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विशेष : भारत के एक गांव में एक शिक्षिका अलग से लगाती हैं संविधान की क्लास

संविधान दिवस पर विशेष। शिक्षिका गांव के छोटे बच्चों को नागरिक बनाने के प्रयास में जुटी हैं। वे सप्ताह में दो या तीन दिन स्कूल के आखिरी सत्र में सभी बच्चों को संविधान के मूल्यों पर आधारित गतिविधियां कराती हैं। 
village school

सांगवी, महाराष्ट्र में अकोला जिले का एक छोटा सा गांव है। यह गांव मुर्तिजापुर नाम के कस्बा से 17 किलोमीटर दूर है। गांव के ज्यादातर लोग मजदूर परिवार से हैं। कुछ लोग गांव के बाहर रहकर अपने खेतों में काम करते हैं।

इस छोटे गांव में एक छोटा लेकिन बेहद साफ सुथरा स्कूल है। इसका पक्का भवन सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां की शिक्षिका हैं- शीतल जाधव। शीतल बेहद विनम्र और शालीन हैं। वे अपने स्कूल में आने वाले हर मेहमान का बड़े उत्साह के साथ स्वागत करती हैं।

जब शिक्षिका से बातचीत की तो पता चला कि वे जून 2018 से अपने स्कूल में संविधान के मूल्यों के शिक्षण से जुड़ी हैं और गांव के छोटे बच्चों को नागरिक बनाने के प्रयास में जुटी हैं। वे सप्ताह में दो या तीन दिन स्कूल के आखिरी सत्र में सभी बच्चों को संविधान के मूल्यों पर आधारित गतिविधियां कराती हैं। 

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सांगवी का यह प्राथमिक स्कूल इतना छोटा है कि बच्चों की कुल संख्या 23 है। यहां दो शिक्षिकाएं हैं। इनमें से एक शीतल हैं, जो पिछले चार वर्षों से इस स्कूल में शिक्षिका के तौर पर कार्यरत हैं। हालांकि, यहां बच्चे कम हैं लेकिन जब कभी दूसरी शिक्षिका अवकाश पर जाती हैं तो उनकी अनुपस्थिति पर दूसरी शिक्षिका को ही पूरी पांचों कक्षाएं पढ़ानी पढ़ती हैं।

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इस स्कूल में बिताए कुछ घंटों के बाद यदि इसके बारे में एक पंक्ति में कहने को कहा जाए तो यहीं कहा जाएगा कि ऐसे बहुत कम स्कूल होंगे, जहां किसी शिक्षिका के साथ बच्चों के साथ इस सीमा तक प्रेम और दुलार का संबंध होगा! यही भावना है, जिसके कारण पूरे स्कूल का माहौल खुशनुमा बना हुआ है।

लेकिन, यह स्कूल जाना जाता है शिक्षण की विशेष पद्धतियों के कारण। शीतल जाधव के साथ एक अच्छी बात यह है कि वे नवीन और आधुनिक विचारों वाली शिक्षिका हैं। वे संविधान के मूल्यों को बच्चों में आत्मसात कराने के लिए नवीनतम पद्धतियों का उपयोग करती हैं। शिक्षण की इन पद्धतियों के उपयोग के पीछे उनका एक विशेष उद्देश्य है। यह उद्देश्य है बच्चे स्वतंत्रता, न्याय, समता और बंधुता का महत्त्व पहचाने और ऐसे मूल्यों को अपने जीवन व्यवहार का अंग बनाएं। उनकी इस रचनात्मक पहल और प्रयासों के चलते बच्चे भी शिक्षण के दौरान अपनी रचनात्मक भागीदारी निभाते हैं।

इस स्कूल में बच्चों को अच्छी तरह से सिखाने के लिए आमतौर पर बोधकथाओं का सहारा लिया जाता है। बोधकथा पूरी होने के बाद शिक्षिका बच्चों से अलग-अलग तरह के प्रश्न पूछती हैं। हालांकि, इस दौरान बच्चों से कथा से जुड़े वस्तुनिष्ठ प्रश्न ही पूछें जाते हैं। लेकिन, कुछ प्रश्न ऐसे भी होते हैं जिन्हें खुले या मुक्तोतरी प्रश्नों की श्रेणी में रखा जा सकता है। यह प्रश्न ऐसे होते हैं, जिन्हें उत्तर हां या नहीं में नहीं होते, न ही यह प्रश्न के उत्तर सीधे-सीधे उस कहानी में मिलते हैं। इस तरह के प्रश्नों में एक से अधिक उत्तर हो सकते हैं। ये प्रश्न बच्चों को सोचने और समझने का अधिक से अधिक मौका देते हैं। इससे उनके मत अलग-अलग होते हैं। और कई बार विमर्श की स्थिति बन जाती है।

कथा सुनाने के बाद शीतल प्रश्न पूछने के लिए एक दूसरा तरीका भी अपनाती हैं। इसके लिए वे बच्चों से सवाल पूछने के लिए कहती हैं। इसी तरह, कक्षा तीसरी की मूल्यों को बढ़ावा देने वाली विद्यार्थी पुस्तिका की एक कहानी 'गलतफहमी' पूरा कराने के बाद बच्चों से जब वे कहानी से संबंधित प्रश्न पूछने के लिए कहती हैं तो पहली से पांचवीं तक के कई बच्चे प्रश्न तैयार करते हैं। इस तरह, सब अलग-अलग प्रश्न करते हैं और कुल मिलाकर, इस दौरान 21 प्रश्न हो जाते हैं।

इनमें ज्यादातर वस्तुनिष्ठ होते हैं। लेकिन, कुछ प्रश्न खुले या मुक्तोतरी श्रेणी के भी होते हैं। इस अभ्यास से बच्चों में सोचने और प्रश्न करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। उनमें कल्पनाशीलता बढ़ती है और जब कहानी बनाने का टास्क दिया होता है तो वे अपने अपने विचार से अलग-अलग कहानियां बनाते हैं।

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शीतल जाधव ने गणित जैसे कठिन विषयों को आसानी से सिखाने के लिए भी अच्छा उपाय अपनाया है। वे बच्चों को जोड़ी के माध्यम से गणित के प्रश्नों को हल करने का अभ्यास देती हैं। इसमें वे गणित के मामले में एक होशियार और एक कमजोर बच्चे को एक साथ जोड़ी में रखती हैं। यदि एक जोड़ी के दोनों बच्चों को गणित का प्रश्न सुलझाने में दिक्कत होती है तब पड़ोस की जोड़ी उनकी मदद करती है। तब भी यदि बच्चे गणित के प्रश्न नहीं सुलझा पाते तब आखिरी में शिक्षिका बच्चों की सहायता करती हैं। इससे पहले स्तर पर बच्चे खुद ही अपने से गणित के गूढ़ प्रश्न सुलझा लेते हैं। इससे शिक्षिका को पढ़ाने में आसानी भी होती है।

इस तरह के अभ्यास का एक और लाभ यह है कि बच्चे आत्मविश्वास के साथ न सिर्फ अपना परिचय देते हैं, बल्कि अपने स्कूल में आने वाले मेहमानों का साक्षात्कार भी लेते हैं। वे अपने मेहमान के जीवन से जुड़े कई ऐसे प्रश्न पूछते हैं जिनके बारे में कई बार उस मेहमान ने भी नहीं सोचा होगा। यही बात मेहमानों की नज़र से इस स्कूल को बाकी स्कूलों से अलग बनाती है।

इस दौरान हमने बच्चों से बातचीत की। जब हम उनके बीच गए तो यह अन्य स्कूलों के बच्चों की तरह साधारण ही नजर आए। लेकिन, जब हमने उनसे चर्चा शुरु की तो पता चला कि बच्चों से बात किए बगैर शिक्षा के कारण उनके व्यवहार में आने वाले बदलाव को समझना क्यों मुश्किल है।

बातचीत के दौरान हमने शिक्षिका के पढ़ाने के कौशल के बारे में उनसे सरल और सहज प्रश्न किए। इस दौरान बच्चों ने बताया कि शिक्षिका महज कुर्सी पर बैठकर नहीं पढ़ाती हैं। वे बच्चों की बहुत सारी जोड़ियां और समूह बनाती हैं और बच्चों के साथ बैठती हैं। इस दौरान बच्चों की आपसी चर्चा को बढ़ावा दिया जाता है और कोशिश रहती है कि बच्चे अपने प्रश्न के उत्तर खुद ढूंढ़ने का प्रयास करें।

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इस दौरान पूरी कक्षा में बच्चे बारी-बारी से अपनी-अपनी प्रस्तुति देते हैं और किसी मुद्दे या विषय पर आमराय बनाने की कोशिश करते हैं। इस अभ्यास के कारण बच्चे एक—दूसरे की मदद और भावनाओं को साझा करते हैं। इसलिए, उनमें दोस्ती बढ़ जाती है और उन्हें अलग से यह बताने की जरुरत नहीं पड़ती कि किसी बच्चे को अलग जाति या धर्म के कारण शामिल किया जाना चाहिए, बल्कि बच्चे इन गतिविधियों के माध्यम से बिना बताए सामाजिक पूर्वाग्रह से दूर रहते हैं। शिक्षिका ये जोड़ियां और समूह में बार-बार बच्चों को बदलती रहती हैं। इससे वे हर जाति और समुदाय के बच्चों के अलग लैंगिक भेद को भी बगैर कहे मिटाती हैं।

शिक्षिका के मुताबिक, इस तरह की शिक्षण पद्धतियों से बच्चों में स्वतंत्रता आती हैं। वे एक-दूसरे के मददगार बनते हैं। यह शिक्षण का प्रभावी तरीका है जो शिक्षिका के कौशल को स्पष्ट करता है। 

आख़िरी में कहा जाए तो सांगवी के बच्चों के लिए सवाल ही वह तरीका है जो उन्हें जटिल से जटिल रहस्यों से पर्दा उठाने में मदद करता है। दूसरे शब्दों में उनके लिए सवाल ही जवाब है।

(लेखक कम्युनिकेशन मैनेजर, कंटेंट राइटर और शिक्षा के क्षेत्र में एक ट्रेनर की भूमिका निभा रहे हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।) 

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