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राजस्थान: क्या सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना कांग्रेस की नैया पार लगाएगी?

“ये योजना अच्छी है लेकिन क्योंकि चुनावी समय में इस पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है, इसलिए अभी व्यवहारिक तौर पर इसमें कई ख़ामियां भी हैं।"
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राजस्थान की सामाजिक सुरक्षा पेंशन इस बार के विधानसभा चुनाव में कई बार चर्चा, बयानों और बहस का हिस्सा रही। सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी जहां इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करती रही है, तो वहीं विपक्ष में बैठी सत्ता का इंतज़ार कर रही बीजेपी इसे चुनावी एजेंडा बताती रही। आम लोग जो इस योजना के लाभार्थी हैं और जिन पर सबसे ज़्यादा इसका प्रभाव है, उनका इस बारे में क्या कहना है, न्यूज़क्लिक ने ये जानने की कोशिश की।

राजस्थान की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना एक ऐसी स्कीम है, जिसके ज़रिए राज्य के हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करवाना सरकार की ज़िम्मेदारी है। मिनिमम गारंटीड इनकम बिल इस दिशा में राज्य सरकार का एक और महत्वपूर्ण कदम रहा। इस बिल के माध्यम से अब हर साल अपने आप 15 प्रतिशत सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ेगी। इससे पहले प्रदेश में न्यूनतम पेंशन को अलग-अलग श्रेणियों (विधवा, बुजुर्ग, एकल महिला, विशेष योग्यजन, लघु और सीमान्त किसान) से हटाकर सभी के लिए एक समान न्यूनतम एक हज़ार रुपये कर दिया गया।

बता दें कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में 75 वर्ष तक की आयु के लाभार्थियों को देय न्यूनतम पेंशन राशि बढ़ाकर 1000 रुपये प्रतिमाह करने की घोषणा की थी। इस घोषणा का लाभ कई लाख पेंशनर्स को मिलेगा और राज्य सरकार इस पर 2,222 करोड़ रुपये अतिरिक्त प्रति वर्ष वहन करेगी। इस योजना से वर्तमान में लगभग 93.50 लाख व्यक्तियों को लाभ मिल रहा है।

"राशि छोटी ही सही लेकिन एक बड़ी राहत"

बाड़मेर में कई बुजुर्ग महिलाएं जो इस पेंशन योजना की लाभार्थी हैं उनका कहना है कि ये राशि छोटी ही सही लेकिन एक बड़ी राहत है। उनके मुताबिक़ अब उन्हें अपने छोटे-मोटे खर्चों के लिए दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता। घर की कोई अचानक ज़रूरत, लेन-देन के खर्चे, कई बार इससे बच्चों की मदद भी हो जाती है। ये महिलाएं राशि बढ़ाने के लिए सरकार का शुक्रिया भी अदा करती हैं।

अजमेर के कुछ ज़रूरतमंद लोग जो इस पेंशन से ही अपना गुजारा-पानी चलाते हैं, उनका कहना है कि फिलहाल तो ये सहायता राशि कम है लेकिन इसमें जो साल दर साल बढ़ोतरी होनी है, ये एक अच्छी बात है। उम्मीद है कि आने वाली सरकार में भी इस बात का ध्यान रखा जाएगा, इसे सिर्फ चुनाव तक ही सीमित नहीं किया जाएगा। ये गरीब और असहाय लोगों के लिए एक संबल है, इसकी मजबूती पर ही कई लोगों के घर निर्भर हैं।

"व्यवहारिक तौर पर कई खामियां भी"

सामाजिक कार्यकर्ता रामावतार मीणा बताते हैं कि "ये योजना अच्छी है, लेकिन क्योंकि चुनावी समय में इस पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है, इसलिए अभी व्यवहारिक तौर पर इसमें कई खामियां भी हैं। कई बार लोगों को रजिस्ट्रेशन में दिक्कत आती है, तो कई जगह खातों के अपग्रेड होने की समस्या है। कहीं गलत लोगों के हाथों में पैसे जा रहे हैं, तो कहीं ज़रूरतमंदों को कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। कुल मिलाकर लोगों को राहत तो मिली है, लेकिन अभी और इसमें काम करना बाकी है। क्योंकि ये योजना कई लोगों के जीवनयापन में एक बड़ी मदद है तो, इसमें आने वाली दिक्कतें भी गंभीर बन जाती है। इसलिए व्यवस्था दुरुस्त करना बहुत ज़रूरी है।"

गौरतलब है कि राजस्थान की मौजूदा अशोक गहलोत सरकार अपनी कई योजनाओं और गारंटीयों के भरोसे इस बार सत्ता वापसी की आस लगाए बैठी है। राज्य की जनता भी थोड़ा-बहुत इन योजनाओं से खुश नज़र आ रही है। लेकिन सत्ता विरोधी लहर अभी भी विपक्ष के पक्ष में है और राजस्थान में हर बार तख्तापलट का इतिहास भी रहा है। ऐसे में बीजेपी भी अपने जीत के दावे को मजबूत कर रही है। हालांकि गहलोत सरकार की ज़्यादातर योजनाएं इस आखिरी साल में खुलकर लोगों के सामने आई हैं, इसलिए इसे चुनावी पिटारे की नज़र से भी देखा जा रहा है, जिसका सही आकलन ज़रूरी है और यही सत्ता का रास्ता भी है।

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