कटाक्ष: लागल सोरोसवा का धक्का...

(बाएं) डॉ. अम्बेडकर के मुद्दे पर कांग्रेस का प्रदर्शन, (दाएं) बीजेपी द्वारा जारी किया गया एडिटेड फोटो जिसमें डॉ. अम्बेडकर की तस्वीर हटाकार जॉर्ज सोरोस की तस्वीर लगा दी गई।
मोदी जी की पार्टी गलत नहीं कहती है। ये जॉर्ज सोरोस तो इंडिया के पीछे ही पड़ गया है। मोदी जी की पार्टी ने दिखाया और सबने देखा कि कैसे बंदे ने संसद के सर्दी के सत्र में ताप इतना बढ़ा दिया कि संसद जो ठप्प हुई सो हुई, बेचारी सरकार के पसीने छूट गए। और चौरासी साल के बूढ़े रिटायर धन्नासेठ ने वहीं सात समंदर पार बैठे-बैठे यह सब किया कैसे?
सिंपल है! अगले से साजिश कर के अमरीका की एक अदालत से हमारे राष्ट्र सेठ के खिलाफ घूसखोरी से लेकर धोखाधड़ी तक के अभियोगों में गिरफ्तारी का वारंट निकलवा दिया। और यह सब किया, संसद का सत्र शुरू होने से ठीक पहले। फिर क्या था, भारत में विपक्ष बने बैठे सोरेस के चेलों ने राष्ट्र सेठ के अमरीकी मुकद्दमे की चर्चा की मांग को लेकर संसद ही ठप्प कर दी। वह तो मोदी जी की सरकार थी, न डरी, न झुकी। साफ कह दिया कि संसद चले तो और रुकी रहे तो, राष्ट्र सेठ के मामले पर संसद में कोई चर्चा नहीं होगी। इतना भी काफी नहीं हुआ, तो दोनों सदनों के सभापतियों ने संपादन मशीन को स्थायी आदेश दे दिया--जब भी राष्ट्र सेठ का नाम आवेगा, रिकॉर्ड पर कुच्छौ नहीं जावेगा। राम-राम कर के सर्दी वाला सत्र पार हुआ। लेकिन, तब तक पट्ठे सोरोस ने बजट सत्र में हंगामे का पूरा इंतजाम कर भी दिया है।
नहीं, नहीं, हम निर्मला ताई के बजट की वजह से हंगामे की बात नहीं कर रहे हैं। हम किसी महंगाई, बेरोजगारी, पब्लिक की बदहाली की वजह से हंगामे की बात नहीं कह रहे हैं। हम किसानों की एमएसपी वगैरह की मांगों, मजदूरों की सही मजदूरी समेत अधिकारों की मांगों, आम पब्लिक की करों का बोझ घटाए जाने, पेट्रोल-डीजल के दाम नीचे लाए जाने की मांगों, वगैरह पर हंगामे की बात नहीं कर रहे हैं। हम रुपए के डालर के मुकाबले घिसकर और छोटा हो जाने और पिचासी रुपये से ज्यादा में एक डॉलर आने की आफत पर किसी हंगामे की बात भी नहीं कर रहे हैं। इन सब पर मोदी जी के भारत में अब कहां कोई हंगामा होता है। वैसे भी ये सब तो हमारे घरेलू मामले हैं। हम तो विदेशी हाथ की हमारी संसद में हंगामे की तैयारियों की बात कर रहे हैं। संसद के पिछले सत्र से ठीक पहले राष्ट्र सेठ पर अमरीका में मुकद्दमे का मामला था, तो शीत सत्र से फौरन बाद यानी बजट सत्र से पहले, पेगासस की जासूसी का मामला लाकर खड़ा कर दिया गया है।
हुआ यह है कि एक अमरीकी अदालत ने, जाहिर है कि जॉर्ज सोरोस के ही इशारे पर, पेगासस बनाने वाली इस्राइली कंपनी एनएसओ को लोगों की अवैध जासूसी कराने का दोषी करार दे दिया है। बेचारी इस्राइली कंपनी इसकी दलीलें ही देती रह गयी कि उसने किसी की जासूसी नहीं करायी है, उसने तो सिर्फ अपने ग्राहकों को जासूसी उपकरण बेचा था। उस जासूसी उपकरण का उपयोग वैध था या अवैध था, किस पर किया गया, इस सब से उनका क्या लेना? कुछ भी गलत हुआ है, तो इसकी जिम्मेदारी ये जासूसी उपकरण खरीदने वाले ग्राहकों की है, वगैरह। पर अदालत नहीं मानी। अदालत ने उसे बंदूक बनाने, बेचने का ही नहीं, चलाने का भी जिम्मेदार ठहराया है। अमरीकी अदालत के हिसाब से तो पेगासस खरीदने वाली सरकारों या सरकारी एजेंसियों ने तो सिर्फ जासूसी का निशाना बनाए जाने वालों के सैलफोन के नंबर दिए थे! सारा कसूर जासूसी की सुपारी लेने वालों का, सुपारी देने वालों का फिलहाल जिक्र ही नहीं।
खैर, अब होगा ये कि पेगासस का मामला तो चलेगा वहां अमरीकी अदालत में और हंगामा होगा यहां मोदी जी के विकसित होते भारत में। मोदी जी ने कितनी मुश्किल से पेगासस के हंगामे को दबाया था। सरकार तो सरकार और संसद तो संसद, सुप्रीम कोर्ट तक को इस काम पर लगाया था। असत्य, अर्द्ध-सत्य, ध्यान बंटाने के पैंतरे, सब कुछ आजमाया था, तब कहीं जाकर यह शोर थमने में आया था। और यह मुश्किल क्यों न होता। दुनिया भर में जिन करीब 1400 लोगों के फोन में जासूसी साफ्टवेयर रोपे जाने का पता चला था, उनमें से 300 फोन नंबर अकेले भारत के ही थे। उनमें भी शीर्ष विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर, दो केंद्रीय मंत्रियों तक के नंबर शामिल थे। यह सब अब दोबारा उठेगा और इसके साथ ही इसका शोर भी कि सरकार ने कैसी तिकड़मों से 2021 में इस मामले को दबाया था। पेगासस खरीदने या सरकारी एजेंसियों से खरीदवाने की बात से साफ-साफ मना भी नहीं किया था और हर बात का खंडन भी किया था। यानी फिर हंगामा। यानी फिर संसद ठप्प। और यह तो तब होगा, अगर जार्ज सोरोस ने खालिस्तान-समर्थक पुन्नू, निज्जर वगैरह के मामले में मुकद्दमों को और आगे नहीं बढ़वा दिया। वर्ना नये साल में अपनी संसद का न जाने क्या हो?
और हां! संसद का शीतकालीन सत्र आखिर में डा. अम्बेडकर के मान-अपमान के जिस मुद्दे पर पर हंगामे की भेंट चढ़ा, वह बेशक घरेलू था। आखिरकार, मान-अपमान जो भी किया, इक्कीसवीं सदी के चाणक्य ने किया था और वह तो शुद्ध देशी मामला हुआ। पर विपक्ष ने इस मामले को लेकर जो हंगामा किया, उसमें सोरोस के या किसी और के विदेशी हाथ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। हां! सरकार की जांच में ही हाथ की राष्ट्रीयता शुद्ध भारतीय सिद्ध हो जाए, तो हम भी मान लेंगे। वैसे सरकारी पक्ष के सांसद षडंगी और राजपूत के घायल मानकर के आईसीयू पहुंचा दिए जाने और संसद का सत्र समय से पहले खत्म हो जाने का सीधा कनेक्शन है और वैसा ही सीधा यानी सीसीटीवी फुटेज मुक्त कनेक्शन राहुल गांधी के धक्के और इन सांसदों के घायल होने का है। और राहुल गांधी के धक्के और जार्ज सारोस का वैसा सीधा कनेक्शन न सही, पर कुछ न कुछ कनेक्शन तो जरूर है। आखिरकार, राहुल गांधी को अपने डौले दिखाने और उसके लिए संसद में टीशर्ट पहनकर जाने के लिए, प्रोत्साहन कहां से मिल रहा है? टीशर्ट तो स्वदेशी परिधान नहीं है। टीशर्ट के पीछे क्या विदेशी हाथ ही नहीं है? फिर राहुल गांधी की तो भारतीय नागरिकता पर सवाल उठाने वाली याचिका भी अदालत में विचाराधीन है। यानी देशी-विदेशी हाथ, मोदी जी और उनके राष्ट्र सेठ को रोकने के लिए आए साथ।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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