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IIMC के हिंदी पत्रकारिता विभाग में कुछ तो ज़रूर 'पक' रहा है!

IIMC के हिंदी पत्रकारिता विभाग के चार छात्र 3 फरवरी से कैंपस में धरने पर बैठे हैं। 12 जनवरी से चले आ रहे मामले में एक जांच कमेटी के काम करने के तरीके और रिपोर्ट जारी करने में देरी समेत कई आरोपों के साथ ये छात्र धरना कर रहे हैं।
IIMC
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भारतीय जनसंचार संस्थान  IIMC (Indian Institute of Mass Communication) जिसकी स्थापना  17 अगस्त 1965 को इंदिरा गांधी ने की थी। ये शुरुआत बहुत छोटे से स्टाफ और UNESCO के दो सलाहकारों के साथ हुई थी। 

इसी संस्थान के गेट से अंदर घुसते ही कुछ दूरी पर मेन बिल्डिंग के गेट पर भारत के संविधान के दो पोस्टर लगे थे - एक हिंदी में और एक अंग्रेजी में - जिसपर लिखा था भारत का संविधान। उद्देशिका की उस लाइन पर जाकर निगाह ठहरती है जिसमें ज़िक्र है कि ''सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता'' ये लफ़्ज़ कितने पावरफुल हैं इसका एहसास मौजूदा दौर में जितना हो रहा है शायद ही पहले कभी हुआ होगा। 

देश के संविधान से नज़र हटी तो IIMC की बिल्डिंग के गेट पर लगे  उन तमाम पोस्टर पर जाकर टिकी जिन पर लिखा था कि ''IIMC के शिक्षक भावी पत्रकारों को प्लेसमेंट के नाम पर गुलाम बनाना बंद करें'', ''IIMC की कक्षाओं में RSS की स्कॉलरशिप का प्रचार करना IIMC के प्रोफेसर बंद करें'', ''IIMC प्रशासन महिला कर्मचारियों/छात्राओं द्वारा झूठे आरोप लगवा कर मुझे फंसाने की कोशिशों से बाज़ आएं'', ''सवाल करने वाले छात्र माओवादी कैसे? IIMC जवाब दो''। जिस संस्थान में घुसने से पहले संविधान की उद्देशिका पर नज़र पड़ती हो वहां इस तरह के पोस्टर किसी को भी परेशान कर देंगे। 

देश में प्रेस की आज़ादी से पूरी दुनिया वाक़िफ है। ऐसे में भारत का वो संस्थान जहां ऐसे छात्र तैयार किए जाते हैं जिन्हें सवाल करने का हुनर सिखाया जाता है वहां लगे ये पोस्टर बेशक सवाल खड़े करते हैं। 

आख़िर किसने लगाए ये पोस्टर और क्यों

IIMC के चार छात्रों (जिनमें दो लड़के और दो लड़कियां शामिल हैं) ने 3 फरवरी शाम 5 बजे संस्थान की मेन बिल्डिंग के गेट में अपना धरना शुरू किया और इस ख़बर के लिखे जाने तक ये छात्र धरने पर ही बैठे थे। ये पोस्टर इन्हीं छात्रों ने लगाए हैं। ये छात्र IIMC के हिंदी पत्रकारिता विभाग के हैं। पोस्टर पर लिखी बातें इनकी मांगे हैं और ये इन छात्रों के मुताबिक़ वे उस वक़्त तक धरने पर बैठे रहेंगे जब DG उनसे आकर बात नहीं करते। 

क्या है पूरा मामला

ये पोस्टर क्यों लगे ये समझने के लिए एक टाइमलाइन को समझना होगा और कुछ दिन पीछे जाना होगा। 

12 जनवरी 

धरने पर बैठे एक छात्र का आरोप है कि 12 जनवरी को उनका लैब जर्नल पब्लिश होना था लेकिन उसकी स्टोरी उसमें पब्लिश नहीं की गई थी। 

(ये स्टोरी IIMC के उन गार्ड्स पर की गई थी जिन्हें एक जनवरी को बिना वेतन दिए निकालने का आरोप है) स्टोरी पब्लिश न होने पर नाराज़ छात्र ने वजह जानने की कोशिश की तो आरोप है कि उसे जवाब मिला कि ''हम यहां पढ़ने आए हैं क्रांति करने नहीं''। देखते ही देखते क्लास का माहौल गर्मा गया और इस दौरान क्लास में प्रो. राकेश कुमार उपाध्याय मौजूद थे। गौरतलब है कि राकेश कुमार उपाध्याय क्लास के कोर्स डायरेक्टर भी हैं। क्लास में गहमागहमी के दौरान धरने पर बैठे छात्र ने आरोप लगाया कि उन्हें क्लास में एक छात्रा ने ''माओवादी'' कहकर बुलाया और उसे आपत्तिजनक इशारा किया। आरोप है कि ये सब प्रोफेसर की मौजूदगी में हो रहा था। इस दौरान इन चार छात्रों में से एक ने घटना का वीडियो भी बना लिया जिसे प्रोफेसर राकेश कुमार उपाध्याय ने डिलीट करने के लिए कहा पर छात्रों ने वीडियो डिलीट करने की बजाए घटना के बारे में ट्वीट किए और धरने पर बैठ गए, साथ ही उन्होंने Director General (DG) संजय द्विवेदी को एक पत्र लिखकर सारा मामला बताया। रात होते होते DG धरने पर बैठे छात्रों से मिले और उन्होंने मामले की निष्पक्ष जांच करवाने के लिए डिसिप्लिनरी कमेटी के गठन की बात कही। उस दिन DG के कहने पर छात्रों ने अपना धरना वापस ले लिया। 

लेकिन उसके बाद कुछ घटनाएं हुई जैसे - 

13 जनवरी 

छात्रों का आरोप है कि घटना के एक दिन बाद 13 जनवरी को लैब जर्नल को लेकर छात्रों के एक अनऑफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप पर लैब नियम को लेकर एक लेटर आता है जिसमें साफ-साफ़ लिखा था कि 

''अपने संस्थान या विभाग की गरिमा को सर्वोपरि रखते हुए उससे संबंधित समाचार या स्टोरी बग़ैर उपयुक्त प्राधिकारी की अनुमति के लैब जर्नल में प्रकाशन का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए''

इस लेटर की सबसे ख़ास बात थी कि इस पर हस्ताक्षर की जगह पर सिर्फ़ राकेश लिखा है जबकि इस लेटर पर संस्थान की कोई स्टैंप नहीं लगी थी। 

इस नियम पर धरने पर बैठे छात्र का कहना है कि ''ये नियम क्यों लाया गया समझ से परे है। क्या ये कोई सेंसरशिप है? पूर्व में ऐसा कोई भी नियम नहीं था कोई भी किसी भी तरह की ख़बर कर सकता था, लेकिन अब आप संस्था के विरुद्ध कोई ख़बर नहीं कर सकते, शायद इन्हें डर है कि हम ख़बरों में ये भी लिखेंगे कि यहां (IIMC में) क्या पढ़ाया जाता है।''

20 जनवरी 

20 जनवरी को पहली डिसिप्लिनरी कमेटी की बैठक हुई। चार सदस्यों वाली इस कमेटी में छात्रों का आरोप है कि दो लोग नॉन टीचिंग स्टाफ से थे और मीटिंग शुरू होने से पहले ही उन्हें मोबाइल फोन स्विच ऑफ करने के लिए कहा गया, जिस पर छात्रों ने इनकार कर दिया और मीटिंग से बाहर आ गए। इसके बाद दूसरी मीटिंग के लिए चारों छात्रों को एक साथ बुलाने की बजाए सबको अलग-अलग तारीख़ में अलग-अलग दिन बुलाया गया। इन सब में एक लंबा वक़्त लग रहा था जिसे लेकर ये चारों छात्र एक बार फिर DG से मिलने पहुंचे लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। छात्रों  ने बताया कि IIMC के नियम के मुताबिक़ तो अगर कोई भी जांच होती है तो उसकी रिपोर्ट 15 दिन के अंदर आ जानी चाहिए। पर इस मामले में अब तक कोई रिपोर्ट नहीं आई है। 

24 जनवरी 

इस बीच धरने पर बैठे एक और छात्र का आरोप है कि नए जर्नल नियम को लेकर उन्होंने 24 जनवरी को  DG को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने लिखा था कि '' मैं लैब जर्नल के नियम से असहमत हूं, मुझे इस बारे में कोई ऑफिशियल जवाब दीजिए''

31 जनवरी 

इसी छात्र का आरोप है कि वे जवाब के लिए 31 जनवरी को DG ऑफ़िस पहुंचे तो वहां उन्हें कहा गया कि ''आपका लेटर Dean of academics को बढ़ा दिया गया है'' इस सिलसिले में जब छात्र Dean of academics के पास पहुंचा तो उसका आरोप है कि ऑफ़िशियली तो उसे कोई जवाब नहीं मिला लेकिन बहुत बुरी तरह से उसे डांटा गया। जिसके बाद से वो बेहद परेशान है, छात्र ने न्यूज़क्लिक से कहा कि ''इन सब बातों से मैं इतना परेशान हो चुका हूं कि मैंने संस्थान छोड़ने का मन बना लिया है।''

ताज़ा घटना क्या हुई जिसकी वजह से छात्र दोबारा धरने पर बैठ गए

डिसिप्लिनरी कमेटी की दूसरी मीटिंग में सभी छात्रों को एक साथ बुलाने की बजाए चारों छात्रों को अलग-अलग बुलाया गया। इनमें से एक छात्र का आरोप है कि लगातार दो ऐसी घटनाएं हुई जिससे उन्हें अंदेशा है कि उन पर कोई बड़ा बेबुनियाद आरोप लगाया जा सकता है। इस सिलसिले में वो दो घटनाओं का हवाला देते हैं। पहली घटना के बारे में वो बताते हैं कि डिसिप्लिनरी कमेटी में एक नॉन टीचिंग स्टाफ हैं जो शायद गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन हैं। एक दिन कैंपस में वो दिखीं तो चारों छात्रों ने उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन छात्रों का आरोप है कि जैसे ही वो उनके पास पहुंचे वे तेज़ क़दमों से आगे बढ़ गईं (छात्रों का दावा है कि जहां ये घटना हुई वहां CCTV लगा हुआ है उसे देखा जा सकता है) लेकिन जब दूसरी डिसिप्लिनरी कमेटी की मीटिंग हुई तो उसी महिला वार्डन ने चारों छात्रों में से एक छात्र पर गंभीर आरोप लगा दिया। 

3 फरवरी 

छात्रों का आरोप है कि 3 फरवरी को वे सभी लाइब्रेरी में पढ़ रहे थे कि तभी लाइब्रेरी में कुछ शोर करने वाली मशीनों का काम शुरू हो गया, उन छात्रों में से एक ने आपत्ति जताई तो लाइब्रेरी में महिला कर्मचारी ने उन्हें 'देख लेने' की धमकी दी। जिसके बाद छात्रों को डर है कि हो सकता है चारों में से एक छात्र को किसी गंभीर आरोप में फंसाया जा सकता है इसलिए वो 3 फरवरी की शाम से धरने पर बैठ गए। 

छात्रों का एक गंभीर आरोप

 इन आरोपों के अलावा छात्रों का आरोप है कि लगातार उन्हें क्लास में बुली किया जा रहा है, वो मानसिक तौर पर बहुत परेशान हो गए हैं। इसके अलावा इन छात्रों ने एक गंभीर आरोप भी लगाया कि  ''प्रोफेसर IIMC की कक्षाओं में RSS की स्कॉलरशिप का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।''

क्लास के 60 छात्र बनाम 4 छात्र चल रहा है क्या? 

इससे पहले की स्कॉलरशिप का मामला समझा जाए पहले छात्रों के धरने पर लौटते हैं। 64 छात्रों की क्लास में बाक़ी के 60 छात्रों का क्या कहना है, ज़रा इसकी भी पड़ताल करते हैं। इस मामले में न्यूज़क्लिक ने कुछ छात्रों से फोन पर बात करने की कोशिश की। कई छात्रों ने बात तो की लेकिन कोई भी 12 जनवरी को क्लास में क्या हुआ था, इसपर मुंह नहीं खोलना चाहता। बातचीत से महसूस हुआ कि कोई भी छात्र नहीं चाहता था कि उनका नाम मीडिया में आए। लेकिन उन्होंने न्यूज़क्लिक से बार-बार कहा कि ''अपनी रिपोर्ट में दोनों पक्ष ज़रूर लिखें'' लेकिन जब हमने दूसरा पक्ष जानने की कोशिश की तो ख़ामोशी हाथ लगी। ऐसे में ये कैसे पता लगाए जाए कि आख़िर दूसरे पक्ष का क्या कहना है, क्या आरोप हैं? 

 न्यूज़क्लिक ने उस स्टूडेंट से भी बात की जिस पर ''माओवादी'' बोलने का आरोप लगा है। बहुत ही घबराई हुई हालात में उसने कहा कि उसने इस शब्द का कतई इस्तेमाल नहीं किया है, ये शब्द कहां से चर्चा में आ गया पता नहीं चल रहा है। उस स्टूडेंट का आरोप है कि उल्टा उसके साथ बदसलूकी हुई है। जिसके बाद वे बहुत डरा हुआ महसूस कर रही है। वह स्टूडेंट मानती है कि गुस्से में उसने क्लास में अभद्र इशारा किया। लेकिन वो सिर्फ़ गुस्से में हुई एक प्रतिक्रिया थी। इससे ज़्यादा कुछ नहीं। मामला बढ़ता देख उस स्टूडेंट का परिवार भी परेशान है।

क्लास के दूसरे छात्र धरने पर बैठे छात्रों पर आरोप लगा रहे हैं। लेकिन जब उनसे खुलकर आरोप पूछने की कोशिश की जा रही है तो ख़ामोशी हाथ लग रही है। लेकिन इन सभी छात्रों का एक जवाब कॉमन था कि ''हम यहां सिर्फ़ पढ़ाई करने आए हैं हमें बस उसी से मतलब है'' एक संस्थान जो पत्रकारिता की पढ़ाई करवा रहा है अगर वहां के छात्र क्लास में हुई घटना पर खुलकर अपनी बात नहीं रख पा रहे तो क्या ही कहा जाए। 

डीजी की प्रतिक्रिया 

इस पूरे मामले पर IIMC के DG संजय द्विवेदी से भी फ़ोन पर बात हुई जिनका जवाब था कि ''इस वक़्त मैं शहर से बाहर हूं, मुझे मामले के बारे में नहीं पता, मैं जानकारी मिलने पर ही कुछ कह पाऊंगा।''

डीजी साहब शहर में नहीं हैं और सर्द मौसम में छात्र 3 फरवरी से धरने पर बैठे हैं और उनका कहना है कि वो तब तक धरने से नहीं हटेंगे जब तक कि डीजी साहब से उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिलता। 

क्या है RSS की स्कॉलरशिप का मामला? 

धरने पर बैठे छात्रों का आरोप है कि क्लास के क़रीब 20 छात्रों को एक धार्मिक/आध्यात्मिक संस्था से जुड़े संस्थान श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फोर ह्यूमन एक्सीलेंस (Sri Sathya Sai University for Human Excellence) की तरफ़ से स्कॉलरशिप दिलवाई गई है। 

इस मामले में जिन छात्रों को स्कॉलरशिप मिली है उनमें से एक छात्र से न्यूज़क्लिक ने बात करने की कोशिश की पर उन्होंने फोन नहीं उठाया। लेकिन कुछ और छात्रों से पता चला कि जिन छात्रों को ये 'स्कॉलरशिप' मिली है वे बेहद ग़रीब परिवार से आते हैं। 

धरने पर बैठे छात्रों का आरोप 

धरने पर बैठी छात्रा ने आरोप लगाते हुए कहा कि -''कोर्स शुरू हुए चार या पांच दिन हुए थे अचानक हमारे कोर्स डायरेक्टर सत्य साईं कोई संस्था है उसके लोगों को लेकर क्लास में आते हैं, उनका सेमिनार करवाते हैं, अनौपचारिक तरीक़े से। पहले से हमें कोई जानकारी नहीं दी गई थी, फिर उस संस्था के लोगों की तरफ़ से क्लास में स्कॉलरशिप के लिए फॉर्म बांटे जाते हैं और 20 से 25 लोगों को स्कॉलरशिप मिलती है।''

सवाल- लेकिन अगर किसी जरूरतमंद छात्र को स्कॉलरशिप मिल रही है तो इसमें दिक़्क़त क्या है?

धरने पर बैठी छात्रा का जवाब - इतना बड़ा सरकारी संस्थान है हमारा,  अगर स्टूडेंट्स को कोई आर्थिक दिक्कत हो रही है तो सबसे पहले तो संस्थान को इस पर गौर करना चाहिए न, बाहर से अनौपचारिक तरीक़े से स्कॉलरशिप कैसे बांटी जा सकती है? जिसकी कोई जानकारी वेबसाइट पर नहीं है, उससे जुड़ा कोई भी काम औपचारिक तरीक़े से नहीं हुआ है, कोई नोटिस नहीं निकाला गया है, चुपचाप छात्रों को बांटी गई है, ये तो ग़लत है ना।''

दूसरे पक्ष का क्या कहना है

इस सिलसिले में जब दूसरे छात्रों से बात की गई तो बताया गया कि कुछ बेहद ग़रीब छात्र हैं जिन्हें ये स्कॉलरशिप मिली है। छात्रों ने ये भी बताया कि उन ज़रूरतमंद छात्रों ने ख़ुद अपने लेवल पर इस स्कॉलरशिप को अप्लाई किया था और फिर उन्हें ये स्कॉलरशिप मिली है। हालांकि ये साफ़ नहीं हो पाया कि आख़िर कितने छात्रों को स्कॉलरशिप मिली है, किसी ने बोला चार को, तो आरोप लगाने वालों छात्रों ने कहा 20 को। लेकिन सही आंकड़ा क्या है पता नहीं।  

Sri Sathya Sai University for Human Excellence के बारे में कुछ जानकारी 

ये यूनिवर्सिटी कर्नाटक में है, जिसकी वेबसाइट  पर जाने पर पता चलता है कि ये गुरुकुल स्टाइल के एजुकेशन सिस्टम में विश्वास रखते हैं। 

साथ ही इस वेबसाइट के Academic सेक्शन पर जाकर अगर क्लिक करें तो एक वहां पढ़ाने वालों की एक लिस्ट खुलती है और उसमें सबसे ऊपर प्रोफेसर राकेश कुमार उपाध्याय का नाम विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर दिखता है। इसके अलावा  Sri Sathya Sai University for Human Excellence के पहले दीक्षांत समारोह में RSS सरसंघचालक मोहन भागवत ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की थी।

जिस वक़्त प्रोफेसर राकेश कुमार उपाध्याय की IIMC में नियुक्ति हुई थी न्यूज़लॉन्ड्री ने उन पर एक स्टोरी की थी जिसे पढ़ा जाना चाहिए। हालांकि इस मामले पर हमारी भी उनसे एक लंबी अनौपचारिक फोन पर बातचीत हुई और उस बातचीत में उन्होंने न्यूज़क्लिक को समझाने की कोशिश की वो एक ''बहुत बड़े'' पत्रकार हैं। कई ऊंचे संस्थानों में काम कर चुके है। एक पत्रकार होने के नाते उन्होंने ये क्यों ''समझाने'' की कोशिश की जाहिर था। 

संस्थान के कुछ छात्रों (जिनमें कुछ बेहद ग़रीब हैं) को स्कॉलरशिप मिली है, ये तो सच है। और वो स्कॉलरशिप श्री सत्य साई यूनिवर्सिटी फोर ह्यूमन एक्सीलेंस की तरफ़ से मिली है, ये भी सच है। लेकिन सत्य साई RSS से जुड़ा है, ये नहीं कहा जा सकता (कम से कम सीधे तौर पर जुड़ा नहीं दिखता) लेकिन उस संस्थान की विचारधारा RSS की विचारधारा से प्रभावित ज़रूर दिखती है।   

 आरोप लगा रहे छात्रों के भी कुछ सवाल हैं 

अगर स्कॉलरशिप मिल रही थी तो उन्हें क्यों नहीं मिली? और जिन छात्रों को स्कॉलरशिप मिली है उनमें सभी ऐसे नहीं हैं जो बेहद ग़रीब हों। दूसरा स्कॉलरशिप की जानकारी IIMC की वेबसाइट पर क्यों नहीं है?  

क्लास में या फिर क्लास के बाहर जो भी चल रहा है उससे एक बात तो साफ़ नज़र आती है कि इससे पूरी क्लास प्रभावित है, छात्र परेशान हैं, मेंटल ट्रॉमा से गुज़र रहे हैं। अगर किसी का नुकसान हो रहा है तो वे सिर्फ़ और सिर्फ़ छात्र ही नज़र आ रहे हैं। ये पूरा विषय जांच का लगता है लेकिन जांच के नाम पर जो कमेटी बनी है उसकी रिपोर्ट अब तक क्यों नहीं आई ये भी एक सवाल है। और इन सबकी वजह से अगर कोई छात्र ये कहे कि ''मैं परेशान होकर संस्थान छोड़ना चाहता हूं'', या फिर कोई ये कहे कि ''हमें संस्थान में जाने से डर लगता है'' तो छात्रों की इन दिक्कतों को कौन हल करेगा? 

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