कटाक्ष: और अब एक देश, एक कॉमेडियन!

स्टैंड अप कॉमेडियन, कुणाल कामरा के खिलाफ मुंबई पुलिस ने जरा सी एफआइआर क्या दर्ज कर ली, विरोधी आ गए जनतंत्र खतरे में और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में का झंडा लेकर।
हद तो यह है कि दुहाई तो दी जा रही है, भगवा राज में व्यंग्य और कॉमेडी खतरे में पड़ जाने की और भाई लोग खुद भगवाइयों पर नये-नये चुटकुले बनाकर चलाए जा रहे हैं।
और कुणाल कामरा के ये हिमायती तो उससे भी आगे निकल गए हैं। इन्होंने शिंदे वाली शिव सेना वाले शिंदे और सीएम देवेंद्र फडनवीस से आगे जाकर, उन नरेंद्र मोदी को भी व्यंग्य के लपेटे में ले लिया है, जिन्हें इस बार कुणाल कामरा ने बख्श दिया लगता है। वर्ना भावनाएं आहत होने का शोर मचाने वालों की भावनाएं क्या नरेंद्र मोदी के अपमान पर आहत नहीं हुई होतीं?
अब जिस शिंदे को फडनवीस ने धकिया के सीएम से डिप्टी सीएम बना दिया, मोदी जी के भक्तों की भावनाएं उस शिंदे के भक्तों से कम भंगुर तो नहीं ही हो सकती हैं। और ऐसा तो हो नहीं सकता कि मोदी जी का मजाक उड़ाना, सिंपल मजाक उड़ाया जाना हो और शिंदे का ही मजाक उड़ाया जाना, अपमान हो।
कितने ही मामलों में हमने देखा है कि शिंदे से हल्के मजाक से भी मोदी जी का अपमान हो जाता है। आखिरकार, एक सौ चालीस करोड़ के देश के चुने हुए प्रधानमंत्री हैं। अगर शिंदे का एक राज्य का चुना हुआ डिप्टी सीएम होना, उसकी हंसी उड़ने को अपमान बना सकता है, तो मोदी तो पूरे देश के पीएम हैं। महाराष्ट्र वालों ने लोकसभा चुनाव में मोदी जी को तगड़ा झटका जरूर दे दिया, लेकिन इसका मतलब यह हर्गिज नहीं है कि महाराष्ट्र में मोदी जी की नाक, किसी शिंदे-विंदे से छोटी हो जाएगी।
मोदी भक्तों की भावनाएं आहत नहीं हुई हैं, तो जरूर कुणाल कामरा की ही मोदी जी का मजाक उड़ाने की हिम्मत नहीं हुई होगी। पर कामरा के हिमायतियों ने अब मोदी जी को भी इस झगड़े में घसीट लिया है। कहते हैं कि कुणाल कामरा के खिलाफ एफआईआर का एक ही इशारा है--अब एक देश, एक कॉमेडियन!
देश कौन सा है, यह तो सब जानते ही हैं और इकलौता कॉमेडियन भी सभी जानते हैं। कॉमेडी के मामले में भी मोदी जी कोई कंपटीशन मंजूर नहीं है।
वैसे हम पूछते हैं कि एक देश, एक कॉमेडियन में प्राब्लम ही क्या है? जब बाकी हर चीज एक देश, एक फलां, एक एक ढिमकां सही है, काम्य है, अमृतकाल वाले भारत का लक्ष्य है, तो फिर एक देश, एक कॉमेडियन भी क्यों नहीं?
मोदी जी एक देश, एक टैक्स करा ही चुके हैं। एक देश, एक प्रधान तो पहले से ही चला आ रहा था, उसे तो बस जरा सा और पुख्ता करने की जरूरत थी। और एक देश, एक विधान में थोड़ी-बहुत कसर उन्हें लगती थी, उसे भी मोदी जी कश्मीर को धारा-370 से मुक्त कर के पूरी करा चुके हैं।
एक देश, एक भाषा भी, कुछ चोरी से और कुछ सीनाजोरी से ले ही आए हैं। तभी तो तमिलनाडु वाले इतना हाय-हाय मचाए हुए हैं। एक देश, एक नागरिक संहिता की देश के एक छोर पर, उत्तराखंड से शुरूआत तो हो भी चुकी है।
एक देश एक महापुरोहित भी, अयोध्या के राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से पक्के तौर पर आ ही चुका है।
एक देश, एक ईश्वरीय दूत बल्कि अवतार भी। एक देश एक धर्म, एक देश एक संस्कृति, एक देश एक खान-पान, के बाद बस एक देश, एक कॉमेडियन की ही कसर रहती थी और एक देश, एक मंदिर की भी। एक देश, एक मंदिर अभी वेट कर सकता है, फिलहाल एक देश, एक कॉमेडियन। आसान भी है। कुणाल कामरा जैसे चार-छ: बड़े कॉमेडियनों को जेल में डालने की जरूरत है, डर के मारे बाकी कामेडियन खुद ही मैदान छोड़ जाएंगे। मैदान में बचेगा, बस एक कॉमेडियन!
एक देश एक कॉमेडियन की काफी अर्जेंसी भी है। अमेरिका में जब से ट्रम्प साहब ने दूसरी बार राष्ट्रपति की गद्दी संभाली है, कॉमेडी का मुकाबला शीर्ष स्तर तक पहुंच गया है, खतरनाकपन में भी और गंभीरता में भी। ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि भारत की कॉमेडी की सारी प्रतिभा भी एक ही एक्टर में केंद्रित हो जाए। बाकी कॉमेडियन खाद-पानी बनकर, राष्ट्रीय कॉमेडियन के फलने-फूलने में पर्दे के पीछे से योग दे सकते हैं, लेकिन मंच पर एक ही एक्टर उतरेगा; तमाम लाइटों के वृत्त के बीच में एक ही एक्टर निखरेगा। आखिर, कॉमेडी की अदायगी और लाइनें, दोनों में ट्रम्प का मुकाबला भी तो करना है।
और हां प्लीज बेवक्त इसकी याद मत दिलाने लग जाइएगा कि मोदी जी ने हफ्ता-दस दिन पहले ही तो अमरीकी पॉडकास्टर के साथ लंबी बातचीत में, आलोचना को जनतंत्र की आत्मा बताया था। बताया था तो? मोदी जी ने तो यह भी बताया था कि हमारी परंपरा ‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय’ वाली है। मोदी जी अपनी बात से पलट कब रहे हैं? है कोई बयान मोदी जी का कि आलोचना जनतंत्र की आत्मा नहीं है? मोदी जी अपनी बात से टस से मस नहीं हुए हैं और होंगे भी नहीं। पर इसका कुणाल कामरा के खिलाफ एफआईआर से, या उसके शो की रिकार्डिंग करने वाले स्टूडियो में भगवाभक्तों से लेकर उनके मुंबई नगर निगम तक की तोड़-फोड़ से, उनकी सरकार के तोड़-फोड़ को क्रिया की प्रतिक्रिया बताने से, क्या संंबंध है?
पहली बात तो यह है कि मोदी जी ने आलोचना को जनतंत्र की आत्मा कहा था, कॉमेडी को नहीं। उल्टे मोदी जी ने तो उसी लंबी बातचीत में इसकी शिकायत भी की थी कि वह खोज-खोजकर हार गए हैं, पर सच्ची आलोचना उन्हें तो मिली ही नहीं। ऐसे सच्चे नेताओं की हंसी उड़ाना तो हर्गिज सच्ची आलोचना नहीं है। फिर कामरा को तो मुनव्वर फारुखी की तरह अब तक गिरफ्तार तक नहीं किया गया है। उसके ऊपर से एफआईआर तक शिंदे भक्तों ने करायी है और फडनवीस की पुलिस ने दर्ज की है, इसमें मोदी जी कहां से आ गए!
फिर भी, शिंदे पर तंज के चक्कर में, अगर एक देश एक कॉमेडियन हो जाए, तो सौदा महंगा नहीं है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं)
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