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विशेष : नेहरू की ज़रूरत आज ज़्यादा है

जिस तरह सफ़ेद झूठ भी बार-बार बोले जाने से सच मान लिया जाता है, वैसे ही नेहरू के बारे में प्रचारित किया जाने वाला झूठ भी बहुत से लोग सच मानने लगे हैं।
Jawaharlal Nehru

देश में जैसे-जैसे असहिष्णुता बढ़ती जा रही है वैसे वैसे नेहरू की उपादेयता तथा उनकी यादें और अपरिहार्य बनती जा रही हैं। नेहरू ऐसे में एक मिसाल बन गए हैं जिन्होंने ज़हालत और असहिष्णुता के उस दौर में भी अपना धीरज और विवेक नहीं खोया, जब पूरे देश में मारकाट मची थी और बंटवारे की आग से समूचा हिंदुस्तान सुलग रहा था। एक तरफ पंजाब था और दूसरी तरफ बंगाल। दोनों ओर से हजारों की तादाद में शरणार्थी रोज आते और अपने साथ लाते बर्बरता व दुखों की दास्तान। जिन्हें सुनकर लगता था कि आदमी अपने अंदर की मनुष्यता को खो चुका है तथा वह हैवान बन गया है। पाकिस्तान के हुक्मरानों ने इस बर्बरता व जहालत के विरुद्ध कोई ठोस कदम नहीं उठाया था और नतीजे में हिंदुस्तान आए शरणार्थी चाहते थे कि उन्हें भी पाकिस्तान जैसी खूँरेज़ी करने की इजाजत दी जाए। पर नेहरू अडिग रहे और सरदार पटेल के विपरीत नेहरू ने कभी भी संयम नहीं खोया जबकि नेहरू को निजी तौर पर भी पंजाब के बटने से दुख हुआ था।

उन नेहरू के विरुद्ध आजकल ऐसा प्रचार अभियान चल रहा है, कि लगता है सारी समस्याओं की जड़ में नेहरू हैं। उनके कामकाज और उनकी शख़्सियत को नष्ट करने के लिए नफ़रत के बीज बोये जा रहे हैं। उन्हें बंटवारे का कारक बताया जा रहा है और सेकुलरिज़्म की आड़ में उन्हें हिंदू धर्म और हिंदू समुदाय का शत्रु तथा उन्हें प्रच्छन्न मुस्लिम प्रचारित किया जा रहा है।

जिस तरह सफ़ेद झूठ भी बार-बार बोले जाने से सच मान लिया जाता है, वैसे ही नेहरू के बारे में प्रचारित किया जाने वाला झूठ भी बहुत से लोग सच मानने लगे हैं। अभी हाल में पद्म पुरस्कार लेते समय अभिनेत्री कंगना रनौत ने बहुत ही फूहड़ तरीक़े से आज़ादी को भीख बता दिया और कहा, कि असली आज़ादी तो 2014 में मिली। यह समूचे इतिहास को झूठ बताने की साज़िश है। कंगना के इस बयान पर हमले तो ख़ूब हुए लेकिन जो बात देश के आम लोगों में घुस गई है, उसे कैसे निकाला जाए।

नेहरू के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कहा जा रहा है कि उनके पुरखे मुसलमान थे और बादशाह फ़रुख़शियर के समय वे लोग दिल्ली आ गए और कश्मीरी पंडित के रूप में उनकी पहचान बन गई। यह किसी के परिवार को बदनाम करने की पुरुषवादी सोच है। क्योंकि पुरुषवादी सोच अपनी रक्त शुद्धता को लेकर सदैव इस तरह के लिए अपने को पुरुष परंपरा से बंधा हुआ बताते हैं। हालाँकि इस तरह का दुष्प्रचार करने वाले भूल जाते हैं कि जिस हिंदू धर्म में असंख्य जातियाँ हैं, उसमें कैसे कोई दूसरे धर्म से प्रवेश पा सकता है। हिंदू समाज में व्यक्ति को अपनी जाति बिरादरी बतानी पड़ेगी, जो जन्म से मिलती है। किसी भी जाति में कोई और प्रवेश नहीं पा सकता है। तब फिर नेहरू परिवार कैसे कश्मीरी पंडित बना होगा? दरअसल यह प्रचार इसलिए किया जा रहा है, ताकि नेहरू को मुस्लिम बता कर टारगेट किया जा सके। 

नेहरू आधुनिक राष्ट्र-राज्य के हामी थे और लंदन में शिक्षा के दौरान वे यूरोप की खुली संस्कृति और सोशलिस्ट इंटरनेशनल के भी संपर्क में रहे थे। अर्थ व्यवस्था के बारे में उनके विचार आधुनिक और पुरातन विरोधी थे। वे भले कम्युनिस्टों से पूरी तरह सहमत नहीं रहे हों पर हीगेल के द्वंदात्मक भौतिकवाद के वे हामी थे और भारतीय मिथकों और प्रतीकों के प्रति उनका नजरिया आधुनिक तो था ही साथ में परंपरागत रूप से वे द्वंदात्मक दर्शन को भी पसंद करते थे और शायद यही कारण रहा कि जब देश आजाद हुआ तो यही द्वंदात्मक दर्शन के प्रति उनका झुकाव उन्हें भारत के परंपरागत बौद्ध दर्शन की तरफ ले गया। मगर अर्थ व्यवस्था वे ऐसी चाहते थे जो बौद्धकाल से नहीं बल्कि पूरी तरह आधुनिक समाजवादी हो। नेहरू के वैचारिक खुलेपन और उनकी असंकीर्ण सोच की वजह भी यही थी। इसीलिए नेहरू गांधी के बाद के सबसे बड़े और उदार तथा सहिष्णु राजनेता थे। नेहरू के अंदर जो आधुनिक सोच के साथ-साथ अध्यात्म दिखता है वह गांधी जी की वजह से उनमें आया। नेहरू भले लंदनयिा कामरेड रहे हों पर भारत को समझने के लिए यह शिक्षा नाकाफी थी और तब काम आए महात्मा गांधी जिन्होंने नेहरू को भारतीय कायदों की शिक्षा दी। अहिंसा का वह मूलमंत्र दिया जो समस्त भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बांधता था। यही आगे चलकर नेहरू जी के जीवन का दर्शन भी बन गया।

जवाहर लाल नेहरू का नेतृत्व कांग्रेस में सर्वमान्य नहीं था। उस समय दक्षिणपंथी कांग्रेस में बहुत थे, इसीलिए असंख्य पार्टी जन उनके विरोधी थे। इसीलिए नेहरू के मामले में गांधी जी को सदैव एक तानाशाह जैसा रोल अदा करना पड़ा। कई बार वे नेहरू के हितों के लिए अड़े और अंततः वे नेहरू को उस कुर्सी तक पहुंचाने में कामयाब रहे जहां पहुंचना नेहरू जी की महात्वाकांक्षा थी। इसकी वजह यह नहीं थी कि गांधी जी ने नेहरू को अन्य लोगों के मुकाबले आगे बढ़ाकर कोई अनुचित कदम उठाया। दरअसल जैसा कि गांधी जी स्वयं कहा करते थे कि मैं कांग्रेस का अकेला डिक्टेटर हूं, वे जानते थे कि नेहरू अकेले ऐसे शख्स हैं जो आजाद भारत को अक्षुण्ण बनाए रखेंगे। इसकी वजह नेहरू का मानवीय हृदय और उनका सेकुलरिज्म।

जवाहर लाल नेहरू का अपना कोई दर्शन और स्पष्ट राजनीतिक चिंतन नहीं था। वे एक ऐसे सभ्य योरोपियन संस्कारों से लैस थे जिनके अंदर मानवीयता थी और प्रचंड राष्ट्रभक्ति। एक उदारता और विवेकशीलता। शायद यही वजह थी कि नेहरू जी ने देश के लिए जो विकास मॉडल चुना उसके केंद्र में कोई व्यापारी या पूंजीपति नहीं वरन आम नागरिक थे।

नेहरू आधुनिक भारत के राष्ट्र निर्माता थे। आज नेहरू को खारिज नहीं किया जा सकता। भले असहिष्णु तत्व नेहरू के दर्शन को अनुपयुक्त बताएं और अपनी गर्मजोशी के चलते उनसे दूरी बरतें मगर क्या इस बात को भुलाया जा सकता है कि छठे दशक की विश्व कूटनीति में नेहरू किस तरह से तीसरी दुनिया के देशों में भारत की स्थिति सिरमौर बनाने में सफल रहे और विश्व राजनेताओं के बीच नेहरू की तुलना उन राजनेताओं से होती थी जो तब विश्व के शीर्ष पर विराजमान थे। नेहरू का दर्शन युवाओं को लुभाता था और उसकी वजह था जोश के साथ-साथ होश भी रखना।

नेहरू औद्योगिकीकरण की तरफ भारत को ले गए पर यह ध्यान रखा कि भारत  सिर्फ पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली बन कर न रह जाए। वे कल-कारखानों का फैलाव चाहते थे पर उन पर सरकार का अंकुश भी ताकि मजदूरों के हितों की अनदेखी नहीं हो।

वे पहले राजनेता थे जो पूंजी में श्रम की भागीदारी का अर्थ समझते थे और मजदूर को श्रम बेचने वाला सबसे छोटा शख्स नहीं समझते थे बल्कि वे उस पूरे औद्योगिक संरचना में श्रमिक को भी एक नियोक्ता मानते थे तथा उसकी भागीदारी को पूंजी का हिस्सा।

जवाहर लाल नेहरू ने इस देश को समझा था और सबसे निचले स्तर पर जीवन जी रहे व्यक्ति की पीड़ा को भी महसूस किया था। वे अपने संयम और धैर्य से इस भारत देश की विविधता को समझ सके थे। यह उनकी एकजुटता की ही मिसाल थी कि इसी विविधता के भीतर उन्होंने एकता के सूत्र तलाशे और आजीवन वे इन सूत्रों को ही अपना आदर्श समझते रहे। नेहरू जी ने भारतीय दर्शन में भी एकता को ही ग्रहण किया था और उन्हें अच्छी तरह पता था कि मध्यम मार्ग ही भारत के लिए आदर्श होगा। यही एकमात्र सम्यक रास्ता है देश को यथोचित स्थान पर पहुंचाने का। और यह सम्यक मार्ग उन्हें मिला था मध्य कतार से वाम की तरफ झुकाव के जरिए। पंडित जवाहर लाल नेहरू की खासियत यह थी कि वे देश को न धुर दक्षिणपंथ की तरफ ले गए न ही उग्र वामपंथ की तरफ वे देश को ले गए एक ऐसे मध्यम मार्ग की तरफ जिसमें दक्षिणपंथी की गहराई हो और वामपंथी की सी उदारता। ऐसे पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर उन्हें प्रणाम और नमन।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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