्य है कि टोंक कांग्रेस नेता सचिन पायलट का विधानसभा क्षेत्र है। जाहिर है, उन्मादी मुस्लिम विरोधी बयान से चर्चा में आये बिधूड़ी को टोंक और पूरे राजस्थान में, जहां 9 से 10 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए ही वहां का प्रभारी बनाया गया।
बहरहाल, मोदी-शाह-हिमंता सरमा-बिधूड़ी द्वारा बार-बार उदयपुर हत्याकांड को लेकर हमला करने पर पलटवार करते हुए गहलोत ने संगीन आरोप लगाया कि "टेलर कन्हैयालाल के हत्यारे भाजपा से जुड़े थे। घटना से कुछ दिन पहले भाजपाई किसी अन्य मामले में उन्हें छुड़ाकर ले गए थे।" उन्होंने पूछा, "इस मामले में केंद्र सरकार की NIA जांच कहां तक पहुंची है? लोग डेढ़ साल से इंसाफ का इंतज़ार कर रहे हैं।"
आते आते 16 नवंबर को जारी भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में गुजरात से उधार लेते हुए "भारत-विरोधी स्लीपर सेल" ध्वस्त करने के लिए विशेष प्रकोष्ठ बनाने का संकल्प भी व्यक्त कर दिया गया है।
चुनाव तक बचे दिनों में इस विभाजनकारी अभियान को कैसे कैसे धार दी जाएगी, कोई नहीं जानता। अभी 16 नवंबर को पड़ोसी राज्य हरियाणा के नूंह में जो राजस्थान तक फैले मुस्लिम बहुल मेवात का प्रमुख केंद्र है, फिर सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की वारदात हुई। दरअसल कथित गो-तस्करों के खिलाफ मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी जैसों के गोरक्षक गिरोहों के माध्यम से वहां लंबे समय से नफरती खेल चलता रहा है, जिसके फलस्वरूप वहां पिछले दिनों गंभीर सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी।
जहां तक कंग्रेस की बात है, गहलोत सरकार ने कर्मचारियों की ओपीएस की लोकप्रिय मांग को राजस्थान में स्वीकार किया है। इसके अलावा तमाम सर्वेक्षणों के अनुसार शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उसके काम को जनता ने सराहा है। सीएसडीएस-लोकनीति के अनुसार 60% लोग मानते हैं कि स्कूल बेहतर हुए हैं, 58% के अनुसार पेय जल तथा 55% के अनुसार बिजली आपूर्ति अच्छी है। 74% लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार से निपटने में सरकार ने अच्छा/बहुत अच्छा काम किया है। कुल मिलाकर 43% लोग मुख्यमंत्री से पूरी तरह संतुष्ट हैं और 28% लोग कुछ संतुष्ट हैं।
इन सब के बीच बेरोजगारी राजस्थान में बड़ा मुद्दा है। CMIE के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा 37.4% बेरोजगारी दर के साथ देश में अव्वल है तो राजस्थान 28.5% पर दूसरे नंबर पर है। प्रदेश में कुल रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या 18.40 लाख है जिनमें 14.4 लाख ग्रेजुएट तथा 1 लाख पोस्ट-ग्रेजुएट हैं। ऊपर से जो प्रतियोगी परीक्षाएं हो रही थीं, उनके पेपर लगातार लीक हो रहे थे, जिसे स्वयं कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने अपनी गुटीय लड़ाई में जोर-शोर से उठाया और बड़ा मुद्दा बनाया। 2019 के बाद से राजस्थान प्रदेश सेवा आयोग द्वारा आयोजित 8 परीक्षाओं के पेपर लीक हुए। इनमें कुल 33 लाख प्रतियोगी युवा रजिस्टर्ड थे, जाहिर है इनमें अनेक कई परीक्षाओं में enrolled होंगे। फिर भी कितनी बड़ी तादाद में युवा-प्रतियोगी छात्र इससे प्रभावित हुए होंगे, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इसे भुनाने के लिए भाजपा ने 'पेपर माफिया' के खिलाफ आंदोलन में लड़ाकू नेता के रूप में उभरे उपेन यादव को चुनाव में प्रत्याशी भी बनाया है।
वैसे तो राजस्थान समेत पूरे देश में बेरोजगारी की आज जो विभीषिका है, वह मूलतः प्रधानमंत्री मोदी की विनाशकारी नीतियों की देन है। लेकिन राज्य सरकार भी पेपर लीक जैसे मामलों में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। हालांकि गहलोत सरकार ने तत्परतापूर्वक कार्रवाई की, 15 FIR हुए, 273 लोगों की गिरफ्तारी हुई और पेपर लीक के अपराधियों के लिए सख्त कानून भी बनाये गए।
गहलोत सरकार ने शहरी रोजगार गारंटी योजना लागू करने की दिशा में स्वागतयोग्य पहल की है। युवाओं को बेरोजगारी भत्ते के लिए 1927 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया।
फिर भी बेरोजगार युवाओं, प्रतियोगी छात्रों, 22.7 लाख first-time voters को साधने के लिए कांग्रेस को कड़ी मेहनत करनी होगी।
राहुल गांधी जाति जनगणना, ओबीसी समेत हाशिये के तबकों को उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने और मोदी की अडाणी-परस्त नीतियों के विपरीत अपनी सरकार की नीतिगत दिशा गरीबों-वंचितों के विकास की ओर मोड़ने जैसे वायदे कर रहे हैं।
देखना है राहुल का यह नैरेटिव तथा गहलोत सरकार की तमाम लोकप्रिय योजनाएं किस हद तक एंटी-इनकम्बेंसी और भाजपा के जहरीले विभाजनकारी प्रचार को काउंटर कर पाती हैं।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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