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SSC-GD 2018 : परीक्षा पास करने के बाद नियुक्ति का इंतज़ार, नागपुर से दिल्ली चला अभ्यर्थियों का पैदल मार्च

गर्मी और उमस में युवकों के पैदल सफ़र का मक़सद है कि सरकार इन्हें केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में नियुक्ति दे। इन्होंने केंद्रीय अर्धसैनिक सिपाही भर्ती परीक्षा साल 2018 पास की थी, लेकिन अभी तक इन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है।
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केंद्र सरकार ने हाल ही में डेढ़ साल में 10 लाख नौकरियों की घोषणा की है। ये घोषणा युवाओं को फिलहाल राष नहीं आ रही, नाही उनको भरोसा है कि ये भर्ती प्रक्रिया भी समय पर पूरी हो पाएगी। इसकी मुख्य वजह भी केंद्र सरकार ही है, क्योंकि अब तक पुरानी भर्ती-नियुक्ति पर सरकार की जो अनदेखी देखने को मिली है, वो सभी युवाओं को निराश करने वाली ही रही है। सरकारी दावों से इतर ज़मीन पर आज भी इस परेशान कर देने वाली गर्मी और उमस में युवकों का एक दल पैदल ही नागपुर से दिल्ली के सफ़र पर है। इनके सफ़र का मक़सद है कि सरकार इन्हें केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में नियुक्ति दे। इन्होंने केंद्रीय अर्धसैनिक सिपाही भर्ती परीक्षा साल 2018 पास की थी, लेकिन अभी तक इन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है।

बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब इन्होंने पैदल सफर करके उनके साथ हुए अन्याय की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश की है। बल्कि इससे पहले भी दिल्ली के जंतर-मंतर पर ये लोग एक साल तक आंदोलन कर चुके हैं लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। इस दौरान उनका दावा है कि उन्होंने कुछ केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों से मिलकर अपनी बात भी रखी। कुछ सांसदों ने इनकी बात संसद में उठाई भी लेकिन फिर भी इन्हें नियुक्ति नहीं मिली। उसके बाद इन्हें बताया गया कि इनकी मदद केंद्रीय मंत्री कर सकते हैं इसलिए उन्होंने उसके बाद नागपुर के संविधान चौक पर धरना दिया और आमरण अनशन रखा। लेकिन फिर भी उनकी मुश्किलों का हल नहीं निकला तो उन्होंने पदयात्रा का ये मुश्किल सफर शुरू किया।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक स्टाफ सेलेक्शन कमीशन यानी एसएससी ने कॉन्स्टेबल जनरल ड्यूटी की भर्ती जुलाई 2018 में निकाली थी। आसान भाषा में इसे एसएससी जीडी 2018 कहा जाता है। ये भर्ती पैरामिलिट्री फोर्सेज यानी सीआरपीएफ, आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआईएसएफ, एनआईए और असम राइफल्स में सिपाहियों के 54 हजार पदों पर भर्ती के लिए निकाली गई थी। बाद में पदों की संख्या बढ़ाकर 60 हजार 210 कर दी गई। भर्ती तीन चरणों में होनी थी- रिटन एग्जाम, फिजिकल टेस्ट और मेडिकल टेस्ट। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग तीन साल का समय लग गया। इसके बाद नतीजे पिछले साल जनवरी में जारी किए गए थे।

इन अभ्यर्थियों का दावा है जनवरी 2021 से फाइनली अभ्यर्थियों को जॉइनिंग मिलनी शुरू हुई थी। लगभग 60 हज़ार पदों के लिए निकाली गई भर्ती में 55 हज़ार उम्मीदवारों को नौकरी मिल गई लेकिन तकरीबन पांच हज़ार अभ्यर्थी नियुक्ति पत्र पाने से रह गए। हालांकि इसमें भी अब इनके साथ अब लगभग 2,500 लोग ही हैं क्योंकि कुछ लोगों को स्थानीय स्तर पर निकली पुलिस भर्ती और अन्य परीक्षाओं में जगह मिल गई। लेकिन ये अभी भी अपने हक़ के लिये संघर्ष कर रहे है।

पद ख़ाली लेकिन फिर भी भर्तियों में लेट-लतीफ़ी

पदयात्रा दल में शामिल सभी लड़के और लड़कियां बेहद ग़रीब परिवार से आते हैं। इनमें से अधिकांश युवाओं पर घर के दूसरे सदस्यों की ज़िम्मेदारी भी है। भर्तियों में लेट-लतीफी की वजह से इनमें से काफी कैंडिडेट्स ओवरएज भी हो गए हैं। यानी कि ये अगली भर्ती में शामिल नहीं हो पाएंगे। ऐसे में इन अभ्यर्थियों का कहना है कि उन्होंने लिखित, शारीरिक और मेडिकल तीनों स्तर की परीक्षा पास की है। अपनी योग्यता साबित की है और जब पद खाली हैं तो फिर उन्हें भरा क्यों नहीं जा रहा? कम से कम उतने पद तो भरे जाएं जितनी पर वैकेंसी आई थी।

मालूम हो कि 16 मार्च 2022 को राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में कुल 73 हजार 219 पद खाली हैं। इसमें सिपाहियों के साथ-साथ अधिकारियों के पद भी शामिल हैं। इससे पहले 21 सितंबर 2020 को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए नित्यानंद राय ने बताया था कि अर्धसैनिक बलों में कुल 1 लाख 11 हज़ार 93 पद खाली हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि एक ओर सरकार की नई भर्तियों की घोषणा और दूसरी ओर पुरानी भर्तियों पर चुप्पी कहीं इन युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ तो नहीं है।

नागपुर से पैदल निकले अभ्‍यर्थियों की क्या मांगें हैं?

महज 40 अभ्यर्थियों से शुरू हुए इस मार्च में हर दिन प्रदर्शनकारी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। फिलहाल इसमें कुल 60 लोगों से अधिक लोग जुड़ चुके हैं। इसमें लड़कियां भी शामिल हैं और ये मार्च 1 जून से लगातार जारी है। इस बीच पैदल चलते हुए कई अभ्यर्थी बीमार भी पड़ रहे हैं और उनके पैरों में छाले भी आ रहे हैं। लेकिन ये उनकी हिम्मत ही है कि ये लोग ठीक होते ही फिर से अपने साथियों के साथ शामिल हो जाते हैं। इन सब की बस एक ही मांग है कि इनकी नियुक्ति सरकार जल्द से जल्द करवाए।
पैदल मार्च में शामिल केशव यादव अपने ट्विटर हैंडल पर लिखते हैं कि नागपुर से दिल्ली पैदल चलते हुए एक और साथी की हालत गंभीर हो गई है जिसको हम लोग अपने कंधे पर उठाकर इलाज के लिए ले जा रहे है,क्योंकि सर हमारे पास तो साधन भी नहीं है। केशव ने अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक को टैग किया है।

इस दल के साथ पैदल चल रहे कई अभ्यर्थियों ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया कि सभी कैंडिडेट अपने नियुक्ति पत्र के लिए पिछले 1 साल से दिल्ली में धरना प्रदर्शन कर रहे थे। जब वहां इनकी कोई सुनवाई नहीं हुई तो इन लोगों ने नागपुर (महाराष्ट्र) संविधान चौक पर 72 दिन लगातार आमरण अनशन किया। जिसके बाद 4 मई को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इन युवाओं को अमित शाह से मुलाकात कर न्याय दिलाने का भरोसा दिलाते हुए इनका अनशन तुड़वाया। लेकिन इन सब के बाद भी अब तक इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई है।
रोज़गार के मोर्चे पर सरकार लगातार युवाओं को करती रही निराश

इस मार्च में शामिल 8 लड़कियों में से कुछ ने बताया कि पैदल चलने के दौरान उन्हें कई बार अनुकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। चिल्चिलाती गर्मी में पीरियड्स और अन्य समस्याओं के कारण कई लड़कियां बिमार भी पड़ गई हैं लेकिन इसके बावजूद वे इस मार्च में चलने को मजबूर हैं क्योंकि शायद अब सरकार की नज़रों में आने का यही आख़िरी रास्ता उन्हें नज़र आ रहा है।

न्यूज़क्लिक ने इस मुद्दे पर गृह मंत्रालय का पक्ष जानने के लिए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से ईमेल के जरिए संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन फिलहाल खबर लिखने तक उनके कार्यालय से कोई जवाब नहीं प्राप्त हुआ है, जवाब आते ही स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा।

गौरतलब है कि रोज़गार के मोर्चे पर सरकार लगातार युवाओं को निराश करती रही है। कहीं कई विभागों में कई सालों से वैकेंसी ही नहीं निकली, तो कहीं वैंकेसी के बाद भी परीक्षा के नतीज़े घोषित नहीं हुए। कभी परीक्षा के बाद नियुक्ति नहीं मिलती तो, कभी सालों-साल मेहनत के बाद कुछ सरकारी पदों को ही समाप्त कर दिया जाता है। अब देश के युवाओं का आलम ये है कि वो देश के प्रधानमंत्री के जन्मदिन को भी राष्ट्रीय बेरोज़गार दिवस मनाने को मजबूर हैं, लेकिन इन सब के बावजूद सरकार लगातार इस मामले को हल्के में ले रही है।

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