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रकबर लिंचिंग मामला : असमीना ने कहा, "मैं बदला नहीं, निवारण चाहती हूँ ताकि भविष्य में ऐसी हरकत करने की किसी की जुर्रत न हो!"

2018 में, हरियाणा के अलवर ज़िले में मवेशी तस्करी के संदेह के मद्देनज़र, गो-रक्षकों ने रकबर ख़ान की हत्या कर दी थी। इस मामले में अलवर की एक अदालत ने हत्यारों को सिर्फ़ 7 साल की सज़ा सुनाई है।
Rakbar Lynching Case

नई दिल्ली: अलवर (राजस्थान) की एक सत्र अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद असमीना ने कहा, "न तो यह फैसला हमारे जीवन में बदलाव लाएगा और न ही यह उन लोगों को डरा पाएगा जो गायों की रक्षा के नाम पर किसी को भी मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं।" जुलाई 2018 में गायों को चरते वक़्त असमीना के पति रकबर खान (34), जोकि एक डेयरी किसान था, को चार दोषियों ने मौत के घाट उतार दिया था जिसके संबंध में अलवर अदालत ने उन्हे सात साल की जेल की सजा दी है।

असमीना ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "मैं उन दोषियों के लिए मौत की सजा नहीं चाहती जिन्होंने मेरे बच्चों को अनाथ कर दिया है, लेकिन हत्यारों को दी गई सजा को न्याय भी नहीं कहा जा सकता है।" 

रकबर खान और उसका दोस्त असलम, लालवंडी (अलवर जिला) के पास एक वन इलाके में गायों को चरा रहे थे और हरियाणा के अपने गाँव कोलगाँव की तरफ बढ़ रहे थे, तभी गाय तस्करी के संदेह में, विजय कुमार (28), नरेश शर्मा (32), धर्मेंद्र यादव (27) और परमजीत सिंह (37) ने उन्हें बेरहमी से पीटा और हमला किया, यह घटना 20 जुलाई 2018 को हुई थी। 

गंभीर चोटों के कारण वह गंभीर रूप से घायल हो गया था और पुलिस की हिरासत में उसकी मृत्यु हो गई – वजह यह थी कि पीड़ित को अस्पताल पहुंचाने के बजाय मवेशियों की शेड में डाल दिया गया था - उसका दोस्त वहां से भागने में सफल रहा था।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक रकबर की पसलियां टूट गई थीं, जिससे उनके फेफड़ों में पानी भर गया था और नतीजतन मौत हो गई थी। 

पीड़ित के प्रति लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना का खुलेआम प्रदर्शन करते हुए, पुलिस उसे सीधे अस्पताल ले जाने के बजाय, असलम की तलाश करने में काफी समय (कम से कम 20-25 मिनट) लगा दिए। फिर वे पीड़ित का बयान दर्ज करने उसे रामगढ़ थाने (मौके से लगभग 6 किलोमीटर दूर) ले गए, रास्ते में चाय के लिए रुके और फिर गायों को एक 'गौशाला' में छोड़ने गए। 

रामगढ़ गांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाने के बाद रकबर खान को मृत घोषित कर दिया गया। इसका मतलब है कि वह पुलिस हिरासत में ही मर गया था। 

अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश सुनील कुमार गोयल ने 25 मई को यह निष्कर्ष निकाला कि चारों दोषियों का खान को मारने का कोई इरादा नहीं था, उन्होंने उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 (1) (गैर इरादतन हत्या) और 341 (गलत तरीके से रोकना) के तहत दोषी ठहराया था। 

अदालत ने इस मामले में आरोपी, नवल किशोर शर्मा (48), विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेता और रामगढ़ में एक 'गौ रक्षा दल' (गौ रक्षा दस्ते) के प्रमुख को बरी कर दिया है। अदालत ने उनके खिलाफ सबूतों को "ठोस" सबूत मानने से इनकार कर दिया। उन्हें "संदेह का लाभ" देते हुए सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है। 

हिंदी में लिखे 92 पन्नों के अपने फैसले में न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी और पीड़िता न तो एक-दूसरे को जानते थे और न ही उनमें कोई दुश्मनी थी। इसलिए उनके अनुसार, यह स्थापित करता है कि चार लोगों का इरादा पीड़ित को मारने का नहीं था।

अदालत ने यह भी कहा कि, दोषियों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि सामूहिक पिटाई के दौरान लगी चोटें इयतनी गंभी थीं कि वे मौत का कारण बन सकती थी, क्योंकि 13 घावों में एक भी घाव खान के संवेदनशील अंगों पर नहीं था।

फैसला आगे कहता है कि, ‘गौ रक्षा दल' से जुड़े होने के कारण, वे कुछ अधिक जोश में आ गए और कानून को अपने हाथों में ले लिया। गायों की तस्करी को रोकने का प्रयास करते हुए उन्होंने उस पर (खान) हमला किया।" (फैसला की कॉपी को न्यूज़क्लिक ने देखा है)। 

फैसला में इस निष्कर्ष पर पहुंचने के पीछे के अपने तर्क को समझाते हुए आगे कहा कि अभियुक्त का हत्या करने का कोई इरादा नहीं था, इसलिए “उन्होंने उसे लाठी जैसे साधारण हथियारों से पीटा। पुलिस हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई क्योंकि एएसआई मोहन सिंह अपनी ड्यूटि ठीक से करने में पूरी तरह से विफल रहे और गैर-जिम्मेदाराना और लापरवाह तरीके से काम किया। अगर आरोपियों की मंशा हत्या करने की होती तो वे उसकी हत्या मौके पर ही कर सकते थे। इसके विपरीत, उन्होंने उसे मौका-ए-वारदात से पुलिस जीप तक ले जाने में मदद की, उसके कीचड़ से सने शरीर को साफ किया, उसके कपड़े बदले और उसे पुलिस स्टेशन से अस्पताल ले जाने में मदद की। यह बताता है कि उनका इरादा उसकी हत्या नहीं करना था। उन्होंने नवल किशोर को पुलिस को सूचित करने को नहीं कहा होता।" 

नवल किशोर को बरी करते हुए, न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि वह अपने मोबाइल फोन पर दोषियों के संपर्क में था, अभियोजन पक्ष अपराध स्थल पर उसकी उपस्थिति और अपराध में उसकी संलिप्तता को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।

अदालत ने यह मानने से इंकार कर दिया कि असलम ने किशोर की पहचान की और उसके बयान को "अविश्वसनीय" करार दिया। “जैसे ही हमला शुरू हुआ, असलम मौके से भाग गया था। रात का समय था, अंधेरा था और बारिश हो रही थी, ”अदालत ने कहा, चूंकि विहिप नेता को शुरू में सीआरपीसी 161 के तहत पुलिस द्वारा गवाह बनाया गया था, यह संभव है कि गवाह ने पहचान परेड से पहले उसे देखा हो – जिसे जेल में मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में किया गया था।

निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले, अदालत ने इस दावे पर भी ध्यान दिया कि किशोर के कपड़े मैले नहीं थे, जबकि वह जगह मैली थी और बारिश हो रही थी। "अगर उसने पीड़ित के साथ मारपीट की होती, तो उसके कपड़े भी मैले हो जाते।”

नवल को संदेह का लाभ देते हुए, अदालत ने कहा कि उसे केवल एक संगठन (विहिप) से जुड़े होने या गौशाला के प्रमुख होने के कारण दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इस तरह की अवैध गतिविधियां संविधान की आत्मा को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाती हैं।

न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि, "अगर ऐसे मामलों में नरम रुख अपनाया जाता है, जिसका समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, तो इससे समाज में नकारात्मक संदेश जा सकता है।" अभियुक्तों को कानून अपने हाथ में लेने और किसी पर हमला करने का कोई अधिकार नहीं था। अगर दोषियों को उचित सजा दी जाती है तो न्याय का लक्ष्य पूरा हो जाएगा।” 

हालाँकि, कठोर शब्दों वाला फैसला, दी गई सजा की मात्रा के अनुरूप प्रनहीं लगता है। ऐसा लगता है कि अदालत ने इस तथ्य को भी नज़रअंदाज़ कर दिया है कि कपड़े आदि बदलने का इरादा सबूत नष्ट करने का हो सकता है।

एक बात “जो सच है कि रकबर की मौत पुलिस हिरासत में हुई थी। लेकिन किसने उसे चोट पहुँचाई जिससे उसकी मौत हुई? वह आरोपी था। फिर उन्हें हत्या का दोषी क्यों नहीं ठहराया गया? उन्होंने एक-दो नहीं, 13 लोगों को जख्मी किया था। इसलिए, यह निष्कर्ष कि दोषियों का पीड़िता को मारने का कोई इरादा नहीं था, गलत साबित होता है। उन्हें आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया जाना चाहिए था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई जानी चाहिए थी," विशेष लोक अभियोजक (पीपी) नासिर अली नकवी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह सजा अपर्याप्त है और उन्होंने सुझाव दिया है कि सरकार को उच्च न्यायालय में फैसले को चुनौती देनी चाहिए। 

नवल किशोर के बरी होने के संबंध में, नकवी ने कहा कि अदालत ने दूसरों को दोषी ठहराने के असलम के बयान को क्यों माना, लेकिन नवल के मामले में क्यों खारिज कर दिया गया?

उन्होंने कहा कि यह सजा तहसीन एस पूनावाला बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का उल्लंघन है, जिसमें मॉब लिंचिंग के मामलों में अधिकतम सजा का प्रावधान है।

उन्होंने कहा कि, "आईपीसी की धारा 304 के तहत भी दोषियों को आजीवन कारावास की अधिकतम सजा दी जानी चाहिए थी।" 

शुरू से ही मामले की निगरानी कर रहे वकील असद हयात ने न्यूज़क्लिक को बताया कि नवल किशोर का बरी होना "बेहद आपत्तिजनक" है।

“अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, चारों आरोपियों ने रकबर को पकड़ा और उसकी पिटाई की और फिर नवल किशोर को मौका-ए-वारदात पर आने और पुलिस को सूचित करने को कहा कि उन्होंने एक गाय तस्कर को पकड़ लिया है। अभियोजन पक्ष ने इसे स्थापित करने के लिए कॉल रिकॉर्ड को पेश किया, लेकिन अदालत ने इसे 'ठोस सबूत' मानने से इनकार कर दिया। सवाल यहां उठता है कि उनमें से किसी एक ने सीधे पुलिस बुलाने के बजाय किशोर को फोन क्यों किया। जब वे खुद को 'गौ रक्षक' होने का दावा करते हैं, तो उनका पुलिस से संपर्क होना चाहिए था।" हयात ने कहा कि केस रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह एक "साजिश" थी।

नरेश, धर्मेंद्र, परमजीत, विजय और किशोर सभी के 'गौ रक्षा दल' के साथ जुड़े होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि, "अपराध स्थल से केवल उसकी अनुपस्थिति के आधार पर एक अभियुक्त को रिहा करना उचित नहीं है, क्योंकि आपराधिक साजिश का कोई प्रत्यक्ष सबूत शायद ही कभी मिलता है।" 

उन्होंने आरोप लगाया कि, “उन्होंने साजिश के बाद इस घटना को अंजाम दिया था, जिसे उन्होंने” सामान्य इरादे से पुलिस के साथ मिलीभगत करके रचा था। 

अपने दावे को स्थापित करने के लिए, हयात ने तर्क दिया कि अभियुक्तों ने खुद अदालत को बताया था कि उनमें से एक ने नवल किशोर को फोन पर घटना के बारे में सूचित किया था, लेकिन दूसरे ने अपराध करने से पहले पुलिस को सूचित नहीं किया था।

“इससे यह स्पष्ट होता है कि हमला तथाकथित गौ रक्षा अभियान के तहत एक सामान्य इरादे से समूह द्वारा किया गया था। असलम ने अदालत को दिए अपने बयान में कहा कि वह (किशोर) मौके पर मौजूद था और उसने (चारों दोषियों) को 'कमीने' (पीड़ित) को मारने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि ये लोग (कथित गाय तस्कर) तब तक सबक नहीं लेंगे जब तक कि उनमें से दो या चार की मौत नहीं हो जाती। अगर वे गौ तस्करी/वध नहीं छोड़ेंगे तो वे ऐसे ही मारे जाएंगे। उन्होंने कहा कि विधायक उनके साथ हैं। उनमें से एक ने किशोर से कहा कि काम खत्म होने पर पुलिस को सूचित कर देना। उसने (किशोर ने) जवाब दिया कि वह अपना सेल फोन घर पर छोड़ आया है। 'मैं घर जा रहा हूं, मैं पुलिस को फोन करूंगा और उन्हें यहां लाऊंगा। तुम सब यहीं रहो और कहीं मत जाना।' 

उनके मुताबिक, नवल किशोर की गिरफ्तारी के बाद, गवाह ने जेल में मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में उनकी (विहिप नेता) पहचान की। उन्होंने आरोप लगाया कि, "अदालत ने आसानी से कई ठोस सबूतों को नजरअंदाज कर दिया जो किशोर की सजा के लिए पर्याप्त थे।"

'मैं बदला नहीं, निवारण चाहती हूँ ताकि भविष्य में ऐसी हरकत करने की किसी की ज़ुर्रत न हो'

असमीना ने कहा कि, वह अपने पति की हत्या करने वाले और उसके बच्चों को अनाथ बनाने वाले सभी पांचों को कड़ी सजा (आजीवन कारावास) चाहती हूं, लेकिन मौत की सजा नहीं।"सजा से कम से कम एक निवारक का काम करे। मृत्युदंड की मांग करना प्रतिशोध होगा, जो मैं नहीं चाहती क्योंकि वे भी किसी के पुत्र और पिता होंगे। और उनके बच्चे अनाथ नहेने होने चाहिए।” 

असमीना ने आरोप लगाया कि राजस्थान पुलिस ने जानबूझकर नवल किशोर को बचाने की वाझ से मामले को मजबूत मामला नहीं बनाया। “अन्य आरोपियों को भी बचा लिया गया है। मैं न्याय करने के लिए उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दूंगी।"

जब रकबर खान की हत्या हुई, तो उसकी पत्नी अपने सातवें बच्चे की उम्मीद कर रही थी, जो घटना के तीन महीने बाद पैदा हुआ था। अपने पिता की मृत्यु के बाद, जो परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे, उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी असमीना पर आ गई है।

2021 में अपने ससुर सुलेमान की मृत्यु हो जाने के बाद इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाने के लिए वह अकेली रह गई है। 

“मेरे पति के बाद, मेरे ससुर की मृत्यु ने हमारी परेशानियों को और बढ़ा दिया है। बच्चों की परवरिश और पढ़ाई का खर्चा उठाना बेहद मुश्किल हो गया है। चार बड़ी बेटियों में से दो हामिद अंसारी (भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति) की पत्नी द्वारा चलाए जा रहे स्कूल में जाती हैं और अन्य दो गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ती हैं। 

पिछले साल, असमीना को तब गंभीर चोटें आ गई थीं, जब वह बच्चों को मदरसे में छोड़ने जा रही थी और एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गई थी। वह अब आंशिक रूप से विकलांग है।

पहले की तरह, परिवार अभी भी छोटी डेयरी फार्मिंग पर जीवित है, क्योंकि कृषि से परिवार का पोषण नहीं होता है। “मेरे पति गाय तस्कर नहीं थे, वे दुधारू गायों का व्यापार करते थे। मवेशी पालना हमारा पारिवारिक व्यवसाय है। यहां तक कि मेरे पिता ने मेरे पति को दहेज में गायें दी थीं,” उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें विभिन्न व्यक्तियों और समूहों से मदद मिली है जो अभी भी उनके परिवार को चलाने में योगदान दे रहे हैं।

विधवा ने हरियाणा और राजस्थान सरकारों से अपने वित्तीय संकट को दूर करने के लिए कुछ व्यवस्था करने का आग्रह करते हुए कहा कि राज्यों को भीड़ हिंसा के पीड़ितों को वित्तीय सहायता देने के लिए एक आयोग का गठन करना चाहिए।

गौरक्षा के नाम पर राजस्थान में यह पहली सजा है। जांच और अभियोजन पक्ष के सबूतों में "विरोधाभासों" के आधार पर संदेह का लाभ देते हुए, इसी अदालत ने अप्रैल 2017 के कुख्यात पहलू खान लिंचिंग मामले जो नज़ारा कैमरे में क़ैद था, में सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया था।

गौरक्षा के नाम पर खान की नृशंस हत्या के बाद, राष्ट्रव्यापी हंगामे और 2018 में आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, राज्य में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने तेजी से कार्रवाई की और सुनिश्चित किया कि जल्द से जल्द गिरफ्तारियां की जाएं। .

तत्कालीन गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने मौका-ए-वारदात का दौरा किया था और यह भी स्वीकार किया था कि पहलू खान की मौत इसलिए हुई क्योंकि पुलिस ने उसे अस्पताल ले जाने में देरी की थी। इस मामले में एक सब-इंस्पेक्टर को निलंबित कर दिया गया और तीन पुलिसकर्मियों को पुलिस लाइन भेजा गया था।

लेखक, भारत के पूर्व राष्ट्रपति के॰आर॰ नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि रह चुके हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Rakbar Lynching Case: 7 Years’ Jail Will Make no Difference, Sought ‘Deterrent’, Says Dairy Farmer’s Widow

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