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ओये किसान, तू तो बड़ा चीटिंगबाज़ निकला!

कटाक्ष: बेचारे मोदी जी को साल भर, जी हां पूरे साल भर, इसके सब्ज़बाग़ दिखाए कि बस, तीन कानूनों की वापसी की ही बात है। तीन कानून बस। इधर कानून वापस हुए और उधर बार्डर खाली, लेकिन...
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देखा, देखा, किसान कैसा चीटिंगबाज निकला। और चीटिंग भी किस के साथ? विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता के साथ चीटिंग। बेचारे मोदी जी को साल भर, जी हां पूरे साल भर, इसके सब्जबाग दिखाए कि बस, तीन कानूनों की वापसी की ही बात है। तीन कानून बस। इधर कानून वापस हुए और उधर बार्डर खाली। अरे, कानून वापस होने तक भी इंतजार कौन करेगा? नाहक दिल्ली की सर्दी में कोई तंबुओं में क्यों मरेगा? बस मोदी जी एक बार कानून वापस लेने का एलान कर दें, सारा झगड़ा ही खत्म हो जाएगा।

मोदी जी ने शंका भी जतायी कि और मांगें भी थीं, उनका क्या? जो अन्नदाता दिल्ली की सर्दी, गर्मी और बारिश झेलकर, बार्डरों पर डटे रहे हैं, सिर्फ कानून वापस लेने से कैसे उठ जाएंगे? पहली मांग पूरी हो भी गयी, तो क्या दूसरी मांगों के लिए जोर नहीं लगाएंगे? पर इन किसानों ने फेक न्यूज फैला-फैलाकर कानून वापसी का इतना शोर मचा दिया कि मोदी जी जैसा यशस्वी पीएम भी इनके झांसे में आ गया। न किसी से कोई बात की, न किसी से कोई वादा लिया, त्योहार की सुबह दन्न से टीवी पर एलान कर दिया- “कृषि कानून वापस!”

वैसे इसमें मोदी जी की भी गलती नहीं है। वह किसानों से प्यार ही इतना ज्यादा करते हैं, इतना ज्यादा करते हैं कि किसान के लिए अन्नदाता छोडक़र दूसरा कोई शब्द उन्होंने अपनी जुबान पर आने ही नहीं दिया। उनके नजदीकी सहयोगियों तक ने खालिस्तानी, आतंकवादी, मवाली, एंटीनेशनल, पाकिस्तानी-चीनी एजेंट, निकम्मे, मुफ्तखोर, धनपति, विदेशी पैसों से, विदेशी टूलकिट से संचालित, वगैरह-वगैरह, क्या-क्या नहीं कहा! पर मजाल है मोदी जी ने कभी उनके लिए अन्नदाता के सिवा कोई दूसरा शब्द जुबान पर आने दिया हो।

बेशक, बहुत थोड़े से कहा, बहके हुए कहा, अपना भला खुद न समझ पाने वाले कहा, पर मजाल है जो कभी अन्नदाता से हल्का कोई शब्द अपनी जुबान पर आने दिया हो। सच तो यह है कि किसानों का बार्डर पर एक-एक दिन बैठना, उनकी नींद पर भारी पड़ रहा था। सो किसानों को दिल्ली के बार्डरों से वापस भेजने की सदिच्छा ने बेचारे का सावधानी का फिल्टर हटवा दिया और मोदी जी को सहजविश्वासी बना दिया। 

इस हाथ दें के साथ, उस हाथ लें का ख्याल तो, मोदी जी के मन में आया ही नहीं। अन्नदाता के लिए उनका प्यार एकदम्मे इकतरफा जो था। कानून की वापसी दी भी तो कोई मामूली सी शर्त तक नहीं लगायी। वापसी पर दु:ख भी जताया, तो किसी को दोष नहीं दिया। विरोध में आंदोलन करने वालों को तो बिल्कुल ही नहीं। उल्टे सारा दोष अपने ऊपर, अपनी तपस्या में कोई कमी रह जाने पर ही ले लिया। शिवजी बनकर सारा गरल खुद ही पी लिया। पर अन्नदाता कहलाने वालों से उन्हें क्या मिला? सिर्फ धोखा।

सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। न माया मिली न राम। कृषि कानून भी हाथ से गए यानी अडानियों-अंबानियों के दस-बीस फीसद चुनावी बांडों की माया तो हाथ से फिसली ही फिसली समझो। और जब तक देश में चुनाव चल रहा है, तब तक तो वोट ही राम है और श्याम भी, लेकिन वोट हाथ आने का तो कोई जिक्र तक नहीं है। जब दिल्ली के बार्डर तक खाली नहीं हुए, तब ऑपरेशन यूपी, ऑपरेशन उत्तराखंड, ऑपरेशन पंजाब वगैरह के वापस लिए जाने का तो, सवाल ही कहां उठता है!

उल्टे चीटरबाज किसान अब तो सुर बदलकर ऐसे बात कर रहे हैं, जैसे तीन कानूनों की वापसी तो रूंगे में ही हो। जैसे शुरू से उनकी असली मांग तो एमएसपी की कानूनी गारंटी की रही हो; उनकी असली मांग तो अब भी ज्यों की त्यों खड़ी ही हो। जब तक एमएसपी का कानून नहीं, तब तक घर वापसी नहीं! खैर! अन्नदाताओं से इकतरफा मोहब्बत अपनी जगह, मोदी जी अब दोबारा किसानों के झांसे में हर्गिज नहीं आएंगे। नये कानून हटाने की तरह, किसी के कहने से एमएसपी का कानून हर्गिज नहीं बनाएंगे। इकतरफा मोहब्बत के चक्कर में ही सही दोबारा जगहंसाई क्यों कराएंगे? आखिरकार, मोदी जी की इस इकतरफा मोहब्बत से ठेस लगने से जिन हजारों भक्तों के दिल टूटे हैं, उनसे मोदी जी को क्या-क्या नहीं सुनना पड़ा है और वह भी सात साल में पहली बार।

इसके ताने और दिए जा रहे हैं कि और जो कुछ भी किया है, उसे भी वापस ले लो? सीएए-एनआरसी, धारा-370, जीएसटी, एअरइंडिया समेत सार्वजनिक कंपनियों की बिक्री, सवर्ण आरक्षण, चार लेबर कोड, अडानी जी का अंबानी को पीछे छोड़कर एशिया में पहला नंबर, तेल पर बढ़े हुए कर, हरेक मंत्रालय में नागपुरी निगरानी यूनिट, रेलवे का निजीकरण, हबीबगंज से लेकर मुगल सराय, फैजाबाद तक, रेलवे स्टेशनों के नये नाम, अहमदाबाद का मोदी स्टेडियम, रफाल, पेगासस, गोरक्षा, लव जेहाद, भीमा कोरेगांव केस, वगैरह सब कुछ! यूएपीए, एनएसए, सेडीशन के मामलों और उनमें गिरफ्तारियों की खेती भी। और कारपोरेट यारों से बिना कहे इशारों में जो बहुत टैम तक सुनना पड़ेगा, उसका तो हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। अडानी जी को महामारी को अवसर बनाकर एशिया में नंबर वन बनवा जरूर दिया है, पर इससे उनका खेती वाला मलाल खत्म होने वाला नहीं है। सो मोदी जी कम से कम दोबारा वही गलती नहीं करेंगे और एमएसपी कानून पर कंप्रोमाइज कत्तई नहीं करेंगे। बैठे रहें किसान बार्डरों और दो साल, मोदी जी का अपना चुनाव तो उससे भी आगे है।

और किसानों की इस चीटिंग को मोदी जी भूल भी जाएं, पर अपनी ‘‘माफी’’ की बेइज्जती कभी नहीं भूल पाएंगे। बताइए, ऐसा भी कोई करता है क्या कि किसानों का ख्याल कर के मोदी ने किसी भी गलती के लिए कभी माफी नहीं मांगने का अपना बीस साल का अपना रिकार्ड खुद अपनी जुबान से तोड़ दिया और किसान फिर भी माफी देना तो दूर, इसी पर हुज्जत कर रहे हैं, उनसे तो कोई माफी मांगी ही नहीं गयी! माफी तो देश उर्फ अडानी-अंबानी से मांगी है और वह भी इसके लिए कि थोड़े से किसानों को यह नहीं समझा सके कि हाथी के पांव में सब का पांव, उनका फायदा यानी राष्ट्र का फायदा! मोदी जी की माफी का ऐसा अपमान, नहीं सहेगा न्यू इंडिया! इस अन्याय के लिए मोदी जी इन किसानों को कभी माफ नहीं करेंगे। वोट के लिए अगर कभी मुंह से माफ करना भी पड़ा, तब भी दिल से तो माफ कभी नहीं करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

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