NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
आंदोलन
राजनीति
रांची : हिंसा के कथित आरोपियों के पोस्टर झामुमो के विरोध के बाद हटाये गए
रांची में 10 जून को हुई हिंसा में पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर सवाल के साथ उसपर भाजपा शासित राज्यों जैसा काम करने के आरोप लग रहे हैं। मगर सवाल यह है कि क्या भाजपा शासित राज्यों को पैमाना बना कर देखना ज़रूरी है?
अनिल अंशुमन
15 Jun 2022
protest

झारखण्ड प्रदेश की राजधानी रांची का जन जीवन भले ही धीरे धीरे अब सामान्य हो रहा है और नगरवासी भी पिछले 10 जून की घटना के असर से बाहर निकलकर अपने रोजमर्रे के काम काज में पूर्ववत व्यस्त होने लगे हैं। लेकिन राज्य के विपक्षी दल भाजपा के साथ साथ स्थानीय पुलिस प्रशासन के एक सम्प्रदाय विशेष के प्रति लगातार बढ़ते नफरती रवैये को देखकर ऐसा नहीं प्रतीत हो रहा है कि मामला आसानी से ठंडा होनेवाला है।

क्योंकि एक ओर, प्रदेश विधायक दल नेता, सांसद और विधायक से लेकर सभी नेता-प्रवक्ताओं द्वारा राज्य की हेमंत सोरेन सरकार पर ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के आरोप वाले सोशल मीडिया पोस्ट हर दिन जारी हो रहे हैं। तो दूसरी ओर, झारखण्ड पुलिस प्रशासन की भूमिका भी अब खुलकर वैसी ही परिलक्षित होने लगी है जैसी भाजपा शासित राज्यों के पुलिस प्रशासन का रहती है।

जिसकी बानगी तब दिखी जब 13 जून को प्रदेश के राज्यपाल महोदय ने राज्य के डीजीपी तथा अन्य उच्चाधिकारियों से लेकर रांची के डीसी व एसएसपी समेत पुलिस प्रशासन के तमाम आला अधिकारियों को जवाब तलब के लिए राजभवन बुलाया। उनसे बात करते हुए उन्होंने 10 जून के प्रदर्शन की सूचना पूर्व से जानकारी में होने के बावजूद समुचित तैयारी नहीं किये जाने तथा गोली चलाने से पहले वाटर कैनन व अश्रु गैस चलाने इत्यादि प्रक्रियाओं के नहीं पालन किये जाने का सवाल उठाया। जो काफी हद तक सही कहा जाएगा लेकिन राज्यपाल महोदय की भूमिका पर तब सवाल उठने लगे जब उन्होंने राज्य की चुनी हुई  सरकार व सम्बंधित मंत्रालय से विचार विमर्श की कोई उचित प्रक्रिया अपनाए बगैर वहां उपस्थित सभी अधिकारीयों को सीधे आदेश दे डाला कि- उपद्रव मामले में गिरफ्तार व फरार सभी लोगों के नाम व तस्वीरों के पोस्टर वाले होर्डिंग्स राजधानी के सभी चौक चौराहों पर फौरान लगा दिए जाएँ। ताकि आम लोग उन सबों को पहचान सकें। झारखण्ड की  सरकार के अधीन काम करने वाले उक्त सारे आला अधिकारी भी राज्यपाल महोदय के फरमान को अमली जामा पहनाने में जी जान से जुट गए।

                                         

अगले ही दिन 14 जून को शहर के कई चौराहों पर उपद्रव फैलाने के जुर्म में गिरफ्तार और फरार सभी लोगों की तस्वीरों के पोस्टर वाला होर्डिंग्स लगाया जाने लगा। इसी दौरान सत्ताधारी दल झामुमो के केन्द्रीय महासचिव ने इस पर त्वरित प्रतिक्रया देते हुए राज्यपाल के निर्देश से पुलिस द्वारा होर्डिंग्स लगाए जाने पर कड़ा ऐतराज़ जताया। झामुमो महासचिव ने आपने बयान में कहा कि- इस मामले में राज्यपाल महोदय की अपनी भवना है, इस पर मैं कोई टिपण्णी नहीं करना चाहता। लेकिन इस तरह से पोस्टर लगाने से समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा और इसका आकलन होना चाहिए कि इससे आपसी कटुता बढ़ेगी या प्यार? साथ ही इससे साफ़ है कि यूपी और झारखण्ड का अंतर मिट जाएगा। पुलिस उपद्रवियों को ज़रूर चिन्हित कर कार्रवाई करे।  लेकिन इस तरह से सार्वजनिक तौर से बदनाम करना सही नहीं है। यूपी में ऐसा किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक लगाते हुए कहा था कि किसी की प्राइवेसी को सार्वजनिक नहीं कर सकते।

बाद में झामुमो केन्द्रीय प्रवक्ता के इस ऐतराज़ करने पर पुलिस ने पोस्टर वाले सभी होर्डिंग्स को यह कहकर हटवा दिया कि- पोस्टर में कुछ संशोधन होगा, फिर लगेगा।

इधर, प्रदेश के सियासी गलियारे में भी इस राज्यपाल द्वारा सरकार को बाईपास कर सीधे प्रशासन को आदेश देने सम्बन्धी प्रक्रिया पर काफी तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। जिनमें कहा जाने लगा कि सरकार तो है हेमंत सोरेन की लेकिन क्या अब से आदेश चलेगा भाजपा नियुक्त राज्यपाल महोदय का ? कई सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का भी कहना है कि जब राज्य सरकार ने 10 जून के उपद्रव के लिए  एसआईटी जांच टीम गठित कर दी है जिसे सात दिनों के अंदर रिपोर्ट देना है तब ऐसा क्यों हो रहा है?

इस बीच प्रदेश के सभी वामपंथी दलों, विभिन्न सामाजिक जन संगठनों, नागरिक समाज के वरिष्ठ जनों और सर्वधर्म संगठनों के प्रतिनिधियों ने रांची शहर की जनता को उसके संयम, धैर्य और भाईचारे की भावना बनाए रखने के लिए बधाई सन्देश जारी किये। साथ ही संयुक्त प्रतिनिधिमंडल भेजकर प्रशासन से ये मांग की है कि प्रशासन द्वारा हज़ारों (अज्ञात) लोगों पर दायर मुकदमों से संप्रदाय विशेष के लोगों में काफी आशंका और दहशत है। इस नाज़ुक और संवेदनशील माहौल में पुलिस द्वारा किसी भी निर्दोष को प्रताड़ित नहीं किया जाए।

वाम दलों की ओर से जारी एक अन्य बयान में पुलिस की गोली से मारे गए दोनों युवाओं के परिजनों को 25 लाख रुपये मुआवज़े व अन्य सरकारी सहायता देने की मांग करते हुए कहा गया है कि हेमंत सरकार अपनी जवाबदेही से नहीं भाग सकती। साथ ही गोली कांड की न्यायिक जांच कराकर दोषी पुलिस को सज़ा देने की भी मांग की है।

रांची के स्थानीय सांसद और विधायक द्वारा पुलिस गोली काण्ड में मारे गए मुस्लिम युवाओं के परिजनों से मिलकर मानवीय औपचारिकता तक नहीं निभाये जाने के साथ साथ भाजपा के वरिष्ठ विधायक द्वारा मुस्लिम बस्तियों पर बुलडोज़र चलवाने की मांग की तीखी भर्त्सना की जा रही है।

14 जून को ही बिहार की राजधानी पटना में भी ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, इन्क़लाबी नौजवान सभा, आइसा, ऐपवा तथा जन संस्कृति मंच द्वारा यूपी में नागरिकता कानून विरोधी आन्दोलन कार्यकर्त्ता आफरीन फातिमा के घर पर बुलडोज़र चलाये जाने, मुस्लिम समुदाय पर बढ़ते संगठित हमलों व रांची में मुस्लिम युवाओं पर पुलिस गोली काण्ड के खिलाफ नागरिक मार्च निकाला गया। जिसे माले के राष्ट्रिय महासचिव दीपंकर तथा सीपीएम के अरुण शर्मा के अलावे महागठबंधन की ओर से राजद महासचिव ने संबोधित किया। नागरिक मार्च के माध्यम से अन्य मांगों के अलावा यह भी मांग की गयी कि 10 जून को रांची में मुस्लिम युवाओं पर हुई पुलिस फायरिंग की निष्पक्ष जांच हो तथा दोषी पुलिस को सज़ा दी जाए।

Left politics
Ranchi
workers protest
Posters

Related Stories

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान


बाकी खबरें

  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: डेमोक्रेसीजीवियो इंडिया छोड़ो!
    08 Aug 2022
    बताइए, जिस दिन से पीएम जी ने डीपी में तिरंगे की मांग की है, उसी दिन से हाथ धोकर बेचारे भागवत जी के पीछे पड़े हुए हैं--आरएसएस की सोशल मीडिया डीपी में तिरंगा क्यों नहीं है? डीपी में तिरंगा कब लगाएंगे?
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    बीएचयूः फीस बढ़ाने के विरोध में स्टूडेंट्स का केंद्रीय कार्यालय पर प्रदर्शन, हिन्दी विभाग के बाहर धरना
    08 Aug 2022
    स्टूडेंट्स का कहना है कि बीएचयू के सभी विभागों में मनमाने ढंग से फीस बढ़ाई जा रही है। शिक्षा के मंदिर को व्यावसायिक केंद्र बनाने की कोशिश न की जाए।
  • अब्दुल अलीम जाफ़री, पीयूष शर्मा
    योगी के दावों की खुली पोल : 3 सालों में यूपी में 'समग्र शिक्षा अभियान' के तहत 9,103 करोड़ रुपये ख़र्च ही नहीं किए गए
    08 Aug 2022
    शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने लोकसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था कि राज्य सरकार द्वारा 6,561 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं किया गया, जबकि शिक्षा मंत्रालय के परियोजना अनुमोदन बोर्ड…
  • नवनीश कुमार
    वन संरक्षण नियम-2022: आदिवासियों और वनाधिकार कानून-2006 दोनों के लिए खतरा?
    08 Aug 2022
    वन संरक्षण नियम-2022 देश के आदिवासियों और वनाधिकार क़ानून दोनों के लिए ख़तरा है? आदिवासियों ने कई दशकों तक अपने वनाधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। नतीजा वन अधिकार क़ानून-2006 आया। अब नया वन संरक्षण नियम 2022…
  • भाषा
    धन शोधन मामला : शिवसेना सांसद संजय राउत को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया
    08 Aug 2022
    अदालत ने राउत का घर से बना भोजन और दवाएं मंगाने का अनुरोध स्वीकार कर लिया। हालांकि, उसने बिस्तर के उनके अनुरोध पर कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें