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FTII में छात्रों की भूख हड़ताल के बीच 'द केरला स्टोरी' की स्क्रीनिंग, आख़िर चाहता क्या है प्रशासन?

FTII एक स्वायत्त संस्थान है और भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सानिध्य में चलता है। बीते रविवार, 14 मई से यहां एक 27 वर्षीय छात्र अपने निष्कासन को लेकर अन्य छात्रों के साथ भूख हड़ताल पर है।
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देश के प्रतिष्ठित भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान (FTII) पुणे में इन दिनों छात्र और प्रशासन आमने सामने हैं। एक ओर संस्थान के कई छात्र 2020 के बैच से कथित तौर पर निकाले गए एक छात्र की बहाली की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं, तो वहीं दूसरी ओर प्रशासन पर इन विद्यार्थियों की अनदेखी कर 'द केरला स्टोरी' फ़िल्म की स्क्रीनिंग करने का भी आरोप लग रहा है। जिसके चलते कई छात्रों द्वारा इस फ़िल्म का विरोध भी देखने को मिला।

बता दें कि FTII एक स्वायत्त संस्थान है और भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सानिध्य में चलता है। बीते रविवार, 14 मई से यहां एक 27 वर्षीय छात्र अपने निष्कासन को लेकर अन्य छात्रों के साथ भूख हड़ताल पर है। आज सोमवार, 22 मई को उनका यह आंदोलन आठवें दिन में प्रवेश कर गया है। वहीं इस भूख हड़ताल पर बैठने के चलते एक छात्र को शुक्रवार, 19 मई के दिन तबीयत बिगड़ने के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां ये उसे हाल ही में डिस्चार्ज मिला है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक राजस्थान के दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले आयुष वर्मा जो कि संस्थान में डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले राइटिंग विभाग के 2020 बैच के छात्र हैं, उन्हें ‘खराब अकादमिक रिकॉर्ड’ और न्यूनतम उपस्थिति दर्ज नहीं करने का हवाला देते हुए हाल ही में प्रशासन द्वारा अनुत्तीर्ण कर दिया गया था। आयुष की कम उपस्थिति का कारण उनका मनोरोग (Psychiatry) का इलाज बताया जा रहा है, जिसके मेडिकल दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने के बाद भी संस्थान उन्हें कोई राहत देने को तैयार नहीं है।

न्यूज़क्लिक से बातचीत में आयुष ने बताया कि उनका विरोध बीते 10 अप्रैल से ही जारी है, जब प्रशासन ने पर्याप्त उपस्थिति न होने के कारण आयुष समेत पांच छात्रों को निष्कासित करने का निर्णय लिया था। इसके बाद 1 मई की  एकेडमिक काउंसिल मीटिंग में पांच स्टूडेंट्स में से चार का निष्कासन रद्द कर दिया गया, लेकिन उनके मामले पर विचार नहीं किया गया। जबकि उन्होंने सभी मेडिकल प्रमाण, चिकित्सक की जानकारी जो प्रशासन ने मांगे थे, वो उन्हें समय से उपलब्ध करवा दिए थे।

आयुष के अनुसार उनके मेडिकल प्रमाणों को संस्थान ने ‘पर्याप्त’ नहीं माना लेकिन बिना उनकी जानकारी के रजिस्ट्रार ने उनके मनोचिकित्सक से संपर्क कर उनकी बीमारी और अन्य चिज़ों को लेकर दबाव बनाया, जो किसी के भी निजता के अधिकार का उल्लंघन है। इसके साथ ही जिस तरह आयुष के मामले में अन्य छात्रों के मुकाबले प्रशासन ने अलग रुख अपनाया, उसे वो न केवल अपनी गरिमा बल्कि बराबरी के अधिकार के उल्लंघन के तौर पर भी देखते हैं।

आयुष ने संस्थान को लिखे अपने एक पत्र में बताया है कि उनके मेडिकल लीव सर्टिफिकेट जमा करे के बाद उनकी जरूरी उपस्थिति पूरी हो गई है। इसके अलावा उनके दो वैकल्पिक पाठ्यक्रमों में हिस्सा लेने के चलते उनकी आवश्यक 16 क्रेडिट का अकादमिक पर्फोमेंस रिकॉर्ड भी सही हो गया है। ऐसे में अब डीन द्वारा उनकी छवि को सार्वजनिक तौर पर खराब करने की कोशिश की जा रही है, जोकि उन्हें व्यक्तिगत तौर पर टारगेट करने का प्रयास है।

जातिगत भेदभाव का शिकार हो रहे हैं आयुष?

आयुष आगे लिखते हैं, कि उनका अकादमिक रिकॉर्ड शानदार रहा है, वो यहां आने से पहले भारतीय प्रदौगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली के छात्र रहे हैं और कंप्यूटर इंजिनियर के तौर पर नौकरी भी कर चुके हैं। उन्होंने जातिगत भेदभाव का जिक्र करते हुए कहा है कि उन्होंने बहुत कुुछ झेला है, उनका मानना था कि यहां आकर वो अपने लोगों की बात रख पाएंगे लेकिन संस्थान का उनके प्रति व्यवहार उन्हें यहां फिर भेदभाव का शिकार बना रहा है।

ध्यान रहे कि आयुष और उनके साथियों के इस प्रदर्शन को एफटीआईआई छात्रसंघ का समर्थन मिला है। छात्र संघ ने प्रशासन को पत्र लिखतक आयुष के निष्कासन को बिना किसी भेदभावपूर्ण शर्तों के वापस लेने और तीसरा सेमेस्टर प्रारंभ से शुरू करने के साथ ही प्रॉक्टर द्वारा प्रदर्शनकारी छात्रों को दिए गए अनुशासनात्मक नोटिस को रद्द करने की मांग की है। वहीं आयुष के 2020 बैच के 43 छात्रों ने भी अपनी कक्षाओं का बहिष्कार किया है।

छात्रों की भूख हड़ताल के बीच 'द केरला स्टोरी' की स्क्रीनिंग

संस्थान के छात्र और आयुष के सीनियर अखिल न्यूज़क्लिक से कहते हैं कि छात्र पिछले कई दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे हैं, उनकी तबीयत खराब हो रही है। उनकी बस यही मांग है कि एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग तत्काल प्रभाव से बुलाई जाए लेकिन प्रशासन ने इन सब मामलों को प्राथमिकता देने के बजाय फ़िल्म 'द केरला स्टोरी' की स्क्रीनिंग करवाकर पूरा फोकस ही शिफ्ट कर एक अलग एंगल देने की कोशिश की। एक ओर छात्र शांति से फ़िल्म का विरोध कर रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर इसके ऑर्गनाइजर्स और इन्वाइटीस भड़काऊ सांप्रदायिक नारे लगाकर छात्रों को उकसा रहे थे।

अखिल आगे बताते हैं कि इस फ़िल्म की स्क्रीनिंग को सफल बनाने के लिए करीब 150 से ज्यादा पुलिस फोर्स को तैनात किया गया था, जिसकी छात्रों को कोई जानकारी तक नहीं थी। 'छात्रों के स्पेस' को किसी फ़िल्म के लिए देना, जिससे संस्थान की शांति भंग हो सकती है, प्रशासन की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है।

गौरतलब है कि संस्थान में 30 मई को अकादमिक परिषद की मीटिंग होनी है, जिसमें अन्य मुद्दों के साथ ही आयुष के मामले को देखने की बात प्रशासन कर रहा है। लेकिन छात्र इससे संतुष्ट नहीं हैं और उनका विरोध लगातार जारी है। न्यूज़क्लिक ने इस संबंध में भारतीय फ़िल्म और टेलीविजन संस्थान के प्रशासन से संपर्क करने की कोशिश की है, जैसे ही कोई जवाब आएगा खबर अपडेट की जाएगी।

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