सर्व सेवा संघ: ज़मीन मामले में पूर्व डीएम के फ़ैसले को मौजूदा डीएम ने पलटा?

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित सर्व सेवा संघ की ज़मीन के स्वामित्व के मामले में सर्व सेवा संघ की तरफ़ से एक सनसनीखेज़ दावा किया गया है जिसके मुताबिक़ बनारस के पूर्व डीएम चंद्रभानु ने 29 जून 2003 को न सिर्फ गांधी विद्या संस्थान को, बल्कि राजघाट स्थित समूची 12.898 एकड़ ज़मीन पर सर्व सेवा संघ का स्वामित्व माना था। आरोप है कि मौजूदा डीएम एस. राजलिंगम ने पूर्व डीएम चंद्रभानु का न सिर्फ आदेश पलट दिया, बल्कि दान के पैसे से खरीदी गई सर्व सेवा संघ की समूची ज़मीन उत्तर रेलवे के हवाले कर दी।
सर्व सेवा संघ की तरफ़ से एक पत्र साझा किया गया है जिसमें दावा किया गया है कि बनारस के डीएम एस. राजलिंगम ने 27 जून 2023 को अपने फैसले में सर्व सेवा संघ की जिस ज़मीन को उत्तर रेलवे का स्वामित्व बताया है, उसी ज़मीन को 20 साल पहले बनारस के तत्कालीन जिलाधिकारी चंद्रभानु ने उच्चस्तरीय जांच-पड़ताल के बाद सर्व सेवा संघ की संपत्ति माना था। हालांकि न्यूज़क्लिक इस बात की पुष्टि नहीं करता है। पत्र के माध्यम से उनके मुताबिक "चंद्रभानु ने 29 जून 2003 को प्रमुख सचिव नियोजन को भेजे अपने पत्र संख्या-1043 (742) में भूमि स्वामित्व की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि इसके नाम मालिकान में भारतीय सर्व सेवा संघ का नाम अंकित है। राजघाट पर 12.898 एकड़ ज़मीन सर्व सेवा संघ के स्वामित्व की है। तत्कालीन जिलाधिकारी चंद्रभानु ने शासन को भेजे अपने पत्र में तीन पन्नों की रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें आख्या और नजरी नक्शा भी नत्थी किया गया था।"
इस पत्र के माध्यम से ये दावा किया जा रहा है कि जिस ज़मीन पर उत्तर रेलवे अपना क़ब्ज़ा बताता है वह उसकी नहीं है। सर्व सेवा संघ को 'बचाने' के लिए आंदोलन कर रहे सत्याग्रहियों ने बनारस के मौजूदा जिलाधिकारी राजलिंगम पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कहा है कि "उन्होंने पूर्व जिलाधिकारी के फैसले की फाइल भले ही नहीं पलटी, लेकिन फैसला पलट दिया। इनकी भूमिका की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट में देर रात याचिका दायर
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई से इनकार के बाद सर्व सेवा संघ और गांधी स्मारक निधि की ओर से 04 जुलाई की देर रात सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई। इस हाई प्रोफाइल मामले में देश के जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण सर्व सेवा संघ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करेंगे। याचिका में कहा गया है कि "बनारस के जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने उत्तर रेलवे के पक्ष में जो फैसला सुनाया है वह एकतरफा और असंवैधानिक है। किसी भी बैनामे को कूटरचित बताते हुए फैसला सुनाने का बनारस के जिलाधिकारी को कोई अधिकार नहीं है। डीएम एस. राजलिंगम खुद न्यायिक अधिकारी बन गए और ऐसा फैसला सुना दिया है, जो उनके अधिकार क्षेत्र में आता ही नहीं है। उनका फैसला न सिर्फ गलत, बल्कि असंवैधानिक और गैर-कानूनी है।"
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी के ‘सर्व सेवा संघ’ परिसर के भवनों के ध्वस्तीकरण के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने 03 जुलाई 2023 को सर्व सेवा संघ को किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को निचली अदालत में इस मामले से संबंधित लंबित वाद में अपनी शिकायत रखनी चाहिए।
‘अखिल भारत सर्व सेवा संघ’ संगठन की याचिका का निस्तारण करते हुए न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा, ‘‘तथ्यों और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर विचार करते हुए हम इस रिट याचिका को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं। हालांकि, याचिकाकर्ता के पास निचली अदालत में लंबित मूल वाद में यह आवेदन दाखिल करने का विकल्प खुला है।" अखिल भारत सर्व सेवा संघ ने अदालत से वाराणसी के जिलाधिकारी एस. राजलिंगम द्वारा 26 जून, 2023 को पारित आदेश और 27 जून, 2023 को उत्तर रेलवे प्रशासन द्वारा जारी ध्वस्तीकरण का नोटिस रद्द करने का अनुरोध किया था।
"एक ही ज़मीन पर दो फैसले क्यों?"
उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष राम धीरज कहते हैं, "एक ही जिला और एक ही पद पर आसीन दो अफसरों के अलग-अलग फैसले यह साबित करते हैं कि गांधी की विरासत मिटाने के पीछे बीजेपी सरकार और आरएसएस का हाथ है। अफसर तो सिर्फ मोहरे की तरह काम कर रहे हैं। शासन के दबाव में बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने गांधी विद्या संस्थान को अवैधानिक तरीके से पहले इंदिरा गांधी कला केंद्र-नई दिल्ली को सौंपा और बाद में डीएम एस. राजलिंगम ने महात्मा गांधी की समूची विरासत ही उत्तर रेलवे के हवाले कर दी। रेल अफसरों ने एक फर्जी शिकायत के आधार पर कहानी गढ़ दी कि राजघाट की ज़मीन उसकी है और ‘सर्व सेवा संघ’ उस ज़मीन पर अवैध रूप से भवन बनाकर काबिज है। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की संस्तुति पर उत्तर रेलवे ने ‘सर्व सेवा संघ’ को साल 1960, 1961 और 1971 में बैनामा किया था। इस ज़मीन को खरीदने के लिए विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण ने विधिवत चंदा जुटाया था। रेलवे और प्रशासन के अफसर देश को आज़ाद कराने वाले जांबाजों पर सवालिया निशान लगा रहे हैं, जो शर्मनाक है।"
गांधीवादी नेता राम धीरज ‘न्यूज़क्लिक’ से बातचीत में कहते हैं, "बनारस के पूर्व जिलाधिकारी चंद्रभानु ने बीस बरस पहले सर्व सेवा संघ के मामले में शासन को जो अभिलेखीय साक्ष्य भेजा था, उसे भी हम सुप्रीम कोर्ट में नज़ीर के तौर पर पेश करेंगे। हम कोर्ट में विपक्षीगण से इस सवाल का भी जवाब मांगेंगे कि पूर्व डीएम चंद्रभानु का फैसला सही है अथवा मौजूदा डीएम एस. राजलिंगम का? उत्तर रेलवे के अफसर सर्व सेवा संघ की ज़मीन पर फर्जी तरीके से दावा पेश करने के पक्ष में नहीं है, लेकिन वो शासन-प्रशासन के दवाब में हैं। इस मामले में रेलवे के अफसर अपना गला बचाते फिर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि देर-सबेर दूध और पानी साफ हो जाएगा। बीजेपी सरकार व नौकरशाही गांधी की विरासत को मिटाने पर उतारू है और किसिम-किसिम के तर्क गढ़ रही है।"
राम धीरज यह भी कहते हैं, "प्रशासनिक अफसरों को इस बात के लिए भी शर्म नहीं आ रही है कि जो स्थान महात्मा गांधी के विचारों को समृद्ध करने के लिए बनाया गया था, उसे वो क्यों छीनने पर आमादा हैं? हम यह ज़मीन किसी माल अथवा स्टेशन के लिए किसी कीमत पर नहीं देंगे। यह हमारी पवित्र विरासत है। यह बिकाऊ नहीं है। यहां शांति सेना, सर्वोदय साहित्य, कार्यक्रम व युवा प्रशिक्षण का केंद्र है। हम हाईकोर्ट में न्याय के लिए गए थे, लेकिन वहां न्याय नहीं मिला तो हमने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है। हमें भरोसा है कि देश की न्यायपालिका हमें सुनेगी और सच्चाई के पक्ष में फैसला सुनाएगी।"
"बीजेपी सरकार की बदनामी"
अखिल भारतीय सर्व सेवा संघ के प्रांतीय अध्यक्ष चंदन पाल ने गांधी की विरासत पर हमले का आरोप लगाया और इस पर रोष ज़ाहिर करते हुए कहा, "हमारी आवाज़ पूरी दुनिया सुन रही है और अमेरिका समेत यूरोप के कई देशों में मोदी सरकार की बदनामी हो रही है। बीजेपी सरकार गांधी संस्थाओं व खादी केंदों की भूमि हड़पने पर उतारू है। उसने पहले साबरमती पर क़ब्ज़ा जमाया और अब बनारस राजघाट पर उसकी नीयत ठीक नहीं है। सर्व सेवा संघ परिसर में रहने वाले परिवार मानसिक उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं। इनके उत्पीड़न की ज़िम्मेदारी आखिर किसकी है? महज़ तीन दिनों के अंधर ध्वस्तीकरण का नोटिस देना सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार का उल्लंघन है।"
अपनी बात जारी रखते हुए चंदन कहते हैं, "गांधी की विरासत को बचाने के लिए सिर्फ बनारस ही नहीं, देश के तमाम संगठन और संस्थाएं ‘सर्व सेवा संघ’ के साथ हैं। जिला प्रशासन ने जिस तरह से किला कोहना, खिड़कियां घाट, राजघाट की बस्ती को उजाड़ा है, हम उन लोगों की आवाज़ भी यहां से उठा रहे हैं। पीड़ितों न तो कोई मुआवज़ा दिया गया और न ही उनके पुनर्वास की व्यवस्था की गई। गरीबों के साथ बीजेपी सरकार और प्रशासन ने जो छल किया है उसका नतीजा यह है हज़ारों लोग सड़क पर आ गए हैं। इस मामले में अफसरों की जवाबदेही तय होनी चाहिए।"
उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के कार्यालय प्रभारी सौरभ सिंह ने बताया कि पिछले 45 दिनों से सर्व सेवा संघ को लेकर सत्याग्रह आंदोलन चलाया जा रहा है। अब यह आंदोलन देश भर में तेज़ी से फैल रहा है। वह कहते हैं, "सभी प्रदेशों के सर्वोदय मंडल, गांधी निधि केंद्र, गांधी पीस फाउंडेशन समेत तमाम संस्थाएं और स्वयंसेवी संगठन हमारे साथ हैं। दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तराखंड आदि राज्यों से गांधी के अनुयायी बनारस आ रहे हैं।"
सौरभ कहते हैं, "गांधी की विरासत को बचाने के लिए देश के सभी हिस्सों में आंदोलन-प्रदर्शन किए जा रहे हैं। संसद का मानसून सत्र के शुरू होते ही महात्मा गांधी के अनुयायी राष्ट्रपति और देश भर के सांसदों से मिलकर इस मामले में उनसे हस्तक्षेप करने की मांग उठाएंगे। बनारस दौरे पर आ रहे पीएम नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए भी गांधी के अनुयायियों ने समय मांगा है। सर्व सेवा संघ परिसर में 4 जुलाई को भी गांधीवादियों ने दिन भर धरना दिया, उपवास रखा। जब तक सरकार अपना निर्णय नहीं बदलेगी, तब तक सत्याग्रह आंदोलन का सिलसिला जारी रहेगा।"
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(नोट: न्यूज़क्लिक उपरोक्त दावों की पुष्टि नहीं करता है।)
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