Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

रूस और चीन मध्य एशिया में पश्चिमी हस्तक्षेप को सहन नहीं करेंगे

18-19 मई को चीन के शीआन शहर में हुई चीन-मध्य एशिया शिखर वार्ता के बाद जारी किया गए बयान में इलाक़े में पश्चिम के हस्तक्षेप पर सीधा हमला किया गया है।
china
एक त्रिपक्षीय विदेश मंत्री स्तर की बैठक, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने पर सहमत हुई, इस्लामाबाद, 5 मई, 2023

18-19 मई को शीआन में हुई चीन-मध्य एशिया शिखर वार्ता के बाद जो शीआन घोषणा जारी किया गया उसमें मध्य एशिया में पश्चिम के हस्तक्षेप पर सीधा हमला किया गया है, जो वाशिंगटन और ब्रुसेल्स की उस धारणा को धता बताता नज़र आता कि रूस और चीन का प्रभुत्व मध्य एशियाई इलाके/स्टेपी में टिकाऊ नहीं है क्योंकि रूस यूक्रेन युद्ध में बहुत अधिक "उलझा" हुआ है।

जैस-जैसे घटनाएँ सामने आ रही हैं, उससे पता चलता है कि अब तक न तो रूस को यूक्रेन में "पराजित" किया जा सका है, उल्टे छद्म युद्ध के मामले में अब रुख पलट गया है। अमेरिका अब यूरोपियों से गुहार लगा रहा है कि मास्को को युद्ध के मैदान में जीत हासिल न करने दी जाए। स्थिति पलट गई है!

यह तय है कि, चीन मध्य एशिया में, यूक्रेन संकट के संदर्भ में सुरक्षा प्रदाता के रूप में  नेतृत्व की भूमिका में आ रहा है जो चीन के खुद के निर्णय में एक बड़ा बदलाव है जो चीन को अलग-थलग करने और नियंत्रित करने की अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति के सार को गहराई से चोट पहुंचाता है। इसे समझने के लिए मानचित्र को देखें कि पश्चिम की रूस और चीन को घेरने की बात तब तक एक सपना ही क्यों रहेगी जब तक कि वह एशिया की आंतरिक सीमा से बाहर रहता है। 

अमेरिका एक मकड़ी की तरह काम कर रहा है ताकि आसियान को विभाजित किया जा सके और उसे परमाणु बनाने के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में एक जाल बनाया जा सके और पूरे ग्रेटर मेकांग क्षेत्र में थाईलैंड में "शासन परिवर्तन" को दोहराया जा सके। अस्थिर देशों के एक समूह के साथ, चीन को घेरने के उद्देश्य से ऐसी अस्थिर सेटिंग में, मध्य एशिया एक ऐसे इलाके के रूप में सामने आता है जो रूसी और चीनी दोनों रणनीतियों के लिए महत्वपूर्ण  है और जो अमेरिकी प्रभाव की पहुंच से परे है।

शीआन घोषणापत्र के प्रासंगिक पैराग्राफ में कहा गया है कि: "पार्टियां इस बात पर एकमत हैं कि देश की सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता और संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, और वैध राज-सत्ता को बदनाम करने और 'रंग क्रांति' को भड़काने के प्रयासों का दृढ़ता से विरोध करना, साथ ही दूसरे देशों के आंतरिक मसलों में किसी भी रूप या किसी भी बहाने दखल देने की इज़ाजत न दी जाए। पार्टियां ने इस बात पर जोर दिया है कि लोकतंत्र मानवता की सामान्य आकांक्षा है और उसका मूल्य भी है। विकास का रास्ता और उसके प्रबंधन का मॉडल, हर देश की स्वतंत्र पसंद तथा उसकी संप्रभुता से संबंधित है और किसी को भी इसमें  हस्तक्षेप करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।"

यह भी नोट किया जाना चाहिए कि शीआन शिखर सम्मेलन के एक सप्ताह के भीतर, बीजिंग से एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी रूस गए और सप्ताह भर परामर्श चला - चेन वेनकिंग, राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य और सीपीसी केंद्रीय समिति में राजनीतिक और कानूनी मामलों के आयोग में सचिव, जो रूस की सुरक्षा परिषद के प्रमुख निकोले पेत्रुशेव के समकक्ष हैं, और जो क्रेमलिन में सर्वोच्च रैंकिंग सुरक्षा अधिकारी हैं के बीच यह चर्चा हुई।

मॉस्को में चेन और उनके प्रतिनिधिमंडल की अगवानी करते हुए पत्रुशेव ने कहा कि: "दोस्ताना चीन के साथ संबंधों का विस्तार और उन्हे मजबूत करना रूस का रणनीतिक कदम है। हमारा देश सभी इलाकों में चीन के जनवादी गणराज्य के साथ पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग के विकास को प्राथमिकता देता है, यूरेशिया और अन्य भागों में वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर  सुरक्षा, स्थिरता, सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए विदेशी क्षेत्र में आपसी सहायता और समन्वय को बढ़ावा देने का प्रावधान करता है।"

चेन की मास्को यात्रा के अंत में की गई एक समापन टिप्पणी में पेत्रुशेव ने कहा कि: "न केवल रूस बहुध्रुवीय दुनिया के केंद्रों में से एक है। तो चीन भी है। वे (पश्चिमी देश) सोचते हैं कि वे रूस से निपट लेंगे और ऐसा करते ही, उन्हें उम्मीद है कि उनका अगला निशाना चीन होगा। उन्हें दोनों से एक साथ निपटने में मुश्किल होती है। ताइवान के साथ चीन की सीमा पर अब वे क्या कर रहे हैं, हम भी अच्छी तरह जानते हैं। सामान्य तौर पर, उनकी (चीनी पक्ष की) स्थिति से असहमत होना मुश्किल है।”

जाहिर है, मास्को में रूस-चीन सुरक्षा पर उच्च स्तरीय वार्ता में जो उनकी साझा चिंता उभर कर आई है वह क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता बनाने के संयुक्त प्रयास शामिल हैं, जो वार्ता का मुख्य आधार है, और जो बढ़ते सुरक्षा जोखिमों की पृष्ठभूमि में यूरेशिया और मध्य एशिया में आतंकवाद की वापसी का संयुक्त रूप से सामना कर रहे हैं। अफ़गानिस्तान के हालात को स्थिर बनाने में रूस और चीन के दृष्टिकोणों में घनिष्ठ समानता है और रणनीतिक समानता भी पहले से ही काफी स्पष्ट है, जो दृष्टिकोण तालिबान के अधिग्रहण के बाद से हिंदू कुश में उथल-पुथल और गृह युद्ध के पश्चिमी प्रयासों के बावजूद पहले से ही सकारात्मक प्रभाव डाल रहे है। 

5 मई को इस्लामाबाद में पाकिस्तान-अफ़गानिस्तान-चीन त्रिपक्षीय बैठक में भाग लेने वाले चीनी स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री किन गंग ने अपने पाकिस्तानी मेजबानों को तीन संदेश दिए - चीन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद करने के लिए तैयार है; बीजिंग उच्च गुणवत्ता वाले बेल्ट एंड रोड सहयोग को आगे बढ़ाने, सीपीईसी के विकास में तेजी लाने और सहयोग को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान के साथ काम करने के लिए भी तैयार है; और, सबसे बढ़कर, चीन "अफ़गान मुद्दे पर संपर्क और समन्वय को मजबूत करने, अफ़गानिस्तान में शांति और पुनर्निर्माण को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय स्थिरता और विकास को बनाए रखने में मदद करने" के लिए पाकिस्तान के साथ काम करने के लिए भी तैयार है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि किन गंग ने अफ़गानिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के विस्तार का आह्वान किया ताकि "तीनों देशों के बीच आपसी सम्मान, स्पष्टवादिता और मित्रता, पारस्परिक लाभ और जीत-जीत की भावना से अच्छे-पड़ोसी और आपसी विश्वास को बढ़ाया जा सके।" किन गंग ने अपने पाकिस्तानी और अफ़गान समकक्षों को बताया कि चीन आतंकवाद-विरोधी और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए तैयार है और "पूर्वी तुर्केस्तान इस्लामी आंदोलन और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान सहित आतंकवादी ताकतों से मजबूती से मुकाबला करने के प्रयासों में उनके साथ है, ताकि क्षेत्रीय सुरक्षा की रक्षा की जा सके और इलाके में स्थिरता लाई जा सके।”

दिलचस्प बात यह है कि किन गंग ने एक द्विपक्षीय बैठक में अफ़गान अंतरिम सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी को आश्वासन दिया कि बीजिंग "विभिन्न इलाकों में चीन-अफ़गानिस्तान सहयोग को मजबूत करना चाहता है, और जल्द ही अफ़गानिस्तान को आत्मनिर्भरता, शांति, स्थिरता, विकास और समृद्धि हासिल करने में मदद करना चाहता है।" 

लान्चो विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर अफ़गानिस्तान स्टडीज के निदेशक, एक प्रमुख चीनी क्षेत्रीय विशेषज्ञ झू योंगबियाओ ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि "पिछले कुछ वर्षों में, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में सीमा के मामले में गंभीर संघर्ष और विवाद हुए थे, और इस पृष्ठभूमि में त्रिपक्षीय बैठक अपने आप में शांति की शुरुआत है जो वार्ता को बढ़ावा देने का दुर्लभ अवसर भी है।

झू ने कहा कि काबुल और इस्लामाबाद के बीच आतंकवाद की मान्यता पर मतभेद हैं, "विशेष रूप से बाहरी हस्तक्षेप के मामले में, तब-जब अमेरिका और भारत जैसे देश इस मामले में दोहरा मानदंड रखते हैं", इसलिए, चीन ने एक इशारा किया है जिसे "एक कदम आगे" के रूप में देखा जा सकता है, जो पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के रुख में समन्वय बैठा सकता है।

इसके अलावा, चीनी विशेषज्ञ ने कहा कि अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान दोनों चीन के पड़ोसी होने और चीन के साथ अच्छे राजनीतिक संबंध साझा करने के कारण न केवल सऊदी अरब और ईरान के बीच बल्कि यूक्रेन संकट पर भी चीन की भूमिका से अवगत हैं, इसलिए दोनों की चीन से उम्मीदें हैं, और इस्लामाबाद में त्रिपक्षीय बैठक ने "चीन की कूटनीतिक भूमिका में उनके बढ़े हुए विश्वास का संकेत दिया।"

ज़ाहिर है, तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता देने से कुछ ही समय पहले, मास्को और बीजिंग ने काबुल के साथ अपने काम को बढ़ा दिया है। इससे मध्य एशियाई देशों में आराम का स्तर बढ़ गया है। रूस और चीन, मध्य एशियाई और चीन में आतंकवाद और धार्मिक अतिवाद के अस्तित्वगत खतरे की धारणा को समझते हैं, जो अमेरिकी टूलबॉक्स का एक समय-आधारित जांच-परखा तत्व है। इस प्रकार, उनके बीच इस इलाके में अमेरिका को किसी भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित करने या पंजशिरी के "अफगान प्रतिरोध" को एक और गृहयुद्ध को बढ़ावा देने के लिए मध्य एशिया को टकराव का केंद्र न बनने देने की एक समझ बनी है।

चीन और रूस ने अफ़गानिस्तान में तालिबान निज़ाम को स्थिर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मूल रूप से, वे इस बात की सराहना करते हैं कि तालिबान शासकों ने बेहद कठिन हालातों में खुद को अपेक्षाकृत अच्छी तरह से स्थापित किया है। मध्य एशियाई देशों में भी यही धारणा है।

इसलिए, क्षेत्रीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो, सीपीईसी का अफ़गानिस्तान तक विस्तार और मध्य एशिया की तीव्र होती बीआरआई परियोजना, इसके अपरिहार्य एकीकरण को चीन-मध्य एशिया प्रारूप में सबसे ठोस स्पिन-ऑफ के रूप में देखा जाना चाहिए। ये प्रक्रियाएं एससीओ को मजबूत करेंगी - और उम्मीद है कि किसी भी वक़्त भारत भी इसके साथ आ जाएगा।  

एम.के. भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें -

Russia, China Take Holistic View of Pamirs, Hindu Kush

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest