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कटाक्ष: आया तो मोदी ही !

हम तो पहले ही कह रहे थे, कोई कुछ भी कर ले, आएगा तो मोदी ही। विरोधी तो विरोधी, पब्लिक भी कितना ही विरोध कर ले, आयेगा तो मोदी ही।
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तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार: कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के X हैंडल से साभार 

अब बोलें विरोधी, क्या कहते हैं? आया तो मोदी ही। हम तो पहले ही कह रहे थे, कोई कुछ भी कर ले, आएगा तो मोदी ही। विरोधी तो विरोधी, पब्लिक भी कितना ही विरोध कर ले। वोटर कितने ही दूसरी पार्टियों के निशान पर बटन दबा लें। चाहे तो चुनाव आयोग भी किसी को भी चुनाव में जीता हुआ बता ले। चाहे कोई कितनी भी गिनती दिखाले। एक्जिट पोल से लेकर शेयर मार्केट तक, चाहे कोई कितनी ही उठा-पटक करा ले। आयेगा तो मोदी ही। देख लीजिए, हम जो पहले से कह रहे थे, वही हुआ। मोदी ही आया। मोदी 3.O। पूरी धूमधाम के साथ आया। मार्गदर्शक मंडल से लेकर, कई पड़ोसी देशों के राज्याध्यक्षों तक के आशीर्वचनों के साथ आया--आया तो मोदी ही।

और मोदी आया, मोदी को आना ही था। जब मोदी ने आने का मन बना लिया, उसके बाद तो मोदी को आना ही था। क्या हुआ कि पब्लिक नाखुश थी। क्या हुआ कि क्या नौजवान क्या अधेड़ और क्या बूढ़े, सब बेकारी का रोना रो रहे थे। क्या हुआ कि महंगाई ने आम लोगों की कमर तोड़ दी थी। क्या हुआ कि किसान, अपनी पैदावार के दाम के लिए, खेत-खलियानों से ज्यादा राजमार्गों पर डेरे डाल रहे थे। क्या हुआ कि मजदूर, हर तरह से गला दबाए जाने का शोर मचा रहे थे। क्या हुआ कि औरतें और दलित, अपने खिलाफ अपराधों के दिन-ब-दिन बढ़ते आंकड़े दिखा रहे थे। क्या हुआ कि मध्य वर्ग के परिवारों का कर्जा बढ़ रहा था और जमा-बचत घट रही थी। 

क्या हुआ कि विपक्ष को दबाए जाने का, विरोध की आवाज उठाने वालों को जेलों में पहुंचाए जाने का, प्रेस का गला घोंटे जाने का, देश में भले कम हो पर विदेश में मीडिया में खूब डंका बज रहा था। आना तो मोदी को ही था। और देख लीजिए, मोदी ही आया।

और मोदी क्यों नहीं आता? दस साल में जिसने सारी दुनिया में घूम-घूमकर भारत का डंका बजवाया; जिसने सिर्फ डंका बजवाने के दौरों के लिए हजारों करोड़ रुपये लगाकर हवाई जहाजों का जोड़ा खरीदवाया; जिसने उस भारत को जिसे उसके आने से पहले दुनिया में कोई नहीं जानता था, कभी विश्व गुरु तो कभी डेमोक्रेसी की मम्मी बनाया; जिसने दसियों हजार करोड़ रुपये फूंक कर जी-20 के नाम से सारी दुनिया को भारत दर्शन कराया; वह मोदी नहीं आता तो कौन आताï? 

जिसने हजारों करोड़ रुपये स्वाहा  कर, अंगरेजों की बनायी संसद की इमारत के जवाब में, अपना संसद भवन बनाया; वह भला कैसे नहीं आता। जिसने पेट्रोल को सौ पार, डीजल को सौ आर, खाने का तेल दो सौ पार, गैस सिलेंडर हजार पार करा के शानदार रिकार्ड बनाया, वह कैसे नहीं आता।

और हजार कारणों का एक कारण यह कि जिसने रामलला को उंगली पकड़ाकर, तंबू से निकालकर नये, पक्के, भव्य घर में पहुंचाया-- वह भला कैसे नहीं आता! जो रामलला के गृह प्रवेश पर बुलावे के बाद भी नहीं पहुंचे, वो तो तभी से राम विरोधी और न जाने क्या-क्या कहला रहे हैं। जो रामलला को लाने वालों को नहीं लाती, तो पब्लिक को क्या-क्या सुनना पड़ता, इसका कोई अंदाजा लगा सकता है, क्या?

वैसे थोड़ा बहुत तो अंदाजा भी लग सकता है, हांडी का एक चावल देखकर। अयोध्या-फैजाबाद की पब्लिक से इस बार रामलला को लाने वालों को नहीं लाने की गलती हो गयी। रामलला को लाने वाली पार्टी के लल्लू सिंह को पब्लिक ने कुर्सी से उतार दिया और गृह प्रवेश में गैर-हाजिर रहने वाली पार्टी के अवधेश प्रसाद को कुर्सी पर बैठा दिया। और अयोध्या वालों की देखा-देखी, आस-पास की दूसरी सारी सीटों पर भी पब्लिक ने रामलला वैलकम पार्टी वालों को कुर्सी से उतार दिया और विरोधी पार्टी वालों को कुर्सी पर बैठा दिया। 

अयोध्या के आस-पास वालों ने ही क्या पूरी यूपी वालों ने ही आधी से ज्यादा कुर्सियों पर से वैलकम पार्टी वालों को उतार दिया और दूसरी पार्टी वालों को कुर्सी पर बैठा दिया। पता भी है उसका नतीजा क्या हुआ? वैसे तो सारे यूपी वाले ही, पर सबसे बढक़र अयोध्या-फैजाबाद वाले, अब तक मुसलमानों के ही हिस्से में आने वाली गालियां खा रहे हैं और हिंदू-द्रोही से लेकर दगाबाज तक कहला रहे हैं। अयोध्या वाले तो अब तक मुसलमानों और दलितों वगैरह के लिए ही सुरक्षित, सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार का भी स्वाद पा रहे हैं और नये दलित बनाए जा रहे हैं-- जिनके हाथ का पानी पीना भी, सच्चे ‘हिंदुओं’ के लिए पाप है। बताइए, अयोध्या-फैजाबाद के हिंदुओं की गलती जानते-समझते हुए कौन दोहराता? फिर मोदी कैसे नहीं आता!

फिर मोदी को तो इसलिए भी आना ही था क्योंकि मोदी को सीधे परमात्मा ने भेजा है। मोदी को परमात्मा ने , कबीर जिसका ताना ब्राह्मणों को देते थे उसी आन मार्ग यानी दूसरे रास्ते से भेजा है, आम इंसानों वाले रास्ते से नहीं भेजा है। टैक्रीकली बंदा अभी अवतार कहलाए या नहीं कहलाए, पर इतना नान-बायलॉजीकल जरूर है कि कम से कम परमात्मा का दूत तो कहलाएगा ही कहलाएगा। और परमात्मा के दूत के मुकाबले इंसानों को खड़ा किया जाएगा, तो जाहिर है कि परमात्मा का दूत ही जीत कर आएगा। बल्कि हमें तो लगता है कि 2024 में ही नहीं, 2029 में और उसके बाद भी मोदी ही आएगा। कम से कम 2047 तक का प्रोग्राम तो यही है कि मोदी ही आएगा। 

2024 आने के लिए अगर परमात्मा के दूत का रूप धारण कर लिया, तो 2029 के लिए तो बंदा बाकायदा अवतार बन जाएगा और जाहिर है कि तब तो मोदी ही आएगा। और उसके बाद, अवतार की पार्टी का मुकाबला करने की किसी की हिम्मत होगी क्या?

फिर इस बार भी, चार सौ पार नहीं हुए, पर आया तो मोदी ही है। तीन सौ पार भी नहीं हुए, फिर भी आया तो मोदी ही है। पिछली बार से पब्लिक ने बहुत पीछे धकेल दिया, फिर भी आया तो मोदी ही है। एक अकेला की सारी शेखी निकल गयी, दर्जनों को जोड़-बटोर कर लाया, पर आया तो मोदी ही है। नायडू, नीतीश की बैसाखियों पर चलकर आया है, पर आया तो मोदी ही है। आया तो है, पर कौन जाने कब तक बैसाखियों के सहारे खड़ा रह पाएगा--पर आया तो मोदी ही!   

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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